Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1081
________________ १०७० मर्यप्रज्ञप्तिसूत्र सृष्टिरपि अनाद्यनन्तैव, सूर्यप्रकाशे लीना इव प्रतिभाति, तेनाधारेणैव प्रथमसृष्टिकर्ता वर्तमानसृष्टिमपि कल्पयति सृष्टिकर्तुः कल्पनामात्रैवेयं सृष्टिः। सर्वव्यापकः सनातनः सदाभव सर्वकालिकस्तु सूर्यएव, आदित्यएव, तेनैव कारणेन सूर्यादित्ययोरभेद इतिज्ञेयम् ॥१०६॥ मूलम्-ता चंदस्त णं जोइसिंदस्स जोइसरण्णो कइ अग्गमहिसीओ पप्णत्ताओ, ता चंदस्त जोइसिंदस्स जोइसरण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णताओ, तं जहा-चंदप्पभा दोसिणाभा अञ्चिमाली पभंकरा, जहा हेट्ठा तं चेव जाव णो चेव णं मेहुणवत्तियं एवं सूरस्स वि णेतव्वं, ता चंदिमसूरियाणं जोइसिंदाणं जोइसराया णो केरिसगा कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरंति, ता से जहा णामए केई पुरिसे पढमजोठवणुट्ठाणबल समत्थे पढमजोवणुट्ठाणबलसमत्थाए भारियाए सद्धि अचिरवत्तवीवाहे अत्थत्थी अत्थगवेसणयाए सोलसवासविप्पवसिए से णं ताओ लद्धटे कतकज्जे अणहसमग्गे पुणरवि णियगघरं हठवमागए पहाते कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवरपरिहिते अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे सर्व प्रथम सूर्य ही दृष्टि गोचर होता है। सृष्टिकर्ता भी उस सूर्य की स्थिति एवं गति आदि को देखकर अन्य भी असंख्य प्रकार के सृष्टि के पदार्थों को उत्पन्न करते हैं । सृष्टि कर्ता एवं सृष्टि भी अनादि अनन्त ही होते हैं, वे सूर्य प्रकाश में लीन हुवे ऐसे प्रतीत होता है । उस आधार से ही प्रथम सृष्टिकर्ता ने वर्तमान सृष्टि को भी कल्पित की है। सृष्टि कर्ता की कल्पना मात्र से यह सृष्टि का सर्जन हुवा है, सर्वव्यापक, सदाभव सनातन एवं सर्व काल भावि सूर्य ही होता है, आदित्य ही होता है, इसी कारण से सूर्य एवं आदित्य का अभेद भाव प्रतिपादित किया है ॥१०६॥ એટલેકે સૃષ્ટિની આદિમાં સૌ પહેલાં સૂર્યની સ્થિતિ અને ગતિ વિગેરેને જોઈને બીજ પણ અસંખ્ય પ્રકારના સુષ્ટિના પદાર્થોને ઉત્પન્ન કરે છે. સૃષ્ટિક્ત અને સૃષ્ટિ પણ અનાદિ અનંતજ હોય છે. તેઓ સૂર્ય પ્રકાશમાં લીન થયા હોય તેમ પ્રતીતિ થાય છે. એ આધારથીજ પહેલા સુષ્ટિકર્તા વર્તમાન સૃષ્ટિને પણ કપિત કરે છે. સૂષ્ટિ કર્તાની કલ્પના માત્રથી જ આ સૃષ્ટિનું સર્જન થયું છે. સર્વવ્યાપક સનાતન સદાભવ અને સર્વ કાળભાવિ સૂર્ય જ હોય છે. આદિત્યજ હોય છે. એજ કારણથી સૂર્ય અને આદિત્યને અભેદભાવ પ્રતિપાદિત કરેલ છે. જે સૂ. ૧૦૬ છે શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2

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