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महार-क्षेत्र के प्राचीन मूर्तिलेख ( संग्राहक-पं० गोविन्ददास जैन न्यायतीर्थ, शास्त्री )
[गताङ्कस आगे]
- - (न०६४)
३ मंगलवारको विम्ब प्रतिष्ठा कराई। मृति धातुसे बनी है । सवाङ्ग सुन्दर है । करीब
(नं०६८) २ इश्च ऊंची पद्मासन है । चिन्ह नहीं है।
यह मृत्ति सर्वाङ्ग सुन्दर है । पाषाण देशी है। लेख-संवत् १६७१ वंशाख सुदी ।
करीब सा फुट ऊँची पद्मासन है। चिन्ह सर्पका भावार्थ-संवत १६७५ के वैशाख सुदी ५ को है। बिम्ब प्रतिष्ठा हुई।
लेख-संबत् १८६६ अगहन सुदी ७ भौमे श्री (नं०६५)
मूलसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुन्दकुन्दाचार्ययह मति पीतलकी बनाई गई है। करीब २ इञ्च थाम्नाये चौधरी................तस्य पुत्र चौधरी गनेश ऊंची पद्मासन है। चिन्ह मर्प का है।
ग्रणमन्ति। लेख-सवत् १६८८ फागुन सुदी ८ भ. जगन्द्रषेण । भावार्थ:-श्री मूलसंघ, बलात्कारगण, सरस्वती
भावार्थ-भ० जगन्द्रपेणने मंवत १६८८ के गच्छ कुन्दकुन्द आम्नायमें पैदा होने वाले........ फागुन सुदीको प्रतिष्ठा कराई।
उनके पुत्र चौधरी गनेशने संवत् १८६६ के अगहन (नं०६६)
सुदी ७ मंगलवारको प्रतिष्ठा कराई। यह मृत्ति मफेद पापाणकी है। मृत्ति सर्वाङ्ग मन्दर है। करीब शा फुट ऊंची पद्मासन है। चिन्ह यह मत्ति सर्वाङ्ग सुन्दर है। पाषाण सफेद है। वगेरह कुछ नहीं है । लेख प्रायः घिम चुका है। करीब ।। फुट पद्मासन है। चिन्ह सर्पका है। कुछ हिस्सा पढ़ा जासका।
लेख-संवत् १५४८ वर्षे वैशाख सुदी १३........ लेख-संवत् १५४८ वर्षे वैशाग्य सुदी १२.....
भावार्थ:-मंबत् १५४८ के बैशाख सदी १३ भावार्थ:-संवत १५४८ के वैशाखसुदी १२ को यह बिम्ब प्रतिष्ठित हुई। को विम्ब प्रतिष्ठा हुई।
नोटः-लेख घिस गया है। अतः पूरा पढ़ा नहीं (नं.६७)
गया। यह मत्ति माग सुन्दर है । मफंद पाषाण की
(नं०१००) बनी हुई है। चिन्ह कमलका है । करोब १ फुट ऊँची मृत्तिका शिर नहीं है । पाषाण काला है। पद्मासन है।
करीब ३ फुट ऊंची पद्मासन है। चिन्ह बैलका लेख–संबत् १५४८ वर्षे वैशाख सुदी ३ भीमे संघ है। पालिस चमकदार है। संवतका कुछ भाग टूट भट्टारक श्रीजिनचन्द्रदेव पाहु जीवराज पापकोवर एते गया है। बाकी सर्वाङ्ग सन्दर है। प्रणमन्ति ।
लेख-संवत्... EE महिषणपुर पुरवाडान्वये साहु भायार्थः-भट्टारक श्री जिनचन्द्रदेव वा शाह श्रीलाखणसतश्रीबठई भार्या साऊ जसकरी सुत साहू जीवराज-पापकोवरने संवत १५४८ के वैशाख सुदी प्रणामन्ति ।
(०६)