Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1106
________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टोका सू० १०९ विंशतितमप्राभृतम् १०९५ प्रसक्तेरिति ॥२॥ अथ एतदेव व्यक्ती कुर्वनाह-'सद्धाधिति उटाणुच्छाहकम्मबलविरियपुरिसकारेंहि । जो सिक्खिो वि संतो अभायणे परिकहेजाहिं ॥३॥ श्रद्धा धृत्युत्थानोत्साहकर्मबलवीर्यपुरुषकारैः । यः शिक्षितोऽपि सन् अभाजने परिकथयेत् ॥३॥-श्रद्धाप्रतीतिः-श्रवणं प्रतिवाञ्छा, धृति-धैर्य-विवक्षितं जिनवचनं सत्यमेव नान्यथेति मनसोऽवष्टम्भः, उत्थान-उत्कर्षः-श्रवणाय गुरुं प्रति अभिमुखगमन-उत्थान, उत्साहः-अध्यकसायः-श्रवणविपये मनसः उत्कलिका विशेपो यद्वशात् इदानीमेव यदि मे पुण्यवशात् सामग्री सम्पद्यते शृणोमि च ततः शोभनं भवतीति परिणाम उपजायते, कर्म-समुपार्जित धर्मपापादिकं वस्तु-वन्दनादिलक्षणं कर्म, बल-शारीरिकं बलं-वाचनादि विषयः प्राण इति यावत् , वीर्य-क्रियोत्पादित शौर्य-अनुप्रेक्षायां सूक्ष्म सूक्ष्मार्थोद्दन शक्तिः, पुरुषकार:पुरुषार्थविशेषः-तदेव वीर्य साधिताभिमतप्रयोजनं, एतैकारण यः शिक्षितोऽपि-स्वयं गृहीतविच्छेद होने का प्रसंग उपस्थित होता है, तथा शास्त्रविच्छेद होने से तीर्थविच्छेद का प्रसंग उपस्थित होता है ॥२॥ अब इसी को विशेष स्पष्ट करने के लिये कहते हैं-(सद्धाधिति उट्ठाणुच्छाह) इत्यादि श्रद्धा-प्रतीति श्रद्धा-प्रतीति श्रवण के लिये इच्छा धृति-धैर्य विवक्षित जिनवचन सत्य ही है अन्यथा नहीं है, इस प्रकार का आत्म विश्वास, उत्थान-उत्कर्ष श्रवण के लिये गुरु के सन्मुख जाना अथवा उत्थानउत्साह श्रवण विषय में मन की प्रफुल्लता विशेष जिस के कारण अभीहि यदि मेरे पुण्योदय से सामग्री का सम्पादन हो जाय तो सुन लेवें, तो अच्छा हो इस प्रकार परिणाम का विचार करे, कम-माने उपार्जित पापादि वस्तु अथवा वंदनादि लक्षण कर्म बल-शारीरिक संपत्ति वाचनादि विषयक प्राण वीर्य-क्रिया से उत्पादित शौर्य अर्थात् अनुप्रेक्षा में सूक्ष्म से सूक्ष्म अर्थ को स्पष्ट करने की शक्ति पुरुषकार-पुरुषार्थ विशेष इस प्रकार के वीर्यादि से साधित अभिमतप्रयोजन, इन कारणों से जो शिक्षित होने पर भी अर्थात् स्वयं તથા શાસ્ત્ર વિદ થવાથી તીર્થ વિ છેદન પ્રસંગે ઉપસ્થિત થાય છે (૨) वे माने ४ विशेष २५८ ४२वा भाटे ४ छ-(सद्धाधिति उटाणुच्छाह) त्या શ્રદ્ધા-પ્રતીતિ શ્રવણ માટે ઇચ્છા ધૃતિ–વૈર્ય વિરક્ષિત જીનવચન સત્ય જ છે અન્યથા नथी. २॥ प्रभारी मात्मविश्वास (उत्थान)-Sत्सा श्रवणादि विषयमा भननी असता વિશેષ જેથી હમણા જ જે મારા પુણ્યના ઉધથી સામગ્રીનું સમ્પાદન થઈ જાય તે સાંભળી લઉં તે સારું થાય આ પ્રમાણે પરિણામનો વિચાર કરે. કર્મ–પ્રાપ્ત કરેલ પાપાદિ વસ્તુ અથવા વંદનાદિ લક્ષણ કમ બલ-શારીરિક સંપત્તિ, વાચનાદિ વિષયક પ્રાણ, વીર્ય ક્રિયાથી ઉત્પન્ન થયેલ શૌર્ય અર્થાત્ અનુપ્રેક્ષામાં સૂફમથી સૂક્ષમ અર્થને સ્પષ્ટ કરવાની શક્તિ પુરૂષકારપુરૂષાર્થ વિશેષ આ પ્રકારના વિયાદિથી સાધેલ ઈચ્છિત પ્રજન, આ કારણથી જે શિક્ષિત શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્રઃ ૨

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