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अनेकान्त
[वर्ष १०
ऋषिगफा यद्यपि मौर्यकालीन ही है पर उसमें उस दक्षिणी छोरके ऊपरले भाग ५ पंक्तिका प्राचीन कालका कोई लेख नहीं है। शेष तीन, सुदामा, ब्राह्मी लिपिका लेब है, उमस मात्र इतना ही विश्वझोपड़ी और करणचौपार अशोक द्वारा दान विदित हो पाता है कि गुफाका नाम मुपिया था की गई गुफा है। इनमेंस दो तो राज्याभिषेकके और राजा प्रियदर्शी (अशोक) ने राज्याभिषेकके १२वें वर्ष (२५७ ई० पू०) में और एक उमसे भी मात ११वें वर्ष (२५० ई० पू०) में इम दान किया था। वर्ष पश्चात (२५० ई०पू०)। पहली दो, सुदामा और मल लेख इस प्रकार पढ़ा गया है:विश्वझोपड़ी में तो स्पष्ट उल्लेख है कि वे अजीविकों १.ला [जा पियदसीए[कु] न [वी] को दान की गई थीं। इन गफाओंके दानस राजा २.सतिवसा भमि त..... अशोकके सर्वधर्मसमभावका प्रमाण मिलता है। ३. .......... ..."उथात .. ... ..... अशोकके लेखांस भी यही विदित होता है कि वह ४. मपि ये ख ............. .......... मभी पापण्डों (मतों) की उन्नति चाहता था और ५. ना परस्परका विरोध उसे सर्वथा अप्रिय था, वह तो उक्त लेखके अतिरिक्त आने-जानवाने 'मारवड़ढि' (सारवृद्धि) का प्रेमी था। आजीविक यात्रियोंके भी अनेक छोट २ स्मारक लेख है। सम्प्रदाय उसके कालक प्रधान सम्प्रदायोंमेंस था, मदामा गफा-लेम्वमे इस न्यग्रोध गुहा कहा
और इसका उल्लेख उसके सातवें स्तंभलेखमें भो है। यह सूपिया गफासे विरुद्ध दिशामें है और मिलता है। आजीविक सम्प्रदाय जैनोंका ही एक दक्षिणमुख है। इसमें दो मंडप है, बाहरी और भाग था और यह दिगम्बर सम्प्रदायके अत्यन्त भीतरी मंडप क्रमशः ३३४२० और १६ फुटके हैं। निकट था। इसके साधु दिगम्बर साधुओं जैसे ही गुफाका भीतरी भाग मन्दरतापूर्वक पालिस किया नग्न रहते थे, प्रायः वैसी ही क्रिया और आचार हा है। दीवालें ॥ फट ऊंची है पर क्रमशः पालते थे एवं उग्र तपस्वी होते थे । जैन श्वेताम्बर चढ़ावसे छप्परकी ऊँचाई १२ फुट ३ इंच हो गई ग्रन्थों में उल्लेख मिलते है कि इनका नेता गोशालक है। दाहनी और दो पंक्तिका अशोकके राज्याविचारों में मतभेद उपस्थित हो जानेके कारण अभिपकके बारहवें वष (२५७ ई० पू०)का लेख महावीरके संबसे अलग हो गया था। तीसरी गफा करणचौपारका लेख घिम जाने में उसके दानके १. लाजिना पियदसिना दुवादस [वसभिसंबंधमें कुछ ज्ञात नहीं हो मका।
मितना] .......... ___ अब क्रमशः प्रत्येक गुफाका मंक्षिप्त विवरण ..[इय] निगोह कुभा दि [ना आजीविकेहि किया जाएगा।
इसमें इम लेग्बके अतिरिक्त यात्रियोंके अनेक करणचौपार-शिलालेखमें इसे 'मुपिया' छोट लेख है। गुफा कहा गया है। इसका मुख उत्तरकी ओर लोमपऋषि गका-लेखमे यह प्रवरगिरि गहा है। इसका भीतरी मंडप ३३४ १४ फुट है। दोवारे कही गई है और सुदामा गुफासे कुछ गजोंकी ६ फुट ऊँची किन्तु छप्परके क्रमशः चढ़ावसे वह ही दूरीपर है । गुफा तो पूर्ववत् प्राचीन ही है करीब ११ फुट हो गया है । पश्चिमी छोरपर किन्तु लेख गतकालका है। इसमें सुदामा जैसे मूर्ति स्थापित करनेके लिए चौकी है । इस ही द्वार है । यह उतनी ही विस्तृत है और इसकी चौकीको छोड़ शेष मारी-की-मारी गफा मोये- वनावट भी उसके हो जैसी है, लेकिन प्रवेशद्वार कालीन चमकती हुई पालिमयुक्त है। गुफाके बाहर का मिहराब अधिक बड़ा, अधिक विस्तृत एवं लकड़ी चट्टानपर शिवलिंग स्थापित है। बाहरी द्वारक ढंगकी बनावटके अनुरूप है, उसमें हाथी और