Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
१०३०
सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउठवमाणे वा परियारे माणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं आवरेत्ता पच्चोसक्का तया णं मणुस्सलोए मणुस्सा एवं वदंति-राहुणा चंदे वा सूरे वा वंते राहुणा वंते राहुणा, ता जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउठवमाणे वा परियारेमाणे दा चंदस्त वा सूरस्स वा लेसं आवरेत्ता मज्झं मझेणं विईवयइ तया णं मणुस्सलोयंम्मि मणुरसा वदंतिराहुणा चंदे वा सूरे वा विइयरिए राहणा विइयरिए, ता जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्त वा लेसं आवरेत्ता मज्झं मज्झेणं विईचयइ तयाणं अहे सपक्खिं सपडिदिसिं चिट्ठइ तया णं मगुस्स लोअंम्मि मणुस्सा वदंति-राहुणा चंदे वा सूरे वा घथे राहणा घथे। कइविहेणं राहणं राहू पण्णत्ते? दुविहे पण्णत्ते, तं जहा ता धुव राहू य पव्वराह य, तत्थ णं जे से धुवराहू से गं बहलपक्खस्स पडिवए पण्णरसइ भागेणं मागं चंदस्स लेसं आवरेमाणे चिट्ठइ, तं जहा पडमाए पडमं भागं जाव पण्णरसमं भागं, चरिमे समए चंदे रत्ते भवइ अवसेस समए चदे रत्ते य विरत्ते य भवइ, तमेव सुकपक्खे उवदंसेमाणे उवदंसेमाणे तं जहा पड माए पडमं भागं जाव चंदे विरत्ते य भवइ, अवसेसे चिट्ठइ, समए चंदे रते य विरत्ते य भवर, तत्थ णं जे ते पव्वराह से जहपणे णं छण्हं मासाणं उक्कोसे णं बायालीसाए मासाणं चंदस्त अडयालीसाए संवच्छराणं सूरस्स ॥ सू० १०५॥
___ छाया-तावत् कथं ते राहू कर्म आख्यातमिति वदेत् , तत्र खलु इमे द्वे प्रतिपत्ती प्रज्ञप्ते, तत्रैके एकमाहु:-अस्ति खलु देवो यः खलु चन्द्रं वा सूर्य वा गृह्णाति एके एवमाहु, एके पुनरेवमाहुः नास्ति खलु स राहुर्देवो यः खलु चन्द्रं वा सूर्य वा गृह्णाति तत्र ये ते एवमाहुस्तावत् अस्ति खलु स राहुर्देवो यः खलु चन्द्रं वा सूर्य वा गृह्णाति ते एवमाहुस्तावत् राहुः खलु देवश्चन्द्रं वा सूर्यं वा गृहन् बुध्नान्तेन गृहीत्या बुध्नान्तेन मुश्चति, बुघ्नान्तेन गृहीत्वा मूर्नान्तेन मुञ्चति मूर्द्धान्तेन गृहीत्वा बुद्धं तेणं मुश्चति, मूर्द्धान्तेन गृहीत्वा मूर्द्धान्तेन मुञ्चति, बामभुजान्तेन गृहीत्वा वाम
श्रीसुर्यप्रति सूत्र : २
Loading... Page Navigation 1 ... 1039 1040 1041 1042 1043 1044 1045 1046 1047 1048 1049 1050 1051 1052 1053 1054 1055 1056 1057 1058 1059 1060 1061 1062 1063 1064 1065 1066 1067 1068 1069 1070 1071 1072 1073 1074 1075 1076 1077 1078 1079 1080 1081 1082 1083 1084 1085 1086 1087 1088 1089 1090 1091 1092 1093 1094 1095 1096 1097 1098 1099 1100 1101 1102 1103 1104 1105 1106 1107 1108 1109 1110 1111