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अनेकान्त
ग्वालियरके अन्य जिलों एवं ग्रामों में उपलब्ध सामग्री
ग्वालियर स्टेटके वर्तमान क्षेत्र में भेलसा (विदिशा), वेसनगर, उदयगिरि, बडोह (भिलसा) बरो (बडनगर) जि० अमझेरा, मंदसौर (दरापुर), नरवर, ग्यारसपुर, सुहानियाँ, गूडर, भीमपुर, पद्मावती, जारा जि तोंबरधार, चंदरा, मुरार आदि नगरोंमे बौद्ध और हिन्दुओ के प्राचान पुरातत्व अवशेषोंके साथ जैनियोंके भी प्राचीन पुरातत्व अवशेष उपलब्ध होते है । यद्यपि जैनियोंके पूरा
के सम्बन्धमें कोइ विशेष अन्वेषण नहीं किया गया और न जैन मर्तियों के सम्बंध में विशेष जानकारी ही प्राप्त की गई है जिसके किये जानेकी खाम जरूरत है । परन्तु इन स्थानोंके सम्बंध में जो कुछ परिचय ज्ञात हो सका है उसे नीचे दिया जाता है:
भिलसा—यह एक प्राचीन स्थान है । यहाँपर पुरातत्व के अनेक प्राचीन अवशेष पाए जाते हैं । नगरके समीप ही बौद्धोंके ६० स्तूप हैं जो ईस्वी सन की तीसरी शताब्दी से पूर्व और इश्वीसन् १०० तक के हैं । पडित देवीदासने आचार्य नरेन्द्रसेनकं सिद्धान्तसारकी हिन्दी गद्यटीका सं० १८४४ में यहां ही पूर्ण की थी।
वेमनगर -- भिलसाके उत्तर-पश्चिममें एक समृद्धिशाली प्राचीन नगर था जो मंगराजा श्रग्निमित्रका राज्यस्थान भी रहा है। और जिसे पाली भाषा के प्रन्थों में 'चैत्य गिरी' नामसे उल्ल ेखित किया गया है । यहाँपर बौद्धांके प्राचीन स्मारक पाए जाने हैं। इसमें उज्जैन के क्षत्रपोंके नागों और गुप्तक सिको भी प्राप्त हुए है। जैनियोंका तो यह महत्व
पूर्ण स्थान रहा है, जैन लेखोंमें इसे 'भद्दलपुर' कहा है जो १० वें तीर्थङ्कर शीतलनाथका जन्मस्थान रहा है। यहांपर जैनियों की एक गुप्तकालीन सुन्दर एवं कलापूर्ण मूर्ति मिली है. जो गूजरी महल के संग्र हालयमें रक्वी हुई है ।
[ वर्ष १०
उदयगिरि - उक्त भेलमा जिलेमें उदयगिरि नामका एक प्राचीन स्थान है-भेलनासे ४ मील दूर पहाड़ी में कटे हुए मन्दिर है । पहाड़ी पौन मीलक करीब लम्बो और ३०० फुटकी ऊँचाईको लिये हुए. है । यहां बीम गुफाएँ है। जिनमें प्रथम और बी नम्बरकी गुफा जैनियोंकी हैं, उनमें २० वीं गुफा जैनियोंके तवीसवें तीर्थंकर श्रीपार्श्वनाथकी है। उसमें सन् ४२५-४२६ का गुप्तकालीन एक अभिलेख है जो बहुत ही महत्वपूर्ण है । और जो इस प्रकार
हे:--
"सिद्धांको नमस्कार । श्रीसंयुक्त गुणसमुद्रगुमान्वय के सम्राट कुमारगुप्तके वर्द्धमान राज्य शासनक १०६ वें वर्ष और कार्तिक महीनेकी कृष्ण पचमी के दिन गुहाद्वारमं विस्तृत सर्पफरण से युन. शत्रुओं का जीतनेवाले जिन श्रेष्ठ पार्श्वनाथ जिनकी मूर्ति शमदम वान शंकरने बनवाई। जो आचाय भद्रान्वयके भूषण और आर्यकुलोत्पन्न आचाय गोशम मुनिके शिष्य तथा दूसरोंके द्वारा अजेय रिपुघ्न मार्न अश्वपति भट संघिल और पद्मावतीके पुत्र शंकर इम नामसे लोक में विश्रुत तथा शास्त्रोक्त यतिमार्गम स्थित था और वह उत्तर कुरुवोंके सदृश उत्तर प्रान्तके श्रेष्ठ देशमें उत्पन्न हुआ था उसके इस पावन कार्य में जो पुण्य हुआ हो वह सब कर्मरूपी शत्रसमूह क्षयके लिये हो ।" वह मूल लेख इम प्रकार है:
६-नमः सिद्धेभ्यः ["] श्रीसंयुमानां गुणतोयधीनां गुप्तान्वयानां नृपसत्तमानाम् । २--राज्ये कुलस्याधि विवर्द्धमाने विश
मासे [1] सुकार्तिके बहुलदिनेथ पंचमे । ३- गुहामुखे स्फटविकटोत्कटामियां, जिमद्विषां जिनवर पाश्वमंशिको जिमाकृति शम-दमवान । ४- चोकरत्] [11] आचार्यभद्रान्वयभूषणस्य शिष्यो सम्मा बाकुलोद्वतस्य श्राचार्य गोश
* मुनेस्तास्तु पद्मावताश्वपते टस्य [1] यस्य रिपुन मानिनम्स सघिल
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