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१४० अनेकान्त
[वर्ष १० ५७ फुट ऊँची है। यहीं श्रादिनाथ और नेमिनाथकी उपसंहार-इन प्रकार हम देखते है कि गुफाम३०-३० फुट ऊँची मूर्तियां हैं, साथ ही साथ अनेक ठिरोंका इतिहास जैनोंसे ही प्रारंभ होता है और छोटी छोटी मूर्तियां तथा अलंकरण आदि है पर उन्हींपर आकर समाप्त होजाता है- ग्वालियर उनमें कोई आकषण नहीं है । दूसरा समूह आधा किलेके गुफामन्दिरोंके उत्तर-काल में शायद अन्यत्र मील ऊपर और जाने पर मिलता है जहां २०.३० कहीं कोई गुफामन्दिर खोदाही नहीं गया। जहां फटकी मूर्तियां तथा :.-१५ फुट तककी बहुतसा तक शिल्प का क्षेत्र है जैन अन्य दोनों, ब्राह्मण बौद्ध मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । इस समहमें सचमुच गुफा कही सम्प्रदायोंस किसी प्रकार पिछड़े नहीं है-- अजन्ता जा सकनवाली गुफाएं भी है। इनके अतिरिक्त की गुफाओंका विशेष महत्व उनके चित्रोके कारण पहाड़ीके चारों ओर तीन-चार गुफामन्दिर समूह है-। उदयगिरि और खडगिरि की गुफाएं तो गुफाहै, उनमेंसे सर्वाधिक महत्त्व का समह है एक पत्थर निमोणके इतिहास में सवेच्चिस्थान प्राप्त किये हुए की वाबड़ीक पासका। इस गुफासमहमे पार्श्व. है, और इन्हींस दोमंजिलोगुफाओंका इतिहास नाथ की पद्मासन मति करीब २० फुट ऊंची है, प्रारंभ होता है। ऋषभनाथ अजितनाथ आदि की कायोत्सर्ग श्रामन में खड़ी अनेक विशाल मतियां है। समूह से हटकर
कलाकी दृष्टिसे शित्तनवासलक मदिरभी उल्लेखकुछ गजों की दूरीपर एक विशाल गुफा है जो सही नीय है। इसीप्रकार सौराष्ट्रमे गिरनारकी बाबा माने में मन्दिर ही है। मन्दिरकी मलनायक मूर्ति प्यारा मठ तथा ऊपरकोटकी गुफा भी जैन गुहा५५-६० फुट से कम ऊँची न होगी।
मंदिर निर्माण की प्राचीनता सिद्ध करती हैं। इन इन गुफामन्दिरोंमें अनेक लेख मिले हैं जिनसं गुहाओंमें अनेक जन चिन्ह प्राप्त हये है और वर्जेस विदित होता है कि ये ३३ वर्षमें खोदी जा सकी थीं ने यही पार्श्वनाथकी एक मूर्ति भी दखी है, इसी (अर्थात १४४१ से १४७४ में)। कनिंघमका मत है स्थानसे क्षत्रपकालीन उत्कीर्ण लेख भी प्राप्रहा था कि ये लेख पीछेसे जोड़े गए है। कुछभी हो, पर जिसमें 'केवलिज्ञानसंप्राप्तानां' पद पढ़ा गया था। इसमें संदेह नहीं कि ये १५वीं शतीक गुफामन्दिर है ऐसी स्थिति में फर्गसनके इस कथनका कला और शैलीकी दृष्टिसे ये अन्य स्थानीय गुफा- कि जैन कभी गृहानिर्माता रहे ही नहीं क्या मन्दिरोंकी अपेक्षा अधिक निम्न श्रेणीके है। मल्य है इसे पाठक स्वयं समझ सकते है।