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“श्रीमाताजीका वियोग! अपने और वीरसेवामन्दिरके बहुत बड़े प्रेमी श्रीमान् बाबू छोटेलालजी और बाबू नन्दलालजी जैन कलकत्ताके पत्रोंसे यह मालूम करके चित्तको बड़ा ही आघात पहुंचा कि उनकी पूज्य श्रीमाताजीका भगहन (मंगसिर) सदि एकादशी ता० १ दिसम्बर बृहस्पतिवारको रात्रिके २॥ बजे ८५-८६ वर्षकी भवस्थामें समाधिमरणपूर्वक स्वर्गवास हो गया है ! माताजी यद्यपि वृद्धावस्था आदिके कारण कुछ अर्सेसे बीमार चल रही थी परन्त अपने धर्म कर्ममें सदा सावधान रहती थी, उनकी आत्मा बड़ी बलवान थी और उन्होंने अन्तमें बड़ी ही वीरताका परिचय दिया है। आपने अपना मरण निकट समझकर ४५ दिन पहलेसे अन्नका, २०दिन पहलेसे दूधका और ७.८ दिन-पहलेसे जलका भी त्याग कर दिया था। साथ ही सब सम्बन्धियों तथा परिमहसे भी अपना मोह हटा लिया था और अपनी सारी धन-सम्पत्तिको सत्कार्योंके लिये दान कर दिया था। अन्त समय तक आप बराबर श्री जिनेन्द्रदेवका स्मरण और धर्मका श्रवण करती रही हैं। ब्रह्मचारी भगतजी और ब्रह्मचारिणी चमेलीबाईजी दानों आपको बड़ी तत्परताके साथ नित्य धर्म-श्रवण कराते थे । अन्त में श्रीबाहुबलीजीकी प्रतिमाके दर्शनाथ जिस समय
आपने अपने हाथ जोड़े उसी क्षण प्रापका प्राणपखेरू उड़ गया !! कितना सुन्दर तथा इपोके योग्य मरण है ! ऐसे सन्मरणका फल परलोकमें मद्गतिका होना अवश्ययंभावी है। आप सात पुत्रोंकी माता, बड़ी भाग्यशालिनी तथा बहुत हो सज्जनस्वभावकी महिलारत्न थीं और आपका बहुत बड़ा कुटुम्ब तथा परिवार है। सबसे एकदम मोह छोड़ कर इसतरह अपने आत्मार्थको साधना कोई कम वीरताका काम नहीं है। आपके इस वियोगसे बाबू छोटेलालजी आदिको जो भारी दुःख पहुंचा है उसकी कल्पना नहीं की जासकती। बाब छोटेलालजी भाई गुलजारीलालजी सहित अपनी चिकित्साके लिये जयपुर थे, उन्हें अन्त समयमें मातृसेवास वंचित रहना पड़ा, इसके लिये बड़ा ही खेद हुआ। आप दुःखके साथ लिखते हैं
___ "मुझे तो जितना बड़ा दुलार और स्नेह माताजीसे मिलता रहा है उस में क्या लिखू। आज मैं अपनेको सर्वहारा समझ रहा है। मेरा निरोगताके लिये वह दिवारात्रि श्रीपाश्वप्रभुसे प्रार्थना करती रहती थीं । कल संध्याको कलकत्तासे जो पर आया था उसमें भी यही लिखा था कि 'मॉजीने कहा है कि छोटेलालको लिख दो कि वह अभो न श्रावे-पूण स्वस्थता प्राप्तकर ही श्राव' और पत्रके बाद कल ही रातको उनके स्वर्गवासका तार आगया । बाबजी, मैं क्या लिख मेर हृदयपर तो बनपात-सा हो गया ! रह-रहकर उनको स्नेहमई बातें मुझे याद बारहा है। शक्तिहीन होनेपर भी मेरी बीमारीके समय मेर शरीरपर हाथ फेरती थीं और कहती थी कि बेटा, मॉका हाथ शान्ति करता है । बड़ा आश्वासन दत रहती थीं बड़ी शान्तिके साथ क्या लिब', आज ता इतना सदमा पहुंचा है कि मैं सम्हल नहीं पा रहा हूँ
समझमें नहीं आता कि बाबसाहबको इस दुःखके अवसरपर कैसे सान्त्वना दी जाय! माताजी का आदर्श देहत्याग तथा मोहका त्याग और संसारस्वरूपका विचार ही उनके हृदयमें शान्ति ला सकेगा। आपके तथा सभो कटुम्बी जनोंके इस दुःखमें मेरी तथा वीरसेवामन्दिर परिवारकी हादिर समवेदना है । और हम सबकी यही भावना है कि माताजीको परलोकमें पूर्णत: सुख-शान्ति प्राप्ति होवे।
जुगलकिशोर मुख्तार