Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1066
________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टोका सू० १०५ विशतितम'प्राभृतम् राहुश्च ॥-तावदिति पूर्ववत् ध्रुवराहुः पर्वराहुश्चेति द्विप्रकारको राहुः प्रज्ञप्तोऽस्ति, एतदेव विशिनष्टि-'तत्थ णं जे से धुवराहु से णं बहुलपक्खस्स पडिवए पण्णरसइ भागेणं भागं चंदस्स लेसं आवरेमाणे आवरेमाणे चिट्टई' तत्र खलु योऽसौ ध्रुवराहुः स खलु कृष्णपक्षस्य प्रतिपदातः पञ्चदशेन भागेन भागं चन्द्रस्य लेश्यां आवृण्वन् आवृण्वन् तिष्ठति । तत्र-द्विविधराहुविचारे योऽसौ ध्रुवराहुः-नित्यराहुः योहि सदैव चन्द्रविमानस्याधस्तात् सञ्चरति स एव ध्रुवराहुः, यस्तु पर्वणि-पौर्णमास्यां अमावास्यायां वा यथाक्रम चन्द्रस्य सूर्यस्य वा उपरागं करोति स पर्वराहुः । तत्रापि योऽसौ ध्रुवराहुः स बहुलपक्षस्य-कृष्णपक्षस्य सम्बन्धिन्याः प्रतिपदः आरभ्य प्रतितिथिः, आत्मीयेन पञ्चदशेन भागेन पञ्चदशभागं पञ्चदशभागं चन्द्रस्य लेश्यामावृण्वन् तिष्ठति ॥-'तं जहा-पढमाए पढमं भागं जाव पण्णरसमं भाग' तद्यथा-प्रथमायां प्रथमं भागं यावत् पश्चदशं भागं ॥-यथा प्रथमायां-प्रतिपद्रूपायां तिथौ चन्द्रस्य तं जहा-ता धुवराह य पव्वराहु य) ध्रुवराहु एवं पर्वराहु इस रीति से दो राह प्रज्ञाप्त किये हैं। इस को ही विशेषित करते हैं-(तत्थ णं जे से धुवराह से गं बहलपक्खस्स पडिवए पण्णरसइ भागेणं भागं चंदस्स लेसं आवरेमाणे आवरेमाणे चिइ) उस में जो ध्रुवराहु है वह कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से आरंभ करके अपने पंद्रहवें भाग में चंद्र की पंद्रहवें भाग की लेश्या को अच्छादित करके रहता है अर्थात् दो प्रकार के राहु में जो नित्य राहु है की जो सदा चंदविमान के नीचे संचरण करता हैं, वह ध्रुवराहु कहा जाता है। एवं पूर्णिमा एवं अमावास्या के पर्व काल में यथाक्रम से चंद्र का या सूर्य का ग्रास करता है। वह पर्व राहु है, उनमें जो ध्रुवराहु है, वह कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ करके प्रत्येक तिथि में अपने पंद्रहवें भाग से पंद्रहवें भाग की चंद्र लेख्या को आच्छादित करके रहता है। (तं जहा-पढमाए पढमं भागं जाव पण्णरसमं भाग) प्रतिपदा रूप प्रथम तिथि में चंद्र का प्रथम पंद्रहवां भाग, द्वितीया में दुविहे पण्णत्ते त जहा-ता धुवराहु य पव्वराहु य) ध्रुवराई भने ५१ साल मा मे ॥ई प्रशस्त ४रेसा छे. तेने विशषत ४२ छ.-(तत्थ ण जे से धुवराह से ण बहल पक्खस्स पडिवर पण्णरसइभागे ण भाग चंदस्स लेसं आवरेमाणे आवरेमाणे चिटड) तमा જે ધવરાહ છે, તે કૃષ્ણપક્ષની પ્રતિપદાથી આરંભ કરીને પોતાના પંદરમા ભાગથી ચંદ્રની પંદરમા ભાગની વેશ્યાને આચ્છાદિત કરીને રહે છે. અર્થાત્ બે પ્રકારના રાહમાં જે નિત્યરાયું છે, કે જે સદા ચંદ્ર વિમાનની નીચે સંચરણ કરે છે, તે ધ્રુવ રાહુ કહેવાય છે. અને પૂર્ણિમા અને અમાવાસ્યાના પર્વકાળમાં ક્રમાનુસાર ચંદ્રને કે સૂર્યને ગ્રાસ કરે છે. તે પર્વરાહુ છે. તેમાં જે યુવરાહુ છે, તે કૃષ્ણ પક્ષની પ્રતિપદાથી આરંભ કરીને દરેક तिभा पाताना ५४२मा मायनी द्रवश्याने माछत शने. २९ छे.-(त जहा पढमा । पदम भागं जाव पण्णरसम भाग) प्रति५४०३५ ५३सी तिथिमा यद्रनी पड़ती प्रथम શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2

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