Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1054
________________ सूर्यज्ञतिप्रकाशिका टीका सू० १०५ विशतितमं प्राभृतम् १०४३ पुद्गलस्वरूपमेव जानन्ति, किन्तु तथा नास्ति स्थितिः वास्तविका स्थितिस्त्वीदृशी तावदिति पूर्ववत् णमिति वाक्यालङ्कारे राहुर्देवो न इति न किन्तु देवएव केवलं परिकल्पितं पुद्गलमात्रमपि नास्ति किन्तु स च राहुर्देवो महर्द्धिकोऽति समृद्धिशाली तेजस्वी महाद्युतिश्च महावलो महायज्ञा महासौख्यः - सर्वविधोपभोग्यसुखसामग्रीसहितः महानुभावः- महाप्रभावशाली वरवस्त्रधरः- सुन्दरवस्त्रधारी, वराभरणधरः - अनेकविध महार्हरत्नजटिताभरणधारी वरमाल्यधरोऽनेक सामन्तादिपरिवारैः प्रपूर्णो दिव्यान् भोगानुपभुञ्जन देवविशेषो राहुः स्वविमानेन नियतरूपेण पर्यटन विशिष्टो देवोऽस्तीति । तथा चान्यदुच्यते 'राहुस्स णं देवस्स णव णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा - सिंघाडए जडिलए खरए खेत्तए टडूरे मगरे मच्छे कच्छ कण्णसपे' राहोः खलु देवस्य नव नामधेयाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - सिंहनादः (१) जटिल : (२) खरकः (३) क्षेत्रकः (४) धद्धर : (५) मकरः (६) मत्स्यः (७) कच्छपः (८) कष्णसर्पः (९) ॥ - देवरूपस्य राहोः खलु नवनामानि सन्ति, तानि च यथावत् प्रतिपादितानि सन्ति तेषां नाम्नामक्षराणि च यथावत् प्रतिपादितानि सन्ति तेषां नाम्नामक्षरार्थकरणेनालम् ॥ अथ राहोर्विमानवर्णान् कथयति - 'ता राहुस्स णं देवस्स विमाणा को धारण करने वाला, उत्तम पुष्पमालाओं को धारण करने वाला अनेक सामन्तादिपरिवार से युक्त दिव्यभोगोपभोगों को भोगने वाला देवविशेष राहु अपने विमान से निश्चित रूप से भ्रमण करने वाला विशिष्ट देव है । तथा दूसरा भी कहते हैं (राहुस्स णं देवस्स णव णामधेज्जा पण्णत्ता- तं जहा - सिंघाडए, जडिलए, खरए, खेत्तए, डड्डूरे मगरे मच्छे कच्छभे कण्णसप्पे ) राहु देव का नव नाम है जो इस प्रकार है- सिंहनाद (१) जटिल (२) खरक (३) क्षेत्रक (४) धद्धर (५) मकर (६) मत्स्य (७) कच्छप (८) कृष्णसर्प ( ९ ) इस प्रकार राहु देव के नव नाम कहे हैं ? अब राहु के विमान का वर्णन करता है - ( ता राहुस्स णं देवस्स विमाणा पंचवण्णा पण्णत्ता) राहु देव के पांच विमान पांच वर्ण वाले कहे गये हैं। राहु विमान के पांच वर्ण के प्रतिपादन से विमान की संख्या भी पांच ही होती કરવાવાળા અનેક સામન્તાદિ પરિવારથી યુક્ત દિવ્યભોગપભાગાને ભાગવવાવાળા દેવ વિશેષ રાહુ પેાતાના વિમાનથી નિશ્ચિતપણાથી ભ્રમણ કરવાવાળે વિશેષ પ્રકારના દેવ છે. તથા जीभुं पशु उडे छे.- (राहुस्स णं देवरस णत्र णामवेज्जा पण्णत्ता, तं जहा- सिंघाडए, जडिलए, खर, खेत्तर टड्ढ मगरे मच्छे कच्छ मे कण्णसप्पे ) राहु देवना नवनामो छे थे य प्रमाणे छे. सिंडुनाह (१) भटिस (२) २९ (3) क्षेत्र (४) धद्ध२ (५) भ३२ (१) भत्स्य (७) ०५ (८) कृष्णसर्प (८) मा प्रमाणे राहु हेवना नवनाभी है. हवे राहुना विमाननुं वर्जुन वामां आवे छे. - ( ता राहुस्स णं देवस्स विमाणा पंचत्रण्णा पण्णत्ता) राहु देवना पांच विमान पांच वाशुना उडेला छे, राहु विभानना શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૨

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