Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1089
________________ १०७८ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे (१६) पाणगं चेव (१७) । अट्ठारसमो सागो (१८) णिरुबहओ लोइओ पिंडो ॥२॥ - छाया - सूपो (१) नो (२) जवान्नं (३) त्रीणि मांसानि (६) गोरसो (७) जूस : ( ८ ) । भक्ष्यं (९) गुडलावणिका (१०) मूलफलं (११) हरितकं (१२) दाघ : (१३) ॥ १ ॥ भवति रसालु तथा (१४) पानं (१५) पानीयं (१६) पानकं चैव (१७) । अष्टादशः शाकः (१८) निरुपाधिको लोचितः पिण्डः ||२|| अत्रोकानां केषांचित् पदानामर्था:- मांसत्रयं वनस्पतिविशेषस्य त्रिप्रकारकं चूर्ण, अथवा माषान्नस्य प्रकारभेदत्रयं, यूणे मुद्गतण्डुलजीरक कडुभाण्डादिरसः भक्ष्याणि - खण्डखाद्यानि, गुडलावणिक लोकप्रसिद्धा गुडपर्पटिका गुडधाना वा, मूलफलानीत्येकमेव पदं द्वन्द्वसमासरूपं, हरितकं - जीरकादिशाकः - वस्तुलादि भर्जिका, रसालू- भर्जिका, एतल्लक्षणं यथा - 'दो घपला महुपलं दहिस्स अद्धाढ्यं मिरियत्रीसा । दस खंडलपन्नाई एस रसालू (१३) होइ सालूय तहा (१४) पाणं (१५) पाणीय (१६) पाणगं चेव (१७) अट्ठारसमो सागो (१८) णिरुवहओ, लोइओ पिंडो ||२|| सूप-दाल (१) अन्नभात (२) जवान्न (३) तीन प्रकार के मांस (६) गोरस - दधि दुग्धादि (७) जूस (८) भक्ष्य (९) गुडलावणिक (१०) मूल फल -मूली (११) हरीतक (१२) दाघ (१३) १ । तथा रसालु (१४) पान (१५) पानी (१६) पानक ( १७ ) अठारह प्रकारके शाक (१८) इस प्रकार का भोजन निरुपाधिक कहा जाता है (२) यहां कहे हुवे कितने पदों का अर्थ इस प्रकार है- मांसत्रय अर्थात् तीन प्रकार की वनस्पतिविशेष का चूर्ण अथवा उडद का तीन प्रकार के भेद | मुंग चावल जीरक कटु आदि रस तथा भक्ष्य माने खाद्य पदार्थ गुड एवं लवण लोक प्रसिद्ध ही है । गुडपटिका (गुडपापडि) अथवा गुडधाना । मूल फल यह एकही पद है, हरीतक - अर्थात् जीरकादिशाक, वस्तुलादि भाजी, रसालू, भाजि विशेष | इनका लक्षण इस प्रकार से हैं (दो घयपला महुपलं दहिस्स अद्धाढयं (१६) पाणगचेव (१७) अट्ठारसमो सागो (१८) णिरूत्रहओ लोइओ पिंडो ॥ २॥ सूप-हाण (१) अन्न-लात (२) भवान्न (3) ऋणु प्रहारना भांस (६) गोर-हाडीं दूध विगेरे (७) (८) लक्ष्य (८) गुडसावण (१०) भूसइस - भुजा ( ११ ) इरीत (१२) हाथ (१३) तथा २साणु (१४) पान (१५) पालुी (१६) पान (१७) अढार प्रारना शाओओ (१८) सा પ્રમાણેનુ ભેાજન ઉપાધિરહિત કહેલ છે (૨) અહી' કહેલા કેટલાક પદોના અર્થ આ પ્રમાણે છે. માંસત્રય અર્થાત્ ત્રણ પ્રકારની વનસ્પતિ વિશેષનુ ચૂર્ણ અથવા અડદના ત્રણ પ્રકારના ભેદ, મગ, ચેાખા, જીરૂ કર્યું આદિવસ તથા ભક્ષ્ય એટલે કે ખાદ્ય પદાથ ગાળ અને મીઠુ એ લેક પ્રસિદ્ધજ છે, ગુડપપ`ટિકા (ગે;ળ પાપડી) અથવા ગોળધાણા, મૂળ ફળ આ એકજ પદ છે. હરીતક એટલેકે જીરૂ વિગેરે શાક વસ્તુલાઢિભાજી રસાલુ ભાજી વિશેષક આનું લક્ષણ આ પ્રમાણે છે. શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૨

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