________________
किरण ४]
महारक्षेत्रके प्राचीन मूर्तिलेख पाषाणसे बनी है । पालिस चमकीली है। मूर्ति शिर नोटः-लेखके अपर घिस गये । अतः वह पूरा पढ़ा से खण्डित है । चिन्ह शेरका है।
नहीं गया। लेख-............पण्डितश्रीगंगवर तस्य भार्या जागल
(०११०) बती सुत मांगनदेव श्रीवीरनाथं प्रणमन्ति नित्यम् । संवत् यह मूर्ति देशी पाषाणकी बनी है। करीब २ १२०३ माह बदी।
फुट ऊंची पद्मासन है । चिन्ह शेरका है। भावार्थ:-.......पंडित श्री गंगवर उनकी पत्नी लेख-साह श्री नवल पुत्र नस्ल संवत् ११३१ मय । जागलवती उसके पुत्र मांगलदेव श्री वीरनाथको भावार्थ:-संवत ११३१ में शाह श्री नवल उनके संवन १२०३ के माघबदी २ को प्रतिष्ठा कराके प्रणाम पुत्र नलने बिम्बप्रतिष्ठा कराई। करते हैं।
नोट:-उपलब्ध लेखोंमें यह दूसरा प्राचीन मूर्ति(नं०१०७) . यह मूर्ति देशी पापाणसे बनी हुई है । करीब १
(नं०१११) फुट ऊची पद्मासन है । चिन्ह सर्पका है। पालिस यह मूर्ति भी खण्डित है । सर्वाङ्ग सुन्दर है। कुछ काला है। ग्राम नारायणपरके मंदिरमें नं०११ लेख-संवत् १२३७ मार्गसदी ३ शुक्रे गोलापूर्षान्वये से लेकर १६ तक विराजमान हैं।
___ साह राल्हण तस्य.......... लेख-संवत् १७१३ वर्षे मार्गशिर सदी १० रबऊ श्री- ................ प्रणमान्त । भट्टारकधवलकीति भट्टारक सकलकीर्ति....
भावार्थ:-संवत् १२३७ के अगहन सुदो ३ प्रणमंति नित्यम् ।
शुक्रवारको गोलापूर्व वंशमें पैदा हुए साह राल्हण भावार्थ:-श्री भट्टारक धवलकीर्ति और भट्टारक उसके............ने विम्बप्रतिष्ठा कराई । ये सब प्रणाम श्री सकलकीत्तिने संवत् १७१३ के अगहन सुदी १० करते है। रविवारको प्रतिष्ठा कराई।
(नं० ११२) (नं०१०८)
लेख-जैसवालान्वये साहु मोतीकांत भार्या माहण पीतलसे निर्मित है। करीब ४ इञ्च प्रणमन्ति नित्यम् । ॐची पद्मासन है । चिन्ह सर्पका है।
भावार्थ:-जैसवालवंशोत्पन्न शाह मोतीचन्द्र लेख-सवत् १५२४ वर्षे बदी शुक्र दिने गोलापूर्ववंशे उनकी पत्नी माहण प्रणाम करते हैं। बलई तस्य भार्या पन्ना प्रणमंति।।
(नं० ११३) ___ भावार्थः-गोलापूर्व वंशोत्पन्न श्री बलई उनकी यह एक तावेका षोड़शकारण यन्त्र है । थाली पत्नी पन्नाने संवत् १५२४ के बदी १ शुक्रवारको की तरह गोल है। उसमें एक लेख है जो प्रतिष्ठा कराई।
नीचे दिया जाता है(नं०१०६)
लेख-संवत् १७२० वर्षे फागुन सुदी १० शुक्र ब. स. यह मूर्ति सफेद पाषाणकी बनी है। करीब ६ कुन्दकुन्दाचार्याम्नाये महारकश्रीसकसकीर्तिउपदेशात इंच ऊची पद्मासन है। चिन्ह कमलका है। गोलापूर्वान्वये गोत्रपथबार पं० परवति तरसुत-जेष्ठ-डोंगरू
लेख-सवत् १५४८ वर्षे बैशाख सदी३ भट्टारक श्री पाक-विशन-उग्रसन नित्यं प्रणयन्ति सि० खरसेनके जिनचंद्र..........................
............. यन्त्रमें यन्त्र प्रतिष्टितं ।
भावार्थ:-गोलापूर्व पेंथवार वंशमें पैदा होनेवाले भावार्थ:-भट्टारक श्रीजिनचंद्रने संवत् १५४८ पण्डित परवत उनके पुत्र डोंगर-पाक-विशनु-उग्रसेन के बैशाख सुदी ३ को प्रतिष्ठा कराई।
ने कुन्दकुन्दाचायकी आम्नायमें हुए भट्रारक सकल
........................