Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 994
________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० १०१ एकोनविंशतितम प्रामृतम् पूर्णोऽन्यः इन्द्रस्तत् स्थानापन्नो न भवतीत्यर्थः, अथास्मिन् विषये पुनीतमः प्रश्नयति'ता इंदठाणेणं केवइएणं कालेणं विरहियं पण्णत्तं !' तावत् इन्द्रस्थानं खलु कियता कालेन विरहितं प्रज्ञप्तं ?, ॥ तावदिति पूर्ववत् तद्विरहितमिन्द्रस्थान कियता कालेन-कियत् कालमुपपातेन विरहितं-इन्द्रशून्यं सामानिकैः प्रतिपालितं भवतीति प्रज्ञप्तं !, इति गौतमस्य प्रश्नस्ततो भगवानाह-'ता जघण्णेणं इक्कं समयं उक्कोसेणं छम्मासे तावत् जघन्येन एकं समयं उत्कर्षेण षण्मासान् ॥-तावदिति पूर्ववत् जघन्येन-सल्पाति स्वल्पकालेन एकं समये-- समयबोधककालप्रमाणेन एकं समयं यावत् , तथाचोत्कृष्टेन-अधिकाधिकेन कालेन षण्मासात्-मासषट्क पर्यन्तं तदिन्द्रस्थानं इन्द्रविरहितं सामानिकदेवैः परिपालितं च भवतीत्यर्थः ।। पुनगौतमः प्रश्नयति-'ता बाहियाणं माणुसक्खेत्तस्स जे चंदिमसूरियग्गह जाव तारारूवा ते णं देवा किं उडोववण्णगा कप्पोचवण्णगा विमाणोववण्णगा चारहिइया गइरइया गइसमावष्णगा?,' तावत् बाह्याः खलु मनुष्यक्षेत्रस्य ये चन्द्रसूर्यग्रह यावत् तारारूपास्ते खलु देवाः वहां तक रक्षण करते हैं । इस विषय में श्री गौतमस्वामी पुनः पूछते है-(ता इंदठाणेणं केवइएणं कालेणं घिरहियं पण्णत्त) वह विरहित इन्द्रस्थान कितने कोल पर्यन्त उपपात से रहित अर्थात् विना इन्द्र सामानिक देवों के द्वारा सक्षित रहता है ? इस प्रकार श्री गौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्री भगवान् कहते हैं-(ता जघण्णेणं इकं समयं उक्कोसेणं छम्मासे) जघन्य से एक समय अर्थात् समय बोधक काल प्रमाण से एक समय पर्यन्त एवं यावत् उत्कृष्ट से अर्थात् अधिकाधिक काल से छ मास पर्यन्त उस इन्द्र रहित स्थान सामानिक देव से परिपालित रहता है। श्री गौतमस्वामी पुनः पूछते हैं-(ता बाहिया णं माणुसखेत्तस्स जे चंदिमसरियग्गह जाव तारारूवा तेणं देवा किं उडोववण्णगा, कप्पोववण्णगा, विमाणोचवण्णगा, चारहिइया गइ रइया, गइसमावग्णगा) मनुष्यक्षेत्र से बाहर रहे हुवे जो चंद्र-सूर्य-ग्रह-नक्षत्र एवं तारारूप ज्योतिष्क देव हैं वे क्या सौधर्मादि बारह कल्प से उर्ध्व में उप४२ छ. २१॥ समयमा श्रीगीतमयामी शथी प्रश्न पूछे छ-(ता इंठाणेण केवइए ण कालेण विरहिय पत्त) ते विहित केन्द्रस्थान 11 पन्त ५५ात पार्नु અર્થાતુ ઇદ્ર વિનાનું સામાનિક દેવે દ્વારા સંરક્ષિત રહે છે ? આ પ્રમાણે શ્રીગૌતમસ્વામીના प्रश्नने समजाने उत्तरमा श्रीभगवान् ४ छे.-(ता जहण्णेण इक्क समय उक्कोसेण छम्मासे) જઘન્યથી એક સમય અર્થાત્ સમય બાધક કાલ પ્રમાણુથી એક સમય પર્યન્ત અને યાવત ઉત્કૃષ્ટથી અર્થાત્ વધારેમાં વધારે છમાસ પર્યત એ % વિનાના સ્થાનની સામાનિક हे २क्षा ४३ छ. श्रीगीतस्वाभि इशथी प्रश्न पूछे छे.-(तो बहियाण माणुसखेत्तस्स जे चदिमसूरियग्गह जाव तारारूबा तेण देवा कि उड्ढोववण्णगा, कप्पोचवण्णगा, विमाणोववएणगा, चारद्विइया, गइरइया गइसमावण्णगा) मनुष्यक्षेत्रनी पडा२ २७सा है यद्र सूर्य શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૨

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