Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 1052
________________ १०४१ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका स० १०५ विंशतितम प्राभृतम् सूर्य वा गृह्णातीति ।-'ता जया णं एए पण्णरस कसिणा पोग्गला णो सदा चंदस्स वा सरस्स वा लेसाणुबद्धचारिणो खलु तदा माणुसलोयंमि मणुस्सा एवं वदंति-एवं खलु राहू चंदं सूरं वा गेण्हइ, एके एवमासु' तावत् यदा खलु एते पञ्चदश कृष्णाः पञ्चदश कृत्स्नाः पुद्गलाः न सदा चन्द्रस्य वा सूर्यस्य वा लेश्यानुबन्धचारिणः खलु तदा मनुष्यलोके मनुष्याः एवं वदन्ति-एवं खलु राहुश्चन्द्र सूर्य वा गृह्णाति, एके एवमाहुः ॥२॥ तावदिति पूर्ववत् णमिति पुनरर्थे (निपातस्यानेकार्थत्वात् ) यदा-यस्मिन् समये पुनरेते पञ्चदश कृष्णाः पुद्गलाः समस्ताश्च नो सदा-न सातत्येन चन्द्रस्य सूर्यस्य वा लेश्यानुबन्धचारिणः-चन्द्रसूर्यबिम्बगतप्रभानुचारिणी भवन्ति, तदा न खलु मनुष्यलोके मनुष्याः एवं बदन्ति यत् राहुश्चन्द्रं सूर्य वा गृह्णातीति । अर्थात् समस्तं बिम्ब पुदगलाच्छन्नं दृष्ट्वैव राहग्रसितं चन्द्र सूर्य वा चन्द्रग्रहणं सूर्यग्रहणं वा वदन्ति लोकाः न पुरेकदेशव्याप्तौ लेश्यानुबन्धत्वेऽपि कृष्णत्वे ग्रहणं वदन्तीति भावः । एतेषा मेवोपसंहारवाक्यमाह-'एवं खल्विति' एवं-उक्तेन नियमेन राहुश्चन्द्रं सूर्य वा गृह्णातीति लौकिकं वाक्यं मतं वा प्रतिपत्तव्यमिति, न पुनः पण्णरस कसिणा कसिणा पोग्गला णो सदा चंदस्स वा सूरस्स वा, लेस्साणुबद्धचारिणो खलु तदा माणुसलोयंमि मणुस्सा एवं वदंति-एवं खलु राहुचंदं सूरं वा गेण्हइ एगे एवमाहंसु) जिस समय वे पंद्रह कृष्णवर्ण वाला पुद्गल सदाकाल चंद्र की या सूर्य की लेश्यानुबन्ध अर्थात् चंद्र सूर्य के बिंबगत प्रभा का अनुचरक्रण करने वाले नहीं होते हैं, तब मनुष्य लोक के मनुष्य इस प्रकार नहीं कहते हैं-की राहु चंद्रको या सूर्य को ग्रसित करता हैं अर्थात् समग्र बिम्ब को पुद्गल से आच्छादित देखकर राहु ग्रसित चंद्र सूर्य को चंद्र ग्रहण अथवा सूर्य ग्रहण ऐसा लोक में कहते हैं, परंतु एकदेश व्याप्त लेश्यानुबन्ध के कारण कृष्ण होने पर ग्रहण नहीं कहते हैं, अब इस कथन का उपसंहार करते कहते हैं-(एवं खलु) पूर्व कथित नियमानुसार राहु चंद्र को या सूर्य को ग्रसित करता है। इस प्रकार की लौकिकगत की प्रतिपत्ति-विश्वास करें अपितु पण्णरस कसिणा कसिणा पोगला णो सदा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसाणुबद्धचारिणो खलु तदा माणुसलोयंमि मणुस्सा एवं वदंति एवं खलु राहू चद सूरं वा गेण्हइ एगे एव मासु) न्यारे मा ५४२ वा पुसा सहा द्र सूर्यनी सेश्यानुमा અર્થાત્ ચંદ્ર સૂર્યના બિંબની પ્રભાનું અનુચરણ નથી કરતા ત્યારે મનુષ્યલકના મનુષ્ય આ પ્રમાણે કહેતા નથી કે-રાહુ ચંદ્ર કે સૂર્યને ગ્રસિત કરે છે. અર્થાત્ સમગ્ર બિંબને પુષ્યલેથી આચ્છાદિત જોઈને રાહુ ગ્રસિત ચંદ્ર સૂર્યને ચંદ્રગ્રહણ અથવા સૂર્યગ્રહણ એ રીતે લેકે કહે છે પરંતુ એક દેશમાં વ્યાપ્ત થયેલ લેશ્યાનુબંધના કારણથી કૃષ્ણ થવા छत। डा उता नथी. वे ॥ ४थन। उपस डा२ ४२di छ. (एवं खलु) पूर्व કથિત નિયમ પ્રમાણે રાહ ચંદ્ર કે સૂર્યને ગ્રસિત કરે છે. આ પ્રમાણેના લૌકિક મતની શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૨

Loading...

Page Navigation
1 ... 1050 1051 1052 1053 1054 1055 1056 1057 1058 1059 1060 1061 1062 1063 1064 1065 1066 1067 1068 1069 1070 1071 1072 1073 1074 1075 1076 1077 1078 1079 1080 1081 1082 1083 1084 1085 1086 1087 1088 1089 1090 1091 1092 1093 1094 1095 1096 1097 1098 1099 1100 1101 1102 1103 1104 1105 1106 1107 1108 1109 1110 1111