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अनेकान्त
वर्ष १०
कल्पवृक्षः । उत्पद्यत निर्मलधर्मपालश्चक्र:श्वर, मे ११-१२ वीं शतीको गफाप हैं । इनमें से दो पञ्चमचक्रपाणि ||५|| शुभ भवतु ।।
गफाओं में भद्दी जिन-कृतियां पद्मासन ध्यान-मुद्रा __फाल्गुण त्रितीयां बुधे
में हैं। एकको दीवालमें मिहासनपर जिन हैं, उक्त लेबसे ज्ञात होता है कि शक सं० ११५६ उनके मस्तकपर २ नथा कतारोंमे १६ जिन है । गुफा फाल्गुण शुक्ल तृतोया बुधवारको श्रीवर्धनापुरके के पीछे सपफणयुक्त पार्श्वनाथको अधूरी मृति है। चक्र श्वर नामके व्यक्तिने चारा ऋषियांसे सेषित भामेर-खानदशक निजामपुर डिवीजनमे इस पहाड़ीपर कर्मोके क्षयहेतु श्री पाश्वनाथका धूलियास ३० मील दूर कुछ गुफाएं है। इनमेसे चैत्य और माथही माथ अनेक विशाल जिनमृतियां तीसरी सचमुच गुफा है, इसका बरामदा ७४ फुट भी निर्माण कराई और इस प्रकार यह चारणाद्रि है और उसम तीन द्वार २४४२० के वरामदोंमे जात पर्वत एक तीर्थ बना दिया गया जिम प्रकार भरतन है। जो एकदम अधियार है। दीवालोंपर पाश्वकैलाशको बना दिया था। पांचवें श्लोकमे चक्रेश्वर- नाथ तथा अन्य तीर्थककी भद्दी आकृतियां बनी को अनेक गण-यक्त, धर्मपालक तथा पंचमचक्रपाणि है। शैली चामरलेय जैसी ही है। (चक्रवर्ती या नागयण) कहा गया है।
__ बामचन्द्र-पूनासे करीब १५ मील वायव्य कोण पहाड़ीके नीचे और भी गुफाए हैं पर वे टूट में एक छोटा-सा गुहाम दिर तथा दो अधूरे गुहाफूट चुको है।
मदिर है। अब इनमें शिवलिंग स्थापित है। मडप पाटन-पीतल बोराके निकट पाटन ग्रामके पूर्व १५|| वर्गफुट, छत नीचा, चार स्तंभ, गर्भगृहक द्वार में कनहर पहाड़ीके पश्चिमी भागमे दो ग एं की चौग्बट अलगमे जोड़ी हुई। यहां जो भी आकृनागार्जुनकी कोठरी और सीताकीन्हानी खुदी हुई तियां मिलती है व तेल और सिंदर आदिसे इतनी है। दोनों गुफा' प्राय, एक-सी है, उनका आकार पोत दी गई है कि पहचानी नहीं जाती। अनियमित है और उनम अनक दिगम्बर मूर्तियां अकाइ त काइ गफाएं-अकाई गांवमें १०८गज उत्कीर्ण है । पहला गुफा का वरामदा एक छोरपर की दरीपर मात गुफाओका समूह है ,गुफाएं है तो छाटी १८४६ और दूसरपर १८४ है और दो खंभांस पर शिल्पकी दृष्टिले महत्वकी है। पहली गुफा दोसधा हुआ है । दूसरी गुफाका वरामदा २४ फुट मजिली है । नीचंकी म जिलका सामनका भाग दो लबा ह और उसमें भी दो खंभ है। वरामदाक वा बभोक आधारपर स्थित है। दोनों खंभोंपर द्वारएक छोटा-मा कमरा भी है। हाल २०४१४ और पाल जैसी आकृतियां उत्कीर्ण है । वरामद से मंडपमें २०x१६ का है, उसमें भी दो ग्वंभे है, इनममे एक जानका द्वार तो शिल्पमे भरपूर है वहां सूक्ष्म-मे पर स्थूल पुरुष और दमरपर बालक लिए स्त्री सूक्ष्म अंकन किया गया है। भीतरी मडप वगाकार उत्कोण है। पिछली दीवालमें कमलपर तीर्थकर है, उसकी छतको चार खंभे साधे हुए हैं। सभी
आसीन हैं । सिर पर तीन छत्र, कंधोंके ऊपर खंभे १११२ वीं शतीकी शैलीके है । गभगृहका विद्याधर आदि और दोनों ओर दो चंवरधारो द्वार भी पूर्ववत् शिल्पपूर्ण है । ऊपरी म जिलका है। पीछेको आर दक्षिणी दीवालमें आदमकद खड़े द्वार उतना शिल्पित नहीं है, भीतरी हाल ता बिलजिन उत्कोणं है, उनके पीछ प्रभामंडल, मिरपर कुल ही सादा है। तीन छत्र आदि है । गफाकी बनावट एलोराको दमरी गुफा पहले जैसी ही है और दो-मंजिली अन्तिम कालीन गफागों जैसा ही है अतः य उसी है। नीचेकी मंजिलका वरामदा २६४१२ फूट कालकी होनी चाहिए।
है, उसके दोनों छोरोंपर जो मतियां है जो दीवाल चामर लेण-नासिक से कुछ दूर वायव्य कोण- में उत्कीर्ण की हुई नहीं बल्कि स्वतंत्र पापाणकी हैं।