Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूर्यप्रक्षप्तिसूत्रे इयं परिक्खेवेणं आहिएत्ति वएजा' तावत् देवः खलु द्वीपः कियता चक्रवालविष्कम्भेन कियता परिक्षेपेण आख्यात इति वदेत् ॥-देवद्वीपस्य कियान् व्यासः कियती च परिधिरस्तीति कथय भगवन्निति गौतमस्य प्रश्नस्ततो भगवानाह-'असंखेज्जाई जोयणसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं असंखेज्जाई जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं आहिएत्ति वएज्जा' असंख्येयानि योजनसहस्राणि चक्रवालविष्कम्भेण असंख्येयानि योजनसहस्राणि परिक्षेपेन आख्यात इति वदेत ॥-देव नाम्नो द्वीपस्य व्यासः खलु असंख्येययोजनसहस्रपरिमितः परिधिरपि असंख्येययोजनपरिमिता वर्तत इति स्वशिष्येभ्यो वदेत्-कथयेदित्यर्थः ॥ अथ चन्द्रसूर्यादि विषयकः प्रश्नः-'ता देवे णं दीवे केवइया चंदा पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा पुच्छा तहेव तावत् देवे खलु द्वीपे कियन्तश्चन्द्राः प्राभासयन् वा प्रभासयन्ति वा प्रभासयिष्यन्ति वा ! इति पृच्छा-मम प्रश्नस्ततो भगवानाह-'ता देवेणं दीवे असंखेज्जा चंदा पभासेंसु वा वएजा) देव नाम के द्वीप का व्यास परिमाण कितना है एवं उसकी परिधि कितनी होती है ? सो हे भगवन् कहिये । इस प्रकार श्री गौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्री भगवान् कहते हैं-(असंखेजाइं जोयणसहस्साई चकवालविक्खभेणं असंखेजाई जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं आहिएत्ति वएजा) देव नाम के द्वीप का व्यासमान असंख्येय योजन सहस्र परिमित कहा है तथा उस की परिधि भी असंख्येय योजन परिमित होती है। ऐसा स्वशिष्यों को कहैं।
अब चंद्र सूर्यादि के विषय में श्री गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-(ता देवे णं दीवे केवइया चंदा पभासेंसु वा, पभासेंति वा, पभासिस्संति वा पुच्छा तहेव) देव नाम के द्वीप में कितने चंद्र प्रभासित होते थे, कितने चंद्र प्रभासित होते हैं एवं कितने चंद्र प्रभासित होंगे। इस प्रकार मेरा प्रश्न है। इस प्रकार श्री गौतमस्वामी का कथन जान कर उत्तर में श्री भगवान् कहते हैं-(ता देवे णं (ता देवे णं दीवे केवइयं चक्कबालविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं आहिएत्ति वएज्जा) देवनामना દ્વીપનું વ્યાસ પરિમાણ કેટલું છે? અને તેની પરિધિ કેટલી હોય છે? તે હે ભગવન કહો, આ પ્રમાણે શ્રીગૌતમસ્વામીના પ્રશ્નને સાંભળીને ઉત્તરમાં શ્રીભગવાન કહે છે.(असंखेज्जाई जोयणसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, असंखेज्जाई जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं आहिएत्ति वएज्जा) १ नामना द्वापनु व्यासमान असण्येय योन सहस्त्र परिभित કહેલ છે. તથા તેની પરિધિ પણ અસંખ્યય જન પરિમિત હોય છે. તેમ સ્વશિષ્યોને કહેવું.
वे सूर्याहिना समयमा श्रीगौतमस्वामी प्रश्न पूछे छे-(ता देवेणं दीवे केवइया चंदा पभासें सु वा पभासे ति वो पभासिस्संति वा पुच्छा) देव नामाना द्वीपमा उदायो प्रमासित થતા હતા? કેટલા ચંદ્રો પ્રભાસિત થાય છે અને કેટલા ચંદ્રો પ્રભાસિત થશે? આ પ્રમાણે ભારે પ્રશ્ન છે આ પ્રમાણે શ્રીગૌતમસ્વામીના કથનને જાણીને ઉત્તરમાં ભગવાન
શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2