Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 991
________________ ९८० सूर्यप्रशप्तिसूत्रे गतियुक्ताः किं ते !, एतत् सर्वं कथय भगान्निति गौतमस्य प्रश्नस्ततो भगवानाह-'ता तेणं देवा णो उड्रोवव गगा णो कप्पोववण्णगा विमाणोचवण्णगा चारोववण्णगा णो चारहिइया गइरइया गइसमावण्णगा' तावत् ते खलु देवाः न ऊोपपन्नकाः न कल्पोपपन्नकाः विमानोपपन्नकाः चारोपपन्नकाः न चारस्थितिकाः गतिरतिकाः गतिसमापन्नकाः ॥ ताववदिति पूर्ववत् ते चन्द्रादयो देवाः खलु नोवोपपन्नाः नापि कल्पोपपन्नाः, किन्तु विमानोपपन्नाः चारोपपन्नाः-चारसहिताः भवन्ति, न चारस्थितिकाः-गतिरहिताः न, तथा च स्वभावतोऽपि गतिरतिका:-साक्षात् गतियुक्ताश्च भवन्ति ॥ एवं च-'उड्रामुह कलंबुअपुप्फसंठाणसंठितेहिं जोअणसाहस्सिएहि तावक्खेत्तेहिं साहस्सिएहिं बाहिराहि य वेउब्वियाहिपरिसाहिं महताहतपट्टगीयवाइय तंतीतलतालतुडियघणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं महता उक्कटि सीहणादकलकलरवेणं अच्छं पव्वतरायं पदाहिणावत्तमंडलचारं मेरू अणुपरियट्टइ' ऊर्ध्वमुखकलम्बिकापुष्पसंस्थानसंस्थितै योजनसहस्रेस्तापक्षेत्रैः सहस्रैर्बादै च विक्रियाभिः हे भगवन् आप कहिये । इस प्रकार श्री गौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्रीभगवान् कहते हैं-(ता तेणं देवा णो उड्डोववण्णगा णो कप्पोववज्णगा विमाणोववण्णगा, चारोववण्णगा, णो चारहिइया, गईरइया, गइसमावण्णगा) वे चन्द्रादिदेव ऊोपपन्नक नहीं होते हैं एवं कल्पोपपन्नक भी नहीं होते हैं, परंतु विमानोपपन्नक होते हैं तथा चारोपपन्न अर्थात् चार सहित होते हैं। चार स्थितिक अर्थात् गति रहित नहीं होते हैं । तथा स्वभाव से ही गति रतिक अर्थात् साक्षात् गतियुक्त ही होते हैं। तथा (उडमुहकलंबुआपुप्फसंठाणसंठितेहिं जोअणसाहस्सिएहिं, तावक्खेत्तेहिं साहस्सिएहिं बाहिराहिय वेउव्वियाहिं परिसाहिं महताहत णगीयवाइयतंतीतलतालतुडियघणमुईगपडुप्पवाइयरवेणं महता उकिहि सीहणादकलकलरवेणं अच्छं पव्वतरायं पदाहिणावत्तचारं मेरे अणुपरियटइ) वे चन्द्रादि देव ऊपर मुख સર્વથા ગતિ યુક્ત હેય છે? આ તમામ હે ભગવન આપ કહો. આ પ્રમાણે શ્રીગૌતમस्वाभीना ५७१ाथी उत्त२मा श्रीमान् हे छ-(ता तेण देवा णो उड्ढोववण्णगा, णो कप्पोववण्णगा, विमाणाववण्णगा, चारोववण्णगा, णो चारदिईया, गईरइया, गइसमावणगा) એ ચંદ્રાદિ દેવ ઉર્વોપપનક હોતા નથી. અને કો૫૫નકપણ નથી હોતા. પરંતુ વિમાન૫૫ન્નક હેય છે. તથા ચારે ૫૫નક અર્થાત્ ચાર સહિત હોય છે. ચાર સ્થિતિક એટલેકે ગતિરહિત લેતા નથી. તથા સ્વભાવથીજ ગતિરતિક એટલેકે સાક્ષાત્ ગતિયુક્તજ डाय छे. तथा (उड्ढमुहकल बुआ पुष्पासंठाणसंठितेहिं जोयणसहस्सिएहिं तावक्खेतेहि साहस्सिएहिं बाहिराहियवेउव्वियाहि परिसाहि महताहतणगीयबाइय ततीतलताल तुडियषणमुइंगपडुप्पवाइयरवेण महता उकिद्विसीहणादकलकलवेण अच्छ पञ्चयरायं पदाहिणावत्तचार मेलं अणुपरियट्टइ) मे यद्रादि । ५२नी त२३ भुम ४२ ४९४। શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2

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