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तीर्थङ्कर चरित्र श्रित आश्रय पा रहे थे। वह अपनी सम्पत्ति को परोपकार में ही खर्च करता था । वह सदाचारी और धर्मपरायण था ।
एक समय उसने किराणा लेकर वसन्तपुर जाने का निश्चय किया। उसने सारे नगर में यह घोषणा करवाई कि "धन्ना श्रेष्ठी व्यापारार्थ वसन्तपुर जानेवाले हैं। जिस किसी को वसन्तपुर चलना हो वह चले। जिसके पास चढ़ने को सवारी नहीं होगी, वे उसे सवारी देंगे । जिसके पास अन्न-वस्त्र नहीं है, उसे वे अन्नवस्त्र देंगे। जिसके पास व्यापार के लिये धन नहीं है उसे धन भी प्रदान करेंगे तथा रास्ते में चोरों डाकुओं एवं व्याघ्र आदि हिंस्र प्राणियों से उनका रक्षण करेंगे ।" इस प्रकार की घोषणा करवाने के बाद धन्ना श्रेष्ठी ने चार प्रकार की वस्तुएँ गाड़ियों में भरी। घर की स्त्रियों ने उनका प्रस्थान मंगल किया। शुभ मुहूर्त में सेठ रथ पर भारूढ़ होकर नगर के बाहर चले। सेठ के प्रस्थान के समय जो मेरी बजी उसी को क्षितिप्रतिष्ठित निवासियों ने अपने बुलाने का आमंत्रण समझा और अपनी अपनी साधन सामग्रियों के साथ तैयार होकर सेठ के साथ नगर के बाहर आये। धन्ना श्रेष्ठी नगर के वाहर उद्यान में आकर ठहरे । ___उस समय धर्मघोष नाम के तेजस्वी आचार्य अपनो शिष्यमण्डली के साथ नगर में पधारे हुए थे। वे भी वसन्तपुर जाना चाहते थे किन्तु मार्ग की कठिनाइयों के कारण वे आ नहीं सकते थे। उन्होंने भी यह घोषणा सुनी । धन्ना सार्थवाह का मणिभद्र नामक प्रधान मुनीम था । धर्मघोष आचार्य ने उनके पास अपने दो साधुओं को मेजा। अपने घर पर आये हुए मुनियों को देखकर मणिभद्र ने उन्हें प्रणाम किया और विनयपूर्वक आने का कारण पूछा । साधुओं ने कहा-धन्ना सार्थवाह का वसन्तपुर गमन सुनकर आचार्य महाराज ने हमें आपके पास भेजा है। यदि सार्थवाह को स्वीकार हो तो वे भी उनके साथ जाना चाहते हैं । मणिभद्र ने उत्तर दिया-सार्थवाह का अहोभाग्य है अगर आचार्य महाराज साथ में पधारें किन्तु जाने के समय