Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र आहिएत्ति वएज्जा' तावत् कियती खलु ज्योत्स्नापक्षे ज्योत्स्ना बहु राख्याता इति वदेत् ॥ तावदिति पूर्ववत् ज्योत्स्नापक्षे खल्लिति नियतरूपेण कियती-कियन्मिता-किं प्रमाणा ज्योत्स्ना बहुरधिका-कियत्यधिका ज्योस्ना प्रतिपादितेति कथय भगवन् ततो भगवानाह"ता परित्ता असंखेज्जा भागा' तावत् परिमिता असंख्येया भागाः॥ तावदिति पूर्ववत् परिमता-ज्योत्स्ना परिमाणानि असंख्येयाः-असंख्यातानि ज्योत्स्ना परिमाणानि भवन्तीत्याख्यातानीति वदेत्-निर्विभागाः भागा भवन्ति ज्योत्स्नाप्रभूतानामित्यर्थः ॥ अथान्धकारसम्बन्धी प्रश्न: "ता कया ते अंधगारे बहू आहि एत्ति वएज्जा' तावत् कदा ते अन्धकारो बहु राख्यात इति वदेत् ।।-तावदिति प्राग्वत् कदा-कस्मिन् समये ते-त्वया भगवन् ! अन्धकारो बहु राख्यातः-कदा अन्धकारबाहुल्यं भवतीत्याख्यात इति वदेत्-कथय भगवनिति गौतमस्य प्रश्न स्ततो भगवानाह-'ता अंधगारपक्खे णं बहू अंधगारे आहिएत्ति वएज्जा' तावत् अन्धकारपक्षे खलु बहुरन्धकारः आख्यात इति वदेत् ॥-तावदिति पूर्ववत्
अब ज्योत्स्ना के परिमाणविषय में श्रीगौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-(ता केवइया णं दोसिणा पक्खे दोसिणा बहू आहिएत्ति वएज्जा) ज्योत्स्ना पक्ष में अर्थात् शुक्लपक्ष में निश्चितरूप से कितने प्रमाण की ज्योत्स्ना अधिक प्रतिपादित की गई है सो हे भगवन आप कहिए । इस प्रकार श्रीगौतमस्वामी के पूछने से उत्तर में श्री भगवान् कहते हैं-(ता परित्ता असंखेज्जा भागा) ज्योत्स्ना का परिमाण असंख्यात होता है ऐसा प्रतिपादित किया गया है । ऐसा स्वशिष्यों को उपदेश करें । अर्थात् प्रभूत ज्योत्स्ना का निविर्भाग भाग होते हैं।
अब अन्धकार के विषय में श्री गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-(ता कया ते अंधगारे बहू आहिएत्ति वएज्जा) हे भगवन् ! किस समय अन्धकार की अधिकता आपने प्रज्ञप्त की है ? सो कहिये, इस प्रकार श्री गौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्रीभगवान् कहते हैं-(ता अंधगारपक्खेणं बहू
वन्योत्स्नाना परिभाना समधमा श्रीगीतभस्वामी प्रश्न पूछे छ-(ता केवइयाणं दोसिणा बहू आहिपत्ति वएज्जा) शुलपक्षमा निश्चियपथी 281 प्रमाणु याना વધારે પ્રતિપાદિત કરેલ છે? તે હે ભગવદ્ આપ કહો આ પ્રમાણે શ્રીગૌતમસ્વામીના पूछवाथी उत्तरमा श्रीमान् ४ छ.-(ता परित्ता असंखेज्जा भागा) ज्योत्स्नानु प्रमाण સંખ્યાતીત હોય છે. તેમ પ્રતિપાદિત કરેલ છે. તેમ સ્વશિષ્યને ઉપદેશ કરવો. અર્થાત અધિક સ્નાને નિવિભાગ ભાગ હોય છે.
वे श्रीगौतमस्वामी ॥२॥ समयमा प्रश्न पूछे छ-(ना कया ते अंधगारे वहू आहिएत्ति वएज्जा) 3 भगवन् ४या समये ५५४१२नु अघिपा माचे प्रतिपाति કરેલ છે? તે કહો આ પ્રમાણે શ્રીગૌતમસ્વામીના પ્રશ્નને સાંભળીને ઉત્તરમાં શ્રીભગવાન हे छ.-(ता अंधगारपक्खेणं बहू अंधगारे आहिएत्ति वएज्जा) ४६५५क्षमा धारे प्रभामा
श्री सुर्यप्रति सूत्र : २