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ऐतिहासिक भारतकी आय मूर्तियां
युगमें इन्द्रकी मूर्तियां बनती थीं । रुद्र या शिवके डा० हेफल्डने भी गांधारकलाको यूनानी-बेक्ट्रियन वैदिक या प्राय देवता न होने में तो किसी संशयकी साम्राज्यके शताब्दियों पश्चास्का माना है। आवश्यकता ही नहीं।
एक बुद्धमूर्तिपर ३१८ वर्ष अंकित है। अनुमान ____ अब हमें देखना यह है कि आध मूर्ति-निर्माण किया जा सकता है कि सेल्यूकसका संवत् होगा। में किसे प्रथम स्थान प्राप्त है जैन तीर्थकरोंको या जिसके अनुसार मूर्तिका समय ६ ईस्वी होगा। इसबुद्ध और बोधिमत्वोंको । सर्वप्रथम हम बुद्धकी प्रकार गांधारकला मधुराकलासे पूर्वकी प्रतीत होती प्रथममतिके निर्माणकं सम्बन्धमे विचार करेंगे। है। लेकिन भावुकताके वश होकर कई लोग ऐसा भी बुद्धनिवाणके शताब्दियों पश्चात् तक बुद्धकी मर्ति मोचने लगते है कि बुद्धकी प्रथम मूर्ति भारतीयों बनानेका एक प्रकारसे निषध ही रहा, बोधिवृक्ष द्वारा ही बनाई गई होगी। धर्मचक्र, छत्र, वामन, स्तूप आदि चिन्हांसे सिक्कोंपर भी हमें बुद्धकी मूर्ति प्राप्त हुई है। ही बुद्धको लक्षित कराया जाता था । बाध गया, भ- कनिष्कके सिक्कोंपर तो वह स्पष्ट Bodds या बुद्ध रहत और मांचीकी ईस्वी पूर्व २री और ३री शती
नामसे अभिलिखित भी है। लेकिन कनिष्फमे पर्वके
- की कलामे कही भी बुद्धको मति नहों पाई जाती। इसके
गजा मोग और कुजल कडफिमसके सिक्कांपर भी बाद गांधार और मथुराम बुद्ध मूर्तियोंका निमोण
बुद्धमूर्ति दग्वी जाती है। होना प्रारम्भ हुआ। इस बीच अवश्य कोई ऐसा
महाराज मोगका एक सिक्का है जिसमें एकघटना हुई होगी जिमने बुद्धमूर्तिक निर्माणको प्रो.
ओर सूडमें माला लिए दौड़ता हुआ हाथी और त्माहन दिया। मथुरा की बनी मूर्तियांको ना किमीन भी
दूसरी ओर सिंहासन या चौकीपर पालथीमारे कोई इस्वी प्रथम नदी पृषकी नहीं माना है। उनका मम
व्यक्ति बैठा है। इसे राजाकी मूर्ति नहीं कहा जा य कुपाणवंशी महाराज हुविष्फ(२री शती)का राज्य
मकता, जिस वस्तुको तलवार कहा जाता है वह काल हो सकता है क्योंकि हम जानते है कि मथुरा
बास्तवमें तलवार नहीं है। हम जानते है कि शकोंके की कलाप्रवृत्तियों में हुविष्कका विशेष महयोग रहा
अम्त्र भाले और धनष थे न कि तलवार । सिक्केक है। कई विद्वान मथुराको कलापर गाधार प्रभाव
दोनों ओरका मिलान कर देनेपर यह निष्कर्ष भी मानते है । डा. बचफर दोनों शैलियांको स्वतन्त्र
निकला कि पद्मासन-अवस्थित बुद्धको माला और मौलिक मानते है। गांधार कला ईसाका प्रथम
अर्पित करनेके लिए हाथी दौड़ा आ रहा है। शतीम और मथुरा कला कनिष्ककं मथुराको अधि
कुजूल कडफिममके मिक्केपर सामने बैठे हुए बुद्धकृत करनेके ठीक बाद ही। दूसरे विद्वान मथराकी
, की मृति अंकित है। मूतिको गांधारमतिसे एक शती उत्तरकी मानत है ।। डाक्टर हुठल्यू कोन भी मथराकी मूर्तिको स्वतन्त्र इन प्रमाणांस हम इस निणयपर पहुंचे कि राजा मानते है । स्वर्गीय डा० कुमार स्वामीका भी ऐसा हा मोगक गान्धार विजयके पूर्व हो गांधारमें बुद्धमूर्तिका मत है। सन १६३१ में उन्होंने लिखा था कि गांधार प्रचार हो चला था। कोई भी राजा विजयक बुद्धमूर्ति ईस्वी सन्के उत्तरकी ही होना चाहिए और पश्चात विजित देशकी प्रजाको यह जतानके लिये कि उसमे भी एक शती उत्तरकी मथराकी मर्ति। डा०स्टेन मै तुम्हारा हूं वहांकी सभ्यता मंस्कृति तथा अन्य कोनोका मत है कि गांधार शैली कुपाणयुगमे ही प्रा- चिन्होंको स्वीकृत कर लेता है। महाराजा मोगने भी रंभ हुई थी अर्थात् उस समय जब भारतमें यूनानी ठीक उसीप्रकार शिव और बुद्धको अपने सिक्कोंपर प्रभाव हर प्रकारमं नष्ट हो चुका था । इमीप्रकार अंकित किया । महाराजा मांगने गांधारप्रदेशको ७०