Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1051
________________ १०४० सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र हिमशीतलनामा अष्टमः (८) शीतलनामा नवमः (९) खञ्जननामा दशमः (१०) अञ्जननामा एकादशः (११) क्षताख्यो द्वादशः (१२) क्षराख्यस्त्रयोदशः (१३) जटिलाख्यश्चतु. ईशः (१४) सिंहनादनामा पञ्चदशो (१५) राहुश्चन्द्रमण्डलं सम्पूर्णतया परित्यजतीति ।अथोक्तानेच स्पष्टयति-'ता जया णं एए पण्णरसकसिणा कसिणा पोग्गला सदा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसाणुबद्धचारीणो तया णं माणुसलोयसि माणुसा एवं वदंति-एवं खलु राहु चंदं वा सूरं वा गेण्हइ, एवं खलु गेण्हइ' तावत् यदा खलु एते पञ्चदश कृष्णाः पञ्चदश कृष्णाः पुद्गलाः सदा चन्द्रस्य वा सूर्यस्य वा लेश्यानुबन्धचारिणो भवन्ति तदा खलु मनुष्यलोकेऽस्मिन् मनुष्याः एवं वदन्ति-एवं खलु राहश्चन्द्रं वा सूर्य वा गृह्णाति एवं खल गृह्णाति ॥-तावदिति पूर्ववत् णमिति वाक्यालङ्कारे एते-प्रथमोदिताः पञ्चदशभेदाः कृष्णाः-कृष्णवर्णाः पुद्गलाः परमाणुसम्हाः कृत्स्नाः समस्ताः सदा-सातत्येन-सर्वदाशनैः शनैरित्यर्थः चन्द्रस्य सूर्यस्य वा लेश्यानुबन्धचारिणः-चन्द्रसूर्यविम्बगतप्रभानुरोधिनो भवन्ति तदास्मिन् मनुष्यलोके मनुष्याश्चर्मचक्षुषा पश्यन्त एवं वदन्ति यत् राहुरेव चन्द्र छट्ठा (६) कैलास नाम का सातवां (७) हिमशीतल नाम आठवां (८) शीत नाम का नववां (९) खज नाम का दसवां (१०) अंजन नाम का ग्यारहवां (११)क्षत नाम का बारहवां (१२) क्षर नाम का तेरहवां (१३) जटिल नाम का चौदहवां (१४) सिंहनाद नाम का पंद्रहवां राहु चंद्रमंडल का संपूर्ण रूप से त्याग करता है (१५) अब इसको ही विशेष प्रकार से स्पष्ट करते हैं-(ता जया णं एए पण्णरस कसिणा कसिणा पोग्गला सदा चंदस्स वा मरस्स वा, लेसाणुबद्धचारीणो तया णं माणुसलोयंसि माणुसा एवं वदति-एवं खलु राहू चंदं वा सूरं वा गेण्हइ एवं खलु गेण्हइ) ये पूर्वकथित पंद्रह भेदवाला कृष्णवणेवाला परमाणु समूह हमेशां चंद्र का या सूर्य का बिम्बगत प्रभा का आराधन करने वाला होता है । अब मनुष्यलोक में चर्मचक्षु वाले मनुष्य चर्मचक्षु से देखकर इस प्रकार कहते हैं कि राहु ही चंद्र सूर्य को ग्रसित करता हैं। (ता जया णं एए નવ (૯) ખંજ નામને દસમો (૧૦) અંજન નામનો અગ્યારમો (૧૧) ક્ષત નામનો બારમ (૧૨) ક્ષર નામને તેરમો (૧૩) જટિલ નામને ચૌદ (૧૪) સિંહનાદ નામને પંદરમ (૧૫) हवे मा विषयने धारे २५०टताथी ४९ छे.-(ता जया णं एए पण्णरस कसिणा कसिणा पोग्गला सदा चदस्स वा सूरस्स वा लेसाणुबद्धचारीणो तया गं मणुसलोय सि माणुसा एवं वदंति एवं खलु राहू च दंवा सुरवा गेण्हइ एवं खलु गेण्हइ) 0 પૂર્વ કથિત પંદર ભેદેવાળ કૃષ્ણવર્ણના પરમાણુ સમૂહ હમેશાં ચંદ્રના કે સૂર્યના બિંબગત પ્રભાનું આરાધન કરનારા હોય છે. ત્યારે મનુષ્યલોકમાં ચર્મચક્ષુવાળા મનુષ્ય ચર્મयक्षुधा ने 24 प्रमाणे ४४ छ -राहुल द्र सूर्य ने असित ४२ छे. (ता जया णं एए શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2

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