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मेरे मनुष्य जन्मका फल
( श्रीजुगलकिशोर कागजी )
: ह सके।
मेरी जो आत्मा इस समय शरीरके सहारसे खुशी मेरे शरीरके स्वस्थ रहनेपर निर्भर है उमी जीवित रह रही है उसे मै इसप्रकारका अभ्यास प्रकार दूसरे प्राणीकी खुशी भी उसके शरीरके - कराऊँ जिससे उसका आत्मबल बढ़ता जावे और स्वस्थ रहनेपर ही है। प्रत्येक प्राणीका स्वभाव : पढ़ते-बढ़ते पूर्ण बल प्राप्त करके बिना शरीरके सुख ही है और वह सदा दःखोंसे डरता है। और लके स्वयं अपने ही आधारस जीवित व सुखी सुख ही चाहता है।
___ दुःश्व दो प्रकारके होते है-एक तो शरीर-सम्बन्धी 1 आत्माका स्वभाव सुख है। आत्माका जब तक और दूसरे मनसम्बन्धी । शरीरसम्बन्धी दुःखसे बच
रीरसे सम्बन्ध बना रहेगा तब तक उसका सुख नके लिये शरीरकी प्रकृतिके अनुकूल शुद्ध साफ ताजा रीरके आधीन ही रहेगा अतः आत्माको सुखी ऋतुके अनुकूल नियत समयपर भृखसे कुछ कमती खनेके लिये शरीरको स्वस्थ रखने योग्य क्रियायें भोजन करना आवश्यक है । शरीरकी अस्वस्थ दशाके करनी पड़ती है-शरीरकी रक्षाके अनेक उपाय हो जानेपर तुरन्त ही उसकी ठीक-ठीक चिकित्साके रने पड़ते है।
द्वारा शुद्ध औषधिका सेवन व अनुकुल पदार्थाका २ शरीरका स्वभाव शारीरिक गुण और पर्यायोंके सेवन ही शारीरिक हानिको दूर करनेका निमित्त है।
धीन है और आत्माका स्वभाव आत्माके अधीन अपने शरीरके स्वस्थ रहते हुए ही मै शारीरिक २ फिर भी दोनोंके एक-साथ मेलके कारण एक दुःखसे निवृत्त रह सकता हूं । शरीरक रोगके र सरेको हानि व लाभ होता रहता है । शरीरको समय मुझं संसारके सभी पदार्थ व मेल बुरे वानि होनेमे आत्माको दुःख होता है, शरीरकी अनुभा होते है। शरीरका दुःख स्वयं मुझे ही रावस्था अनुकूल रहनेसे-स्वस्थ रहनेसे-शारी- भोगना पड़ता है। मुझे कोई भी ऐसा नहीं दीखता एक बलका लाभ होनेसे आत्माको सुख होता है। जो मेरे दुःखमे हिस्सा बटा ले। अपने शरीरकी साहला सख निरोगी काया' यह सब भली-भांति रक्षाक लिये शरीरमें उत्पन्न हुए रागको नष्ट करने गनते ही है।
के लिये मैं अपनी प्यारी सम्पत्तिकी भी परवाह । जब तक मेरी आत्माका मेल शरीरके साथ न करके उसको चिकित्सा व औपधिके निमित्त 'ना रहेगा मेरी आत्मा ऐसी क्रियाये व व्यव- खर्च कर देता हूं। शरीरसे बढ़कर मुझे कोई अन्य 'र करती रहेगी जिसके कारण शरीरकी रक्षा वस्तु शरीरके समान प्यारी या मूल्यवान नहीं
ती रहे । परन्तु जो भी व्यवहार करना पड़ समस्त संसारकी सम्पत्ति व विभूति एक तरफ और 'जमें इस बातका बिचार अवश्य करना पडेगा मेरे शरीरकी रक्षा-स्वास्थ्य-सुख दूसरी तरफ। अन्य किसी भी प्राणीके शरीरको किसी प्रकारका
जब मेरा शरीर ही इस समय मेरा सर्वस्व एन पहुँचे, कारण कि जिसप्रकार मेरी आत्माकी है तो भला दूसरे मेरी आत्माके समान जो आत्मा