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अनेकान्त
ज्ञानचाकर- वामदेव तथा गोपाल्ह पुत्र नागदेव प्रणमन्ति । चार प्रणमन्ति तटे मदनसागरनिर्मलम् ।
भावार्थ:- प्रसिद्ध वंश गोलापूर्व अन्वय में पैदा होनेवाले शाह राशल उनके पुत्र सादू तथा गृहपति वंशमें पैदा होनेवाले शाह आमदेव- हामरमल उनके पुत्र पण्डित श्री मालधन तथा शाह निकट उनके पुत्र शाह सीहाल- हारण उनके पुत्र जनपति ज्ञानचाकर वामदेव तथा गोपाल्ह उनके पुत्र नागदेवने संवत् १२८८ के माघ सुदी १३ गुरुवारको निर्मल मदनसागर के किनारे विम्ब प्रतिष्ठा कराई।
नोट- यह प्रतिबिम्ब दो वंशोंके दो धार्मिक परुषोंने प्रतिष्ठित कराई है । मदनसागरके तट पर आज भी जिनमन्दिरके बड़े-बड़े भग्नावशेष उपलब्ध हैं और जिनसे जान पड़ता है कि वहाँ लेखमें उल्लिखित दोनों धर्मात्माओं के द्वारा बनाया गया यह जिनमन्दिर होगा और जिसमे प्रतिठित की गई प्रतिमाका उक्त लेख है । ( नं० ६५ )
मूर्तिका शिर धड़से अलग है । अवगाहना विशाल है । यह चिन्ह से पुष्पदन्तकी प्रतीत होती है । करीब २ || फुट ऊंची पद्मासन है । पापाण काला है ।
लेख - संवत् १२०७ माघ वदी में खण्डेलवालान्वये साहु माहवस्तत्सुत वालप्रसन भार्या सावित्री तत्सुत बीकऊ नित्यं प्रणमन्ति ।
भावार्थ:- खण्डेलवाल वंशमें पैदा होनेवाले साहु माहव उनके पुत्र वालप्रसन उनकी पत्नी सावित्री उनके पुत्र बीकऊने संवत् १२०७ माघ वदी को विम्व प्रतिष्ठा कराई ।
( नं० ६६ )
मूर्तिके कुछ पैर और आसनके अतिरिक्त कुछ नहीं है । अन्दाजा ३ फुट ऊंची खड्गासन है | चिन्ह पुष्पदन्तकी प्रतीत होती है । काले पापाणकी निर्मित है ।
लेख - संवत् १२०७ माघवदी ८ गृहपत्यन्वये
साहुरूपसिंह तस्य भार्या लखमा
तस्य भार्या लाहा ।
भावार्थ:- गृहपति वंशमें पैदा होनेवाले साहु रूपसिंह उनकी धर्मपत्नी लग्वमा उसके पुत्र मातनपति उसकी पत्नी लाहगा इन्होंने मंत् १२०७ के माघ वदी को प्रतिष्ठा कराई।
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( नं० ६७ )
नहीं है। दोनों ओर इन्द्र खड़े है। करीब ३ फुट मूर्तिके कुछ पैर तथा श्रासनके अतिरिक्त कुछ ऊंची है । चिन्ह हाथीका है । पाषाण काला है।
लेख - साहु लखन नित्यं प्रणमन्ति । भावार्थ - शाह लखन नित्य प्रणाम करते है । नोट: -- मूत्तिपर संवत् आदि नहीं दिया गया । ( नं० ६ )
मूर्तिके दोनों ओर इन्द्र खड़े है । कुछ पैरोंके अतिरिक्त बाकी हिस्सा खण्डित है । चिन्ह सूअर का प्रतीत होता है। करीब ३ फुट ऊंची खड्गासन | पापारण काला तथा चमकदार है ।
लेख - संवत् १२१६ माघसुदी ३ शुक्रे साहु ग्रामदेव-देवचन्द्र प्रणमन्ति नित्यम् ।
भावाथः- संवत् १२१६ के माघसुदी ३ शुक्रवारको श्रमदेव - देवचन्द्र बिम्बप्रतिष्ठा कराई । (क्रमशः )