Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 13
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MOSMOD विभाग : 13 संपादकः संशोधकच पू.पळ्यास प्रीमिनेन्द्रविजयजी गणिवर Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला-ग्रन्थाङ्कः-७५ श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः / तपोमूर्ति पूज्याचार्यदेवश्रीविजयकर्पू रसूरिगुरुभ्योः नमः / / हालारदेशोद्धारक पूज्याचार्यदेवश्रीविजयामृतसूरिगुरुभ्यो नमः / . श्री आगमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः श्रीमत्शय्यम्भवसूरिवरनिर्मित श्रीदशवैकालिकसूत्र-श्रीमद्भद्रबाहुस्वामिप्रणीत-सभाष्य-पिण्डनियुक्ति-श्रुतस्थविरसंदृब्ध श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रत्रयात्मकः - संपादकः संशोधकश्न तपोमूर्ति-पूज्याचार्यदेवश्रीमद्विजयकपूरसूरीश्वर पट्टालङ्कार-हालारदेशोद्धारक कविरत्न-पूज्याचार्यदेवश्रीमद्विजयामृतसूरीश्वर-विनेयः पंन्यास--श्री--जिनेन्द्रविजय-गणी प्रकाशिकाश्री हर्षपुष्पामृत जैन साला लाखाबावल-शांतिपुरी (सौराष्ट्र) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशिकाश्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला लाखावावल-शांतिपुरी (सौराष्ट्र) गुजरात पौर सं० 2501 ] विक्रम सं० 2031 [सन् 1975 | आ आगमना अधिकारी योगवाही गुरुकुलवासी सुविहित मुनिराजो के. मूल्य रु. 35-00 गौतम आर्ट प्रिन्टर्स न्यावर (राजस्थान) Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपादकीय निवेदन Serstartseitter निष्कारणबंधु विश्ववत्सल चरमशासनपति श्रमणभगवान महावीरदेवे भव्यजीवोना हितने माटे स्थापेल शासन आजे विद्यमान के अने विषमकालमा पण भव्य जीवोने माटे सर्वज्ञ परमात्मानुए शासन परम आलंबन रूप छे. तीर्थकरदेवोनी अविद्यमानतामा तेओश्रीनी वाणी शासनना प्राण स्वरूप होय छे. श्री तीर्थकरदेवो अर्थथी प्ररूपेल अने गणधरदेवो सूत्रथी गूथेल में जिनवाणी हितकांक्षी पुन्यात्माओ माटे अमृत तुल्य छे. विद्यमान आगम श्रुतज्ञानमा मुख्यतया 45 आगम गणाय छे. ते उपरांत पण 84 आगमनी गणतरीने हिसाबे बीजु पण केटलुक आगम रूपी श्रुतज्ञान विद्यमान छे. आगम सूत्रो उपर नियुक्तिओ, भाष्यो, चूर्णिओ अने टीकाओ रचाइ छ. अने अथी सूत्र सहित आगमनी ओ पंचांगी जैन शासनमा मान्य छे. तेना आधारे वर्तमान ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार अने वीर्याचार रूप व्यवहार प्रवर्ते छे. सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान अने सम्यग्चारित्र रूप मुक्ति मार्ग प्रवर्तमान छे. पंचांगीनो वाचना, पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा भने धर्मकथा रूप पंचलक्षण स्वाध्याय जेटलो जोरदार तेटली श्री संघा सम्यग् ज्ञाननी शुद्धि जोरदार, तेनाथी ज्ञानाचार . उज्वल, उज्वल ज्ञानाचारथी दर्शनाचार उज्वल, उज्वल दर्शनाचारथी चारित्राचार उज्वल, उज्वल चारित्राचारथी तपाचार उज्वल अने अ चारे उज्वल आचारथी वीर्याचार उज्वल. वीर्याचारनी उज्वलताथी जैनशासन उज्वल. ए उज्वल जैन शासन सदा जयवंत वर्ते के. ___आम शासननो आधार कहो के पायो कहो, मूल कहो के प्राण कहो, अ श्री जिनवाणी छे. अने ते जिनवाणी 45 मूल आगम सहित पंचांगी स्वरूप छे. पंचांगीने अनुसरता प्रकरण ग्रन्थो यावत् स्तवन सज्झाय के नाना निबंध के वाक्य स्वरूप छ. उपशम विवेक संवर अ त्रिपदी स्वरूप जिनवाणीथी घोर पापी चिलातीपुत्र पतनना मार्गथी नीकली प्रगतिमार्गना मुसाफिर बनी गया हता. ___45 मूल आगमना अधिकारी योगवाही गुरुकुलवासी सुविहित मुनिवरो छे, साध्वीजी महाराजो श्रीआवश्यक सूत्र आदि मूल सूत्रोना तेमज श्रीआचारांग सूत्रना योगवहन करवा Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपापकीय निवेदन पूर्वक अधिकारी छे. श्रावक श्राविकाओ उपधान वहन करवा पूर्वक श्री आवश्यक सूत्र उपरांत दशवकालिंकसूत्रना षड्जीव-निकाय-नामना चोथा अध्ययन पर्यंतना श्रुतना अधिकारी छे. आम आगमश्रुतना अधिकारी मुनिवरो योगवहन करवा पूर्वक योग्यता मुजब अध्ययन आदि करीने पोताना ज्ञान दर्शन चारित्रने निमल बनावे के अने योग्यता मुजब धर्मकथा द्वारा जिणवाणीनु पान करवी साधु साध्वी श्रावक श्राविका रूप चारे प्रकारना संघने तेमज मार्गाभिमुख जीवोने मुक्तिमार्ग प्रदान करे छे. 45 आगमसूत्रो 6 विभागोमा बहेंचायेल छे. (1) अंगसूत्रो-११ (2) उपांगसूत्रो-१२ (3) पयन्नासूत्रो-१० (4) छेदसूत्रो-६ (5) मूल सूत्रो-४ (6) चूलिकासूत्रो-२. आ सूत्रोनु स्वाध्याय आदि अध्ययन वधे तेमाटे उपयोगी बने ते रीते 45 मूल सूत्रो श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रीसंघमा सळंग मुद्रित नथी अने जेथी आगम सूत्रांना स्वाध्याय आदिनी अनुकूलता थाय ते माटे शक्य प्रयत्ने संशोधन करीने प्रगट करवानी योजना विचारवामां आवी छे, ते योजना मुजब 45 आगमसूत्रो 14 विभागमा संपादन थशे. पहेलो अने आठमो विभाग प्रगट थया पछी आ तेरमो विभाग संपादित थयेल के आ तेरमा विभागमां श्री दशवकालिक सूत्र , श्री पिण्डनियुक्ति सभाष्या अने श्री उत्तराध्ययनसूत्र आपवामां आव्या छे, श्री पिंडनियुक्ति श्रीदशवकालिकसूत्रना पांचमा अध्ययन ऊपरनी नियुक्ति छे, मोटा प्रमाण रूप के जेथी स्वतंत्र सूत्र पण गणाय छे. अहीं श्रीदशकालिक सूत्रना एक अंग रूप होइ श्री दशवैकालिक सूत्र पछी ते आपवामां आवी छे. ___ आ सूत्रोना संपादनमा पू. आगमोद्धारक आचार्यदेवश्री सागरानंदसूरीश्वरजी म. संशोधित श्री आगममंजूषा, वाबु श्रीधनपतसिंहजी द्वारा प्रकाशित सटीकसूत्रोनो उपयोग कयों छे. उपरांत श्री दशवकालिकसूत्र अंगे शेठ श्री देवचंद लालभाइ प्रकाशित श्री हारीभद्रीयटीका, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी पेढी प्रकाशित चूर्णि तथा श्री सुमतिसाधुसरिजी रचित लघुटीका तेमज शेठ नानचंद भाइचंद, श्री वीरसमाज, श्री नगीनदास नेमचंद प्रकाशित मूलसूत्र तेमज पू० आ० श्री विजयभद्रंकरसूरिजी म० संपादित मूलसूत्र नो आधार लीधो छे. शेठ देवचंद लालभाइ प्रकाशित (1674) श्री पिंडनियुक्ति नी मलयगिरिजी म. रचित टीकानो आधार श्री पिंडनियुक्ति माटे लीधो छे.. श्री उत्तराध्ययन सूत्रना संपादनमा पूज्य प्रवर श्री जिनदास गणि सचित चूर्णि प्रकाशक श्रीऋषभदेवश्रीकेशरीमल संस्था 1989, पू० उ० श्री भावविजयजी म. रचित टीका (जैन आत्मानंद सभा प्रकाशित सं० 1971 तथा विनयभक्ति सुंदर चरण ग्रन्थमाला प्रका. शित सं० 1967), पू० आ० श्री नेमिचंद्रसूरिजी म. विरचित टीका (पुष्पचंद खीमचंद Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपादकीय निवेदन [5 प्रकाशित सं० 1993) वादिवेताल पू० आ० श्रीशांतिमूरिजी म० रचित टीका(देवचंद लालभाई प्रकाशित सं० 1972) तथा ऋषभदेवजी छगनीरामजी संस्था द्वारा प्रकाशित सं० 2007) तथा मास्तर छोटालाल नानचंद (वीर सं. २४५७)श्री वीरसमाज (सं 1962) श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला (2020) प्रकाशित मूलसूत्रनो आधार लेवामां आव्यो छे, ते सौ प्रत्ये कृतज्ञता प्रकट कर छु टीकाओमा रहेला पाठांतरो मेलवीने मूलपाठ जोडे कौंशमां आपेला छे. श्री श्रमण संघमा आगमो कंठस्थ करवामां, स्वाध्याय करवामां, विस्तृत टीकाओना वांचन पछी मूलसूत्रोनु पुनरावर्तन करवामां, आ मूल सूत्रोना संयुक्त संपादन थी घणी अनुकूलता रहेशे. अने अथी होशे होशे उत्साही मुनि भगवंतो सूत्रो कंठस्थ करीने आगम श्रुतने धारण करवा माटे पण समर्थ बनी शकशे. 2, 5, के 10, 20 सूत्र कंठस्थ करनारा अने पुरतो प्रयत्न थाय तो अक लाख श्लोक प्रमाण मूल सूत्रो कंठस्थ करी धारी राखनारा अनेक गणो मुनिवरोमां थइ शकशे. 'ज्ञानधनाः साधवः' अविधान मुजब श्रमण संघना प्राण समान आ आगम सूत्रोनु श्री श्रमण भगवंतो द्वारा विशेष परिशीलन थतां श्रीसंघने माटे श्री शासन ने माटे घणी उज्वलता फेलाशे अने ओ आशयथी स्वपरना श्रेयकारी आगम सूत्रोनां संशोधन संपादनमा अविरत उत्साह प्रवर्तमान छे. प्रकाशननी सगवडता माटे श्री गौतम आर्ट प्रिन्टर्स (ब्यावर) ना व्यवस्थापक श्री छगनलालभाई ओ जे खंत अने उत्साह बताव्या छे तेने कारणे आ प्रकाशनो समयसर प्रका. शित थइ रह्या छे. चरम तीर्थपति श्रमण भगवान महावीर देवे प्रकाशेल जिनवाणीनो प्रभाव पांचमा आराना छेडा सुधी रहेशे से ज्वलंत जिनवाणीनो प्रकाश आपणा आत्माने अजवालनारो बने ते माटे योग्यता अने अधिकार मुजव जिनवाणीनी उपासनाभक्तिमां भावोल्लास पूर्वक रस लइ रह्यो छु ते टकी रहे. अने सौ श्रुत आराधनामा उजमाल बनी अज मारा अंतरनी शुभ भावना छे. वीर सं० 2501 वि० सं० 2031 / आसो सुद 1 मंगलवार जैन उपाश्रय, एन्डुझरोड शांताकुझ पश्चिम, मुबई-५४ ) हालार देशोद्धारक कविरत्न पूज्य आचार्यदेव श्रीमद्विजयअमृतसूरीश्वरजी महाराजानो चरण सेवक पं० जिनेन्द्रविजय गणो Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय निवेदन अमारी ग्रन्थमाला तरफथी आ श्रीमदागमसुधासिन्धु तेरमो विभाग मूल प्रगट करता आनंद अनुभवीए छीए. हालमा 45 आगम मूल अने केटलाक आगम टीका सहित प्रगट करवाने काम शरू करता आ सूत्र नागरी लिपिमा मोटा टाइपमा प्रगट करेल छे. आ प्रकाशन पूर्वे श्री आगम सुधा सिन्धुना पहेलो अने आठमो एम बे विभाग प्रगट थई गया छे. बारमो विभाग पण छपाई गयो छे. हाल चोथा अने चौदमा विभागनु मुद्रण चाली रा छे. ___ आ ग्रन्थनु संशोधन संपादन हालारदेशोद्धारक कविरत्न स्व. पू० आचार्यदेव श्रीमद्-. विजयअमृतसूरीश्वरजी महाराजना शिष्यरत्न पू० पंन्यास श्री जिनेन्द्रविजयजी गणिवरे घणी खंत थी करेल छे. कागल छपाइ आदिना भाव वधवाने कारणे खर्च धार्या करतां वधु आवे छे. मोटा टाइपमा मुद्रित करतां पेज वधारे थाय छे. परंतु टकवानी अने अभ्यासनी दृष्टिए अनुकुलता रहशे. आगम सूत्रोना अधिकारी योगवाही गुरूकुलवासी सुविहित मुनिओछे ए शास्त्रविधि मुजब पूज्य श्रमणसंघमा आगम वांच नादिमां अनुकुलता थाय ते रूप आ श्रुतभक्ति करता अमे आनंद अनुभविए छीए. श्री दशवकालिकसूत्र, श्रीपिण्डनियुक्ति तथा श्री उत्तराध्ययन सूत्र अम त्रण मूल सूत्रो आ तेरमा विभागमा प्रगट थइ रहयां छे. 45 मूल आगम 14 विभागमा प्रगट थशे. सटीक आगमोमां श्रीमदन्तकृद्दशा, श्रीमदन्तरोपपातिकदशा अने श्रीमदुपासकदशा सूत्र तैयार थइ गयां छे. मुद्रण माटे श्री गौतम आर्ट प्रिन्टर्सना व्यवस्थापको ए सारी खंत राखी के तो तेमनो आभार मानीए छीए. वीर संवत 2501 वि० स०२०३१ आसो सुद 10 मंगलबार ता. 14-10-75 लि:नेमचंद वाघजो गुढका नवीनचंद्र बाबुलाल शाह Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सादर समर्पणसकलागमरहस्यवेदी ज्योतिषमार्तड पूज्यपाद आचार्यदेवेश श्रीमद्विजयदानसूरीश्वरजी महाराजाना पट्टधर, चारित्रचूडामणि सिद्धान्तमहोदधि पूज्यपाद आचार्यदेवेश श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वरजी महाराजा ना पट्टधर * संदूधर्मसंरक्षक, आगमतत्त्वसूक्ष्मार्थप्रकाशक सिद्धान्तरसनिम ग्न, पोधिबीजप्रदाता, करुणासागर, युग दिवाकर, महाराष्ट*. देशोद्धारक व्याख्यानवाचस्पति शासनध्रुवतारक परम.. शासनप्रभावक, सद्धर्मसदोपदेशक पूज्यपाद प्राचार्यदेवेश विजयरामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजाना कर कमलोमां - धर्मनो सत्यमार्ग प्रकाश करी, शासन रक्षा करवाना अनुपम अनंत उपकारोने याद करीने मी म सुधा सिन्धु तेरमो विभाग सादर समर्पण करी कृत्कृत्यता अनुभव छ / गुरुदेव कृपाकांक्षीजिनेन्द्रविजय Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अनुक्रमः * // 1 // श्री दशवैकालिकसूत्रम् रचयिता श्रीमत्शयम्भवसूरीश्वर अध्ययन-नाम ५शका | भीम. अध्ययन-नाम पृष्ठांक: 22 - me cm orm 1 श्री द्रुमपुष्पिका 7 श्री सुवाक्यशुद्धि 2,, श्रामण्यपूर्वक | 8, आचार प्रणिधि 3 ,, क्षुल्लकाचार.. | 9,, विनय समाधि (उद्देशा-४) 4, षड्जीवनिका | 10 ,, सभिक्षु 5 ,, पिण्डैषणा (उद्देशा-२) .. 10 1, रतिवाक्या चूलिका " महाचारकथा . 18 | 2 ,, विविक्तचर्या चूलिका // 2 // सभाष्या श्री पिण्डनियुक्तिः / रचयिता-श्रीमद्भद्रबाहुस्वामी . (पृष्ठ 41 थी 83) // 3 // श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् // पूर्वोधृत-जिनभाषित-श्रुतस्थविर-संदृब्ध क्रमः पृष्ठांकः / क्रमः . अध्ययन-नाम 1 श्री विनयश्रुत 8 श्री कापालीय 2, परीषह 886,, नमिप्रव्रज्या 3, चतुरङ्गीय 11 | 10,, द्रुमपत्रक 4, प्रमादाप्रमाद (असंख्य) | 11 ,, बहुश्रुतपूजा 5, अकाममरणीय 94 | 12 ., हरिकेशीय / 6, क्षुल्लनिर्ग्रन्थीय 95 | 13 ,, चित्रसम्भृतीय 7,, औरभ्रीय 97 ' 14, इषुकारीय अध्ययननाम पृष्ठांकः 98 100 108 111 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [1 अनुक्रमः पृष्ठांक: 150 154 155 क्रमः अध्ययन-नाम् 15 श्री सभिक्षु 16 // ब्रह्मचर्यसमाधि 17 , पापश्रमणीय 18, संयतीय 16, मृगापुत्रीय 20, महानिर्ग्रन्थीय 21 , समुद्रपालीय 22 ,, रथनेमीय 23 ,, केशीगौतमीय 24 , प्रवचनमात, 25 ,, यज्ञीय पृष्ठांकः / क्रमः अध्ययन-नाम 117 | 26 श्री सामाचारी . 118 | 27 ,, खलुकीय | 28 , मोक्षमार्गगति 124 | 26 ,, सम्यक्त्व पराक्रम | 30 ,, तपोमार्गगति 31, चरणविधि 136 | 32, प्रमादस्थान 33 ,, कर्मप्रकृति 141 | 34 ,, लेश्या . 35 ,, अनगारमार्गगति 148 | 36 ,, जीवाजीवविभक्ति Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // शुद्धिपत्रकम् // / पृष्ठं पंक्तिः अशुद्धं 27 11 अच ले . 29 3 विवड्ढं णं 29 17 अप्पसुअसत्ति 3. 3 सरसा 30 16 अभुमक्के 30 1. महागारा 31 5 अवणीअप्पा 31 22 पुणु ति 34 4 पयं मवई य शुख . अचवले . विवड्ढणे अप्पसुअत्ति सिरसा * अग्ममुक्के. . महागरा . अविणीअप्पा पुणु ति पयं मवई, भवईय कंटए सप्पहा से न रसेसु पच्छा पृष्ठं पंक्तिः अशुद्ध शुद्धं 11. नते नसे 2 4 अंधगविहिणो प्रषगवहिणो 3 8 श्रीडषजी. श्री षड्जी. 3 10.17 तसकखाइया सप्वं तसकाइया सव्वं 5 15 महन्त्रह महब्धए 6 14 पडिका पडिक्क६ 18 महि हिमं वा 6 24 वा पयावंतंबा पयावतं वा 7 4 पावकप्पे पाव कम्मे 7.20 करावेमि कारवेमि. 8 2 0 निस्सऐसु निस्सिएसु 8 3 तुअट्ठज्जा तुअट्टज्जा 10 5 दुल्लाह 11 5 पहि .. पिहिम 11 9 पिप्पहनाई. . विप्पइन्नाई 12 2 सरोरट्टि सोरडिअ 13 5 अज्झोय-पामिच्छ अन्झोयर-पा मिन्च 14 12 पुर्य पूर्व 14 14 अप्पाणा अप्पणा 15 13 भुजिज्ज 17 4 ऊ ओसर्ट क.ओ)सद 15 5 तारिसो सारिसे 18 18 राचमच्चा रायमच्चा 16 13 बणिज्जो बज्जिको 20 14 जीवजीवाई जावजीबाई 25 25 मष्टममयय- मष्टममध्यय. नम् 25 26 जह जहा Mu, 35 15 कएटए सप्पयासे 36 1 उरसेसु 37 12 पन्छा 38 2 चउज्ज 38 4 वा अदु 38 17 गाय 41 16 पिडपरिहाई 42 24 मूगोवधओ . 43 8 संचारत्त-चोलग- 43 12 उवहि 44 10 चोउत्थीए वाया अदु गया अ पिडपडियाई मूओवधाओ संथारुतरचोलगउवह घउत्पीए (चोत्थीए) हरियाण उद्देहिगावि मायवो दुबिहो (सेसा उ) निव्वाणकार 44 17 हरिहाणं 44 22 उद्देयिगावि 45 5 नायब्वे 45 13 दुमिहो 46 1 (ससाउ) 46 4 निव्वाकारणाणं गाणं Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 11 संघट्टताss. भंती छट्ठ बिय ते कुणइ जाणमाणोऽवि। विज्जमाणपि असंसतं परिणामियं निययं तवं चउभंगे ताणि दवाई कम्मेणं कम्मेण छायालीसं सरीर ठविज्ज शुद्धिपत्रकम् पृष्ठं पंक्तिः अशुद्धं पृष्ठं पंक्तिः अशुद्धं 46 5 मोक्खने(नि)मस्स मोक्खनेम(मिस्स | 77 19 संघट्टताऽऽभंती 48 5 छदाणा छद्राणा उ 48 8 अहेभवाउं अहेभवाऊ 78 4 चेय 48 21 परप्पउत्तऽवि परप्पउत्तेवि 78 17 छट्ट 49 14 . तुहिका तिहिंपि तुहिक्का। 78 24 ते कुण तिण्हपि 46 20 पलया पलाया 76 2 दिजणं पि 50 9 पुरंदरगाई पुरंदराई 79 , असतं परिणमियं 51 15 विय 80 8 निययं 53 1 गुसुलगोरस गुलगोरस 56 14 मा 80 23 चउभंगो मा वामा 81 13 दबाई 57 11 तीसवि तिसुवि 81 14 कम्मेणं 57 12 पुवुद्धि पुश्वुद्दि 58 2 भायणयप्फोरण 82 18 छायालीस मायणपफोडण 83 3 सारीर० 85 13 ऽवेज 56 10 कुणा , एगत्थ कुणह 91 19 // 1 // ___8 आउट्ठा आउट्टा 62 13 जलखा 61 11 लोईय लोइय | 14 7 चक्खूविट्ठा 62 11 नो गरंतरं नो घरंतरं१५ 22 जीवन्तविज्जा 62 17 सड्डी सड्डी व सड्ढो सड्ढी 66 10 बघ० 64 1 दोसा भवे दोसा 66 13 मणासा 65 . '2 समणुनाय समणुन्नाया .6 21 अणुत्तरमणी 68 8 करेहि करेहि कह 97 14 चुओ 69 9 सिप्प. तुण्णाइ सिप्प० 98 10 अकरज्झइं 69 10 वेम 18 21 दोग्गई 70. 24 इदगछणंमि इट्टगछणमि 19 6 मायाणन्ता 71 1 इटगाओ इट्टगाओ 104 21 पयामए 72 घाउ धाउ 105 6 पाणवले 73 9 वंचसया पंचसया 106 7 अणगारस्म 75 / परिऽणतं परित्तऽणतं 106 16 पन्नरसहि 76 10 अगट्टियकन्न अगट्टियकन्न 76 17 पहियंमि पिहियंमि 107 25 . मध्यमनम् 77 10 (मभं) (मम्भ) 110 8 भू पन्ना 77 14 पाउहादि पाउयाहि / 111 7 भूओ ण जक्या चक्खुविट्ठा जावन्तविजा मणसा अणुत्तरनाणी वेस चुओ(त-) अवरजाई बोग्ग अयाणन्ता पमायए घाणबले अणगारस्स पारसहि मध्ययनम् भूपन्ना भूओ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घणं 12] शद्धिपत्रकम पृष्ठ पंक्तिः प्रशुद्ध शुद्धं / पृष्ठ पंक्तिः अशुद्ध शुद्ध 112 11 आभारणा आभरणा 155 2 मुक्खमग्गई मुक्खमग्गगई 113 3 वायार नं दायारमन्न 155 17 पुहत्तं पुहुत्तं 115 1 छणं 155 20 तहिका तहिया 115 2 समणा......ते सयणा...तं 157 3 अष्टावशिम अष्टाविशम० 115 2 मोहो मोहा 163 17 जाग- जोग११५ 9 परिक्ख परिरक्ख. 165 3 काहविजएणं कोहविजएणं 118 18 मिक्खु भिक्खु 165 15 अणंत अणंतं 15824 भगवन्ताह भगवन्तेहि 165 21 आणायाण. आणपाण. 119 21 नी इत्थीणं मोइत्थीणं 171 2 नेरिसं . नेयारिस 123 4 थद्ध .. थद्ध 101 20 सनिआगे सनिओगे 127 12 अस्थ तत्थ 171 22 उ उवेइ नउवेइ 126 . 8 वेगन्तविट्टीए वेगन्तदिट्ठीए 175 17 तुहि तुट्टि 139 17 सहमेव सयमेव 175 2 लिप्पई न लिप्पई 140 21 संजयाई संजयाइ 175 11 पुणी मुणी 145 3 गाणिमी गामिणी 175 22 गआ पओ . 146 6 चतुविशममध्ययनम् चतुर्विशमध्ययनम् 175 24 विसीगो विसोगो 148 22 मक्खताणचन्दो नक्खत्ताण मुहं चन्दो| 1761 संपीलमबेड संपीलमवेश 148 24 घेवली वंदन्ती 176 13 तुहि तुद्धि 149 1 (तु) (तु) 176 16 भावणुरत्तस्स भावाणुरत्तस्स 146 6 मलयावगं मलपावर्ग 176 21 तरुणइच्च० तरुणाइच्च० 144 21 बस्सो वइस्सो 150 3 सुट्ठ सुट्ट 192 1. वासहस्साई वाससहस्साई 150 4 तुरमे तुम्मे 182 17 उक्कोसा उ उक्रोसा साउ 150 11 वी वि आवहिया दोऽवि आवडिया 184 8 रसाए रसट्टाए 150 14. सु (तो) च्चा सुच्चा 184 १६जीवाजीविभविक्त जीवाजीवविभक्तिः 154 16 हंस हंसा 171 6 रन्धओ गन्धओ T TILILLLILILOTTI Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 45 आगम (मूल) श्रेणी योजना * श्री आगमसुधासिन्धुः * संपादकः पू. पं. श्री जिनेन्द्रविजयजी गणिवर अग्यार अंग सूत्रो: सप्तमो विभागः प्रथमो विभागः श्लोक सूत्र , , 4454 2200 2296 40 नाम 1. श्री आचारांग 2., सूत्रकृताङ्ग 3., ठाणांग , समवायांग सूत्र , 2100 3700 5. श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति 6., चंद्र प्रज्ञप्ति 7. ,, सूर्य प्रज्ञप्ति 8. , कलिका 1., कल्पावतंसिका 10. , पुष्पिका 11, पुष्पवूलिका 12, बह्निदशा , : . " : / द्वितीय-तृतीय विभागः 5. श्री भगवती सूत्र 15742 चतुर्थो विभागः 5464 812 6, श्री ज्ञाता सूत्र 7, उपासकदशा " . अतकृद्दशा E, , अनुत्तरोपपातिक , प्रश्नव्याकरण , विपाक श्लोक 162 1250 10 पयन्ना सूत्रो: अष्टमो विभाग: नाम 1. श्री चउशरण 2., आउरपच्चक्खाण, " महापच्चक्खाण, 4., भक्त परिक्षा , 5., तंदुलवैयालीय " 6., संस्तारक 7." गच्छाचार 8,, गणिविज्जा 9., देवेन्द्र स्तव , मरणसमाधि 1,,, चंद्र वेध्यक / वीरस्तव 100 176 215 138 155 बार उपांग सूत्रो:-- - पञ्चमो विभागः नाम 1. श्री उववाद 2., राजप्रश्नीव 3., जीवाभिगम , . षष्ठो विभागः 4., पन्नवमा सूत्र श्लोक 1167 2120 375 875 174 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 मूल सूत्रो: द्वादशमो विभागः 1 श्री आवश्यक | 2, ओपनियुक्ति , श्लोक 2500 1355 21 -: 6 छेद सूत्रो:-- नवमो विभागः नाम 1. श्री निशीथ बृहत्कल्प " पचकल्पभाष्य व्यवहार बशाश्रुत्त जीतकल्प त्रयोदशमो विभागः | 3 श्री वशवकालिक सूत्र , पिंडनियुक्ति , .. 4, उत्तराध्ययन , 2106 835 2 चूलिका सूत्रो दशमो विभागः 6 श्री महा निशीथ सूत्र चतुर्दशमो विभागः 4.48 | 1 श्री नंदी सूत्र एकादशमो विभागः . 2 श्री अनुयोगद्वार सूत्र . 186 श्री कल्पसूत्र सूत्र 1215 / सटीक आगमो आदि नं. नाम मूल श्लोक टीकाकार टीका श्लोक 1 श्री आचारांग सूत्र . श्री शीलांकाचार्य 2 श्री उपासकदशांग " 892 श्री अभयदेवसूरिजी 3 श्री अंतकृदशांग , EER 4 श्री अनुत्तरोपपातिक , 182 5 नवस्मरणानि गौतमस्वामिरासन 2554 400 100 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 45 आगम श्रेणी पुस्तक योजना अंगे * निवेदन * जणावतां आनद थाय छे के परम करुणानिधि चरम तीर्थपति श्रमण भगवान महावीरदेवे भव्य जीवोना श्रेयना हेतु रूप तीर्थनी स्थापना करी अने गणधर देखोने त्रिपदीनु प्रदान कयु. लब्धिनिधान श्री गणधर देवो द्वादशांपोनो रचना करी. जेमनी पाट परंपरा विद्यमान छे ते श्रीमत्सुधर्मस्वामोजोनी द्वादशांगी प्रवर्तमान रही अने वर्तमानमा अग्यार अंग आदि अंग प्रविष्ट अने बार उपांग दश पयन्ना, छ छेद, 4 मूल अने 2 चूलिका सूत्रो प्रेम अंग बाह्य भूतज्ञान आदि विद्यमान छे ते सूत्रो उपर पूर्वावार्य महापुरूषो विरचित नियुक्ति, भाष्य, पूणि, टोका, अवचूरि विगेरे आगमानुसारी श्रुत विद्यमान छे. आ कल्याणकारी श्रुतना आधारे श्री महावीर परमात्मानुशासन प्रवर्तमान छ पूज्य आचार्य भगवंतो आदि मुनिराजो आदि योगवहन, गुरुकुलवास, गुरूआज्ञा आदि योग्यता मुजब अ श्रुतना अधिकारी के अने अथी शास्त्रीय मर्यादामा रहेता पूज्योने आ श्रुतज्ञानना स्वाध्याय आदिनी अनु. कुलता रहे ते हेतुथी श्रुत भक्तिरूपे 45 आगमो मूल तेमज केटलाक सूत्रोनी टीका आदि मुद्रित करवानुनक्की कर्यु छे तेनु संशोधन अने संपादन हालार-देशोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय अमृतसूरीश्वरजी महाराजना शिष्य पूज्य पंनयास श्री जिनेन्द्रविजयजी गणिवर अथाग परिश्रम पूर्वक करी रह्या छे. _ आ सूत्रो श्री संघना भंडारोमा पूज्य गुरुदेवोने अर्पण करवा प्रसारित करवानो अमे निर्णय कर्यो छ. तेनी मर्यादित नकलो प्रकाशित थाय छे अने जे श्री संघो के श्रुतभक्ति रूपे श्रावको आ प्रतिओ मेळववी होय तेमणे पोतानी प्रतो नी यादी लखावी देवा विनति छे. - सूत्रोनी प्रतो मर्यादित प्रकाशित पाय छे वळी बुकसेलरोने ते बेंचवा आपवानी नयी अटले पाछलथी प्रतिम्रो प्राप्त थवो मुश्केल पडशे जेयो भंडारोने सुध्यवस्थित अने समृद्ध बनाववा श्री संघोओ पोताना सेट तरतमा लखावी देवा, पूज्य गुरुदेवो के संघोने अर्पण करवा या श्री शासननी मिल्कत रूपे सुरक्षित राखी, पूज्य गुरुदेवोने स्वाध्याय आदि माटे अर्पण करवा सुश्रावको पण आ सेट खरीदी शकशे. तेओ आ सेट बांधो के बैंची शकशे नहीं. 45 आगमो अने 4/5 सूत्रोमो टोकाओ आदि जे कार्य हाथ उपर घरायु छे तेनु मूल्य ह. 700 थशे. दर वरसे 8 थी 10 सूत्रो तैयार थशे. जेमणे सेट लखाववा होय तेमणे रु. 200) अंक सेट दीठ मोकलया अने अटला सूत्रो तेमने प्राप्त थया पछो तेमने जणाववाथी आगलना सूत्रो माटे रकम मोकलवानी रहेशे. चोद विभागमा 45 आगम प्रगट थशे. तेमा 1 लो विमाग 8 मो विभाग पण पूर्ण थयो छे. बाद १२मो तेरमो तैयार छ तथा श्री उपासकाशा सटीक श्री अंतकृद्दशा सटीक, श्री अनुत्तरोषपातिक पशा सटीक, नवस्मरण अने रास पण तैयार छे, श्री आचारांग सूत्र सटीक हवे छपाशे. Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16 ] निवेदन पहोंचाडवानी सगवडता रहे ते माटे 8 थी 10 सूत्रो तयार थयेथी रवाना कराशे. जेथी सेट मंगावनारे पोताने मोकलवानु रेल्वे के ट्रान्सपोर्ट द्वारा प्राप्त थाय तेवु सरनामु जणाव आ आगम श्रेणी अंगे नाम नोंधाववा तथा रकम मोकलवाना सरनामा: (1) महेता मगनलाल चत्रभुज शाक मारकेट सामे निशाल फली, (4) शा. वेलजी हीरजी गुढका जामनगर, (सौराष्ट्र) 52 बी एम. आझादरोड, रंगवाला चाल, मुंबई-४०००११ . (2) शा. मनसुखलाल जीवराज भाडलावाला शराफ बजार, राजकोट (सौराष्ट्र) (5) शा. रीखवचंद कुलचंद (3) शा. वालजी गणशी . सी. पी. टेन्क पहेलो पारसीवाडो . C/0 हीरा एम्पोरीयम, आनंदरोड, ___ खलीफ मेन्सन, वी. पी. रोड, मुंबई-४ मलाड (वेस्ट) मुंबई-४०००६४ आ आगम श्रेणी उपरांत अप्रगट तथा अप्राप्य ग्रन्थोनु विशाल पाया उपर प्रकाशन करवानी पण अमारी धारणा छे. श्रुतज्ञाननी आ भक्तिना कार्यमा सौनो साथ मलशे तो अमे वहेलासर सफल पशु अथी आ अंगे योग्य सहकारनी अपेक्षा राखी धूतज्ञान भक्तिना कार्यमा साथ आपवा नम्र विनंति छ. Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहम् / श्रुतकेवलि-श्रीमत्शय्यम्भवसूरीश्वर-विरचित // श्रीमदशवकालिक-सूत्रम् // - - - // // अथ श्री द्रुमपुष्पिकाऽध्ययनम् // धम्मो मंगलमुकिट्ट, अहिंसा संजमो तवो / देवा वि तं नमंसंति, जस्स धम्मे सया मणो // 1 // जहा दुमस्स पुप्फेसु, भमरो श्रावियइ रसं / ण य पुफ किलामेइ, सो श्र पीणेइ अप्पयं // 2 // एमेए समणा मुत्ता, जे लोए संति साहुणो / विहंगमा व पुप्फेसु, दाणभत्तेसणे रया // 3 // वयं च वित्तिं लभामो, न य कोई उवहम्मइ / अहागडेसु रीयंते, पुप्फेसु भमरा जहा // 4 // महुगारसमा बुद्धा, जे भवंति अणिस्सिया / नाणापिडरया दंता, तेण वुच्चंति साहुणो त्ति बेमि // 5 // . ॥इति प्रथममध्ययनम् // 1 // // 2 // अथ श्रीश्रामण्यपूर्वकाध्ययनम् // कहं नु कुजा सामगणं, जो कामे न निवारए / पए पर विसीअंतो, संकप्परस वसं गयो // 1 // वत्थगंधमलंकारं, इत्थीयो सयणाणि य। अच्छंदा जे न भुजंति, न ते चाइत्ति वुच्चइ // 2 // जे य कंते पिए भोए, लद्धे विपिट्टि कुव्वइ / साहीणे चयइ भोए, से हु चाइ-त्ति वुच्चइ // 3 // समाइ पेहाइ परिव्वयंतो, सिया मणो निस्सरई बहिद्धा / न सा महं नोवि अहंपि तीसे, इच्चेव तायो विणइज्ज रागं // 4 // पायावयाही चय सोगमल्लं, कामे कमाही कमियं खु दुक्खं / विंदाहि दोसं विणइज रागं, एवं Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2] [ भीमदागमसुधासिन्धुः // त्रयोदशमो विभागा सुही होहिमि संपराओं // 5 // पक्खंदे जलियं जोई, धूमकेउं दुरासयं / नेच्छंति वतयं भोत्तुं, कुले जाया अगंधणे // 6 // धिग(र)त्यु ते जसोकामी, जो तं जीवियकारणा / वंतं इच्छसि श्रावेउं, सेयं ते मरणं भवे // 7 // अहं च भोंगरायस्स, तं च सि अंगविगिहणो / मा कुले गंधणा होमो, संजमं निहुयो चर // 8 // जइ तं काहिसि भावं, जा जा दिच्छसि नारियो। वायाविद्धव्य हो, यद्विअप्पा भविरससि // 1 // तीसे सो वयणं सोचा, संजयाइ सुभासियं / अंकुसेण जहा नागो, धम्मे संपडिवाइयो॥ 10 // एवं करंति संबुद्धा, पंडिया पवियवखणा / विणिअट्टति भोगेलु, जहा से पुरिसुतमो त्तिबेमि // 11 // ॥इति दितीयमध्ययनम् / / 2 / / // 3 // अथ श्रीक्षुल्लकाचाराध्ययनम् // संजमे सुट्टिअप्पाणं, विप्पमुक्काण ताइणं / तेसिमेय-मणाइन्नं निग्गंथाणं महेसिणं // 1 // उद्देसियं कीयगडं, नियागमभिहडाणि य / राइभत्ते सिणाणे य, गंधमल्ले य वीयणे॥ 2 // संनिहिगिहिमत्ते अ, रायपिंडे किमिच्छए / संवाहणा दंतपहोयणा य, संपुच्छणा देहपलोयणा य // 3 // अट्ठा. वए अ नालीए, छत्तस्स य धारणट्टाए / तेगिच्छं पाहणापाएं, समारंभं च जोईणो॥ 4 // सिज्जायरपिंडं च, यासंदीपलियंकए। गिहतरनिसिजा य, गायस्सुम्बट्टणाणि य // 5 // गिहिणो वेत्रावडियं, जा य श्राजीववत्तिया / तत्तानिव्वुडभोइत्तं, पाउरस्सरणाणि य // 6 // मूलए सिंगबेरे य उच्छुखंडे अनिव्वुडे / कन्दे मूले य सचित्ते, फले बीए य श्रामए / / 7 // सोवचले सिधवे लोणे, रोमालोणे य आमए / सामुद्दे पंसुखारे य, कालालोणे य श्रामए // 8 // धुवणेत्ति वमणे य, वत्थीकम्मविरेयणे / अंजणे दंतवणे य, गायाभंगविभूसणे // 1 // सब्वमेयमणाइन्नं, निग्गंथाणं महेसिणं / संज्मम्मि य जुत्ताणं, लहुभ्यविहारिणं // 10 // पंचासवपरिगणाया, तिगुत्ता बसु Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीमदशकालिक-सूत्रम् / अध्ययनं 4 ] . संजया। पंत्रनिग्गहणा धीरा, निग्गंथा उज्जुदंसिणों // 11 // पायावयंति गिम्हेसु, हेमंतेमुअबाउडा / वासासु पडिसंलीणा, संजया सुसमाहिया // 12 // परिसह-रिउदंता, धूयमोहा जिइंदिया। सव्वदुक्खप्पहीणट्ठा, पकमंति महेसिणो // 13 // दुकराई करित्ताणं, दुस्सहाई सहेत्तु य / के इत्थ देवलोएसु, केइ सिझति नीरया // 14 // खवित्ता पुव्वकम्माई, संजमेण तवेण य / सिद्धिमग्गमणुपत्ता, ताइणो परिनिबुडे तिबेमि // 15 // . ॥इति तृतीयमध्ययनम् // 3 // // 4 // अथ श्रीपजीवनिकाऽध्ययनम् // सुग्रं मे पाउस ! तेणं भगाया एवमक्खायं, इह खलु छज्जीवणिया नानज्माणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुअक्खाया सुपन्नत्ता, सेयं मे अहिजिउं अज्झयणं धम्मपन्नत्ती // 1 // कयरा खनु सा छजीवणिया नामज्झयणं, समणेणं भगवया महावीरेणं, कासवेणं पवेझ्या, सुअक्खाया सुपन्नत्ता, सेयं मे अहिजिउं अज्झयणं धम्मपन्नत्ती ? // 2 // इमा खलु मा छजीवणिया नामज्झयणं / समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुक्खाया सुनता, सेयं मे अहिजिउं अज्झयणं धम्मपन्नत्ती // 3 // तं जहा-पुढविकाइया अाउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया, ततकखाइया // 4 // पुढवी चित्तमंत-मक्खाया अणेग-जीवा, पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं // 5 // याऊ चित्तमंत मरखाया अणेगजीवा, पुढोसत्ता अन्नस्थ सत्थपरिणएणं // 6 // तेऊ वित्तमंतमक्खाया श्रणेगजीवा, पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं // 7 // वाउचित्तमंत-मक्खाया अणेगजीवा, पुढोसत्ता अन्नत्य सत्थपरिणएणं // 8 // वणस्सइ चित्तमंत-मक्खाया, अणेगजीवा / पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणयेणं // 1 // तंजहा-अग्गवीया, मूलबीथा. पोरबीया, खंधवीया बीयरुहा, संमुच्छिमा तणलया, वणस्सइकाइया, सबीया चित्तमंत-मक्खाया अणेगजीवा, पुढोसत्ता, Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विमार्गः अन्नत्य सत्थपरिणश्रेण // 10 // से जे पुण इमे अणेगे बहवे तसा पाणां, तं जहा-ग्रंडया पोयया जराउया रसया संसेइमा, संमुच्छिमा उब्भिया उववाइया जेसि केसि चि, पाणाणं अभिवकंतं पडिपकंतं संकुचियं पसारिश्र, रुयं भंतं तसियं पलाइग्रं श्रागइगइविन्नाया जे अकीडपयंगा, जा य कुथु. पिपीलिया, सव्वे बेइंदिया, सव्वे तेइंदिया, सव्वे चरिंदिया, सव्वे पंचिंदिया, सम्वे तिरिक्ख नोणिया, सब्वे नेरइया सव्वे मणुया सव्वे देवा, सब्वे पाणा परमाहम्मिया / एसो खलु छट्टो जीवनिकायो तसकाउत्ति, पवुच्चइ // सूत्रं 1 // इच्चेसिं छगहं जीवनिकायाणं नेा सयं दंडं समारंभिजा, नेवन्नेहिं दंडं समारंभाविजा, दंड समारंभंतेऽवि अन्ने न समणुजाणामि, जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि, न कारवेमि, करंतपि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि // सूत्रं 2 // पढमे भंते ! महब्बए पाणाइवायायो वेरमणं, सव्वं भंते ! पाणाइवायं पच. वखामि, से सुहुमं वा बायरं वा, तसंवा, थावरं वा, नेव सयं पाणे यइवाइजा, नेवन्नेहिं पाणे अइवायाविजा, पाणे अइवायंते वि अन्ने न समगुजाणामि जावजीगए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतं वि अन्नं न समणु जाणामि तस्त भंते पडिकमामि निंदामि गिरिहामि अपाणं वोसिरामि. पढमे भंते ! महब्बए उवट्ठियोमि, सव्वायो पाणाइवा. यायो बेरमणं // 1 // सूत्रं 3 // ग्रहावरे दुच्चे भंते ! महब्बए मुसावायायो वेरमणं, सव्वं भंते ! मुसावायं पञ्चक्खामि, से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा नेव सयं मुसं वइजा, नेवऽन्नेहिं मुसं वायाविजा, मुसं वयंते वि अन्ने न समणु जाणामि, जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समाणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि, दुच्चे भंते ! महब्बए Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद्दश्चकालिंक-सूत्रम् :: अध्ययनं 4] : उबढियोमि सव्वायो मुसावायायो वेरमणं // 2 // सूत्र 4 // श्रहावरे तब्चे भंते ! महब्बए अदिन्नादाणायो वेरमणं. सव्वं भंते ! अदिन्नादाणं पच्चाखामि, से गामे वा नगरे वारगणे वा अप्पं वा बहुँ वा अणुवा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा नेव सयं अदिन्नं गिरिहजा नेवन्नेहिं अदिन्नं गिराहाविजा, श्रदिन्नं गिराहतेऽवि अन्ने न समणुजाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि, तच्चे भंते ! महब्बए उवट्ठियोमि सव्वाश्रो अदिन्नादाणायो वेरमणं // 3 // सूत्रं 5 // ग्रहावरे चउत्थे भंते ! महव्यए मेहुणायो वेरमणं, सप्वं भंते ! मेहुणं पच्चक्खामि, से दिव्वं वा माणुसं वा तिरिक्खजोणियं वा नेव सयं मेहुणं सेविजा. नेवन्नेहिं मेहुणं सेवाविजा, मेहुणं सेवंते वि अन्ने न समणुजाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्न न समणुजाणामि तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि, चउत्थे भंते ! महब्बए उवडियोमि सव्वायो मेहुणायो वेरमणं // 4 // सूत्रं 6 // ग्रहावरे पंचमे भंते ! महब्बह परिग्गहायो, वेरमणं, सव्वं भंते परिग्गहं पच्चकखामि, से अप्पं वा बहुँ वा अणु वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा. नेव सयं परिग्गहं परिगिलिजा नेशन्नेहिं परिग्गहं परिगिराहाविज्जा परिग्गहं परिगिराहते वि अन्ने न समणुजाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतंपि यन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि, पंचमे भंते ! महव्वए उवडियोमि सव्वायो परिग्गहायो वेरमणं // 5 / / सूत्रं ७॥ग्रहावरे छठे भंते ! वए राइभोयणायो वेरमणं,मचं भंते राइमओयणं पञ्चक्खामि,से असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा नेव सयं राइं भुजिज्जा,नेवऽन्नेहिं राइं भुजाविजा राइं भुजंते वि अन्ने Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / त्रयोदशमो विभागर न समणुजाणामि, जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारयेमि करतंपि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि, छठे भंते ! वए उवडियोमि, सव्वाबों राइभोयणायो वेरमणं // 6 // सूत्रं 8 // इच्चेयाइं पंच महत्वयाई राइभोयण-वेरमण-छट्ठाई / अत्तहियट्ठाए उवसंपजित्ताणं विहरामि // सूत्रं 1 // से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहय-पच्चरखायपावकम्मे दिया वा रायो वा थेगो वा परिसागयो वा सुत्ते वा जागरमाणे वा से पुर्वि वा भित्तिं वा सिलं वा लेलुवा ससरवखं वा कायं सप्तरवखं वा वत्थं हत्थेण वा पाएण वा कट्टेण वा किलिंचेण वा अंगुलियाए वा सिलागाए वा सिलागहत्थेण वा न श्रालिहिज्जा न विलिहिज्जा न घट्टिजा न भिंदिजा अन्नं न प्रालिहाविजा न विलिहाविजा न घट्टाविजा न भिंदाविजा अन्नं पालिहंतं वा विलिहंतं वा घट्टतं वा भिंदंतं वा न समणुजाणामि जीवजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते ! पडिकामामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि // 1 // सूत्रं 10 // से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजय-विरय-पडिहय-पचक्खाय-पारकम्मे दिया वा रायो वा एगयो वा परिसागयो वा, सुत्ते वा जागरमाणे वा, से उदगं वा श्रोसंवा महि महियं वा करगंवा हरतणुगं वा सुद्धोदगंवा उदउल्लं वा कार्य उदउल्लं वा वत्थं ससिणिद्धं वा काय ससिणिद्धं वा वत्थं न प्रामुसिजा न संफुसिज्जा, न यावीलिज्जा न पीलिजा न अक्खोडिज्जा न पक्खोडिज्जा, न श्रायाविजा न पयाविजा, अन्नं न श्रामुसाविजा न संफुसाविजा न श्रावीलाविज्जा न पवीलाविजो, न अक्खोडाविजा न पवखोडाविजा, न अायाविजा न पयाविजा, अन्नं श्रामुसतं वा संफुसंतं वा यावीलंतं वा पवीलंतं वा, अक्खोडतं वा पक्खोडतं वा पायावंतं वा, वा पयावंतं वा, Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदशकालिक-सूत्रम् : अध्ययनं 4 ] [7 न समणुजाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥२॥सूत्र ११॥से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरय-पडिहय-पञ्चक्खाय-पावकप्मे दिया वा रायो वा एगो परिसागयो वा, सुत्ते वा जागरमाणे वा से अगणिं वा इंगालं वा मुम्मुरं वा चि वा जालं वा अलायं वा सुद्धागणिं वा उपकं वा, न उंजेजा न घटेजा, न भिंदेजा न उन्जालेज्जा, न पजालेजा, न निव्वावेजा अन्नं न उंजावेज्जा न घट्टावेजा, न भिंदाविजा. न उजालाविजा, न पजालाविजा न निव्वाविजा अन्नं उंजंतं वा घटतं वा, भिदंतं वा, उज्जालंतं वा पन्जा लंत वा, निव्वावंतं वा न समणुजाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कापणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजा. णामि तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि // 3 // // सूत्रं 12 // से भिवखू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहय-पञ्चः खायपावकम्मे, दिया वा रायो वा एगयो वा परिसागयो वा सुत्ते वा जागरमाणे वा, से सिएण वा विहुयणेण वा तालियंटेण वा पत्तेण वा पत्तभंगेण वा साहाए वा साहाभंगेण वा पिहुणेण वा पिहुणहत्येण वा चेलेण वा चेलकाणेण वा हत्थेण वा मुहेण वा अप्पणो वा कार्य बाहिरं वावि पुग्गलं न फुमेजा न वीएजा अन्नं न कुमावेजा न वीयावेजा अन्नं फुमंतं वा वीयं वा न समणुजाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न करावेमि करतं पि यन्नं न समणुजाणापि तस्य भंते ! पडिकमामि निंदा मे गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि // 4 // सूत्रं 13 // से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहय–पञ्चक्खाय-पावकम्मे, दिया वा, रायो वा, एगयो वा, परिसागयो वा, सुत्ते वा, जागरमाणे वा, से बीएसु वा, बीअपईटेसु वा रूढेसु वा रूढपईठेसु वा, जाएसु वा, जायपई Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमंदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमों विभागः 8सु वा, हरिएसु वा, हरियपइ?सु वा, छिन्नेसु वा, छिनाईटेसु वा, सचित्तेसु वा, सचित्तकोलपडिनिस्सएसु वा, न गच्छेजा, न चिठेजा न निसीएजा, न तुब? जा, अन्नं न गच्छावेजा, न चिट्ठावेजा, न निसीयावेजा न तुट्टावेजा, अन्नं गछतं वा, चिट्ठतं वा, निसीयंतं वा, तुयट्टतं वा, न समगुजाणामि, जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि, न करावेमि, करतं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडि. कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि // 5 // सूत्रं 14 // से भिक्खू वा भिवखुणी वा संजयविरयपडिहय-पञ्चवखाय-पावकम्मे, दिया वा, रायो वा, एगयो वा, परिसागयो वा, सुत्ते वा, जागरमाणे वा, से कोडं वा, पयंगं वा, कुयुवा, पिपीलीयं वा, हत्थंसि वा, पासि वा. वाहुँसि वा, ऊरंसि वा, उदरंसि वा, सीसंसि वा, वत्थंसि वा, पडिग्गहंसि वा, कंबलंसि वा, पायपुंछणंसि वा, रयहरणंसि वा, गोच्छगंसि वा, उंडगंसि वा, दंडगंसि वा, पीढगंसि वा, फलगंसि वा, सेज्जसि वा, संथारगंसि वा, अन्नयरंसि वा, तहप्पगारे उवगरणजाए तो संजयामेव पडिलेहिय पडि. लेहिश्र, पमजिअ पमजिअ, एगंतमवणेजा, नो णं संघायमावज्जेजा // 6 // // सूत्रं 15 // अजयं चरमाणो अ, पाणभूयाई हिंसइ / बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं // 1 // अजयं चिट्ठमाणो अ, पाणभूयाइं हिंस्इ। बंधइ पावयं कम्नं, तं से होइ कडुयं फलं // 2 // अजयं पासमाणो श्र, पाणभूयाई हिंसइ / बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुअं फलं // 3 // अजयं सयमाणो श्र, पाणभूयाइं हिंसइ / बंधई पावयं कम्मं, तं से होइ कडुग्रं फलं // 4 // अजयं भुजमाणो अ, पाणभूयाइं हिंसइ / बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुअं फलं // 5 // अजयं भासमाणो अ, पाणभूयाइं हिंसइ / बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुग्रं फलं // 6 // कहं चरे ? कह चिट्ठ ? कहमासे ? कहं सए ? / कह भुजंतो भासंतो, पावं कम्म Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदशकालिक-सूत्रम् / अध्ययनं 4] न बंधइ ? // 7 // जयं चरे जयं चिट्ठ, जयमासे जयं सये / जयं भुजंतो भासंतो पावं कम्मं न बंधइ // 8 ॥सबभूयप्पभूयस्म, सम्मं भूयाई पासयो / पिहियासवस्स दंतस्स, पावं कम्मं न बंधइ // 6 // पढमं नाणं तो दया, एवं चिट्ठइ सब्बसंजए। अन्नाणी किं काही ? किं वा नाहीइ छेयपावगं ? // 10 // सोचा जाणइ कलाणं, सोचा जाणइ पावगं / उभयपि जाणइ सोचा, जं सेयं तं समायरे॥११॥जो जीवे वि न याणेइ, अजीवे वि न याणेइ / जीवाजीवे अयाणंतो, कहं सो नाहीइ संजमं // 12 // जो जीवे वि वियाणेइ, अजीवे वि बियाणइ / जीवाजीवे वियाणंतो, सोहु नाहीइ संजमं // 13 // जया जीएमजीवे य. दोवि एए रियाणइ / तया गई बहुविहं, सव्वजीवाण जाण // 14 // जया गई बहुविहं, सबजीवाण जाणइ / तया पुराणं च पावं च, बंधं मुखं च जाणड // 15 // जया पुराणं च पावं च, बंधं मुक्खं च जाणइ। तया निधिदए भोए, जे दिवे जे अ माणुसे // 16 // जया निबिदए भागे, जे दिव्ये जे य माणुसे / तया चयइ संजोगं, सभितर-बाहिरं // 17 // जा चयइ संजोगं, सभितर-बाहिरं / तया मुडे भवित्ताणं, पव्वइए अणगारियं // 18 // जया मुंडे भवित्ताणं, पब्वइए अणगारियं / तया संवरमुकिट्ठ, धम्म फासे अणुत्तरं // 16 ॥जया संवरमुक्टि, धम्मं फासे अणुत्तरं / तया धुणइ कम्मरयं, अयोहिकलुसं कडं // 20 // जया धुणइ कम्मरयं, अबोहिकलुसं कडं / तया सम्वत्तगं नाणं, दसणं चाभिगच्छइ // 21 // जया सवत्तगं नाणं, दंसणं चाभिगच्छइ। तया लोग-मलोगं च, जीणो जाणइ केवली // 22 // जया लोग-मलोगं च, जिणो जाणइ केवली। तया जोगे निरु भित्ता, सेलेति पडिबजइ // 23 // जया जोगे निरुभित्ता, सेलेसिं पडिबजइ / तया कम्मं खवित्ताणं, सिद्धिं गच्छइ नीरयो // 14 // जया कम्म खवित्ताणं, सिद्धिं गच्छइ नीरयो। तया लोग-मस्थयत्थो, सिद्धो हवइ सासयो // 25 / / सुहसायगस्स समणस्त, सायाउलगस्स निगामसाइस्स / उच्छोलणापहोयस्स, Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10. [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / त्रयोदशमो विभागः दुल्लहा सुगइ तारिसगस्स // 26 // तवोगुण-पहाणस्स उज्जुमइ-खंति-संजमरयस्स / परीसहे जिणंतस्स सुलहा सुगइ तारिसगस्स॥ २७॥पच्छाऽवि ते पयागा खिप्पं गच्छति अमरभवणाई। जेसि पियो तवो संजमो य खंती थ बंभवेरं च // 28 // इच्चेअं छज्जीवणियं समद्दिट्टी सया जये। दुल्लाहं लहित्तु सामन्नं, कम्मुणा न विराहिज्जासि ति बेमि // 21 // // इति चतुर्थमध्ययनम् // 4 // // 5 // अथ श्रीपिण्डैषणाऽध्ययनम् :: प्रथमो उद्देशकः // संपत्ते भिक्खकालंमि, असंभंतो अमुच्छियो / इमेण कमजोगेण, भत्तपाणं गवेसए // 1 // से गामे वा नगरे वा, गोवरग्गयो मुणी / चरे मंदमणुबिग्गो, अबक्खित्तेण चेयसा // 2 // पुरयो जुगमायाए, पेहमाणो महिं चरे / वज्जतो बीअहरियाई, पाणे य दगमट्टियं // 3 // श्रोवायं विसमं खाणु, विजलं परिवज्जए / संकमेण न गच्छिज्जा, विजमाणे परकमे // 4 // पवडते व से तत्थ, पक्खलंने व संजए। हिंसेज पाणभूयाई, तसे अदुव थावरे // 5 // तम्हा तेण न गच्छिजा, संजए सुसमाहिए। सइ अन्नेण मग्गेण, जयमेव परकमे // 6 // इंगालं छारियं राति, तुसरासिं च गोमयं / ससरक्खेहिं पाएहिं, संजयो तं नइकमे // 7 // नं चरेज वासे वासने, महियाए वा पडंतिए / महावाए व वायंते, तिरिच्छ-संपाइमेसु वा // 8 // न चरेज वेससामंते, बंभचेरवसाणुए / बंभचारिस्त दंतस्स हुजा तत्थ विसुत्तिया // 1 // अणायणे चरंतस्स, संसग्गीए अभिवखणं / हुज वयाणं पीला, सामन्नंमि अ संसो॥ 10 // तम्हा एवं विश्राणित्ता, दोसं दुग्गइवड्ढणं / वजए वेससामंतं, मुणी एगंतमस्सिए // 11 // साणं सूइयं (सूर्य) गाविं, दित्तं गोणं हयं गयं / संडिम्भं कलहं जुद्धं, दुरो परिवज्जए // 12 // अणुन्नए नावणए, अप्पहि8 श्रणाउले / इंदियाइं जहाभागं, दमइत्ता मुणी चरे // 13 // दवदवस्स न गच्छेन्जा, भासमाणो अ गोगरे / हसंतो नाभिग Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदशौकालिक-सूत्रम् / / अध्ययनं 5 ] [11 च्छिज्जा, कुलं उच्चावयं सया॥१४॥ आलोग्रंथिग्गलं दारं, संधिं दगभवणाणि य / चरंतो न विनिज्झाए, संकट्ठाणं विवजए // 15 // रराणो गिहवईणं च, रहस्सा-रक्खियाण च / संकिलेसकरं ठाणं, दूरयो परिवजए // 16 // पडिकुटुं कुलं न पविसे, मामगं परिवजए। अचियत्तं कुलं न पविसे, चिअत्तं पविसे कुलं // 17 // साणी-पावार-पहियं, अप्पणा नावपंगुरे। कवाडं नोपणुल्लिज्जा, उग्गहंसि अजाइथा // 18 ॥गोबरग्गपविठ्ठो अ, वचमुत्तं न धारए। योगासं फासुग्रं नच्चा, अणुनविय वोसिरे // 11 // णीयदुवारं तमसं, कोट्टगं परिवज्जए / अचक्खुविसयो जत्थ, पाणा दुप्पडिलेहगा॥२०॥ जत्थ पुष्फाइं बीयाई, पिप्पइन्नाई कुट्टए / अहुणोवलित्तं उल्लं, दवणं परि. वजए // 21 // एलगं दारगं साणं, वच्छगं वावि कुट्टए। उल्लंघिया न पविसे, विउहित्ताण व संजए // 22 // असंसत्तं पलोइज्जा, नाइदूरावलोपए। उप्फुल्लं न विनिज्माए, नियहिज अयंपिरो // 23 // अभूमिं न गच्छेजा, गोबरग्ग-गयो मुणी / कुलस्स भूमि जाणित्ता, मियं भूमि परकमे // 24 // तत्व पडिलेहिजा, भूमिभागं विकखणो / सिणाणस्स य वच्चस्स, संलोगं पविजए // 25 // दग मट्टिय-अायाणे, बीयाणि हरियाणि य / परिख जंतो चिट्ठिज्जा, सबिदियसमाहिए // 26 // तत्थ से चिटुमाणस्स, थाहरे पाण-भोयणं / अकप्पियं न गेरिहज्जा, पडिगाहिज कप्पियं // 27 // याहरंती सिया तत्थ, परिसाडिज भोयणं / दितियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 28 // संमद्दमाणी पाणाणि, बीयाणि हरियाणि / असंजमकरि नचा, तारिसं परिवजए॥ 21 // साहटु निविखवित्ताणं, सचित्तं घट्टियाणि य / तहेव समणट्टाए उदगं संपणुलिया // 30 // योगाहइत्ता चलइत्ता, याहरे पाणभोयणं / दितियं पडियाइवखे, न मे कप्पइ तारिसं // 31 // पुरेकम्मेण हत्थेण, दबीए भायणेण वा / दितियं पडिअाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 32 // (एवं) उदउल्ले ससिणद्धे, ससरवखे मट्टियाउसे। Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : त्रयोदशमो विभागः हरियाने हिंगुलर, मगोसिला अंजणे लोणे // 33 // गेरुवनिप्रसेढिय, सरोरट्ठिय-पिट्ट कुक्कुस कए / उकिट्ठ-मसंस?, संस? चेव बोधव्व // 34 // असंसट्टेण हत्येण, दबीए भाषणेण वा / दिज्जमाणं न इच्छिज्जा, पच्छाकम्मं जहिं भवे // 35 // संस?ण य हत्थेण, दबीए भायणेण वा। दिजमाणं पडिच्छिजा, जं तत्थे-प्पणियं भवे // 36 // दुराहं तु मुंजमाणाणं, एगो तत्थ निमंतए / दिज्जमाणं न इच्छिजा, छंदं से पडिलेहए // 37 // दुराहं तु भुजमाणाणं, दोऽवि तत्य निमंतए / दिजमाणं पडिच्छिज्जा, जं तत्थेसणियं भवे // 38 // गुम्विणीये उवराणत्थं, विविहं पाणभोत्रणं / भुजमाणं विवजिजा, भुत्तसेसं पडिच्छए // 31 // सिया य समणटाए, गुम्विणी कालमासिणी। उठ्ठिया वा निसीइजा, निसन्ना वा पुणुट्ठए // 40 // तं भवे भताणं तु, संजयाण अकपियं / दितिय पडिबाईक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 11 // थणगं पिज्जेमाणी, दारगं वा कुमारिधे / तं निक्खिवित्तु रोयंतं, याहरे पाणभोयणं // 42 // तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकपियं / दितिय पडियाआईवखे, न मे कपइ तारिसं // 43 / / जं भवे भतपाणं तु, कपाकप्पंमि संकि / दितियं पडियाईक्खे, न मे कपइ तारिसं // 44 // दगारेण पिहियं, नीसाए पीटएण वा / लोढेण या वि लेवेण, सिलेसेण व केणइ // 45 // तं च उभिदिउं दिजा, समगट्टाए व दायए। दितियं पडिबाईक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 46 // श्रतणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा / जं जाणिज सुणिजा वा, दाणट्ठा पगडं इमं // 47 // तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाणं अकप्पियं / दितियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 48 // असणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा। जं जाणिज सुणिजा वा, पुराणट्ठा पगडं इमं ॥४॥तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं / दितियं पडिबाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 50 // असणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा / जं जाणिज सुणिज्जा वा, Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद्दशनकालिक-सूत्रम् // अध्ययनं 4 ] [ 13 वणिमट्ठा पगडं इमं // 51 // तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अपि / दितियं पडियाक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 52 // असणं पाणगं वा वि, खाइमं साइमं तहा। जं जाणिज सुणिजा वा, समणट्ठा पगडं इमं // 53 // तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं / दितिय पडियाइवखे, न मे कप्पइ तारिसं // 54 // उदोसियं कीगडं, पूइकम्मं च पाहडं। अझोय-पामिच्चं, मीसजायं विवजए // 55 // उग्गमं से अ पुच्छिज्जा, कस्सट्टा केण वा कडं / सुच्चा निस्संकियं सुद्धं, पडिगाहिज संजए // 56 // असणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा / पुप्फेसु हुज उम्मीसं, बीएसु हरिएमु वा // 57 // तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकपियं / दितिय पडियाइवखे, न मे कप्पइ तारिसं // 58 // असणं पाणगं वावि, साइमं खाइमं तहा। उदगंमि हुज निक्खित्तं, उत्तिंगपणगेसु वा // 56 // तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं / दितियं पडियाइवखे, न मे कप्पइ तारिसं // 60 // असणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा / तेउम्मि हुज निक्खित्तं, तं च संघट्टिया दए // 61 // तं भवे भत्तयाणं तु, संजयाण अकप्पियं / दितियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 62 // एवं उस्सक्किया योसक्किया, उज्जालिया पजालिया। निव्वाविया, उस्सिचिया, निस्सिचिया उव्यत्तिया श्रोयरिया दए // 63 // तं भवे भतपाणं तु, संजयाण अकप्पियं / दितिय पडिभाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 64 // हुज कट्ठ सिलं वावि, इट्टालं वावि एगया। ठवियं संकमट्ठाए, तं च होज चलाचलं // 65 // ण तेण भिक्खू गच्छिज्जा, दिट्ठो तत्थ असंजमो / गंभीरं झुसिरं चेव, सबिदिय-समाहिए // 66 // निस्सेणिं फलगं पीढं, उस्तवित्ताण-मारहे / मंचं कीलं च पासायं, समणट्ठा एव दावए / 67 // दुरूहमाणी पडिजा, हत्थं पायं व लूसए / पुढविजीवे विहिंसिज्जा, जे अ तन्निस्तिया जगे // 68 // एवारिसे महादोसे, जाणिउण महेसिणो / तम्हा मालोहडं भिक्खं, न पडिगिरहंति संजया Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / त्रयोदशमों विमागा // 6 // कई मूलं पलं वा, प्रामं छिन्नं व सन्निरं / तुबागं सिंगबेरं च, श्रामगं परिवजए॥ 70 // तहेव सत्तुचुराणाई, कोलचुराणाई श्रावणे / सक्कुलिं फाणियं पूयं, अन्नं वावि तहाविहं // 71 // विकायमाणं पसदं, रएणं परिफासियं / दितिय पडियाझखे, न मे कप्पइ तारिसं // 72 // बहुअट्ठियं पुग्गलं, अणिमिसं वा बहुकंटयं / अस्थियं तिंदुयंबिल्लं, उच्छुखंड व सिंबलिं // 73 // अप्पे सिया भोरणजाए, बहुउजिय धम्मिए / दितियं पडियाइपखे, न मे कप्पइ तारिसं // 74 // तहेवुच्चावयं पाणं, अदुवा वारधोत्रणं / सप्सेइमं चाउलोदगं, पहुणाधोधे विवजए // 75 / / जं जाणेज चिराधोयं, मईए दंसणेग वा / पडिपुच्छिऊण सुच्चा वा, जं च निस्संकियं भवे // 76 // अजीवं परिणयं नचा, पडिगाहिज संजए। ग्रह संकियं भविजा, यासाइत्ताण रोगए।। 77 // थोषमासायणट्ठाए, हत्थगंमि दलाहि मे / मा मे अचंबिलं पई, नालं तरहं विणित्तए // 78 // तं च अचंबिलं पुयं, नालं तरहं विणित्तए / दितिय पडियाइरखे, न मे कप्पइ तारिसं.१७॥तंत्र होज यकामेण, विमणेणं पडिच्छियं / तं अप्पाणा न पिबे, नोवि अन्नस्स दावए // 80 // एगंत-मवकमित्ता, अचित्तं पडिलेहिया / जयं परिविजा, परिठ्ठप्प पडिक्कमे // 81 // सिया अगोयरग्गगयो, इच्छिजा परिभुजिउं(भुत्तु)।कुटुंगं भित्तिमूलं वा, पडिलेहित्ताण फासुग्रं // 82 // अणुनवितु मेहावी, पडिच्छ. न्नभि संवुडे / हत्यगं संपमजित्ता, तत्थ भुजिज संजए // 83 // तत्थ से भुजमाणस्स, अट्ठियं कंटयो सिया। तणकट्ठसकरं वावि, अन्नं वावि तहाविहं // 84 // तं उविखवित्तु न निक्खिवे, यासएण न छड्डए / हत्थेण तं गहेऊण, एगंत-मवक्कमे // 85 // एगंत-मवक्कमित्ता, अचित्तं पडिलेहिया। जयं परिविजा, पट्टिप्प पडिक्कमे // 86 // सिधा य भिक्खू इच्छिज्जा, सिजमागम्म भुत्तुयं / सपिंडपायमागम्म, उंडुयं पडिलेहिया // 87 // विणएणं पविसित्ता, सगासे गुरुणो मुणी। इरियावहियमायाय, श्रागयो Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीमद्दशकालिक-सूत्रम् / / अध्ययनं 5 ] [15 थ पडिक्कमे // 88 // अाभोइत्ताण निसेसं, अईयारं जहक्कम / गमगागमणे घेव, भत्तपाणे व संजए // 86 // उज्जुप्पन्नो अणुविग्गो, अव्वविखत्तेण चेयसा / बालोए गुरुसगासे, जं जहा गहियं भवे // 10 // न सम्ममालो. इयं हुजा, पुब्धि पच्छा व जं कडं / पुणो पडिकमे तस्स, वोसट्टो चिंतए इमं // 11 // ग्रहो जिणेहिं असावजा, वित्ती साहूण देसिया / मुक्खसाहण-हेउस्स, साहुदेहस्स धारणा // 12 // णमुक्कारेण पारित्ता, करित्ता जिणसंथवं / सज्झायं पट्टवित्ताणं, वीसमेज खणं मुणी // 13 // विसमंतो इमं विते,, हियम8 लाभमट्ठियो / जइ मे अणुग्गहं कुजा, साहू हुजामि तारियो // 14 // साहवो तो चियत्तेणं, निमंतिज जहक्कमं / जइ तत्थ केइ इच्छिजा, तेहिं सद्धिं तु मुंजए // 15 // यह कोइ न इच्छिज्जा, तयो भुजिज एक्कयो / बालोए भायणे साहू, जयं अपरिसाडियं // 16 // तित्तगं व कडुयं व कसायं, अंबिलं व महुरं लवणं वा। एय-लद्ध-मन्नत्थपउत्तं, महुघयं व भुजिज संजए // 17 // अरसं विरसं वावि, सूइयं वा असूइयं / उल्लं वा जइ वा सुवकं, मंथु कुम्मास-भोगणं // 18 // उप्पराणं नाइहीलिजा, अप्पं वा बहु फासुयं / मुहालद्धं मुहाजीवी, भुजिज्जा दोसवजिधं // 16 // दुल्लहा उ मुहादाई, मुहाजीवी वि दुल्लहा / मुहादाई मुहाजीवी, दोऽवि गच्छंति सुग्गई // 100 // त्ति बेमि. // इति पञ्चमाध्ययने प्रथम उद्देशक || 5.1 / / // 5 // अथ पिण्डैषणाध्ययने द्वितीय उद्देशकः // पडिग्गहं संलिहिताणं, लेवमायाए संजए / दुगंधं वा सुगंधं वा, सव्वं भुजे न छड्डए // 1 // सेजा निसीहियाए, समावन्नो श्र गोगरे / यायावयट्ठा भुच्चाणं, जइ तेणं न संथरे // 2 // तयो कारणमुप्परणे, भत्तपाणं गवेसए / विहिणा पुव्वउत्तेणं, इमेणं उत्तरेण य॥ 3 // कालेण निक्खमे भिक्खू, कालेण य पडिक्कमे / अकालं च विवजित्ता, काले कालं Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धु : त्रयोदशमो विभागः समायरे // 4 // काले चरसि भिक्खू, कालं न पडिलेहसि / अप्पाणं च किलामेसि, संनिवेसं च गरिहसि // 5 // सइ काले चरे भिक्खू, कुजा पुरिसकारियं / अलाभुत्ति न सोएजा, तवृत्ति अहियासए // 6 // तहेवु. चावया पाणा, भत्तट्ठाए समागया / तं उज्जुग्रं न गच्छिजा, जयमेव पर. कमे // 7 // गोबरग्गपविट्ठो अ, न निसीइज कत्थई / कहं च न पबंधिज्जा, चिट्टित्ताण व संजए // 8 // अगलं फलिहं दारं, कवाडं वावि संजए। अवलंबिया न चिट्ठिजा, गोबरग्गयो मुणी // 1 // समणं माहणं वावि, किविणं वा वणीमगं / उवसंकमंतं भत्तट्टा, पाणट्ठाए व संजए॥ 10 // तं अइक्कमित्तु न पविसे, नवि चिट्ठ चक्खुगोयरे। एगंतमवक्कमित्ता, तत्थ चिट्ठिज संजए // 11 // वणीमगरस वा तस्स, दायगस्सुभयस्स वा। अप्पत्तियं सिया हुजा, लहुत्तं पवयणस्म वा // 12 // पडिसेहिए व दिन्ने वा, तयो तम्मि नियत्तिए / उवसंकमिज भत्तट्ठा, पाणट्टाए व संजए / / 13 // उप्पलं पउमं वावि, कुमुग्रं वा मगदंतियं / अन्नं वा पुष्फसचित्तं, तं च संलुं विया दए // 14 // तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अप्पियं / दितियं पडियाइरखे, न मे कप्पइ तारिसं // 15 // उप्पलं उपमं वावि, कुमुग्रं वा मगदतियं / अन्नं वा पुप्फ-सचित्तं, तं च संमदिया दए // 16 // तं भवे भत्तपाण तु, संजयाण अकप्पियं / दितिय पडियाइवखे, न मे कप्पइ तारिसं / / 17 // सालुयं वा विरालियं, कुमुयं उपलनालियं / मुणालियं सासवनालियं, उच्छुखंडं अनिव्वुडं // 18 // तरुणगं वा पवालं, वखस्स तणगस्स वा। अन्नस्स वावि हरिप्रस्स, श्रामगं परिवजए // 11 // तरुणियं वा छिवाडिं, ग्रामियं भजिअं सई। दितिय पडियाइवखे, न मे कप्पइ तारिसं // 20 // तहा कोलमणुस्सिन्नं, वेलुओं कासवनालियं / तिलपप्पडगं नीमं, यामगं परिवजए // 21 // तहेव चाउलं पिटु, वियडं वा तत्तनिबुडं / तिलपिट्ट पइपिन्नागं, श्रामगं परिवजए // 22 // कविट्ठ माउलिंगं Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद्दशकालिक-सूत्रम् अध्ययनं 5 ] (17 च, मूलगं मूनगतियं / ग्रामं असत्थारिणयं, मणसावि न पत्थए // 23 // तहेब फलमंथूणि, बीअमंथूणि जाणिय / बिहेलगं पियालं च, श्रामगं परिवजए // 24 / / समुयाणं चरे भिक्खू, कुलमुचावयं सया / नीयं कुलमइकम्म, अयोसदं नाभिधारए // 25 // यदीणो वित्तिमेसिज्जा, न विसीइज पंडिए / अमुच्छियो भोगणंमि, मायराणे एसणारए // 26 // बहुँ परघरे यत्यि, विविहं खाइमं साइमं / न तत्थ पंडियो कुप्पे, इच्छा दिज परो न वा // 27 // सयणा सणवत्थं वा, भत्तं पाणं व संजए। अदितस्स न कुपिजा, . पच्चरखे वि यदी यो // 28 // इथियं पुरिसं वावि, डहरं वा महल्लगं। वंदमाणं न जाइजा, नो अण फरुसं वए // 26 // जे नवंदे न से कुप्पे, बंदियो न ममुकसे / एव-मन्नेसमाणस्स, सामराण-मणुचिट्ठइ // 30 // सिया एगइयो लद्रु, लोभेण विणिगृहइ / मामेयं दाइयं संतं, दळूणं सयमायए // 31 // यत्तट्टा गुरुयो लुद्धो, बहुपावं पकुवइ / दुत्तोसयो यसो होइ, निव्वाणं च न गच्छ। // 32 // सिया एगइयो लधु, विविहं पाणभोगणं / भदगं भदगं भुच्चा, विवन्नं विरस-माहरे // 33 // जाणंतु ता इमे समणा, पाययट्ठी ययं मुणी / संतुट्टो सेवए पंतं, लूहवित्ती सुतोसयो // 34 // पूयणट्ठा जसोकामी, माणसम्माणकामए / बहुँ पसवई पावं, मायास-लं च कुरई // 35 // सुरं वा मेरगं वावि, अन्नं वा मजगं रसं / ससवखं न पिये भिक्खू, जसं सारषखमप्पणो // 36 // पियए एगयो तेणो, न मे कोइ वियाएइ / तस्स पस्सह दोसाई, नियडिं च सुणेह मे // 37 // वडई सुडिया तस्स, मागामोसं च भिक्खुणो / अयसो घ अनिव्याणं, सपयं च असाहुया // 38 // निच्चुधिग्गो जहा तेणो, अत्तकम्मेहिं दुम्मई / तारिसो मरणंतेऽवि, न धाराहेइ संवरं // 31 // प्रायरिए नाराहेइ, समणे प्रावि तारिसे / गिहत्यावि ण गरिहंति, जेण जाणंति तारिसं // 40 // एवं तु अगुणप्पेही, गुणाणं च विवजयो / तारिसो मरणंतेऽवि, ण बाराहेइ संवरं Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18 ] / श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः / // 11 // तवं कुञ्चइ मेहावी, पणीयं वजए रसं / मजप्पमाय-विरो, तवस्सी अइउक्कसो // 42 // तस्स पस्सह कलाणं, अणेगसाहपूइयं / विउलं अत्थसंजुत्तं, कित्तइस्सं सुणेह मे // 43 // एवं तु सगुणप्पेही, श्रगुणाणं च विवजयो / तारिसो मरणंतेवि, धाराहेइ अ संवरं // 44 // पायरिए वाराहेइ समणे श्रावि तारिसो। गिहत्थावि णं पूयंति, जण जाणंति तारिसं // 45 // तब-तेणे वय-तेणे, स्वतेणे अजे नरे / बायार-भावतेणे य, कुबई देवकिविसं // 46 // लगवि देवत्तं, उववन्नो देवकिदिवसे / तत्थावि से न याणाइ, किं मे किच्चा इमं फलं // 17 // तत्तोवि से चइत्ताणं, लम्भिही एलमूययं / नरयं तिरिक्खजोणिं वा बोहि जत्थ सुदुल्लहा // 48 // एयं च दोसं दवणं, नायपुत्तेण भासिय / अणुमायपि मेहावी, मायामोसं विवजए // 41 // सिक्खिऊण भिवखेसण सोहिं, संजयाण बुद्धाण सगासे / तत्थ भिक्षु सुप्पणिहि-इंदिए, तिव्वलज-गुणवं विहरिजिसि // 50 // त्ति बेमि / // इति पञ्चमध्ययने द्वितीय उद्देशकः / / 5.2 // ॥इति पञ्चममध्ययनम् / / 2 // // 6 // अथ श्रीमहाचार-कथा-जामकाध्ययनम् // नाण सण-संपन्न, संजमे अ तवे रयं / गणिमागम-संपन्नं, उज्जाणम्मि समोसढं // 1 // रायाणो राचमबा य, माहणा अदुव खत्तिया। पुच्छंति निहुअप्पाणो, कहं मे आयारगोयरो // 2 // तेसिं सो निहुयो दंतो, सव्वभूअ-सुहावहो / सिक्खाए सुप्समाउत्तो, बायक्खइ विखणो // 3 // हंदि धम्मस्थकामाणं, निग्गंथाणं सुणेह मे। बायारगोअरं भीम, सरलं दुरहिट्ठियं // 4 // ननत्थ एरिसं वुत्तं, जं लोए परमदुचरं / विउलट्ठाणभाइस्त, न भूयं न भविस्सइ // 5 // सखुड्डुगवियत्ताणं, वाहियाणं च.जे गुणा / अखंडफुडिया कायव्वा, तं सुणेह जहा तहा // 6 // दस अट्ठ य ठाणाई, Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदंशकालिक-सूत्रम् / अध्ययन 6 ] जाई बालोजरज्मइ / तत्य अन्नयरे ठाणे, निग्गंथताउ भस्सइ // 7 // वयक कायछक्कं, अकप्पो गिहिभायणं / पलियंक निसेज्जा य, सिणाणं सोहवजणं // 8 // तत्थिमं पढमं ठाणं, महावीरेण देसि / अहिंसा निउणा दिट्ठा, सबभएसु संजमो // 1 // जावंति लोए पाणा, तसा अदुव थावरा। ते जाणम जाणं वा, न हणे णोवि घायए // 10 // सव्वे जीवावि इच्छंति, जीवीउं न मरिजिउं / तम्हा पाणिवहं घोरं, निग्गंथा वजयंति णं // 11 // अप्पणट्ठा परट्ठा बा, कोहा वा जइ वा भया। हिंसगं न मुसं बूया, नोवि यन्नं वयावए // 12 // मुसावायो उ लोगम्मि, सब्यसाहूहिं गरिहियो / अविस्सायो य भृयाणं, तम्हा मोसं विवजर // 13 // चित्तमंतचित्तं वा, अप्पं वा जइ वा बहुँ / दंतसोहणमित्तंपि, उग्गहमि अजाइया // 14 // तं अप्पणा न गिराहंति, नोऽवि गिलावए परं / अन्नं वा गिलमाणंपि, नाणुजाणंति संजया // 15 // यवंभचरियं घोर, पमायं दुरहिट्टियं नायरंति मुणी लोए, भेयाययणवणिजो॥ 16 // मूनमेयमहम्मस्त, महादोससमुस्सयं / तम्हा मेहुणसंसग्गं निग्गंथा वजयंति णं // 17 // विडमुठभेइमं लोणं, तिल्लं सप्पिं च फाणियं / न ते संनिहिमिच्छति, नायपुत्तायोरया // 18 // लोहस्सेस अणुःकासे, मन्ने यनयरामवि / जे सिया सन्निहिं कामे, गिही पाइए न से // 11 // जंपि वत्थं व पायं वा, कंवलं पायपुंछणं / तंपि संजमलजट्टा, धारंति परिहरंति थ // 20 // न सो परिग्गहो वुत्तो, नायपुत्तेण ताइणा / मुच्छा परिग्गहो वुत्तो. इय वुत्तं महेसिणा // 21 // सनत्थुवहिणा बुद्धा संरक्खापरिग्गहे / अवि अपणोऽवि देहं मि, नायरंति ममाइयं // 22 // ग्रहो निच्चं तवो कम्मं, सबबुद्धेहिं वरिणयं / जा य लजासमावित्ती, एगभत्तं च भोयणं // 23 // संतिमे सुहमा पाणा, तसा अदुव थावरा / जाइं रायो अपासंतो, कहमेसणीयं चरे ? // 24 // उदउल्लं बीअसंसत्तं पाणा निवडिया महिं / दिया ताई विवजिजा, रायो तत्थ कहं चरे ? Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20) [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः // त्रयोदशमो विभागः // 25 / / एग्रं च दोसं दणं, नायपुत्तेण भासियं। सव्वाहारं न भुजंति, निग्गंथा राइभोगणं // 26 // पुढविकायं न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा / तिविहेणं करणजोएणं, संजया सुप्तमाहिया // 27 // पुढविकायं विहिंसंतो, हिंसइ उ तयस्सिए। तसे अ विविहे पाणे, चक्खुसे अ अचक्खुसे // 28 // तम्हा एयं विद्याणित्ता, दोसं दुग्गइवड्ढणं / पुढविकाय-समारंभ, जावजीवाई वजए // 21 // श्राउ कायं न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा / तिविहेण करणजोएण, संजया सुसमाहिया // 30 // याउकायं विहिंसंतो, हिंसई उ तयस्सिए / तसे अ विविहे पाणे, चखुसे य अचक्खुसे // 31 // तम्हा एयं विद्याणित्ता, दोसं दुग्गइवढणं / याउकायसमारंभ, जावजीवाई वजए // 32 // जायतेयं न इच्छंति, पावगं जलइत्तए / तिवखमन्नयरं सत्थं, सधयोऽवि दुरासयं // 33 // पाईगां पडियां वावि, उड्ढं अणुदिसामवि / अहे दाहिणयो वावि, दहे उत्तरयोवि य॥ 34 // भुयाण-मेस माघायो, हन्यवाहो न संप्तयो / तं पईपयावट्ठा, संजया किंचि नारभे // 35 // तम्हा एग्रं विद्याणित्ता, दोसं दुग्गइवडणं / तेउकायसमारंभं, जीवजीवाई वजए // 36 // अणिलस्स समारंभं, बुद्धा मन्नंत तारिसं / सावजबहुलं चेअं, नेयं ताईहिं सेवियं // 37 // तालिघंटेण पत्तेण, साहाविहुग्रणेण वा / न ते वीइउमिच्छति, वेश्रावेऊण वा परं // 38 // जंपि वत्थं व पायं वा, कंबलं पायपुंछणं / न ते वायमुईरंति, जयं परिहरंति अ॥ 31 // तम्हा एयं विवाणिता, दोसं दुग्गइवड्ढणं / वाउकायसमारंभ, जारजीवाइं वजए // 40 // वणस्तई न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा। तिविहेण करणजोएणं संजया सुसमाहिया // 41 // वणस्सई विहिंसंतो, हिंसई अ तयस्सिए / तसे अ विविहे पाणे, चक्खुसे अ अचाखुसे // 42 // तम्हा एग्रं विद्याणित्ता, दोसं दुग्गइवढणं / वणस्सइसमारंभ, जावजीवाइं वजए // 43 // तसकायं न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा / तिविहेगण करणजोएणं, संजया सुसमाहिया Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदशकालिक-सूत्रम् :: अध्ययनं 6 ] [21 // 44 // तसकायं विहिंसंतो, हिंसई उ तयस्सिए / तसे थ विविहे पाणे, चक्खुसे अ अचाखुसे // 45 // तम्हा एवं विश्राणित्ता, दोसं दुग्गइवडणं / तसकायसमारंभ, जावजीवाइं वजए॥ 46 // जाइं चत्तारि भुजाई, इसिणाऽऽहारमाइणि / ताई तु विवज्जतो, संजमं अणुपालए // 47 // पिंडं सिज्ज च वत्थं च, चउत्थं पायमेव य। अकप्पियं न इच्छिज्जा, पडिगाहिज कप्पियं // 48 // जे नियागं ममायंति, कीमुद्दोसियाहडं / वहं ते समणुजाणंति, इथ वृत्तं महेसिणा // 41 // तम्हा श्रमणपाणाई, कीअमुद्दोसियाहडं / वजयंति ठिअप्पाणो, निग्गंथा धम्मजीविणो // 50 // कंसेसु कंसपाएसु, कुडमोएसु वा पुणो। भुजतो असणपाणाई, पायारा परिभस्सइ // 51 // सीबोदग-समारंभे, भत्त-धोयण-छड्डणे / जाई छिन्नंति (छिप्पंति) भूयाई, दिट्ठो तत्य असंजमो // 52 // पच्छाकम्मं पुरेकम्मं, सिया तत्थ न कप्पइ / एयमट्ठन भुजंति, निग्गंथा गिहिभायणे // 53 // यासंदीपलिअंकसु, मंचमासालएसु वा / अणायरियमजागां, श्रासइनु सइत्तु वा / 54 // नासंदीपलियंकेस, न निसिज्जा न पीढ़ए / निग्गंथाऽपडिलेहाए, बुद्धवृत्तमहिट्ठगा // 55 // गंभीर विजया एए, पाणा दुप्पडिलेहगा। यासंदी पलियको य, एअमट्ट विवजिया // 56 // गोपरग्गपविट्ठस्स, निसिजा जल्ल कप्पइ / इमेरिस-मणायारं, बावजइ अबोहिग्रं // 57 / / विवत्ती बंभचेरस्त, पाणाणां च वहे वहो / वणीमग-पडिग्यायो, पडिकोहो अगारिणां // 5 // अगुती बंभचेरस्स, इत्थीयो बाधि संकगां। कुसीलवड्डयां ठाणं, दूरयो परिवजए॥ 51 // तिराहमन्नयरागस्स, निसिज्जा जस्स कप्पइ / जराए अभिभूयस्स, वा हेअस्स तवस्तिणो // 60 // वाहियो वा अरोगी वा, सिणागणं जो उ पत्थए / वुवकतो होइ अायारो, जदो हवइ संजमो // 61 // संतिमे सुहुमा पाणा, घमासु भिलुगासु य / जे अ भिक्खू सिणायंतो, विशडेणुप्पलापए // 62 // तम्हा ते न सिणायंति, सीएण उसिणेण वा / जावजीवं Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22) [ श्रीमदांगमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः वयं घोरं, असिणाण-महिठ्ठगा // 63 // सिणागां अदुवा कक्कं, लुद्धं पउमगाणि श्र। गायस्सुबट्टणट्ठाए, नायरंति कयाइवि // 64 // नगिणस्स वावि मुंडस्स, दीहरोम-नहंसिणो / मेहुणा उवसंतस्स, किं विभूमाइ कारियं // 65 // विभूसावत्तियं भिक्खू, कम्गं बंधइ चिकणां / संसारसायरे घोरे, जेणां पडइ दुरुत्तरे // 66 // विभुसावत्तियं चेयं, बुद्धा मन्नंति तारिसं / सावजाहुलं चेयं, नेयं ताईहिं सेवियं // 67 // खव्वंति अप्पाणममोहदंसिणो, तवे रया संजमश्रजवे गुणे / धुगांति पावाई पुरेकडाई, नवाई पावाइ न ते करंति // 68 // सयोवसंता श्रममा अकिंचणा, सविजविजाणुगया जसांसणां / उउप्पसन्ने विमलेव चंदिमा, सिद्धिं विमाणाई उति तायिणो // 61 // त्ति बेमि / ॥इति षष्ठमध्ययनम् // 6 // // 7 // अथ सुवाक्यशुद्धि-नामक-सप्तमध्ययनम् // चउराहं खलु भासागां, पहिसंखाय पनवं / दुराहं तु विणयं सिक्खे, दो न भासिज सबमो // 1 // जा अ सच्चा अवतव्या, सचामोसा थ जा मुसा / जा अ बुद्धेहिंऽनाइन्ना, न तं भासिज्ज पनवं // 2 // असबमोसं सच्चं च, अणवजम-ककसं / समुप्पेह-मसंदिद्धं, गिरं भासिज पनवं // 3 // एयं च अट्ठमन्नं वा, जं तु नामेइ सासयं / स भासं सचमोसंपि, तंपि धीगे विवजए॥ 4 // वितहपि तहामुत्ति, जं गिरं भासाए नरो / तम्हा सो पुट्ठो पावेणं, किं पुणं जो मुसं वए ? // 5 // तम्हा गच्छामो वक्खामो, अमुगं वाणे भविस्सइ / अहं वो णं करिस्सामि, एसो वा णं करिस्सइ // 6 // एवमाइ उ जा भासा, एसकालंमि संकिया। संपयाइअम? वा, तंपि धीरो विवजए // 7 // अईअंमिश्र कालंमि, पच्चुप्पण्ण-मणागए। जमटुं तु न जाणिज्जा, एवमेधे ति नो वए / / 8 / अईअंमि य कालंमि, पच्चुप्पन्नमणागए / जत्थ संका भवे तंतु, एवमयं ति नो वए // 1 // Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 23 श्रीमदर्शनकालिक-सूत्रम् / / अध्ययनं 7 ] अईयमि य कालंमि, पच्चुप्पगण-मणागए / निस्संकियं भवे जं तु, एवमेयं तु निदिसे // 10 // तहेव फरुसा भासा, गुरुभूयोवघाइणी / सच्चा वि सा न वत्तव्वा. जयो पावस्स अागमो // 11 // तहेव काणं काणत्ति, पंडगं पंडगत्ति वा / वाहियं वा वि रोगत्ति, तेणां चोरत्ति नो वए // 12 // एएणन्नेण पटेणं, परो जेणुषहम्मइ / यायारभाव-दोसन्नू, न तं भासिन पनवं // 13 // तहेव होले गोलित्ति, साणे वा वसुलित्ति य। दुमए दुहए वावि, नेवं भासिज पनवं // 14 // अजिए पजिए वावि, यम्मो माउसिउत्ति य। पिउस्सिए भायणि जति, धूए णत्तुणियत्ति थ // 15 // हले हलित्ति अन्नित्ति, भट्ट सा मणि गोमिणि / होले गोले वसुलित्ति, इथियं नेवमालवे // 16 // नामधिज्जेण णं बूया, इत्थीगुत्तेण वा पुणो / जहारिह-मभिगिज्झ, बालविज लविज वा // 17 // यजए पज्जए वावि, बप्पो चुलपिउ ति य / माउला भाइणिजत्ति, पुत्ते नत्तुणिय ति श्र / 18 // हे हो हलि त्ति अनित्ति, भट्टे सामित्र गोमिय / होल गोल वसुलि त्ति, पुरिसं नेव-मालवे // 11 / नामधिज्जेण जं बथा, पुरिसगुत्तेण वा पुणो / जहारिह मभिगिज्झ, बालविज लविज वा // 20 // पंचिंदि. याण पाणाणं, एस इत्थी अयं पुमं / जाव णं न वि जाणिज्जा, ताव जाइत्ति पालवे // 21 // तहेव माणुसं पसु, पक्खि वावि सरीसवं / थूले पमेइले वज्जे, पाइमे त्ति य नो वए // 22 // परिवूढ त्ति णं ब्रूया, बूया उवत्रिय ति य / संजाए पीणिए वा वि, महाकायत्ति पालवे // 23 // तहेब गायो दुझायो, दम्मा गोरग ति य / वाहिमा रहजोगि ति, नेवं भासिज पन्नवं // 24 // जुर्व गवित्ति णं बूया, धेणु रसदय ति श्र। रहस्से महल्लए वावि, वए संवहणि ति य // 25 // तहेव गंतमुजाणं, पव्ययाणिं वणाणिं य / रुक्खा महल्ल पेहाए, नेवं भासिज पन्नवं // 26 // यलं पासाय-खंभाणं, तोरणाणं गिहाण अ। फलिहऽग्गल नावाणं, अलं Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24 ] थवा, बहुनिबाडमा टालाई, बेहिमाण तहा फलाई पकाए / पय / श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / त्रयोदशमो विभाग उद्ग-दोगिणं // 27 / / पीढर चंगोरे श्र, नंगले मइयं सिया। जंतलट्ठी व नाभी वा, गंडिया व अलं सिया // 28 // यासणं सयगां जागां, हुजा वा किंचुवस्सए / भूयोवघाईणि भासं, ने भासिन्ज पनवं // 21 // तहेव गंतुमुज्जागां, पबयाणि वणाणि अ / रुक्खा महल्ल पेहाए, एवं भासिज्ज पनवं // 30 // जाइमंता इमे रुखखा, दीहवट्टा महालया / पयायसाला विडिमा, वए दरिसणि त्ति अ॥ 31 // तहा फलाई पकाई, पायखज्जाई नो वए / वेलोइयाइं टालाई, वेहिमाई ति नो वए // 32 // असंथडा इमे अंबा, बहुनिबडिमा फला / वइज बहु संभूया, भूयस्व त्ति वा पुणो // 33 // तहो(तहेरो)सहियो पक्कायो, नीलियायो छवीइ श्र। लाइमा भजिमाउत्ति, पिहुखज ति नो वए // 34 // रूढा बहुसंभूबा थिरा श्रोसदा वि श्र। गभियायो पसूत्रायो, ससाराउ ति पालवे // 35 // तहेव संखडिं नचा, किच्चं कज्ज ति नो वए। तेणगं वावि वज्झित्ति सुतिथि त्ति अावगा / / 36 // संखडि संखडिं बूया, पणियलृ ति तेणगं / बहुसमाणि तित्थाणि, श्रावगाणं वियागरे // 37 // तहा नइयो पुराणायो, कायतिज त्ति नो वए। नावाहिं तारिमायो ति, पाणिपिज त्ति नो वए // 38 // बहुबाहडा अगाहा, बहु मलिलुपिलोदगा / बहुवित्थडोदगा प्रावि, एवं भासिन्ज पनवं // 31 // तहेव सावज्जं जोगं, परस्सट्टाए निट्टियं / कीरमाणं ति वा नबा, सावज्जं नालवे मुणी // 40 // सुकडित्ति सुपक्कित्ति, सुच्छिन्ने सुहडे मडे / सुनिट्ठिए सुलट्ठित्ति, सावज्ज वजए मुणी // 11 // पयत्तपरके(क)त्ति व पकमालवे / पयत्तछिन्न त्ति व छिन्नमालवे। पयत्तलट्ठि(ह)त्ति व कम्महेउग्रं, पहारगाढ ति व गाढमालवे // 42 // सव्वुक्कसं परग्धं वा, उलं नत्थि एरिसं / अविक्किा -मवत्तव्वं, अवियत्तं चेव नो वए // 43 // सबमेयं वइस्सामि, सबमेयं ति नो वए। अणुवीई सव्वं सव्वत्थ, एवं भासिज पनवं // 44 // सुकीनं वा सुविकीय, अकिज्जं कि.जमेव वा। Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद्दशवकालिक-सूत्रम् :: अध्ययनं ] इमं गिराह इमं मुच, पणीयं नो वियागरे // 45 // अप्पग्धे वा महग्धे वा, कए वा विकए वि वा / पणिटे समुप्पन्ने, अणवज्ज वियागरे // 46 // तहेवासंजयं धीरो, यास एहि करेहि वा। सयं चिट्ठ वयाहि ति नेवं भानिज पनवं // 17 / बहवे इमे असाहू, लोए वुच्चंति साहुणो।न लवे असाहुँ साहुत्तेि, साहु साहुत्ति पालवे // 18 // नाण-दंसण-संपन्नं संजमे थ तवे रयं / एवं गुण-समाउत्तं, संजयं साहुमालवे // 46 // देवाणं मणुयाणं च, तिरियाणं च बुग्गहे। अमुगाणं जयो होउ, मा वा होउ त्ति नो वए // 50 // वायो युटुंच सीउराहं, खेमं धायं सिवंति वा / कया णु हुज ए. याणि ? मा वा होउ ति नो वए // 51 // तहेव मेहं व नहं व माणवं, न देवदेव त्ति गिरं वइना / समुच्छिए उन्नए वा परोए, वइज वा बुट्ठ बलाहये त्ति // 52 // अंतलिक्ख ति णं बूया, गुज्माणुचरिय तिथ। रिद्धिमंतं नरं दिस्त, रिद्धिमंतं ति पालवे // 53 // तहेव सावजणुमोग्रणी गिरा, योहारिणी जा य परोवघाइणी / से कोह लोह भय हास माणवो, न हासमाणोऽवि गिरं वइना // 54 // सुबकसुद्धिं समुपेहिया मुणी, गिरं च दुटु परिवजए सया। मियं यदुटुं अणुवीइ भासए, सयाण मज्झे लहइ पांसगां / / 55 // भासाइ दोसे य गुणे अ जाणिया, तीसे य दुट्टे परि. वजए सया। छसु संजए सामणिए सया जए, वइज बुद्धे हिश्रमाणुलोमियं // 56 // परिवखभासी सुसमाहि-इंदिए, चउकसाया-वगए अणिस्सिए / स निद्धुणे धुतमलं पुरेकडं, बाराहए लोगमिणं तहा परं // 57 // त्ति बेमि // // इति सप्तममध्ययनं समाप्तम् // 7 // // 8 // अथ श्री आचारप्रणिधि-नामक-मष्टममययनम् // अायार प्पणिहिं लद्ध,जह वायव्य भिक्खुणा / तं भे उदाहरिस्सामि, ग्राणुपुब्धि सुणेह मे // 1 // पुढवी दग-अगणिमारुत्र, तण रुक्ख सबीयगा। तसा अ पाणा जीव त्ति, ईई वुत्तं महेसिणा // 2 // तेसिं अच्छण-जोएण, Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः निच्चं होअव्वयं सिया / मणसा काय-वक्केणं, एवं हवइ संजए // 3 // पुढविं भित्ति सिलं लेलु', नेव भिंदे न संलिहे / तिविहेण करण-जोएण, संजए सुसमाहिए // 4 // सुद्धपुढवीए न निसीए, ससरवखंमि अ पासणे / पमजितु निसीइजा, जाइत्ता जस्स उग्गरं // 5 // सीयोदगं न सेविजा, सिलावुटु हिमाणि अ / उसिणोदगं तत्त-फासुग्रं, पडिगाहिज संजए // 6 // उदउल्लं अपणो कायं, नेव पुछे न संलिहे / समुप्पेह तहाभूग्रं, नो णं संघट्टए मुणी // 7 // इंगालं अगणिं अचिं, अलायं वा सजोइयं / न उंजिजा न घट्टिजा, नो णं निव्वावए मुणी // 8 // तालियंटेण पत्तेण, साहा विहुयणेण वा / न वीइज अप्पणो कायं, बाहिरं वा वि पुत्गलं // 1 // तणरुक्खं न छिदिजा, फलं मूलं च कस्सई / श्रामगं विविहं बीयं, मणसा वि न पत्थए // 10 // गहणेसु न चिट्ठिजा, बीएसु हरिएसु वा / उदगंमि तहा निच्चं उत्तिंग-पणगेसु वा // 11 // तसे पाणे न हिंसिन्जा, वाया अदुव कम्मुणा / उवरयो सव्वभूएस, पासेज विवहं जगं // 12 // अट्ट सुहुमाई पेहाए, जाई जाणिनु संजए / दयाहिगारी भूएसु, ग्रास चिट्ठ ताईं मेहावी, बाईखिज विअवखणे // 14 // सिणेहं पुप्फसहुमं च, पाणुत्तिगं तहेव य / पणगं- बीय-हरियं च, अंडसुहुमं च अट्ठमं // 15 // एवमेयाणि जाणित्ता, सव्वभावेण संजए। अप्पमत्तो जए निच्चं, सविदियसमाहिए // 16 // धुवं च पडिलेहिज्जा, जोगमा पायकंबलं / सिन्ज-मुच्चारभूमिं च, संथारं अदुवाऽऽसगां // 17 // उच्चारं पासवणं, खेलं सिंधाणजल्लियं / फासुग्रं पडिलेहित्ता, परिठ्ठाविज संजए // 18 / पविसित्तु परा. गारं, पाणट्ठा भोगणस्त वा / जयं चिट्ठ मियं भासे, न य रूवेसु मणं करे // 11 // बहुँ सुणेहि कन्नेहिं, बहुँ अच्छीहिं पिच्छई। न य दिट्ट सुयं सव्वं, भिक्खू अवखाउ-मरिहइ // 20 // सुयं वा जई वा दिट्ट, न Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीमदशकालिक-सूत्रम् / अध्ययनं 8 ] . [ 27 लविजोवघाइयं / न य केण उवाएणं, गिहिजोग समायरे // 21 // निट्ठाणं रसनिज्जूदं भदगं पावगंति वा / पुट्ठो वा वि अपुट्ठो वा, लाभालाभं न निदिसे // 22 // न य भोयगांमि गिद्धो, चरे उंछ अयंपिरो। अफासुग्रं न भुजिजा, कीय-मुद्दे सि-याहडं // 23 // संनिहिं च न कुविजा, अणुमायं पि संजए / मुहाजीबी असंबद्धे, हविज जगनिस्सिए // 24 // लूहवित्ती सुसं. तु?, अप्पिच्छे सुहरे सिया / बासुरत्तं न गच्छिज्जा, सुच्चागां जिण-सास // 25 // कनसुक्खेहिं सोहिं, पेमं नाभिनिवेसए / दारुगां ककसं फासं, कारण अहियासए // 26 // खुहं पिवासं दुस्तिज्जं, सी उराहं अरई भयं / अहियासे अवहियो, देहदुवखं महाफलं // 27 // अत्थंगयंमि बाईच्चे, पुरत्था अ णुग्गए। याहार-माईयं सव्वं, मणसा वि न पत्थए // 28 // अतितिणे अच.ले, अप्पभासी मियासणे / हविज उपरे दंते, थोवं, लद्ध न खिसए // 21 // न बाहिरं परिभवे, अत्ताणं न समुकसे / सुअलाभे न मजिजा, जच्चा तवस्सि-बुद्धिए // 30 // से जाणमजाणं वा, कटु श्राहम्मियं पयं / संवरे खिप्पमप्पाणां, बीयं तं न समायरे // 31 // अणायारं पर कम्मं, नेव गूहे न निह्नवे। सुई सया वियडभावे, असंसत्ते जिइंदिए // 32 // अमोहं वयणां कुजा, पायरियस्स महप्पणो / तं परिगिज्म वायाए, कम्मुणा उववायए // 33 // अधुवं जीवियं नचा, सिद्धिमग्गं विश्राणिया / विणिपट्टिज भोगेसु, ग्राउ परिमिग्रमप्पणो // 34 // बलं थामं च पेहाए, सद्धा-मारुग्ग-मप्पणो / खित्तं कालं च विनाय, तहप्पा निजुजए // 35 // जरा जाब न पीडेइ, वाही जाव न वडढइ / जाविंदिया न हायंति, ताव धम्म समायरे // 36 // कोहं मागणं च मयं त्र, लोभं च पाव-बड्डयां / वमे चत्तारि दोसे उ, ईच्छतो हिअमप्पणो // 37 // कोहो पीई पणासेइ, माणो विणय-नासणो। माया मित्ताणि नासेई, लोभो सव्व-विणासणो // 38 // उसमेण हणे कोहं मागां मद्दवया जिणे / मायं चजवभावेण, Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागा लोभं संतोसयो जिणे // 31 // कोहो अ माणो श्र अणिग्गहीश्रा, माया अ लोभो श्र पवढमाणा / चत्तारि एए कसिणा कसाया, सिंचन्ति मूलाई पुणभास्स // 40 // रायणिएसु विणयं पउंजे, धुवसीलयं सययं न हावईजा। कुम्मुन्ध अल्लीण-पलीण-गुत्तो, परकमिजा तव-संजमंमि // 41 // निदं च न बहु मनिजा, सप्पहासं विवजए। मिहो कहाहिं न रमे, सज्झायंमि रयो सया // 42 // जोगं च समणधम्ममि, जुजे अणलसो धुवं / जुतो असमणवम्नमि अट्ठ लहइ अणुत्तरं // 43 // ईहलोग-पारत्त हिग्रं, जेगां गछई सुग्गई। बहुस्सुयं पन्जुवासिन्जा, पुच्छिजत्थ विणिच्छयं // 44 // हत्थं पायं च कायं च, पणिहाय जिइंदिए। अल्लीण गुत्तो निरिए, सगासे गुरुणो मुणी // 45 // न पक्खयो न पुरो, नेव किच्चाण पिट्ठयो। न य उरुं समासिज, चिट्ठिजा गुरूगांतिए // 46 // अपुच्छियो न भासिजा, भासमाणस्स यंतरा / पिट्टिमंसं न खाइजा, मायामोसं विवजए // 47 // अप्पत्तियं जेण सिया, थासु कुपिज वा परो। सब्बसो.तं न भासिज्जा, भासं अहिग्रगामिणिं // 48 // दिट्ट मिश्रं असंदिद्धं, पडिपुन्नं वियं जियं / अयंपिर-मणुविग्गं, भासं निसिर अत्तवं // 4 // श्रायार-पन्नत्तिघरं, दिट्ठिवाय-महिजगं / वायविक्खलियं नचा, न तं उवहसे मुणी // 50 // नक्खत्तं सुमियां जोगं, निमित्तं मंत्त-भेसजं / गिहिणो तं न बाइक्खे, भूया. हिगरगां पयं // 51 // अन्नट्ठ पगडं लयगां, भइन्ज सयणासगां / उच्चारभूमिसंपन्नं, ईत्थी-पसु-विवन्जियं // 52 // विवित्ता अ भवे सिज्जा, नारीणां न लवे कहं / गिहि-संथवं न कुजा, कुन्जा साहूहि संथवं // 53 // जहा कुक्कुडपोअस्स, निच्चं कुललयो भयं / एवं खुबंभयारिस्स, ईत्थी विग्गहयो भयं // 54 // चित्तभित्तिं न निभाए, नारिं वा सु-अलंकियं / भवखरं पिव दछृणां दिट्टि पडिसमाहरे // 55 // हत्थ-पाय-पडिच्छिन्नं, कन्न नास-विगप्पियं / अवि वाससयं नारिं, बंभयारी विवजए / / 56 // विभूसा ईत्थि Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 29 भीमद्दशकालिक-सूत्रम् / अध्ययन है] संसग्गो पणीयं रसभोयणं / नरस्सत्त-गवेसिस्स, विसं तालउडं जहा // 57 / / अंग-पच्चंग-संठाणं, चारुलवित्र-पेहियं / इत्थीणं तं न निज्माए, कामराग विवड्दणं // 58 // विसएसु मणुन्नेसु, पेमं नाभिनिवेसए / अणिच्चं तेसि विनाय, परिणाम पुग्गलाण य॥ 56 // पुग्गलाणं परिणाम, तेसि नच्चा जहा तहा। विणी तरहो विहरे, सीईभएण अप्पणा // 6 // जाइ सद्धाई निक्खतो, परियायाण-मुत्तमं / तमेव अणुपालिजा, गुणे पायरिय-संमए // 61 // तवं चिमं संजम-जोगयं च, सज्माय-जोगं च सया अहिट्ठिए / सूरे व सेणाइ समत्त-माउहे, अलमप्पणो होइ अलं परेसिं // 62 // सज्माय-सज्माण-रयस्स ताइणो, अपाव-भावस्स तवे रयस्स / विसुज्झइ जं सि मलं पुरेकडं, समीरियं रुपमलं व जोइणा // 63 // से तारिंगे दुक्खसहे जिइंदिए, सुरण जुत्ते अममे अकिंचणे / विरायई कम्मघणांमि अवगए, कसिणभ-पुडावगमेव व चंदिमे // त्ति बेमि // 64 // // इति अष्टममध्ययनम् // 8 // // 6 // अथ विनयसमाधि-नामक-नवममध्ययनम् // __थंभा व कोहा व मयप्पमारा, गुरुस्सगासे विणयं न सिवखे / सो चेव उ तस्म अभूभावो, फलं व कीयस्स वहाय होई // 1 // जे श्रावि मंदिति, गुरु विइत्ता, डहरे इमे अप्पसुअसत्ति नचा / हीलंति मिच्छ पडि. वजमाणा, करंति यासायण ते गुरुणं // 2 // पगईइ मंदा वि भवंति एगे, डहरा वि अ जे सुयबुद्धोक्वेया। यायारमंता गुणसुट्टिअप्पा, जे हीलिया सिहिरिख भास कुजा // 3 // जे प्रावि नागं डहरं ति नचा, थासायए से अहियाय होइ / एवायरियं पि हु हीलयंतो, नियच्छई जाइपहं खु मंदो // 4 // श्रासीविसो वा वि परं सुरुटो, किं जीवनासाउ परं न कुजा ! यापरियपाया पुण अप्पसन्ना, अबोहि-यासायण नत्थि मुक्खो // 5 // जो पावगं जलिअ-मवकमिजा, पासीविसं वा वि हु कोवईजा। जो वा Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3.] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः // त्रयोदशमो विभाग - विसं खायइ जीविट्ठी, एसोवमाप्तायणया गुरूणं // 6 ॥सिया हु से पावय नो डहेजा, पासीविसो वा कुवियो न भवखे / सिया विसं हालहलं न मारे, न यावि मोक्खो गुरु हीलणाए // 7 // जो पव्वयं सरिसा भेत्तु-मिच्छे, सुत्तं व सीहं पडिबोहएजा। जो वा दए सत्ति-अग्गे पहारं, एसोवमासायणया गुरूणं // 8 // सिया हु सीतेण गिरि पि भिन्दे, सिया हु सीहो कुवियो न भक्खे / सिया न भिन्दिज व सत्ति-अग्गं, न या वि मोक्खो गुरु हीलणाए // // पायरिय-पाया पुण अप्पसन्ना, अमोहि-यासायण नत्थि मुक्खो। तम्हा प्रणाबाह-सुहाभिकंखी, गुरुप्पसाया-भिमुहो रमेजा // 10 // जहाहिअग्गी जलणं नमसे, नाणाहुई-मन्त-पया-भिसित्तं / एवायरियं उवचिट्टएजा, अणन्त-नाणोवगयो वि सन्तो॥११॥ जस्सन्तिए धम्मपयाई सिक्खे, तस्सन्तिए वेणइयं पउंजे / सकारए सिरसा पंजलीयो, काय ग्गिरा भो मणसा य निच्चं // 12 // लजा-दया-संजम-बंभचेरं, कल्लाण-भागिरस विसोहि-ठाणं / जे मे गुरु सयय-मणुसासयन्ति, तेहं गुरु सययं पूययामि // 13 // जहा निसन्ते तवणचिमाली, पभासई केवल-भारहं तु। एवायरियो सुय सीलबुद्धिए, विरोयइ सुरमज्झे व इन्दो // 14 // जहा ससी कोमुई जोग-जुत्तो, नक्खत्त-तारागण-परिवूडप्पा / खे सोहइ विमले अब्भुमवके, एवं गणी सोहई भिक्खुमज्झे // 15 // महागारा पायरिया महेसी, समाहि-जोगे सुय-सीलबुद्धिए / सम्पाविउ-कामे अणुत्तराई, याराहए तोसइ धम्म-कामी // 16 // सुबाण मेहावि-सुभासियाई, सुस्सूसए यायारियप्पमत्तो / धाराहईत्ताण गुणे अणेगे, से पावइ सिद्धिमणुत्तरं // त्ति बेमि // 17 // ___ // इति नवमाध्ययने प्रथम उद्देशकः // 9 // // 6 // अथ नवमाध्ययने द्वितीयः उद्देशकः // मूलाउ बन्धपभयो दुमस्स, खन्धाउ पच्छा समुवेन्ति साहा / साहप्प. साहा विरहन्ति पत्ता, तयो से पुष्कं च फलं रसोय // 1 // ए धम्मस्स Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 31 श्रीमद्दशवैकालिक-पुत्रम् / अध्ययनं 9 ] विणयो, मूलं परमो से मुक्खो / जेण कित्तिं सुग्रं सिग्धं, नीसेसं चाभिगच्छइ // 2 // जे य चराडे मिए थद्धे, दुव्वाई नियडी सढे / वुझई से अवि. णीयप्पा, कट्ठ सोयगयं जहा // 3 // विणयं पि जो उवाएणं, चोईयो कुप्पई नरो। दिव्वं सो सिरिमिजन्ति, दंडेण पडिसेहए // 4 // व्हेब श्रवणीयप्पा, उववज्झा हया गया। दीसन्ति दुहमेहन्ता, याभियोग-मुव. ट्ठिया // 5 // तहेव सुविणीअप्पा, उववज्झा हया गया। दीसन्ति सुहमेहन्ता, इढि पत्ता महायसा // 6 // तहेव अविणीअप्पा लोगसि नर-नारियो / दीमन्ति दुहमेहन्ता, छाया ते विगलिन्दिया // 7 // दण्ड-सत्थ परिजुराणा, यमभ-वयणेहि य / कलुणा विवन्न-छन्दा, खुप्पियाप्ता-परिगया / / 8 // तहेव सुविणीयप्पा, लोगंलि नर-नारियो / दीसन्ति सुहमेहन्ता, इति पत्ता महा. यमा // 1 // तहेव अविणीयप्पा, देवा जक्खा य गुल्मगा। दीसन्ति दुह. मेहन्ता, याभियोग-मुवट्ठिया // 10 // तहेव सुविणीयप्पा, देवा जक्खा अ गुन्झगा। दीसन्ति सुहमेहन्ता, इढि पत्ता महायसा // 11 // जे पायरियउवमायाणं, सुस्सूसा-वयणं करा / तेसिं सिक्खा पड्डन्ति, जलसित्ता इव पायवा // 12 // अप्पणट्ठा परट्ठा वा, सिप्पा नेउणियाणि य। गिहिणो उपभोगट्टा, इह लोगस्स कारणा // 13 // जेण बन्धं वहं घोरं, परिश्रावं च दारुणं / सिम्खमाणा नियच्छन्ति, जुत्ता ते ललिइन्दिया // 14 // तेवि तं गुरु पून्ति, तस्स सिप्पस्स कारणा / सकारेन्ति नमंसन्ति, तुट्ठा निदसवत्तिणो // 15 // किं पुण जे सुग्रग्गाही, अणन्त हियकामए / पायरिया जं वए भिकाय, तम्हा तं नाईवत्तए // 16 // नीयं सेज्जं गई ठाणं, नीयं च यासणाणि य / नीयं च पाए वन्दिजा, नीयं कुन्ना य अंजलिं // 17 // संघट्टइत्ता काएणं, तहा उवहिणामवि / खमेह अवराहं मे, वइज न पुणु ति य॥ 18 // दुग्गयो वा पयोएणं, चोइयो वहइ रहं / एवं दुबुद्धि किचाणं वुत्तो वुत्तो पडुब्बई // 16 // (यालवन्ते लवन्ते वा, न निमिजाइ पडि Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / त्रयोदशमी चिमागः स्सुणे / मुत्तूणं यातणं धीरो, सुस्सूमाए पडिस्सुणे 1) कालं छन्दोवयारं च, पडिलेहिताण हेहिं / तेणं तेणं आएणं, तं तं संपडिवायए // 20 // विवत्ती अविणीयस्स, सम्पत्ती विणियस्स अ। जस्सेयं दुहयो नायं, सिक्खं से अभिगच्छई // 21 // जे प्रावि चराडे मई इडिट-गारवे, पिसुणे नरे साहस-हीणपेसणे / अदिट्ठ-धम्मे विणए अकोविए, असंविभागी न हु तस्स मुक्खो // 22 // नि सवत्ती पुण जे गुरूणं, सुयत्थ-धम्मा विणयम्मि कोविया / तरितु ते योहमिणं दुरुत्तरं, खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गय // ति बेमि // 23 // // इति नवमाध्ययने द्वितीय उद्देशकः / / 9-2 / / // // अथ नवमाध्ययने :: तृतीय उद्देशकः // पायरियं अग्गि-मिवाहिअग्गी, सुस्सूममाणो पडिज.ग.रेजा। बालोईयं इंगियमेव नचा, जो छन्दमाराहयइ स पुजो॥ 1 // यावारमट्ठा विणयं पउंजे, सुस्प्सू समाणो परिगिज्झ ववकं / जहोवइष्टुं अभिकंखमाणो, गुरुंतु नासाययई स पुज्जो // 2 // रायणिएसु विणयं पउंजे, डहरा वि य जे परियाय-जेट्ठा / नियत्तणे वट्टई सञ्चबाइ, योगय वककरे स पुज्जो // 3 // अन्नायउछं चरई विसुद्धं, जवणट्ठया समुयाणं च निच्चं / अलद्भुयं नो परिदेवएज्जा, लद्धन विकत्थइ स पुज्जो // 4 // संथार-सेज्जासण-भत्तपाणे, अपिच्छया अइलाभे वि सन्ते / जो एवमप्पाण-भितोसएजा, संतोस-पाहन्नरए स पुज्जो // 5 // सका सहेउं ग्रासाइ कंटया, अयोमया उच्छहया नरेणं अणासए जो उ सहेज कंटए, वइमए कराणसरे स पुज्जो // 6 // मुहुत्तदुक्खा उ हवन्ति कंटया,अश्रो मया ते वि तयो सु-उद्धरा / वायादुरुत्ताणि दुरुद्धराणि, वेराणुबन्धीणि महब्भयाणि // 7 // समावयन्ता वयणाभिघाया, करणंगया दुम्मणियं जणन्ति / धम्मो ति किचा परमग्गसूरे, जिइन्दिए जो सहई स पुज्जो // 8 // अवगणवायं च परम्मुहरस, पञ्चखयो पहिणीयं Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदशकालिक-मूत्रम् :: अध्ययनं 9 ] [ 33 व भासं : योहारिणिं अप्पियकारिणिं च, भासं न भासेज सया स पुजो // 6 // अलोलुए अहए अभाई, अपिसुणे यावि अदीणविती / नो भावए नो विय भावियप्पा, अकोउहल्ले य सया य पुजो // 10 // गुणेहिं साहू अगुणेहिंऽसाहू, गेराहाहि साहु गुण मुचऽसाहू / वियाणिया अप्पग-मप्पएणं, जो रागदोसेहिं समो स पुज्जो // 11 // तहेव डहरं व महलगं वा, इत्थीं पुमं पव्वइयं गिहिं वा / नो हीलए नोवि य खिंसएज्जा, थंभं च कोहं च चए स पुज्जो // 12 // जे माणिया सययं माणयन्ति, जत्तेण कन्नं व निवेसयन्ति / ते माणए माणरिहे तबस्सी, जिइन्दिए सच्चरए स पुज्जो // 13 // तेसिं गुरुणं गुणसायराणं, सोचाण मेहावी सुभासियाई / चरे मुणी पंचरए तिगुत्तो, चउकसाया-वगए स पुजो // 14 // गुरुमिह सययं पडियरिय मुणी, जिणमय निउणे अभिगम-कुसले / धुणिय रयमलं पुरेकडं, भासुरमउलं गई गय (वइ) // त्ति बेमि // 15 // // इति नवमाध्ययने तृतीय उद्देशकः // 6-3 // // 6 // अथ नवमाध्ययने चतुर्थ उद्देशकः // सुयं मे ग्राउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं, इह खलु थेरेहिं भगवन्तेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पन्नत्ता, कयरे खलु ते थेरेहिं भगवन्तेहिं चत्तारि विणय-समाहि-टाणा पन्नत्ता ? इमे खलु ते थेरेहिं भगवन्तेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्टाणा पन्नत्ता, तं जहा-विणयसमाहि सुयसमाहि, तवसमाहि, थायारसमाहि // सू० 1 // विणए सुए अ तवे, पायारे निच पंडिया। अभिरामयन्ति अप्पाणं, जे भवंति जिइन्दिया // 1 // चउबिहा खलु विणयसमाहि भवई, तं जहा-अनुसासिजन्तो सुस्सूसइ 1, सम्म सम्पडिवजइ 2, वेयमाराहइ 3, न य भवइ अत्तसम्पग्गहिए 4, चउत्थं पयं भवइ भवइ य एत्थ सिलोगो // सू० 2 // पेहेई हियाणुसासणं, सुस्सूसइ तं च पुणो अहिट्टिए / न य माण-मएण मजई, विणय-समाही पाययट्ठिए // 2 // Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः चउबिहा खलु सुयसमाहि भवइ, तं जहा-सुयं मे भविस्सइत्ति अज्झाईयव्वं भवइ 1, एगग्गचित्तो भविस्सामित्ति अभाईयव्वं भवई 2. अप्पाणं ठावइस्सामित्ति अन्झाईयव्वं भवई 3, ठियो परं वइस्सामित्ति श्रझाईयव्वं भाई 4. चउत्थं पयं भवई य एत्थ सिलोगो // सू. 3 // नाणमेगग्गचित्तो य, ठियो य ठावई परं / सुयाणि य अहिजित्ता, रयो सुय-समाहिए // 3 // चउबिहा खलु तवसमाही भवइ, तं जहा-नो इहलोगट्टयाए तवमहि. ट्ठिजा 1, नो परलोगट्ठयाए तवमहिट्ठिजा 2, नो कित्ति-वराणसद्द-सिलोगट्ठयाए तवमहिट्ठिजा 3, नन्नत्थ निजरट्टयाए तवमहिट्ठिजा 4, उत्थं पयं भवइ, भवइ य एत्थ सिलोगो // सू० 4 // विविह गुण-तवो-रए य निच्चं, भवइ निरासए निजरट्ठिए / तवसा धुणइ पुराण-पावगं, जुत्तो सया तव. समाहिए // 4 // चरविहा खलु अायारसमाही भवइ, तं जहा-नो इहलोगट्ठयाए यापारमहिट्ठिजा 1, नो परलोगट्टयाए अायारमहिट्ठिज्जा 2, नो कित्ति वराणसद सिलोगट्टयाए यायारमाहेट्ठिजा 3, ननस्थ बारहन्तेहिं हेअहिं पायारमहिहिजा 4, चउत्थं पयं भवइ, भवइ य एत्थ सिलोगो // मू० 5 // जिणवयण-रए अतिन्तिणे, पडिपुराणायय-माययट्ठिए / अायारसमाहि संवुडे, भवई य दन्ते भाव-सन्धए // 5 ॥अभिगम चउरो समाहियो, सुविलु द्रो सुसमाहियप्पयो / विउल-हियं-सुहावहं पुणो, कुबई सो पयखेममप्पणो // 6 ॥जाइमरणायो मुच्चई, इत्थंत्थं च चएई सम्बसो / सिद्धे वा भवई सासए, देवो वा अप्परए महड्डिए // त्ति बेमि // 7 // // इति नवमाध्ययने चतुर्थ उद्देशकः // // इति नवममध्ययनम् // 9 // // 10 // अथ सभिक्षु-नाम-दसममध्ययनम् // निक्खम्ममाणाइ य बुद्भवयणे, निच्चं चित्तसमाहियो हविजा / इत्थीण वसं न यावि गच्छे, वन्तं नो पडियायइ जे स भिक्खू // 1 // पुढवि न खणे न खणावए, सीबोदगं न पिए न पियावए / अगणि-सत्थं जहा सुनि Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद्दशवैकालिक-सूत्रम् :: अध्ययनं ] [ 35 सियं, तं न जले न जलावए जे स भिक्खू // 2 // अनिलेण न वीए न वीयावए, हरियाणि न छिन्दे न छिन्दावए / बीयाणि सया विवजयन्तो, सचित्तं नाहारए जे स भिक्खू // 3 // वहणं तस-थावराण होइ, पुढवि-तण कट्ट-निस्सियाणं / तम्हा उद्दसियं न भुजे, नो वि पए न पयावर जे स भिक्खू // 4 // रोईय-नायपुत्त-वयणे, अत्तसमे मन्नेज छप्पि काए। पंच य फासे महव्ययाई, पंचासव-संवरए जे स भिक्खू // 5 // चत्तारि वमे सया कसाए, धुवजोगी हविज बुद्धवयणे / ग्रहणे निजाय-रूवरयए, गिहिजोगं परिवजए जे स भिवरखू // 6 // सम्मबिट्ठि सया अमूढे, अस्थि हु नाणे तवे संजमे य। तवमा धुणई पुराण-पावगं, मण-वय-काय-सुसंवुडे जे स भिक्खू // 7 // तहव असणं पाणगं वा, विविहं खाइम-साइमं लभित्ता। होही अट्ठो सुए परे वा, तं न निहे निहावए जे स भिखू // 8 // तहेव असणं पाणगं वा, विविहं खाइम-साइमं लभित्ता / छन्दिय साहम्मिश्राण भुजे, भोचा-सज्झाय रए य जे स भिक्खू // 1 // न य वुग्गहियं कहं कहेजा, न य कुप्पे निहुइन्दिए पसन्ते / संजमे धुवं जोगेण जुत्ते, उवसन्ते अविहेडए जे स भिक्खू // 10 // जो सहइ हु गाम-कएटए, अकोस-पहार-तज्जणायो या भय-भेरव-सह-सप्पयासे, सम-सुह-दुक्ख सहे य जे स भिक्खू // 11 // पडिमं पडिवजिया मसाणे, नो भीयए भय भेरवाई दिग्रस्त / विविह गुण तवो-रए य निच्चं, न सरीरं चाभिकंखइ जे स भिवखू // 12 // असई वोसट्ठ-चत्त-देहे, अकुट्ट व हए व लूसिए वा / पुढवि-समे मुणी हविजा, अनियाणे यकोउहल्ले जे स भिवखू // 13 // थभिभूय कारण परीप्तहाई, समुद्धरे जाइ-पहायो अप्पयं / विईत्तु जाइ-मरणं मह भयं, तवे रए सामणिए जे स भिक्खू // 14 // हत्थ-संजए, पाय-संजए वाय-संजए संजइन्दिए / अझप्प रए सुसमाहियप्पा, सुत्तत्थं च वियाणइ जे स भिक्खू // 15 // उवहिम्मि यमुच्छिए अगिद्धे, अन्नाय उंछ पुल निप्पु. लाए / कय-विक्रय-सन्निहियो विरए, सव्व-संगारगए य जे स भिवखु // 16 // Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 36 ] [ भीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः अलोल-भिक्खू उ रसेसु गिद्धे, उंछ चरे जीविय नाभिकखे / इड्डिं च सकारण-पूयणं च, चए ठिपणा अणिहे जे स भिक्खू // 17 // न परं वएजासि अयं कुतीले. जेणन कुप्पेज न तं वएजा। जाणिय पत्तेयं पुराण-पावं. अत्ताणं न समुक्कसे जे स भिक्खू // 18 // न जाईमत्ते न य रूवमत्ते, न लाभमत्ते न सुएण मत्ते / मयाणि सव्वाणि विवजइत्ता, धम्मज्माण-रए जे स भिक्खू // 11 // पवेयए अज-पयं महामुणी, धम्मे ठियो ठावयइ परपि / निक्खम्म वज्जेज कुसीललिंगं, न यावि हासं कुहए जे स भिक्खू // 20 // तं देहवासं असुइं असासयं, सया चए निच-हियट्ठियप्पा / छिन्दिनु जाईमरणस्स बन्धणं, उवेइ भिक्खू अपुणागमं गई // ति बेमि // 21 // // इति दशममध्यायनम् // 10 // // अथ श्रीरतिवाक्याऽभिधा प्रथमा चूलिका // इह खलु भो पन्वइएणं उत्पन्नदुक्खेणं संजमे अरइ समावन्न-चित्तेणं श्रोहाणुप्पेहिणा अणोहाइएणं चेव हयररिस-गयंकुस-पोय-पडागाभूयाई ईमाई अट्ठारस ठाणाई सम्मं संपडिलेहिअव्वाइं भवंति, तं जहा है भो दुस्समाए दुप्पजीवी 1, लहुसगा इत्तरिया गिहीणं कामभोगा.२, भुजो य साइबहुला मणुस्सा 3, इमे अ मे दुखे न चिरकालोपट्टाइ भविस्सइ 4, श्रोमजणपुरकारे 5, वंतस्स य पडिअायणं 6, अहरगइ वासोवसंपया 7, दुल्हे खलु भो गिहीणं धम्मे गिहवासमन्झे वसंताणं 8, पायंके से वहाय होइ 1, संकप्पे से वहाय होइ 10, सोवक्केसे गिहवासे, निरुवक्केसे परि. श्राए 11, बंधे गिहवासे, मुक्खे परिवाए 12, सावज्जे गिहवासे, अणवज्जे परिवाए 14, बहुसाहारणा गिहीणं कामभोगा 14, पत्तेयं पुनपावं 15, अणिच्चे खलु भो मणुयाण जीवीए कुसग्गजलबिंदुचंचले 16, बहुँ च खलु भो पावं कम्मं पगडं 17, पावाणं च खलु भो कडाणं कम्माणं पुलिं दुचित्राणं दुप्पडिकंताणं वेइत्ता मुवखो नस्थि अवेइत्ता तवसा वा झोसइत्ता 18, Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रितपइ ॥२॥डावा पडियो हम आप नावयुष्माई था श्रीमदशकालिक-सूत्रम् / अध्ययनं . ] अट्ठारसमं पयं भवइ, भवइ अ इत्थ सिलोगो। जया य चाई धम्म, श्रणजो भोगकारणा / से तत्थ मुच्छिए बाले, श्रायई नावबुझई // 1 // जया योहावियो होइ, ईदो वा पडियो छमं / सव्व-धम्म-परिभट्ठो, स पच्छा परितप्पइ // 2 // जया अ वंदिमो होइ, पच्छा होइ अवंदिमो / देवया व चुया ठाणा, स पच्छा परितप्पइ // 3 // जया अ पूइमो होइ, पच्छा होइ अपइमो / राया व रज-पभट्ठो, स पच्छा परितप्पई // 4 // जया श्र माणिमो होइ, पच्छा होइ अमाणिमो / सिटिव्व कब्बडे छूढो, स पच्छा परितप्पई // 5 // जया श्र थेरथो होई, समझकंत-जुब्वणो / मच्छु ब्व गलं गिलित्ता, स पच्छा परितप्पई // 6 // जया य कु.कुटुंबस्स, कुतत्तीहिं विहम्मई / हन्थी व बंधणे बद्धो, स पच्छा परितप्पई // 7 // पुत्त-दार-परीकिन्नो, मोहसंताण-संतयो / पंकोसन्नो जहा नागो, स पच्छा परितप्पई // 8 // अज याहं गणी हुँतो, भाविअप्पा बहुस्सुयो / जइ हं रमतो परिश्राए, सामन्ने जिणदेसिए // 1 // देवलोगसमाणो य, परियायो महेसिणं / रयाणं अरयाणं च, महानरय-सारिसो // 10 // यमरोवमं जाणिय सुवखमुत्तमं, रयाण परियाइ तहाऽरयाणं / निरयोवमं जाणिय दुक्खमुत्तमं, रमिज तम्हा परियाइ पंडिए // 11 // धम्माउ भट्ठ सिरियो अवेयं, जन्नग्गि विभाय-मिवऽप्पतेयं / हीलंति णं दुब्बिहियं कुसीला, दाढुड्डियं घोरविसं व नागं // 12 // इहेबधम्मो अयसो अकित्ती, दुन्नामधिज्जं च पिहुजणंमि / चुअस्स धम्माउ अहम्मसेविणो, सभिन्नवित्तस्स य हिट्ठयो गइ // 13 // भुजित्तु भोगाइं पसज्झ चेयसा, तहाविहं कटु असंजमं बहुँ / गई च गच्छे अणहिभियं दुई, बोही असे नो सुलहा पुणो पुणो // 14 // इमस्त ता नेरईअस्स जंतुणो, दुहोवणीअस्स किलेसवत्तिणो / पलियोवमं झिजइ सागरोवमं, किमंग पुण मज्म इमं मणोदुहं // 15 // न मे चिरं दुक्खमिणं भविस्सइ, असासया भोग Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : त्रयोदशमो विभागः पिवाप्त जंतुणो / न चे सरीरेण इमेणऽविस्सई, अविस्सइ जीविय-पजवेण मे // 16 // जस्सेवमप्पा उ हविज निच्छियो, चउज देहं न हु धम्मसासणं / तं तारिस नो पइलंति इंदिया, उविंतवाया सुदंसणं गिरि // 17 // ईच्चेव संपस्सिय बुद्धिमं नरो, पायं उवायं विविहं विद्याणिया / कारण वा अदु माणसेणं, तिगुत्तिगुत्तो जिणवयण-महिटिजासि // तिबेमि // 18 // // इति प्रथमा चलिका // 1 // // अथ श्रीविविक्तचर्याऽभिधा द्वितीया चूलिका // चूलिग्रं तु पववखामि, सुयं केवलि भासियं / जं सुणित्तु सुपुराणाणं, धम्मे उप्पज्जए मई // 1 // अगुसोत्र-पट्टिअ-बहुजणमि, पडिसोय लद्धलक्खेणं / पडिसोअमेव अप्पा, दायवो होउ-कामेणं // 2 // अणुसोयसुहो लोयो, पडिसोयो पासवो सुविहिाणं / अणुसोओ संसारो, पडिसोयो तस्स उत्तारो॥ 3 // तम्हा बायार-परकमेणं, संवर-समाहि-बहुलेणं : चरिया गुणा अनियमा अ, हुँति साहूण दट्टव्वा // 4 // अनिएय-वामो समुयाणचरिया, अन्नाय-उंछं पइरिकया य / अप्पोवही कलहविवजणा अ, विहारचरिया इसिणं पसत्था // 5 // पाइन्न-योमाण-विवजणा अ, योसन्नदिहाड. भत्तपाणे / संसट्ट कप्पेण चरिज भिक्खू, तजाय-संसट्ठ जई जईजा // 6 // अमज-मंसासि अमच्छरीया, अभिक्खणं निविगई गा य / अभिवखणं काउस्सग्गकारी, सज्मायजोगे पययो हविजा। 7 // न पडिन्नविजा सयणासणाई, सिज्ज निसिज्ज तह भत्तपाणं / गामे कुले वा नगरे व देसे, ममत्तभावं न कहिं पि कुजा // 8 // गिहिणो वेयावडिग्रं न कुजा, अभि. वायण-वंदण-पूअणं वा / असंकिलिटेहिं समं वसिज्जा, मुणी चरित्तस्म जयो न हाणी // 1 // न या लभेज्जा निउणं सहायं, गुणाहियं वा गुणयो समं वा / इक्को वि पाबाई विवज्जयंतो, विहरिज्ज कामेसु असज्जमाणो // 10 // संवच्छरं वा वि परं पमाणं, बोयं च वासं न तहिं Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीमदशवकालिक-स्त्रम् / अध्ययन 10) वसिज्जा / सुत्तस्त मग्गेण चरिन्ज भिक्खु, सुतस्स अत्यो जह पाणवेई // 11 // जो पुब्बरतावरत्तकाले, संपिक्खए अप्पग-मप्पगेणं / किं मे कडं किंत्र मे किच्चसेसं, कि सकणिज्जं न समायरामि // 12 // किं मे परोपासइ किं च अप्पा, किं वाहं खलियं न विवजयामि / इञ्चेव सम्मं अणुपासमाणो, अणागयं नो पडिबंध कुजा // 13 // जत्थेव पासे कइ दुप्पउत्तं, कारण वाया अदु माणसेणं / तत्थेव धीरो पडिसाहरिजा, श्राइनो खिपमित्र खलीणं // 14 // जस्सेरिसा जोग जिइंदिअस्स, धिईमत्रो सम्पुरिसस्म निच्चं / तमाहु लोए पडिबुद्रजीवी, सो जीबई संजम-जीविएणं // 15 // अप्पा खलु सययं रक्खियो, सबिदिएहिं सुसमाहिएहिं / अरक्खियो जाइपहं उवेइ, सुरक्खियो सव्वदुहाण मुबई ॥ति बेमि // 16 // ॥इति दिनीय पतिका // 2 // // इति श्रीदशवकालिक-सूत्रं समाप्तम् // (अन्यायं 700) Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8 श्रीमद्दशवैकालिक-सूत्र RAR // () ) () Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रुतकेवलि-श्रीमद्भद्रबाहुस्वामिप्रणीता सभाष्या श्रीपिण्डनियुक्तिः। - -::-- पिंडे उग्गम उप्पायोसणा सं जोयणा पमाणं च / इंगाल धूम कारण अट्टविहा पिंडनिज्जुत्ती॥ 1 // पिंड निकाय समूहे संपिंडण पिंडणाय समवाए / समुमरण निचय उपचय चए य जुम्मे य रासी य॥ 2 // पिंडस्स उ निक्खेवो चउकयो छक्कयो व काययो / निक्खेवं काऊणं परूवणा तस्स कायया // 3 // कुलए चउभागस्स संभवो छक्कए चउराहं च / नियमेण संभवो अस्थि छकगं निविखवे तम्हा // 4 // नामंठवणापिंडो दव्वे खेत्ते य काल भावे य / एसो खलु पिंडस्स उ निक्खेवो छविहो होइ // 5 // गोराणं समयकयं वा जं वावि हवेज्ज तदुभएण कयं / तं बिंति नामपिंडं ठरणापिंडं अयो वोच्छं // 6 // गुणनिफन्नं गोराणं तं चेव जहत्थमस्थवी बेति / तं पुण खवणो जलनो तवणो पवनो पईवो वा // 1 // पिंडण बहुइव्वाणं पडिबवखेणावि जत्थ पिंडक्खा / सो समयकयो पिंडो जह सुत्तं पिंडपडिहाई // 2 // जस्स पुण पिंडवायट्ठया पविट्ठस्स होइ संपत्ती / गुड. योयणपिडेहिं तं तदुभयपिंडमाइंसु // 3 // उभयाइरित्तमहवा अन्नपि हु अस्थि लोइयं नाम / अत्ताभिप्पायकयं जह सीहग-देवदत्ताई // 4 // गोराणसमयाइरित्तं इणमन्नं वाऽवि सूइयं नाम / जह पिंडउत्ति कीरइ कस्सइ नामं मणूमस्त // 5 // तुल्लेऽवि अभिप्पाए समयपसिद्धं न गिराहए लोयो / जं पुण लोयपसिद्धं तं सामइया उवचरन्ति // 6 // (भा०) अक्खे वराडए वा कट्ठ पुत्थे व चित्ताम्मे वा / सम्भावमसम्भावं ठवणापिंडं वियाणाहि Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / त्रयोदशमो विभागः // 7 // इक्को उ अस भावे तिराहं ठपणा उ होइ सब्भावे / चित्तेसु असन्भावे दारुअलेप्पोवलेसियरो॥ 7 // (भा०) तिविहो उ दबपिंडो सचित्तो मीसयो अचित्तो य / एक्केकस्स य एत्तो नव नव भेषा उ पत्तेयं // 8 // पुढवी ग्राउकायो तेऊ वाऊ वणस्सई चेव / बेइंदिय तेइंदिय चउरो पंचेंदिया चेव // 1 // पुढवीकायो तिविहो सच्चित्तो मीसयो य अच्चित्तो / सच्चित्तो पुण दुविहो निच्छयववहारयो चेव // 10 // निच्छययो सञ्चित्तो पुढविमहापब्बयाण बहुमज्झे / अचित्तमीसवजो सेसो ववहारसच्चित्तो // 11 // खीरदुमहे? पंथे कट्ठोले इंधणे य मीसो उ / पोरिसि एग दुग तिगं बहुइंधणमन्झयोवे य // 12 // सीउराहखारखत्ते अग्गीलोणूम-अंबिलेनेहे / वुवकंतजोणिएणं पयोयणं तेणिमं होइ // 13 // अवरद्धि गविसबंधे लवणेन व सुरभि-उवलएणं वा / अच्चित्तस्स उ गहणं पयोयणं तेणिमं वऽन्नं // 11 // ठाणनिसियण-तुयट्टण उच्चाराईण चेव उस्सग्गो / घुट्टग-डगलग-लेवो एमाइ पोयणं बहुहा // 15 // अाउकायो तिविहो सचित्तो मीसयो य अचित्तो। सचित्तो पुण दुविहो निच्छय-ववहारयो चेव // 16 // घणउदही घणवलया करगसमुहद्दहाण बहुमज्झे / अह निच्छयसचित्तो ववहारनयस्स अगडाई // 17 // उसिणोदगमणुबत्ते दंडे वासे य पडियमित्तंमि / मोत्तूणादेसतिगं चाउलउदगेऽबहु पसन्नं // 18 // भंडगपासवलग्गा उत्तेडा बुब्बुया न संमति / जा ताव मीसगं तंदुला य रज्झति जावन्ने॥१६॥ एए उ प्रणाएसा तिनिवि कालनियमस्सऽसंभवयो / लुकखेयर-भंडगपवण-संभवासंभवाईहिं // 20 // जाव न बहुप्पसन्नं ता मीसं एस इत्थ पाएसो / होइ पमाणमचित्तं बहुप्पसन्नं तु नायव्वं // 21 // सीउराहखारखत्ते अग्गीलोणूस-अंबिलेनेहे / बुक्कंतजोणिएणं पोयणं तेणिमं होइ // 22 // परिसेयपियणहत्थाइधोवणं चीरधोवणं चेव / यायमण भाणधुवणं एमाइ पोयणं बहुहा // 23 // उउबद्ध धुवण वाउस भविणासो अठाणठवणं च / संपाइम-वाउवहो पावण भूणोवघाश्रो Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [43 य // 24 // अइभार चुडण पणए सीयल-पाउरण जीरगे लराणे / योहारणकायरहो वासासु अधोवणे दोसा // 25 // अप्पत्तेच्चिय वासे सव्वं उवहिं धुवंति जयाणाए। यसइए उ दवस्त य जहन्नयो पायनिजोगो // 26 // यायरिय गिलाणाण य मइला मइला पुणोऽवि धोवंति।मा हु गुरुण अवराणो लोगंमि ग्रजीरणां इयरे // 27 // पायस्स पडोयारो दुनिसिज तिपट्ट पोत्ति रयहरणं / एए उ न वीसामे जयणा संकामणा धुवणं // 28 // पायस्स पडोयारो पत्तगवज्जो य पायनिजोगो। दोनि निसिज्जायो पुण अम्भितर बाहिरा चेव // 8 // संथारुत्त-चोलग-पट्टातिन्नि उ हवंति नायव्या / मुहपोत्तियत्ति पोनी एगनिसेज्जं च रयहरणं / 6 // एए उ न वीसामे पइदिणमुवयोगयो य जयणाए। संकामिऊण धोवंति छप्पइया तत्थ विहिणा उ // 10 // (भाष्यम्) / जो पुण वीसामिजइ तं एवं वीयराययाणाए। पत्ते धोरणवाले उहि वीसामए साहू // 21 // अभितरपरिभोगं उवरि पाउणइ नाइदूरे य / तिन्नि य तिन्नि य एगं निसिं तु काऊं परिच्छिज्जा // 30 // धोवत्थं तिन दिणे उवरिं पाउणइ तह य यासन्नं / धारेइ तिन्नि दियहे एगदिणं उवरि लतं // 11 // (भा०) केई एक्केकनिसि संवासेउं तिहा परिच्छंति / पाऊगइ जइ न लग्गति छप्पइया ताहि धोवंति // 31 // निव्वोदगस्स गहणं कई भागोसु असुइ पडिसेहो / गिहिभायणेसु गहणं ठिय वासे मीसगं छारो // 32 // गुरुपञ्चक्खाणि-गिलाण-सेहमाईण धोवणं पुःवं / तो अपणो पुःवमहाकडे य इयरे दुवे पच्छा // 33 // अच्छोडपि. हिणासु य न धुवे धोए पयावणं न करे। परिभोग अपरिभोगे छायायव पेह कलाणं // 34 // तिविहो तेउकायो सचित्तो मीसयो य अचित्तो। सचित्तो पुण दुविहो निच्छयववहारयो चेव // 35 // इट्टापागाईणं बहुमज्झे विज्जुमाइ निच्छ्ययो / इंगालाई इयरोत्ति मुम्मुरमाईउ मिस्सो उ // 36 // योयणवं. जगपाएग-अायानुसिणोदगं च कुम्मासा / डगल-गसरक्खसूई पिप्पलमाई उ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44.] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / त्रयोदशमी विभागः उवयोगो // 37 // वाउकायो तिविहो सचित्तो मीसयो य अचित्तो / सचित्तो पुण दुविहो निच्छयववहारयो चेव // 38 // सवलय घणतणुराया अाहिम अइदु देणे य(सु) निच्छययो। ववहार पाइणाई अवकताई य श्रचिनो // 31 // अवकंतधंतघाणे देहाणुघए य पीलियाइसु य / अचित्त वाउकायो (तो एवविहो) भणियो कम्मट्ठमहणेहिं // 40 // हत्थसयमेग गंता दइयो अञ्चित्तु बीयए मीसो / तइयंमि उ सचित्तो वत्थी पुण पोरिसिदिणेसु // 41 // निद्धेयरो य कालो एगंतसिणिद्र-प्रज्झिमजहन्नो। लुक्खावि होइ तिविहो जहन्नमज्भो य उक्कोसो // 12 // एगंतसिगिद्धंमी पोरिसिमेगं यचेयणो होइ / बिइयाए संमीसो तइयाइ सचेयणो वत्थी // 13 // मज्झिमनिद्धे दो पोरिसीउ अञ्चित्तु मीसयो तइए। चोउत्थीए सचित्तो परणो दइयाइ मझगयो // 14 // पोरिसितिगमञ्चित्तो निद्धजहन्नमि मीसंग चउत्थी / सचित्त पंचमीए एवं लुबखेऽवि दिणबुड्डी // 15 // (भा० ) दइएण वत्थिणा वा पयोयणं होज वाउणा मुगिणो / गेलन्नमि व होजा सचित्तमीसे परिहरेज्जा // 42 // वणस्सइकायो तिविहो सचित्तो मीलयो य अञ्चित्तो / सचित्तो पुण दुविहो निच्छयवाहारयो चेव // 43 // सव्यो. ऽअऽणंतकायो सञ्चित्तो होइ निच्छयनयस्स / ववहारस्त य सेसो मीसो पब्वायरोट्टाई // 44 // पुप्फाणं पत्ताणं सरडुफलाणं तहेव हरिहाणं / वं(वें)टमि मिलाणं मी नायव्वं जीविपजढं // 45 // संथारपायदंडगखोमिय कप्पा य पीढफलगाई / योसहभेसज्जाणि य एमाइ पयोरणं बहुहा // 46 // बियतियचउरो पंचिंदिया य तिप्पभिइ जत्थ उ समेति / सट्टाणे सट्ठाणे सो पिंडो तेण कजमिणं // 47 // बेइंदियपरिभोगो अक्खाण ससिप्पसंख्माईणं / तेइंदियाण उद्देयिगादि जं वा वए वेजो॥४८॥ चरिंदियाण मच्छियपरिहारो ग्रासमच्छिया चेव / पंचेंदियपिंडंमि उ अव्यवहारी उ नेरझ्या // 41 // चम्मट्टिदंतनहरोम-सिंगयविलाइ-छगणगोमुत्ते / खीरदधि-माझ्याण Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीपिण्डनियुक्तिः] [ 45 य पंत्रिदिय-तिरियपरिभोगो // 50 // सचित्ते पव्वावण पंथुवएसे य भिक्खदाणाई / सीसट्टिग अचित्ते मीसहि-सवख-पहपुच्चा // 51 // खमगाइ कालकजाइएसु पुच्छिन्न देवयं कंत्रि / पंथे सुभासुभे वा-पुच्छेई(च्छाए) दिव्य उपयोगो // 52 // यह मीसयो य पिंडो एएसि चिय नवराह पिंडाणं / दुगसंजोगाईयो नायव्वे, जाव चरमोत्ति / / 53 // सोवीरगोरसासव-वेसणभेसज्ज नेह साग फले / पोग्गल-लोणगुलोयण गणेगा पिंराडा उ संजोगे // 54 // तिन्नि उ पएससमा ठाणटिइउ दविए नयाएमा / चाउचमपिंडाणं जत्थ जया तपस्वणया // 55 // मुत्तदविएसु जुज्जइ जाइ अन्नो नाणुवेहयो पिंडो / मुत्तिविमुत्तेसुवि सो जुज्जइ नगु मंवबाहुला // 56 // जह तिपएको खंधो तिसुवि पएसेसु समोगादो। यविभ गिा संवछोह तु नेवं तदाधारो ? // 57|| ढग चउराह नियमा जोगविभागेण जुज्जए पिराडो / दोसु जहियं तु पिण्डो परिणजइ कीरए चावि // 58 || दुमिहो उ भावपिण्डो पसत्थयो चेव अप्पमत्थो च / पनि दोगहपित पत्तेत्र परूपणं योग्छ / 56 // एगविहाइ दसविहो पमवयो चे अप्परस्थो य। संजम' विजाचरणे नाणादितिगं च तिविहो उ // 60 // नाणं दंगण तव संजमो य वय पंच छच जागाजा / विडमण पाशमा उग्गहाडिमा य पिंडम्मि // 61 // पवयणमाया नव बंभगुत्तियों तह य समगधम्मो य" / एस पसत्यो विंडो भणियो कम्ममहोहिं // 32 // अपसत्यो य असंजम यन्नाणं यविरई य मिच्छत्तं / कोहायासवकाया कम्मेगुत्ती यऽहम्मो य॥ 63 // बन्झइ य जेण कम्म सो सब्यो होइ यष्पमत्यो उ / मुचइ य जेण सो उण परत्थयो नवरे विन्नेत्रो // 64 // दंगणनाणचरित्ताण पजवा जे उ जत्तिया बावि। सो सो होइ तयक्खो पज्जवप्यालणा पिंडो॥६५॥ कम्माण जेण भावेण अप्पगे चिणइ चिकणं पिंडं। खा होइ भावपिंडो पिंडयए पिंडणं जम्हा // 66 // दवे अच्चित्तेणं भावं.म(वे य) Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 56 ) [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / त्रयोदशमो विमागः पसस्थएगिहं पगयं / उच्चारियस्थ-सरिसा सीसमइ(ससाउ)विकोवणट्ठाए // 67 // याहारउवहि-सेज्जा पसत्थ पिंडस्सुवग्गहं कुणइ। श्राहारे अहिगारो अट्टहिं ठाणेहिं सो सुद्धो॥६८ // निव्वाणं खलु कजं नाणाइतिगंच कारणं तस्स / नियाकारणाणं च कारणं होइ अाहारो॥ 61 ॥जह कारणं तु तंतू पडस्स तेसिं च होंति पम्हाई / नाणाइतिगरसेवं श्राहारो मोक्खने(नि)मस्स // 70 // जह कारणमणुवहयं कज्जं साहेइ अविकलं नियमा / मोक्खक्खमाणि एवं नाणाईणि उ अविगलाई // 71 // संखेवपिडियाथो एवं पिंडो मए समक्खायो / फुडवियड-पायडत्थं वोच्छामी एसणं एत्तो // 72 // एसण गवेसणा मग्गणा य उग्गोवणा य बोद्धव्वा / एए उ एसणाए नामा एगट्ठिया होति // 73 // नामं ठवणा दविए भावंमि य एसणा मुणेयवा / दवे भावे एक्केकया उ तिविहा मुणेयव्वा // 74 // जम्म एमइ एगो सुवस्स अन्नो तमेसए नटुं / सत्तुं एसइ अन्नो पएण अन्नो य से मच्चु॥७५ // एमेव सेसएसुवि चउप्पयापय-अचित्तमीसेसु / जा जत्थ जुज्जए एसणा उ तं तत्थ जोएजा // 76 // भावेसणा उ तिविहा गवेस-गहणेसणा उ बोद्धबा। गासेसणा उ कमसो पन्नत्ता वीयरागेहिं // 77 // अगविट्ठस्त उ गहणं न होइ न य अगहियस्स परिभोगो / एसणतिगस्स एसा नायब्बा श्राणु पुब्बी उ / / 78 // नामं ठवणा दविए भावंमि गवसणा मुणेयब्वा / दव्वमि कुरंगगया उग्गम-उप्पायणा भावे // 79 // जियसत्तु देवि चित्तसभ-पविसणं कणगपिट्ठ-पासण्या / दोहल-दुटबल-पुच्छा कहणं प्राणा य पुरिसाणं // 80 // सीवन्निसरिसमोयग-ठव(कर)णं सीवनिरुवखहेतु सु / श्रागमण कुरंगाणं पसत्थ अपसस्थ उवमा उ // 81 // विइग्रमेयं कुरंगाणं, जया, सीवन्नि सीयइ / पुरावि वाया वायंता, न उणं पुंजकपुंजका // 82 // हस्थिगहणं गिम्हे अरहट्टोहिं भरणं च सरसीणं / अच्चुदएण नलवणाअहिं. (आ)रूढा गयकुलागमणं // 83 // विइयमेयं गजबुलाणं, जया रोहंति Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपिण्डनियुक्तिः [47 नलवणा / अनयावि झांति हदा (झरा) न य एवं बहुप्रोदगा // 84 / / उग्गम उग्गोवण मग्गणा य एगट्ठियाणि एयाणि / नाम ठवणा दविए भावंमि य उग्गमो होइ // 85 // दव्वंमि लड्डुगाई भावे तिविहोग्गमो मुणेयबो / दसणनाणचरिते चरित्तुग्गमेणेत्थ अहिगारो॥८६ // जोइसतणासहीणं मेहरिणकराणमुग्गमो दव्वे / सो पुण जत्तो य जया जहा य दबुग्गमो वच्चो / / 87 // वासहरा अणुजत्ता अत्थाणी जोग्ग किड्काले य / घडगसरावेसु कया उ मोयगा लड्डुगपियस्स // 88 // जोग्गा अजिराण मारुय निसग्ग तिसमुत्थ तो सुइसमुत्थों। श्राहारुग्गमचिंता असुइत्ति दुहा मलप्पभवो // 81 // तस्सेवं वेरग्गुग्गमेण सम्मत्त-नाणचरणाणं / जुगवं कमुग्गमो वा केवलनाणुग्गमो जायो // 10 // दंसणनाणप्पभवं चरणं सुद्धेसु तेसु तस्सुद्धी। वरणेण कम्मसुद्धी उग्गमसुद्धीइ चरणसुद्धी॥११॥ 'याहाकम्मुद्दे सिय पूईकम्मे य' मीसजाए य / वणा' पाहुडियाए" पायोयर कीय पामिच्चे // 12 // परियट्टिए"अभिहडे 'उन्भिन्ने मालो. हडे' इय / श्रच्छिज्जे"अणिसि?" अझोयरए“य सोलसमे // 13 // श्राहाकम्मियनामा एगट्ठा कस्स वावि किं वावि ? / परपरखे य सपवखे चउरो गहणे य ग्राणाई // 14 // श्राहा अहे य कम्मे पायाहम्मे य अत्तकम्मे य / पडिसेषण पडिसुणणा संवासऽणुमोयणा चेव // 15 // धणुजुय. कायभराणं कुडुंबरजधुर-माझ्याणं च / खंधाई हिययं चिय दबाहा अंतए धणुणो॥ 16 // योरालसरीराणं उद्दवण तिवायणं च जस्सट्ठा। मणमाहित्ता कीरइ याहाकम्मं तयं बेति // 17 // पोरालग्गहणेणं तिरिक्ख-मणुयाऽहवा सुहुमवजा / उद्दवणं पुण जाणसु अइवाय विवजियं पीडं // 25 // कायवइमणो तिनि उ अहवा देहाउ-इंदियप्पाणा / सामित्तावायाणे होइ तिवायो य करणेसु॥२६॥हिययंमि समाहेउं एगमणेगं च गाहगं जो उ। वहणं करेइ दाया कायेण तमाह कम्मति // 27 // (भा०) जं दवं उदगाइसु छूढमहे वयइ जं च Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागा भारेणं / सीईए रज्जुएण व भोयरणं दबाहेकम्मं // 18 // संजमठाणाणं कंडगाण लेसाठिई-विसेसाणं / भा अहे करेंई तम्हा तं भावऽहेकम्मं // 16 // तत्याणंता उ चरितपजवा होंति संजमाणं / संखाईयाणि उ ताणि कंडगं होइ नायब्वं // 28 // संखाईयाणि उ कंडगाणि छट्ठाणगं विणिदिट्ठ। छट्ठाणा असंखा संजमसेढी मुणेयव्वा // 26 // किराहाइया उ लेसा उकोसविसुद्धिठिइविसेमायो / एएसि विसुद्धाणं अप्पं तग्गाहगो कुगाइ // 30 // (भा०) भावावयार-माहेउ-मप्पगे किंचिनूण-चरणग्गो / याहाकम्मग्गाही ग्रहो ग्रहो नेइ अप्पाणं ॥१००॥बंधइ अहेभवाउ पकरेइ ग्रहोमुहाई कम्माई घणकरणं तिब्वेण उ भावेण चयो उवयो य॥१०१॥तेसिं गुरूणमुदएण अप्पगं दुग्गईऍ पवडतं / न चएइ विधारेउं अहरगति निति कम्माई // 102 // अट्ठाए अणद्वार छकायपमदणं तु जो कुणइ / अनियाए य दियाए अायाहम्मं तयं वेति // 103 // जाणंतु अजाणतो तहेव उ(नि)दिसिय श्रोहयो वावि / जाणगं अजाणगं वा वहइ अनिया निया एसा // 31 // (भा०) दव्वाया खलु काया, भाशया तिन्नि नाणमाईणि / परपाण-पाडण, रयो चरणायं अपणो हणइ // 104 // निच्छयनयस्त चरणा-यविघाए नाणदंसणवहोऽवि / ववहारस्स उ चरणे हयंमि भयणा उ सेसाणं // 105 // दव्वंमि अत्तकम्मं जं जो उ ममायए तयं दव्यं / भावे असुहपरिणयो परकम्मं अत्तणो कुणइ // 106 // श्राहाकम्मपरिणयो फासुरमवि संकिलिट्ठपरिणामो / थाययमाणो बज्मइ तं जाणसु अत्तकम्मन्ति // 107 // परकम्म यत्तकम्मीकरेइ तं जो उ गिरािहउं भुजे / तत्थ भवे परकिरिया कहं नु अनत्थ संकमइ ? // 108 // कूडउवमाइ केइ परप्पउत्तऽवि ३ति बंधोति / भणइ य गुरू पमत्तो बन्झइ कूडे अदक्खो य॥ 10 // एमेव भावकूडे बज्मइ जो असुभभाव-परिणामो / तम्हा उ असुभभावो वज्जेको पयत्तेणं // 110 // कामं सयं न कुव्वइ जाणतो पुण तहावि तग्गाही / वड्ढेइ तप्पसंगं अगि Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपिण्डनियुक्ति [49 राहमाणो उ वारेइ // 111 // अत्तीकरेइ कम्म पडिसेवाईहिं तं पुण इमेहिं / तत्थ गुरू पाइपयं लहु लहु लहुगा कमेणियरे // 112 // पडिसेवणमाईणं दाराणऽणुमोयणा-वसाणाणं। जहसंभवं सरूवं सोदाहरणं पवक्खामि // 113 // यन्नेणाहाकम्मं उवणीयं असइ चोइयो भणइ / परहत्थेणंगारे कडं तो जह न डज्मइ हु // 114 // एवं खु ग्रहं सुद्धो दोसो देतस्स कूडउवमाए। समयत्थमजाणतो मूढो पडिसेवणं कुणइ // 115 // उवयोगमि य लाभ कम्मग्गाहिस्स चित्तरक्खट्टा / पालोइए सुलद्धं भणइ भणंतस्स पडिसुणणा // 116 // संघासो उ पसिद्धो अणुमोयण कम्मभोयग-पसंसा / एएसिमुदाहरणा एए उ कमेण नायव्वा // 117 // पडिसेवणाएँ तेणा पडिसुणणाए उ रायपुत्तो उ / संवासंमि य पल्ली अणुमोयण रायदुट्ठो य // 118 // गोणीहरण सभूमी नेऊणं गोणियो पहे भरखे / निधिसया परिवेसण ठियावि ते कूविया पत्थे // 11 // जेऽविय परिवेसंती, भायणाणि धरति य / तेऽवि बझति तिव्वेण, कम्मुणा किमु भोइणो ? // 120 // सामत्थण रायसुए पिइवहण सहाय तह य तुरिहका / तिरिहंपि हु पडिसुणणा रराणा सिट्ठमि सा नन्थि // 121 // भुज न भुजे भुजसु तइयो तुसिणीए भुजए पढमो। तिराहंपि हु पडिसुशणा पडिसेहंतस्स मा नत्थि // 122 // श्राणतुभुजगा कम्मुणा उ बीयस्स वाइयो दोसो / तइयस्स य माणसियो तीहिं विसुद्धो चउत्थो उ // 123 // पडिसेवण पडिसुणणा संवासऽणुमोयणा उ चउरोवि / पियमारगरायसुए विभासियब्वा जइजणेऽवि // 124 // पल्लीवहमि नट्ठा चोरा वणिया वयं न चोरत्ति / न पलया पावकरत्ति काउं रन्ना उवालद्धा // 125 / / श्राहाकडभोईहिं सहवासो तह य तविवज्जपि / दंसणगंधपरिकहा भाविति सुलूहवित्तिपि // 126 // रायारोहवराहे विभूसियो घाइयो नयरमज्झे / धनाधनत्ति कहा वहावहो कप्पडियखोला / / 127 // साउं पजत्तं श्रायरेण काले रिउक्खमं निद्धं / तग्गुणविकत्थणाए अभुजमाणेऽवि अणुमन्ना Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गढ़ बहुताण नेयं / नाई पदम 50 [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / त्रयोदशमो विभाग // 128 // पाहा अहे य कम्मे यायाहम्मे य अत्तकम्मे य / जह वंजणनाणतं प्रत्येणऽवि पुच्छए एवं // 12 // एगट्ठा एगवंजण एगट्ठा नाणवंजणा चेव / नागढ़ एगवं नण नाणट्ठा वंजणानाणा // 130 // दिटुंखीरं खीरं एगढ़ एगवंजणं लोए / एगट्ठ बहुनामं दुद्र पयो पीलु खीरं च // 131 // गोमहिमियाखीरं नाणटुं एगवंजणं नेयं / घडपड-सगडरहाई होइ पिहत्थं पिहनामं / / 132 // याहाकम्माईणं होइ दुरुत्ताइं पढमभंगो उ। याहाहेकम्मति य विइयो सकिंद इव भंगो॥ 133 // श्राहाकम्मतरिया असणाई उ चउरो तइयभंगो। याहाकम्म पडुच्चा नियमा सुन्नो चरिमभंगों // 134 // इंदत्यं जह सदा पुरंदरगाई उ नाइवत्तते / ग्रहकम्म बायहम्मा तह याहं नाइवत्तंते // 135 // याहाकम्मेण अहेकरेति जं हणइ पाणभूयाई / जं तं श्राययमाणो परकम्मं यत्तणो कुणइ // 136 // कस्सत्ति पुच्छियंमी नियमा साहम्मियस्स तं होइ / साहम्मियस्स तम्हा कायव्व परूवणा विहिणा (परूवणं तस्स वोच्छामि) // 137 // नाम ठवणा दविए खेत्ते काले श्र पवयणे लिंगे। दंसण-नाण चरिते अभिग्गहे भावणायो य॥ 138 / नाममि सरिसनामो ठषणाए कट्टकम्ममाईया / दव्वंमि जो उ भवियो साहमि सरीरगं चेव // 131 // खेते समाणदेसी कालंमि समाणकालसंभूयो / पवयणि संधेगयरो लिंगे रयहरणमुहपोत्ती ॥१४०॥दसण नाणे चरणे तिग पण पण तिविह होइ उ चरित्ते / दवाइयो अभिग्गह अहभावणमो अणिबाई // 141 // जावंत देवदत्ता गिहीव अगिहीर तेसि दाहामि / नो कप्पई गिहीणं दाहंति विसेसिये कप्पे // 142 // पासंडीसुवि एवं मीसामीसेसु होइ हु विभासा / समणेसु संजयाण उ विसरिसनामाणवि न कप्पे // 143 // नीसमनीप्ता व कडं ठपणासाहम्मिपम्मि उ विभासा / दवे मयतणुभत्तं न तंतु कुन्छा विवज्जेजा // 144 // पासंडिय-समणाणं गिहिनिग्गंथाण व उ विभासा / जह नामंमि तहेव य खेते काले य नायव्वं // 145 // दस Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपिण्डनिय कि] .. ससिहागा सावग पवयण साहम्मिया न लिङ्गणालिङ्गण उ साहम्मी नो पवरण निह्नगा सव्वे // 146 ॥विसरिस-दसणजुत्ता पवयण-साहम्मिया न दंसणयो। तित्थगरा पत्तेया नो पवयणदंस-साहम्मी॥ 147 ॥नाणचरित्ता एवं नायव्या होते पवरणे गं तु / पवरणयो साहम्मी नाभिग्गह सावगा जइणो // 14 // साहमऽभिग्गहेणं नो पवयण निराह तित्थ पत्तेया / एवं पवयणभावण एत्तो सेमाण वोच्छामि // 141 // लिंगाईहिवि एवं एक्केकेणं तु उवरिमा नेया। जेऽनन्ने उवरिल्ला ते मोत्तु सेसए एवं // 150 // लिङ्गण उ साहम्मी न दंसणे वीसुदंसि जइ निराहा / पत्तेयबुद्ध तित्थंकर। य बीयंमि भंगमि // 151 // लिंगेण उ नाभिग्गह अणभिग्गह वीसुऽभिग्गहा चेव / जइ साबग बीयभंग पत्तेयबुहा य तित्थयरा // 152 // एवं लिङ्गण भावण, दसणनाणे य पदम भंगो उ / जइ सावग वीसुनाणी एवं चिय बिइयभंगोवि // 153 // दमणचरणे पढमो साधग जइणो य बीयभंगो उ / जइणो विसरिसदंसी दंसे य अभिग्गहे वोच्छं // 154 // सावग जइ वीस भिग्गह पढमो बीयो य भावणा चेवं / नाणेणऽवि नेज्जेवं एत्तो चरणेण वोच्छामि // 155 / / जइणो वीसाभिग्गह पढमो विय निराहसावगजशो उ (ईणो)। एवं तु भावणासुगवे वोच्छं दोगहंतिमाणित्तो // 156 // जइणो सावग निरहब पदमे विइए य हुँति भंगे य। केवलनाणे तित्थंकरस्स नो कप्पइ कयं तु // 157|| पत्तेयबुद्ध निराहव उवासए केवलीवि यासज / खइयाइए य भावे पडुच्च भंगे उ जोएजा // 158 // जत्थ उ तइयो भंगो तत्थ न कप्पं तु सेसए भयणा / तित्थंकर केवलिणो जह कप्पं नो य सेसाणं // 151 // किं तं ग्राहाकम्मति पुच्छिए तस्सरूव-कहणत्थं / संभव-पदरिसणत्थं च तस्स असणाइयं भणइ // 160 // सालीमाइ अवडे फलाइ सुठाइ साइमं होइ / तस्स कडनिट्ठियमी सुद्धमसुद्धे य चत्तारि // 261 // कोदवरालगगामे वतही रमणिज भिक्खसज्झाए / खेतपडिलेहसंजय साक्यपुच्छु Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / त्रयोदशमो विमागः ज्जुए कहणा // 162 // जुजइ गणस्स खेतं नवरि गुरूणं तु नत्थि पाउग्गं / सालित्ति कए रुंपण परिभायण निययगेहेसु // 163 // वोलिंता ते व अन्ने वा, अडता तत्थ गोयरं / सुणंति एसणाजुत्ता, बालादिजणसंकहा // 164 // एए ते जेसिमो रद्धो, सालिकूरो घरे घरे। दिनो वा सेसयं देमि, देहि वा विति वा इमं // 165 // थक्के थक्कावडियं, अभत्तए सालिभत्तयं जायं / मज्झ य पइस्स मरणं, दियरस्स य से मया भजा // 166 // चाउलोदगंपि से देहि, सालीयायामकंजियं / किमयंति कयं नाउं, वज्जंतऽन्नं क्यंति वा // 167 // लोणागडोदए एवं, खाणित्तु महुरोदगं / ढक्किएणऽच्छते ताव, जार साहुत्ति यागया // 168 // ककडिय ग्रंबगा वा दाडिम दक्खा य बीयपराई / खाइमऽहिगरण-करणंति साइमं तिगडुगाईयं // 16 // असणाईण चउराहवि ग्रामं जं साहुगहणपाउग्गं / तं निट्ठियं विवाणसु उअक्खडं तू कई होइ // 170 // कंडियतिगुणुपकंडा उ निट्ठिया नेगदुगुणउक्कंडा / निट्ठियकडो उ कूरो याहाकम्मं दुगुणमाहु // 171 // छायपि विवज्जंती केई फलहेउगाइवुत्तस्स / तं तु न जुजइ जम्हा फलंपि कप्पं विइयभंगे // 172 // परपचइया छाया न वि सा रुक्खोव्व वट्टिया कत्ता। नट्ठच्छाए उ दुमे कप्पइ एवं भणंतस्स // 173 // वड्डइ हायइ छाया तत्थिकं पूइयंपि व न कप्पे / न य थाहाय सुविहिए निवत्तई रविच्छायं // 174 // अघणघण-चारिगगणे छाया नट्ठा दिया पुणो होइ / कप्पइ निरायवे नाम पायवे तं विवज्जे(ज्जति) // 175 // तम्हा न एस दोसो संभवई कम्मलक्खणविहूणो / तंपि य हु अइघिणिला वज्जेमाणा श्रदोसिल्ला // 176 // परपक्खो उ गिहत्या समणो समणीउ होइ उ सपक्खो / फासु. कडं रद्धं वा निट्ठियमियरं कडं सव्वं // 177 // तस्त कनिट्ठियंमी अन्नस्स कडंमि निट्ठिए तस्स / चउभंगो इत्थ भवे चरमदुगे होइ कप्पं तु // 17 // चउरो अइकमवइकमा य अइयार तह अणायारो। निहरिसणं चउराहवि Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपिण्डनियुक्तिः-].. [ 53 थाहाकम्मे निमंतणया // 17 // सालीघय-गुसुलगोरस नवेसु वल्लीफलेमु जाएसु / दाणे अहिगमसड्ढे पाहायकए निमंतेइ // 180 // श्राहाकम्मग्गहणे अइकमाईसु वट्टए चउसु / नेउर-हारिगहत्थी चउतिगदुग-एगचलणेणं // 181 // याहाकम्मनिमंतण पडिसुणमाणे अइवमो होइ। पयभेयाइ वइकम गहिए तइएयरो गिलिए // 182 // श्राणाइणो य दोसा गहणे जं भणिय.मह इमे ते उ / ग्राणाभंगऽणवत्था मिच्छत्त विराहणा चेव // 183 // याणं सम्बजिणाणं गिराहतो तं अइक्कमइ लुब्रो। पाणं च अकमंतो कराएसा र णइ सेसं ? // 184 // एक्केण कयमकन्जं करेइ तप्पच्चया पुणो यन्नो / सायाबहुलपरंपर वोच्छे यो संजमतवाणं // 185 // जो जहवायं न कुणइ मि छट्टिी तयो हु को अन्नो ? ! वडढेइ य मिच्छत्तं परस्स संकं जोमाणो // 186 // वड्ढेई तप्पसंगं गेही श्र परस्म अप्पणो चेव / सजियंपि भिन्नदातो न मुयइ निद्धंयसो पन्छा // 187 // खद्धे निद्धे य सया सुत्ते हाणी तिगिच्छणे काया / पडियरगाणवि हाणी कुण्इ किलेसं किलिस्संतो।।१८८॥ जह कम्मं तु प्रकप्पं तच्छिवकं वावि भायणटियं वा / परिहरणं तरसेव य गहियमदोसं च तह भणइ // 18 // भोज्जे गमगाइ य पुच्छा दबकुलदेस(खित्त)भावे य। एव जयंते छलणा दिट्ठता तत्थिमे दोनि ॥११०॥जह वंतं तु अभोज्जं भत्तं जइवि य सुसक्यं यासि। एवमसंजमदमणे योसणिज्जं अभोज्ज तु // 111 // मजार-खइयमंसा मंसासित्थि कुणिमं सुणयवंतं / वन्नाइ अन्नउप्पाइयंपि किं तं भवे भोज्ज ? // 112 // केई भणंति पहिए उट्ठाणे मंसपेसि वोसिरणं / संभारिय परिवेसण बारेइ सुयो करे घेत्तु॥ 113 // अविलाकरहीखीरं ल्हसुण पलंडू सुरा य गोमंसं / वेयसमएवि अमयं किंचि अभोज्जं अपिज्जं च // 11 // वन्नाइजुयावि बली सपललफलसेहरा असुइनत्था / असुइस्स विप्पुसेणवि जह छिकायो अभोजायो // 115 // एमेव उज्झियंमिवि श्राहाकम्ममि Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 54 ] [श्रीमदागमसुधासिन्धुः / त्रयोदशमी विभागः अकयए कप्पे / होइ अभोज भाणे जत्थ व सुद्धेऽवि तं पडियं // 116 // वंतुचारसरिच्छं कम्मं सोउमवि कोवियो भीओ / परिहरइ सावि य दुहा विहियविहीए य परिहरणा // 117 // सालीयोश्रणहत्थं 8 भणई कोवियो देति / कत्तोचउत्ति साली ? वणि जाणइ पुन्छ तं गंतु // 118 // गंतूण श्रावणं सो वाणियगं पुच्छए कयो साली ? / पञ्चंते मगहाए गोबरगामो तहिं वयइ // 11 // कम्मासंकाएँ पहं मोतु कंटाहिसावया अदिसि / छायपि विवज्जयंतो डभइ उराहेण मुच्चाई // 20 // इय अविही-परिहरणा नागाईणं न होइ अाभागी। दबकुलदेसभावे विहिपरिहरणा इमा तत्य // 201 // योयण-समिइममत्तुग-कुम्मालाई उ होंति दवाई / बहुजणमप्पजणं वा कुलं तु देसो सुरट्ठाई // 202 // पायारऽणायर भावे सयं व अन्नेण वाऽवि दावणया / एएसि तु पयाणं चउपयतिपया व भरणा उ // 203 // अणुचियदेसं द(स)व्वं कुलमप्पं थायरो य तो पुच्छा / बहुएवि नत्थि पुच्छा सदेसदविए अभावेऽवि // 204 // तुज्झट्ठाए कयमिण-मन्नोऽन्नमवेक्खए य सविलक्खं / वज्जति गाढरट्टा का मे तत्तित्ति वा गिराहे // 205 // गूढायारा न करेंति श्रायरं पुच्छियावि न कहेंति / थोवंति व नो पुट्टा तं च असुद्धं कहं तत्थ ? // 206 // श्राहाकम्मपरिणयों फासुयभोईवि बंधयो होइ / सुद्धं गवेसमाणो आहाफम्मेवि सो सुद्धो // 207 // संघुद्दिटुं सोउं एइ दुयं कोइ भोइए पत्तो / दिन्नंति देहि मज्झतिगाउ साउं तो लग्गो॥ 208 // मासियपारणगट्ठा गमणं श्रासन्नगामगे खमगे / सही पायसकरणं कयाइ अज्जेजिही खमयो // 201 // खल्लगमलग-लेच्छारियाणि डिंभग-निभच्छ रुंटणया / हंदि समणत्ति पायस घयगुलजुय-जावणट्ठाए // 210 // एगंतमवक्कमणं जइ साहू इज होज तिनोमि / तणुकोट्ठमि अमुच्छा भुत्तंमि य केवलं नाणं // 211 // चंदोदयं च सूरोदयं च रन्नो उ दोनि उजाणा / तेसिं विवरि Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [55 यगमणे याणाकोवों तो दंडो // 212 // सूरोदयं गच्छमहं पभाए, चंद्रोदयं जंतु तणाइहारा / दुहा खी पच्चुरसंतिकाउं, रायावि चंदोदयमेव गच्छे // 213 // पत्तलदुम-सालगया दच्छामु निरंगण-त्तिदुञ्चित्ता / उजाणपालएहिं गहिया य हया य बद्धा य // 214 // सहस पइट्टा दिट्ठा इयरेहि निवंगणत्ति तो बद्धा / नितस्स य अवरगहे दंसणमुभयो वहविसग्गा // 215 // जह ते दंसणकंखी अपूरिइच्छा विणासिया रराणा / दिट्ठोऽवियरे मुक्का एमेव इहं समायारो // 217 // ग्राहाकम्मं भुजइ न पडिक्कमए य तस्स ठाणस्स / एमेव अडइ बोडो लुकविलुको जह कबोडो // 217 // पाहाकम्मदारं भणियमिपाणिं पुरा समुद्दिटुं। उद्देसियंति वोच्छं समामयो त दुहा होइ // 218 // योहण विभागेण य योहे टप्पं तु बारस विभागे। उद्दिष्ट कडे कम्मे एक्केकि चउकयो भेयो // 211 // जीवामु कहवि श्रोमे निययं भिखावि इवई देमो / हंदि हु नत्थि दिन्नं भुज्जइ अकयं न य फनेई // 220 // सा उ अविसेसियं चिय मियंमि भत्तंमि तंडुले छुहइ / पासंडीण गिहीण व जो एहिइ तरस भिक्खट्टा // 221 // उमत्थोछुद्देसं कहं वियाणाइ ? चोइए भगइ। उपउत्तो गुरू एवं गिहाथसदाइचिट्टाए॥२२२|| दिनाउ ताउ पंचवि रेहाउ करेइ देइ व गणंति / देहि इयो मा य इयो यवणेह य एत्तिया भिक्खा // 223 // सदाइएसु साहू मुच्छं न करेज गोयरगयो य। एसणजुत्तो होजा गोणीवच्छो गवत्तिय // 224 // ऊसव मंडणवग्गा न पाणियं वच्छए नवि य चारि / वणियागम अवररहे वच्छगरडणं खरंटणया // 225 // पंचविह-विसयसोक्खवखणी बहू समहियं गिहं तं तु / न गणेइ गोणिवच्छो मुच्छिय गढियो गामि // 226 // गमणागमणुवखेवे भासिय सोयाइइंदियाउत्तो। एमणमणेसणं वा तह जाणइ तम्मणो समणो // 227 // महईए संखडीए उम्परियं कूरवंजणाईयं / पउरं दट्टण गिही भणइ इमं देहि पुराणट्ठा // 228 // तत्थ विभागुबे सियमेवं संभवइ पुध्वमुद्दिट्ट। सीसगलहि Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदश्मो विमागः यहाए तं चेव विभागयो भणइ // 32 // (भा०) उद्देसियं समुद्देसियं च श्राएसियं समाएसं / एवं कडे य कम्मे एक्केकि चउकयो भेश्रो // 221 // जावंतियमुद्देसं पासंडीणं भवे समुद्देसं। समणाणं श्राएसं निग्गंथाणं समाएसं // 230 // छिन्नमछिन्नं दुविहं दब्वे खेत्ते य काल भावे य / निष्फाइयनिष्फन्नं नायव्वं जं जहिं कमइ // 231 // भतुवरियं खलु संखडीऍ तदिवसमन्नदिवसे वा / अंतो बहिं च सव्वं सव्वदिणं देहि अच्छिन्नं // 232 // देहि इमं मा सेसं अंतो बाहिरग्गयं व एगपरं / जाव अमुगत्तिवेला अमुगं वेलं च प्रारम्भ // 233 // दवाईछिन्नपि हु जइ भणई थारयोऽवि मा देह / तो कप्पइ छिन्नपि हु अच्छिन्नकडं परिहरंति // 234 // यमुगाणंति व दिजउ अमुकाणं मत्ति एत्थ उ विभासा / जत्थ जईण विसिट्टो निद्दे सो तं परिहरंति // 235 // संदिस्संतं जो सुगइ कप्पए तस्स सेसए ठवणा / संकलिय साहणं वा करेंति असुए इमा मेरा // 236 // मा एयं देहि इमं पुढे सिट्ठमि तं परिहरति / जं दिन्नं तं दिन्नं मा संपइ देहि गेराहंति // 237 // रसभायणहेउं मा मा कुच्छिहिई सुहं व दाहामि / दहिमाई यायतं करेइ कूरं कडं एयं // 238 // मा काहंति अवरणं परिकट्टलियं व दिजइ सुहं तु / वियडेण फाणिएण व निद्रेण समं तु वति // 23 // एमेव य कम्ममिवि उराहवणे नवरि तत्थ नाणत्तं / ताविय-विलीणएणं मोयग-चुनीपुणकरणं // 240 // अमुगंति पुणो रद्धं दाहमकप्पं तमारयो कप्पं / खेत्ते अंतो बाहिं काले सुइव्वं परेव्वं वा // 241 // जं जह व कयं दाहं तं कप्पइ पारो तहा अकयं / कयपाकमणिट्ठत्ति ठियंपि जावंत्तियं मोत्तुं // 242 // छक्कायनिरणुकंपा जिणपवयणबाहिरा बहिफोडा। एवं वयंति फोडा-लुकविलुका जहकबोडा // (10) पूईकम्मं दुविहं दब्वे भावे य होइ नायव्वं / दवंमि छगणधम्मिय भावंमि य बायरं सुहुमं // 243 // गंधाइ-गुणसमिद्धं जं दवं असुइगंध-दव्वजुयं / पूइत्ति परिहरिजइ तं जाणसु Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपिण्डनियुक्तिः ] ....... [ 57 दव्वपूइत्ति // 244 // गोहिनिउत्तो धम्मी सहाएँ अासन्न-गोष्ठिभत्ताए। समियसुर-वल्लमीसं अजिन्न सन्ना महिसिपोहो // 245 // संजाय-लित्तभत्ते गोटिग-गंधोत्ति व(चु)लवणियायो / उक्खणिय अन्नछगणेण लिंपणं दवपूई उऊ // 246 // उग्गमकोडि-अवयवमित्तेणवि मीसियं सुसुद्धपि / सुद्धंपि कुणइ चरणं पूइं तं भावयो पूई // 247 // श्राहाकम्मुद्दसिय मीसं तह बायरा य पाहुडिया। पूई अज्मोयरो उग्गमकोडी भवे एसा // 248 // वायर सुहुमं भावे उ पूइयं सुहुममुवरि वोच्छामि / उवगरण भत्तपाणे दुविहं पुण बायरं पुई // 246 // चुल्लक्खलिया डोए दव्वीछूढे य मीसगं पूई / डाए लोणे हिंगू संकामण फोडणे धूमे // 250 // सिझतस्सुवयारं दिजं. तस्स व करेइ जं दत्वं / तं उपकरणं चुल्ली उवखा दब्बी य डोयाई // 25 // चुल्लुक्खा कम्माई बाइमभंगेसु तीसवि अकप्पं / पडिकुटुं तत्थत्थं अन्नत्थगयं अणुनायं / / 252 / / कम्मिय-कद्दममिस्सा चुल्ली उक्खा य फड्डगजुया उ। उवगरणपइंग्यं डोए दंडे व एगयरे // 253 // दबीछूटेत्ति जं वुत्तं, कम्मदबीएँ जं दए। कामं घट्टिय सुद्धं तु, घट्टए(घट्ट) थाहारपूइयं // 254 // अत्तट्टिय यायाणे डायं लोणं च कम्म हिंगु वा। तं भत्तपाणपूई फोडण अन्न व जं छुहइ // 255 // संकामेउं कम्मं सिद्धं जंकिंचि तत्थ छूटं वा / यंगारधूमि थाली वेपण हेट्ठा मुणीहि (कम्मियवेसण अंगारथाली हेटा मुही) इमो / / 256 // इंधणधूमे गंधे अवयवमाईहिं सुहुमपूई उ / सुदरमेयं पूई चोयग भरि ए गुरू भणइ // 257 // इंधनधूमेगंधेअवयवमाई न पूइयं होइ / जेसि तु एस पूई सोही नवि विजए तेसि // 258 // इंधनगणीअवयव धूमो बप्फो य अन्नगंधो य / सव्वं फुसंति लोयं भन्नइ सव्वं तो पूई // 251 // नणु सुहूमपूइयस्सा पुबुद्धिट्टस्सऽसंभवो एवं / इंधणधूमाईहिं तम्हा पूइत्ति सिद्धमिणं // 260 // चोयग ! इंधणमाईहिं चउहिवी सुहुमपू. इयं होइ / पनवणामित्तमियं परिहरणा नत्थि एयस्स // 261 // सज्ममसम Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : त्रयोदशमी विभागः कज्जं समं साहिजए न उ असझं / जो उ असझ साहइ किलिस्सइ न तं च साहेई // 262 // श्राहाकम्मिय-भायणयकोडण काय(उ) अकयए कप्पे। गहियं तु सुहुमपूई धोवणमाईहिं परिहरणा // 263 // धोयंपि निरावयवं न होइ अाहच्च कम्मगहणंमि / न य अहव्वा उ गुणा भन्नई सुद्धी को एवं ? // 264 // लोएवि असुइगंधा विपरिणया दूरयो न दूसंति / नय मारंति परिणया दूरगया अवि विसावयवा // 265 // सेसेहि उ दव्वेहिं जावइयं फुसइ तत्तिय पूई / लेवेहि तिहि उ पूई कप्पइ कप्पे कए तिगुणे // 266 // इंधणमाई मोतु चउरो सेसाणि होति दव्वाई / तेसिं पुण परिमाणं तयप्पमाणाउ प्रारम्भ // 267 // पढमदिवमंमि कम्मं तिन्नि उ दिवसाणि पूइयं होइ / पुईसु तिसु न कप्पइ कम्पइ तइयो जया कप्पो // 268 // समणक. डाहाकम्मं समणाणं जं कडेण मीसं तु / याहार उवहि वसही सव्वं तं पूइयं होइ // 261 // सडस्त थेवदिवसेसु संखडी ग्रासि संघभत्तं वा / पुच्छित्तु निउणपुच्छ संलागयो वगारीणं // 270 // मीसजायं जावंतियं च पासंडिसाहुमीसं च / सहसंतरं न कप्पइ कप्पइ कप्पे कए तिगुणे // 271 // दुग्गासे तं समइन्छिउं व यद्धाणसीसए जत्ता / सड्ढी बहुभिक्खयरे मीमजायं करे कोई // 33 // (भा०) जावंतहा सिद्धं नेयं देह कामियं जइणं। बहुसु व अपहुप्पंते भणाइ अन्नपि रंधेह // 272 // यत्तट्ठा रंधते पासं. डीणंपि बिइपयो भणइ / निग्गंथा तइयो अत्तट्ठाएऽवि रंधते (सो होइ) // 273 // विसघाइय-पिसियासी मरइ तमन्नोवि खाइउं मरइ / इय पारंपरमरणे अणुमरइ सहस्सप्तो जाय // 274 // एवं मीसजायं चरणप्पं हणइ साहु सुविसुद्धं / तम्हा तं नो कप्पइ पुरिस-सहस्संतरगयपि // 275 // निच्छो. डिए करीसेण वावि उब्वट्टिए तो कप्पा / सुक्कावित्ता गिराहइ अन्न चउत्थे असुक्केऽवि // 276 // सट्ठाणपरट्ठाणो दुविहं ठवियं तु होइ नायब्छ / खीराइ परंपरए हत्थगय घरंतरं जाव // 277 // चुल्ली अवचुल्लो वा ठाणसठाणं तु Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपिनियु]ि ... .. [ 8 भायणं पिढरे / सट्ठाणहाणंमि य भायणठाणे य चउभंगो॥ 34 // (भा०) छब्बग-वारगमाई होइ परट्ठाणमो वऽणेगविहं / सट्ठाणे पिढरे छब्बगे य एमेव दूरे य // 278 // एक्केवकं तं दुविहं अणंतर परंपरे य नायव्वं / यविकारि कयं दव्वं तं चेव अणंतरं होइ // 271 // उच्छुक्खीराईयं विगारि विगारि घयगुलाईयं / परियावजणदोसा श्रोयणदहिमाइयं वावि // 280 // उभट्ठपरिन्नायं अन्नं लद्धं पयोपणे घेथी / रिणभीया व अंगारा दहित्ति दाहं सुए वणा // 281 // नवणीय मंथुतकं व जाव अत्तट्ठिया व गिराहति / देसूणा जाव घयं कुसणंपि य जत्तियं कालं // 282 // रम ककवपिंडगुला मच्छंडिय-खंडसकराणं च / होइ परंपरठवणा अन्नत्य व जुज्जए जत्थ // 283 // भिवखागाही कुणाइ विइयो उ दोसु उयोगं / तेण परं उविखत्ता पाहुडिया होइ ठवणा उ // 284 // पाहुडि. यावि हु दुविहा बायर सुहुमा य होइ नायब्बा / योसकणमुस्सकण कबट्टीए समोलरणे // 285 // कन्तामि ताव पेलु तो ते दाहामि पुत्त ! मा रोव / तं जइ सुणेइ साह न गच्छए तत्थ ग्रारंभो // 35 // अनट उठ्ठिया वा तुभवि दमित्ति, किंपि परिहरति / किह दाणि न उद्विहिसो ? साहुपभावेण लभामो // 36 // (भा०) मा ताव झंख पुत्तय ! परिवाडीए इहेहि सो साहू / एयस्स उठ्ठिया ते दाहं सोउं विवज्जेइ // 286 // अहवा-अंगुलियाए घेत्तु कड्ड कप्पट्टयो घरं जत्तो। किति कहिए न गच्छइ पाहुडिया एस सुहुमा उ॥२८७॥ पुत्तस्स विवाहदिणं योसरणे यइच्छिए मुणिय सड्डी / योसवकतोसरणे संखडि-पाहेणग दवट्ठा // 288 // अप्पत्तमि य ठवियं ओसरणे होहि. इत्ति उस्सकणं / तं पागडमियरं वा करेइ उज्जू यणंउजू वा // 28 // मंगलहेडं पुन्नट्ठया व योसक्कियं दुहा पगये। उस्सक्कियपि किंति य पु? सिट्टे विवज्जति // 210 // पाहुडिभत्तं भुजइ न पडिकमए अ तस्स ठाणस्त / एमेव अडइ बोडो लुकविलुको जह कवोडो // 211 // लोयविरलुत्तमंगं तवोकिसं Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासन्धुः // त्रये.दशमो विभागः जलखउरियसरीरं / जुगमेत्ततर-दि&ि अतुरियचवलं सगिहमितं // 212 // दळूण य अणगारं सड्डी संवेगमोगमा काई / विपुलज्नपाण घेत्तूण निग्गया निग्गयो सोऽवि // 213 // नीयदुवारंमि घरे न सुझई एसणत्तिकाऊणं / नीहमिए अगारी अच्छइ विलिया वऽगहिएणं // 21 // चरणकरणालसंमि य अन्नंमि य यागए गहिय पुच्छा। इहलोगं परलोगं कहेइ चइउं इमं लोगं / / 215 // नीयदुवारंमि घरे भिक्खं निच्छंति एसणासमिया / जं पुच्छसि मज्म कहं कप्पइ ? लिंगोवजीवीऽहं // 216 // साहुगुणेसणकहणं श्राउट्टा तमि तिप्पइ तहेव / कुक्कुडि चरंति एए वयं तु चिनम्बया बीयो // 217 // पायोकरणं दुविहं पागडकरणं पगातकरणं च / पागड संकामग कुड्डदारपार य छिन्ने व // 298 // रयणपईवे जोई न कप्पइ पगासणा सुविहिवाणं / अतट्टि पारिभुत्तं कप्पइ कप्पं यकाऊणं // 211 // संचारिमा य चुल्ली बहिं व चुल्ली पुरा कया तेसि / तहि रंधति कयाई उवही पूई य पायो य // 30 // नेच्छह तमिसंमि तयो बाहिरचुली' साहु सिद्धराणे / इस सोउं परिहरए पुढे सिट्टामिवि तहेव // 301 // मच्छियपग्मा अंतो बाहि पवायं पगासमासन्नं / इस अत्तट्ठियगहणं पागडकरणे विभासेयं // 302 // कुस्स कुणइ छिड्ड दारं वड्ढेइ कुणइ अन्नं वा / अवणेइ छायणं वा ठगवइ रयणं व दिपंतं // 303 // जोइ पइवं कुणइ व तहेव कहणं तु पुढे दु? वा / अत्तट्ठिए उ गहणं जोइ पईवे उ वजित्ता // 304 // पागड-पयासकरणे कयंमि सहसा व अहवऽणाभोगा / गहियं विगिचिऊणं गेराहइ अन्नं अकयकप्पे // 305 // कीयगडंपि य दुविहं दव्वे भावे य दुविहमेक्केक्कं / पायकियं च परकियं परदव्वं तिविह चित्ताई / / 306 // श्रायकियं पुण दुविहं दवे भावे य दव चुन्नाई। भावंमि परस्सष्टा अहवावी अप्पणा चेव // 307aa निम्मल-गंधगुलिया-वनय पोत्ताइ आयक्य-दव्वे / गेलन्ने उड्डाहो पउणे चड्डुगारि अहिगरणं // 308 // वइयाइ मंखमाई परभावकयं Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपिण्डनियुक्तिः ] . [ 61 तु संजयटाए / उप्पायणा निमंतण कीडगडं अभिहडे ठविए // 30 // सागारि मंख छंदण पडिसेहो पुच्छ बहु गए वासे / कयरिं दिसिं गमिस्सह ? यमुई तहिं संथां कुरइ // 310 // दिज्जते पडिसेहो कज्जे घेत्थं निमंतणं जइणं / पुरगय यागएसु संछुहई एगगेहमि // 311 // धम्मकह वाय खमणं निमित्त पायावणे सुयट्ठाणे / जाई कुल गण कम्मे सिप्पम्मि य भावकीयं तु // 312 // धम्मकहाअक्खित्ते धम्मकहाउट्ठियाण वा गिरहे / कडांति साहयो चिय तुमं व कहि ? पुच्छिए तुसिणी // 313 // किंवा कहिज छारा दगसोयरिया व अवज्गारस्था। किं छगलगगल-बलया मुंडकुडुबी व कि कहए ? // 314 // एमेव वाइ खमए निमित्त-मायावगम्मि य विभासा / सुयठाणं गणिमाई ग्रहवा वाणायरियमाई // 315 // पामिच्वंपि य दुविहं लोइय लोगुत्तरं समासेण / लोईय सझिलगाई लोगुत्तर वस्थमाईसु // 316 // सुययभिगमनाय विही बहि पुच्छा एग जीवइ ससा ते / पविसण पाग निवारण उच्छिदण तेल्ल जइदाणं // 317 // अपरिमिय. नेहवुड्डी दासत्तं सो य यागयो पुच्छा / दासत्तकहण मा रुय अचिरा मोएमि एत्ताह // 318 // भिवख दगसमारंभे कहणाउट्टो कहिं ति वसहित्ति / संवेया श्राहरणं विसज कहणा कइवया उ॥ 311 // एए चेव य दोसा सविसेसयरा उ वत्थपाएसु। लोइयपामिच्चेसु लोगुत्तरिया इमे अन्ने // 320 // मइलिय फालिय खोसिय हियन? वावि अन्न मग्गंते / अवि सुंदरेवि दिण्णे दुकररोई कलहमाई // 321 // उच्चत्ताए दाणं दुल्लभ खग्गूड अलम पामिच्चे / तंपि य गुरुस्म पासे ठवेइ सो देइ मा कलहो // 322 // परियट्टियपि दुहिं लोइय लोगुत्तरं समासेणं / एक्केक्कंपि श्र दुविहं तइब्वे अन्नदव्वे य // 323 // अवरोप्पर-सज्झिलगा संजुत्ता दोवि अन्नमन्नेणं / पोग्गलिय संजयट्ठा परियट्टण संखडे बोही // 324 / / अणुकंप भगिणिगेहे दरिद परियट्टणा य कूरस्स / पुच्छा कोवकूरे मच्छर पाइवख Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 62 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमी विभागः पंतावे // 325 // इयरोऽविय पंतावे निसि योसवियाण तेसि दिक्खा य / तम् उ न घेत्तवं कइ वा जे योसमेहिंति ? // 326 // ऊणहिय दुबलं वा खर गुरु छिन्नं मइलं असीयसहं / दुबन्नं वा नाउं विपरिणमे अन्नभणियो वा // 327 // एगस्स माणजुत्तं न उ बिइए एवमाइ कज्जेसु / गुरुपामूले ठवणं सो दलयइ अन्नहा कलहो // 328 // पाइन्नमणाइन्नं निसीहाभिहडं च नोनिसीहं च। निसिहाभिहडं ठप्पं वोच्छामी नोनिसीहं तु // 321 // सग्गाम परग्गामे सदेस परदेसमेव बोद्धव्वं / दुविहं तु परग्गामे जलथल नावोडु जंघाए // 330 // जंवा बाह तरीइ व जले थले खंध पारखुरनिबद्धा / संजमाय-विराहम तहियं पुण संजमे का // 331 // अत्याहगाहपंकाम-गरोहारा जले अवाया उ। कंटाहि-तेणसावय थलंमिए ए भवे दोसा // 332 // सग्गामेऽवि य दुविहं घरंतरं नोगरंतरं चेव / तिघरंतरा परेणं घरंतरं तं तु नायव्वं // 333 // नोघरंतरऽयोगविहं वा(पा)डगसाही-निवेसणगिहेसु / काये खंधे मिम्मय कसेण व तं तु भाणेज्जा // 334 // सुन्नं व श्रसइ कालो पगयं व पहेणगं व पासुत्ता / इय एइ काइ घेत्तुं दीवेइ य कारणं तं तु / / 335 // एमेव कमो नियमा निसीहाभिहडेऽवि होइ नायब्वो। यविइअदायगभावं निसीहिग्रं तं तु नायव्यं // 336 // अइदुर. जलंतरिया कम्मासंकाएँ मा न घेच्छति / पाणंति संखडीयो सही सट्टी व पच्छन्नं // 337 // निग्गम देउल दाणं दियाइ सन्नाइ निग्गए दाणं / सिट्ठमि सेसगमणं दितऽन्ने वारयंतऽन्ने // 338 // मुंजण अजीरपुरिमड्ढ. गाइ अच्छंति भुत्तसेसं वा। बागमनिसीहिगाई न भुजई सावगासंका // 336 // उक्खिनं निविखप्पइ अासगयं मल्लगंमि पास्गए। खामित्तु गया सड्डा तेऽवि य सुद्धा असदभावा // 340 // लद्धं पहेणगं मे अमुगत्थगयाएँ संखडीए वा / वंदणगट्ठपविठ्ठा देइ तयं पट्ठिय नियत्ता // 341 // नीयं पहेणगं मे नियगाणं निच्छियं व तं तेहिं / सागारि सयझियं वा पडिकुट्ठा Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपिण्डनियुक्तिः [ 63 संखडे रुट्टा // 342 // एयं तु अणाइन्नं दुविहंपि य श्राहडं समक्खायं / श्राइन्नपि य दुविहं देसे तह देसदेसे य // 343 // हत्थसयं खलु देसो यारेणं होइ देसदेसो य / ग्राइन्नंमि उ तिगिहा ते चिय उवयोगपुवागा // 344 // परिवेसण-पंतीए दूरपवेसो य घंघसालगिहे / हत्थसया याइन्नं गहणं परयो उ पडिकुटुं॥ 345 // (होइ पुण देसदेसो अंतो गिह सा न दीसए जत्थ / उवखेवाई तत्थ उ सोसाई देइ उवयोगं // प्र०) उक्कोस मभिम जहन्नगं च तिविहं तु होइ पाइन्न / करपरियत्त जहन्नं सयरक्कोसं मज्झिमं सेसं // 346 // पिहिउभिन्न-कवाडे फासुय अप्फासुए य बोद्धव्वे / यफासु पुढविमाई फासुय छगणाइददरए // 347 // उन्भिन्ने छकाया दाणे कयविकए य अहिगरणं / ते चेव कवामिवि सविसेसा जंतमाईसु / / 348 // सच्चित्त-पुढविलित्तं लेलु सिलं वाऽवि दाउमोलित्तं / सचित्तपुढवि. लेको चिरंपि उदगं यचिरलिते॥३४१॥ एवं तु पुवलित्ते काया उल्लिंपणेऽवि ते चेव / तिम्मेउं उवलिंपइ जउमुद्दवावि तावे // 350 // जह चेव पुबलिते कारा दाउं पुणोऽवि तह चेव / उबलिप्पंते काया मुइयंगाइ नवरि बढे // 351 // परस्स तं देइ सएव गेहे, तेल्लं व लोणं व घयं गुलं वा। उम्घाडिए तंमि करे यवस्सं, स विक्कयं तेण किणाइ यन्नं // 352 // दाणे कयविकए वा होई अहिगरण-मजयभावस्स / निवयंति जे य तहियं जीवा मुइयंगमूमाई // 353 // जहेव कुभाइसु पुवलित्ते, उभिजमाणे य हवंति काया / योलिंपमाणेवि तहा तहेव, काया कवाडंमि विभासियव्वा // 354 // घरकोइल-संचारा यावत्तण पीदगाइ हे?वरिं / निते ठिए य यंतो डिभाईपेल्लणे दोसा // 355 // घेप्पइ अकुचियागंमि कवाडे पइदिणे परिवहंते / अजऊमुद्दिय गंठी परिभुजइ दहरो जो य // 356 / मालोहडंपि दुविहं जहन्न-मुको मगं च बोधव्यं / अग्गतलेहि जहन्नं तबिवरीयं तु उक्कोसं // 357 // भिक्खू जहन्नगंमी गेरुप उक्कोसगंमि दिटुंतो। अहिडसण माल Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64 ] [ भीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः पडणे य एवमाई दोसा // 358 // मालाभिमुहं दवण अगारिं निग्गयो तो साहू / तचन्नेिय भागमणं पुच्छा य अदिन्नदाणत्ति // 351 // मालंमि कुडे मोयग सुगंध अहि पविसणं करे डका / अन्नदिण साहु अागम निद्दय कहणा य संबोही / / 360 // श्रासंदि-पीढमंचक-जंतोडुखल पडंत उभयवहे / वोच्छेय-पोसाई उड्डाह-मनाणिवायो य / 361 // एमेव य उकोसे वारण निस्सेरिए गुम्विणीपडणं / गम्भिस्थि कुच्छिफोडा पुरयो मरणं कहण बोही // 362 // उड्डमहे तिरियपि य यहवा मालोहडं भवे तिविहं / उड्डे य महोयरणं भणियं कुंभाइसू उभ्यं // 363 // ददर-सिल-सोवाणे पुव्वारूढे श्रणुच मुक्खित्ते / मालोहडं न होई सेसं मालोहडं होइ // 36 // तिरियायय उज्जुगएण गिराहई जं करेण पासंतो। एयमणुच्चुविखत्तं उच्चुविखत्तं भवे सेसं // 365 // अच्छिज्जपि य तिविहं पभू य सामी य तेणए चेव / अच्छिज्ज पडिकुटुं समणाण न कप्पए चेत्तु / / 366 // गोवालए य भयएऽखरए पुत्ते य धूय सुराहाए / अचियत्त-संखडाई केइ परोसं जहा गोको / / 367 // गोवपयो अच्छेनु दिन्नं तु जइस्स भइदिणे पहुणा / पयभाणूणं दठ्ठ खिंसइ भोई रुवे चंडा // 368 // पडियरण-पोसेणं भावं नाउं जस्स थालाो / तन्निबंधा गहियं हदि स मुक्कोसि मा बीयं // 361 // नानिन्विट्ठल भइ दासीवि न भुजए रिते भत्ता। दोन्नेगयर पत्रोसं जं काही अंतरायं च // 370 // सामी चारभडा वा संजय दट्ठ गा तेसि अट्ठाए। कलुणाणं अच्छेज्जं साहूण न कप्पए घेत्तुं // 371 // याहारोवहि-माई जइअट्ठाए उ कोई अच्छिदे / संखडी असंखडीए तं गिराहते इमे दोसा // 372 // श्रचियत्तमंतरायं तेनाहड एगऽोग-बोच्छेयो / निच्छुभणाई दोसा तस्स अलंभे (वियालऽलंभे) य जं पावे // 373 // तेणो व संजयट्ठा कलुणाणं अप्पणो व अट्ठाए / वोच्छेय पयोसं वा न कप्पई कप्पऽणुनायं // 474 // संजयभद्दा तेणा श्रायंती वा असंथरे जइणं / जइ देति न Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीपिण्डनियुक्तिः ] [65 घेतवं निच्छुभ वोच्छेउ मा होजा // 375 // यसत्तुयदिट्ठतो (तेणगरुएण घेतु) समणुनाया व घेत्तुणं (गिहीवि) पच्छा / देति तयं तेसिं चिय समणुनाय व मुंजंति // 376 // (घ यसत्तुगदिट्ठतो अंबापाए य तप्पिया पियरों। काममकामे धम्मो णियोइए अम्हवि कयाई // प्र. 4) अणिसिटुं पडिकुट्ट अणुनायं कप्पए सुविहियाणं / लड्डुग चोल्लग जंते संखडि खीरावणाईसु // 377 // बत्तीसा सामन्ने ते कहिँ राहाउं गयत्ति इत्र वुत्ते / परसंतिएण पुन्नं न तरसि काउंति पञ्चाह // 378 // अविय हु बत्तीसाए दिन्नेहिं तवेगमोयगो न भवे / अप्पवयं बहुयायं जइ जाणसि देहि तो मझ // 371 // लाभिय नेतो पुट्ठो किं लद्धं ? नत्थि पेच्छिमो दाए। इयरोऽव याह नाहं देमित्ति सहोढ चोरत्ति // 380 // गिराहण कढण ववहार पच्छकडुड्डाह पुच्छ निविसए / अपहुँमि भवे दोसा पहुँमि दिन्ने तयो गहणं // 381 // एमेव य जंतंमिवि संखडि खीरे य श्रावणाईसु / सामन्नं पडिकुटुं कप्पइ घेत्तुं अणुनायं // 382 // चुल्लत्ति दारमहुणा बहुबत्तव्यंति तं कयं पच्छा / वन्नेइ गुरू सो पुण सामियहत्थीण विन्ने यो // 383 // छिन्नमछिनो दुविहो होइ अछिन्नो निसिट्ठ अणिसिट्टो। छिन्नं मे चुलगंमी कप्पइ घेनु निसिट्ठामि // 384 // चिनो दिट्ठमदिट्ठो जो य निसिट्ठो भवे छिन्नो य / सो कप्पइ इयरो उण अदिदिठो वऽणुनायो // 385 // यणिसिट्ठमणुनायं कप्पइ घेत्तु तहेव अट्टि / जड्डस्स य अनिसिटुं न कप्पई कप्पइ अदिटुं // 386 / निवपिंडो गयभत्तं गहणाई यंतराइयमदिन्न / डुबस्त संतिएवि हु अभिक्ख वसहीऍ(य) फेडणया // 387 // अझोयरयो तिविहो जावंतिय सघरमीसपासंडे / मूलंमि य पुत्रको योपरई तिराह अट्ठाए // 388 // तंडुलजलायाणे पुप्फफले सागवेपणे लोणे। परिमाणे नाणत्तं अज्झोयरमीसजाए य // 381 // जावंतिए विसोही सघरपासंडि-मीसए पूई / छिन्ने विसोही दिन्नंमि कप्पइ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 66 [ श्रीमदागमसुधासिन्धु त्रयोदशमो विभागः न कप्पई सेसं // 31 // छिन्नंमि तयो उक्कट्ठियमि कप्पड पिहीकए सेसं / थाहावणाए दिन्नं च तत्तियं कप्पए सेमं // 311 // एसो सोलसभेयो, दुहा कीरई उग्गमो / एगो विसोहिकोडी, अविसोही उ चावरा // 312 // श्राहाकम्मुद्दे सिय चरमतिगं पूइ मीसजाए य / बायरसाहुडियावि य अझोयरए य चरिमदुगं // 313 // उग्गमकोडी अवयव लेवालेवे य अकयए कप्पे / कंजिय-यायानग-चाउलोय-संसठ्ठ-पूईयो // 364 // सुक्केणऽवि जं छिपकं तु असुइणा धोवए जहा लोए / इह सुक्केणऽवि छिवकं धोवइ कमेण भाणं तु॥ 37 // लेवालेवत्ति जं वुत्तं, जैपि दव्यमलेवडं / तंपि घेत्तु ण कम्पति, नक्काइ किमु लेवडं ? // 38 // याहाय जं कीरइ तं तु कम्म, वज्जेहिही योयणमेगमेव / सोवीर यायामग चाउलो वा, कम्मति तो तग्गहणं करेंति // 31 // (भा०) सेसा विसोहिकोडी भत्तं पाणं विगिंच जहसत्ति / श्रणलक्खिय मीसदवे सवश्वेिगेऽवयव सुद्धो // 365 // दव्वाइयो विवेगो दवे जं दब जं जहिं खेत्ते / काले अकालहीणं अनदो जं पस्सई भावे // 316 // सुकोलसरिसपाए अप्सरिसपाए य एत्य चउभंगो। तुल्ले तुल्लनिवाए तत्थ दुवे दोन्नतुल्ला उ॥ 317 // सुक्के सुरकं पव्यिं विगिंचिउं होइ तं सुहं पढमो / बीयंमि दवं चोटु गालंति दवं करं दाउं // 398 // तइयंमि करं छोडं उल्लिंचइ श्रोयणाइ जं तरह। दुल्लहदव्वं चरिमे तत्तियमित्तं विगिचंति // 311 // संयरे सधमुझंति उभंगो असंथरे / असतो सुझई जे(ते), मायावी जेसु झई // 400 // कोडीकरणं दुविहं उग्गमकोडी विसोहिकोडी य / उग्गमकोडी छक्कं विसोहिकोडी अणेगविहा // 401 // नव चेव अढारसगं सत्तावीसा तहेव चउपना / नउई दो चेव सया उ सत्तरी होइ कोडीणं // 402 // सोलस उग्गमदोसे गिहिणो उ समुट्ठिए वियाणाहि / उप्पायणाएँ दोसे साहूउ समुट्ठिए जाण // 403 // णामं ठवणा दविए भावे उपायणा मुणेयबा / Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ 67 दबंमि होइ तिविहा भावंमि उ सोलसपया उ॥ 404 // श्रासूयमाइएहिं वाल चेय-तुरंग बीयमाईहिं / सुययासदुमाईणं उप्पायणया उ सचित्ता // 405 // कणग-रयपाइयाणं जहे?-धाउविहिया उ अचित्ता / मीसा उ सभंडाणं दुपयाकया उ उप्पत्ती // 406 // भावे पसत्थ इयरो कोहाउप्पायणा उ अपसत्था / कोहाइजुया धायाइणं च नाणाइ उ पसत्था // 407 / / धाई दुइ निमित्ते ग्राजीव वणीमगे तिगिच्छा य / कोहे माणे माया लोभे य हवंति दस एए // 408 // पुब्बि-पच्छा-संथव विजा मते य चुन्न जोगे य / उप्पावणाइ दोसा सोलसमे मूलकम्मे य॥ 401 // खीरे य मजणे मंडणे य कीलावणंकधाई य / एक्कावि य दुविहा करणे कारावणे चेव // 410 // धारेइ धीयए वा धयंति वा तमिति तेण धाई उ / जहविहां यासि पुरा खीराई पंच धाईयो // 411 / / खीराहारो रोवइ मन्झ कयासाय देहि णं पिज्जे / पच्छा व मझ दाही प्रलं व भुजो व एहामि // 412 // मइमं अरोगे दीहाउयो य होइ अविमाणियो बालो। दुल्लभयं खु सुयमुहं पिजाहि अहं व से देमि // 413 // अहिगरण भइपंता कम्मुदय गिलाणए य उहाहो / चहुकारी य अवनो नियगो अन्नं च णं संके॥ 414 // अपमारो उ विकप्पो भिक्खायरि सड्डि अद्धिई पुच्छा / दुक्खसहाय विभासा हियं मे धाइत्तणं अज // 415 // वयगंडथुल्लत-णुपत्तणेहिं तं पुच्छिउं अयाणंतो / तत्थ गयो तस्समक्खं भणाइ तं पासिउं बालं // 16 // यहुणुट्ठियं व अणविक्खियं व इणमं कुलं तु मन्नामि / पुन्नेहिं जहिताए (जदिच्छाए) तरई बालेण सूएमो॥ 17 // थेरी दुबलखीरा चिमि(विवि)टो पेल्लियमुहो अइयणीए / तणुई उ मंदखीरा कुप्परथणियाएँ सूइमुहो // 418 // जा जेण होइ वन्नेण उकडा गरहए य तं तेणं / गरहइ समाण तिव्वं पसत्यमियरं च दुबन्नं // 411 // उवट्टिया परोसं छोभग उम्भामयो य से जं तु। होजा मज्झवि विग्यो विसाइ इयरीवि एमेव // 420 // Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68.] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : त्रयोदशमो क्मिागर एमेव सेसियासुवि सुयमाइसु करणकारणं सगिहे / इड्डीसु धाईसु य तहेव उबट्टियाण गमो // 421 // लोलइ महीऍ धूलीऍ गुडियो राहाणि अहवणं मज्जे / जलभीर अवलनपणो अइउप्पिलणे य रतन्छो // 422 // अभंगिय संवाहिय उन्नट्टिय मजियं च तो बालं / उवणेइ मजाई मंडणधाईएँ सुइदेहं // 423 // उपुयाइएहिं मंडेहि ताव णं ग्रहब णं विभूसेमि। हथिचगा व पाए कया गलिचा व पाए वा // 424 // ढढरसर छन्नमुहो मउयगिरो मउयमम्मणुलावो / उल्लावणगाईहि व करेइ कारेइ वा किड्ड // 425 // थुलीऍ वियडपायो भग्गकडी सुक्कडाए दुखं च। निम्मंस कवखड-करेहि भीरुयो होइ घेप्पते // 426 // कोलइरे वत्थव्वो दत्तो याहिंडयो भवे सीसो। अबहरइ धाइपिंडं अंगुलिजलणे य सादिव्वं // 427 // श्रोमे संगमथेरा गच्छ विसज्जति जंघवलहीणा। नवभागखेतवसही दत्तस्त य थागमो ताहे / 40 // उसयबाहिं ठाणं अनाउंछेण संकिलेसो य / पूय - चेडे मा स्य पडिलाभण दियडणा सम्मं // 41 // (भा०) सरगाम परग्गामे दुविहा दूई उ होइ नायब्वा / सा वा सो वा भणई भणइ व तं छन्नरयणेणं // 428 / एक्कावि य दुरिहा पागड बन्ना य छन्न दुविहा उ / लोगुत्तरि तत्थेगा बीया पुण उभयपक्खेऽवि(सु) // 421 // भिवखाई वच्चंते अप्पाहणि नेइ खंतियाईणं / सा ते अमुगं माया सो व पिया ते इमं भगइ // 430 // दूइत्तं खु गरहियं अप्पाहिउँ बिइयपचया भगति / अविकोविया सुया ते जा श्राह इमं (मई) भणसु खंतिं // 431 // उभयेऽवि य पच्छन्ना खंत ! कहिजाहि खंतियाएँ तुमं। तं तह संजायति य तहेव ग्रह तं करेजासि // 432 // गामाण दोराह वेरं सेजायरि धूय तत्थ खंतस्स / वहपरिणय खंतज्झत्थ(पाह)णं व णाए कए जुद्धं // 433 // जामाइपुत्त-पइमारणं च केण कहियंति जणवाश्रो / जामाइपुत्त-पइमारएण खंतेण मे सिट्ठ // 434 // नियमा तिकालविसएऽवि निमित्ते छब्बिहे भवे दोसा / सज्जं तुवट्टमाणे Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [66 श्रीपिकडनियुक्ति थाउभए तत्थिमं नायं // 435 // लाभा लाभं सुहं दुक्खं, जीवियं मरणं तहा। छबिहेवि निमित्तेउ, दोसा होंति इमे सुण // (10) पापिया निमितेण भोइणी भोइए चिरगयंमि / पुव्वभणिए कहं ते श्रागउ ? सट्ठो य वड. वाए // 436 // दूराभोयण एगागि यागयो परिणयस्स पचोणी / पुच्छा समणे कहणं साइयंकार सुमिणाई // 42 // कोवो वडवागभं च पुच्छियो पंचपुंडमाइंसु / फालणदि8 जइ नेव तो तुहं अवितहं कह वा // 43 // (भा०) जाई कुल गण कम्मे सिप्पे श्राजीवणा उ पंचविहा / सूयाएँ असूयाएँ व अपाण कहेहि एक्केक्के // 437 // जाईकुले विभाप्ता गणो उ मलाइ कम्म किसिमाई / सिप्पऽणावजगं च कमेयराऽऽवज्ज // 438 // होमायवितहकरणे नजद जह सो तयस्स पुत्तोत्ति / वसियो वेम गुरुङ ले थायरियगुणे व सूण्इ // 436 // सम्ममसम्मा किरिया अणेण ऊणाहिया व विवरीया / समिहामंता-हुइठाण जागकाले य घोसाई // 440 // उग्गाइकुलेसुवि एवमेव गणे मंडलप्पवेसाई / देउल-दरिसणभासा-उघणयणे दंडमाईया // 441 // कत्तरि पयोणावेक्ख-वत्थु-बहुवित्थरेसु एमेव / कम्मेसु य सिप्पेसु य सम्ममसम्मेसु सूईयरा // 42 // समणे माहणि किवणे अतिही साणे य होइ पंचमए / वणि जायणत्ति वणियो पायपाणं वणे इत्ते // 443 // मयमाइवच्छगंपिव वणेइ याहा'माइलोभेणं / समणेसु माहणेसु य किविणातिहिसाणभत्तेसु // 444 // निग्गंथ सक्क तावस गेरुय श्राजीव पंचहा समणा / तेसि परिवेसणाए लोभेण वणिज को अप्पं ? // 445 // भुजंति चित्तकम्न-ठिया व कारुणिय दाणरुइणो वा / अवि कामगदहेसुवि न नसई किं पुण जईसु ? // 446 // मिच्छत्त-थिरीकरणं उग्गमदोसाय तेसु वा गच्छे / चडुकारऽदिन्नदाणा पञ्चत्थिग मा पुणो इंतु // 447 // लोयाणुग्गह-कारिसु भूमीदेवेसु बहुफलं दाणं / अवि नाम बंभबंधुसु किं पुण छक्कम्मनिरएसु ? // 448 // किवणेसु दुम्मणे(बले)सु य प्रबंधवायंक-जुगियंगेसु। पूया Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 72 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः हिज्जे लोर दाणपडागं हरह दितो // 441 // पाएण देइ लोगो उवगारिसु परिचिएसुज्झुसिए वा / जो पुण श्रद्धाखिन्नं अतिहिं पूएइ तं दाणं // 45 // अवि नाम होज सुलभो गोणाईणं तणाइ श्राहारो। छिच्छिकारहयाणं न हु सुलहो होइ सुणहा(गा)णं // 451 // केलासभवणा एए, आगया गुन्झगा महिं / चरंति जक्खरूवेणं, पुयाऽपूया हियाऽहिया // 452 // एएण मन्झ भावो दिवो लोर पणामहेमि / एक्केके पुवुत्ता भगपंताइणो दोसा / / 453 // एमेव कागमाई साणग्गहणेण सूइया होति / जो वा जंमि पसत्तो वणइ तहिं पुटपुट्ठो वा // 454 // दाणं न होइ अफलं पत्तमपत्तेसु सनिजुज्जंतं / इय विभणिएवि दोसा पसंसयो किं पुण अपत्ते ? // 455 // भगइ य नाहं वेजो ग्रयाऽवि कहेइ अपणो किरियं / ब्रह्मावि विजपाए तिविह तिगिच्छा मुणेयया // 456 // भिक्खाइ गयो रोगी किं विजोऽहंति पुच्छियो भणइ / अत्थावत्तीऍ कया अबुहाणं बोहणा एवं // 457 // एरिसयं चिय दुक्खं भेसज्जेण अमुगेण पउणं मे / सहसुप्पन्न व रुयं वारेमो अट्ठमाईहिं // 458 // संसोधण संसमणं नियाणपरिवजणं च जं तत्थ / श्रागंतु धाउखोभे य ग्रामए कुणइ किरियं तु // 456 // अस्संजम जोगाणं पसंधणं कायघाय अयगोलो / दुबलवग्याहरणं यचुदये गिराहणुड्डाहे // 460 // हत्यकप्प गिरिफुल्लिय रायगिहं खलु तहेव चंपा य। कडधयपुन्ने इट्टग लड्डुग तह सीहकेसरए / / 461 // विजातयप्पभावं रायकुले वाऽवि वल्लभते से / नाउं ओरस्तबलं जो लगभइ (देइ भया) कोहपिंडो सो // 462 // अन्नेसि दिनमाणे जायंतो वा अलद्धियो कुप्पे / कोहफलंमिऽवि दिढे जो लब्भइ कोहपिंडो सो // 463 / / करडुय-भत्तमलद्ध अनहिं दाहित्य एव वच्चंतो / थेरो भो पण तइए बाइक्खण खामणा दाणे // 464 // उच्छाहियो परेण व लद्धिपसंसाहिं वा समुत्तइयो / अवमाणिो परेण य जो एसइ माणपिंडो सो // 465 // इट्ठगणमि परिपिंडि. Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ 71 याण उल्लार को हु पगेन / प्राणिज इटगायो ? खुद्दो पचाह आणेमि / / 466 // जइविय ता पजत्ता अगुलघयाहिं न ताहिं णे कज्जं / जारि. लियायो इच्छह ता थाणेमित्ति निक्खंतो॥ 467 // श्रोहासिय पडिसिद्धो भण्इ अगारि अवस्सिमा मज्झ / जइ लहसि तो तं मे नासाए कुणसु मोयंति [सा याह] // 468 // कस्स घर पुच्छिऊणं परिसाए अमुउ कइरो पुच्छितु / किं तेणऽम्हे जायसु सो किविणो दाहिइ न तुझं // 461 // दाहित्ति तेण भणिए जइ न भवसि छराहमेसि पुरिसाणं / अन्नयरो तो तेहं परिसाममि पणयामि // 470 // सेयंगुलि बगुड्डावे, किंकरे राहायए तहा / गिद्धावरंखि हहन्नए य पुरिसाहमा छाउ // 471 // जायसु न एरिसोऽहं इट्टगा देहि पुव्वमइगंतु / माला उत्तारि गुलं भोएमि दिएत्ति थारूदा // 472 // सिइयवणण पडिलाभण दिस्सियरी बोलमंगुली नासं। दुगहेगयर-पयोसो यायविवत्ती य उड्डाहो // 473 // रायगिहे धम्मरुई श्रसादभूई य खुड्डयो तस्स / रायनड-गेहपविलण संभोइय मोयए लंभो // 474 // यायरियउवझाए संघाडगकाण-खुजतहोसी / नडपासण पजतं निकायगा दिगो दिणे दाणं // 475 // धूयदुए संदेसी दाणसिगोह करणं रहे गहणं / लिंगं मुयत्ति गुरुसिट्ठ विवाहे उत्तमा पगई // 476 // रायघरे य कयाई निम्महिलं नाडगं तडागत्या / ता य विहरति मत्ता उवारे गिहे दोघे पासुत्ता // 477 // वावारण नियत्तो दिस्त विचेला विराग संबोही इंगियनाए पुच्छा पजीवणं रहवालंमि // 478 // इवखागवंस भरहो पायं. सघरे य केवलालो यो / हाराइखियण गमणं उवसग्ग न सो नियत्तोत्ति // 476 // तेण समं पवइया पंच नरसयत्ति नाडए डहणं / गेलन्न खमग पाहुण थेरा दिट्ठा य बीयं तु // 480 // लभंतंपि न गिराहइ अन्नं श्रमुगति अज घेच्छा.मे / भदरसंति व काउं गिराहइ खद्धं सिणिद्धाई // 481 // चंपा छमि घिच्छामि मोयए तेवि सीहकेसरए / पडिसेह धम्मलाभं काउणं Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 72 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : त्रयोदशमो विभागः सीहकेसरए // 482 // सड्ढडरत्तकेसर-भायणभरणं च पुच्छ पुरिमड्ढे / उपयोग संत-चोयण साहुत्ति विगिंचणे नाणं // 483 // दुविहो उ संथयो खलु संबंधी-वयणसंथवो चेव / एक्केकोविय दुविहो पुखि पच्छा य नायवो // 484 // मायपिइ पुवसंथव सासूसुसराइयाण पच्छा उ / गिहि संथवसंबंधं करेइ पुव्वं च पच्चा वा // 485 // श्रायवयं च परवयं नाउं संबंधए तयगुरुवं / मम माया एरिसिया ससा व धूया व नत्ताई // 486 // अद्धिइ दिट्ठिपराहव पुच्छा कहणं ममेरिसी जणणी / थणखेवो संबंधो विहवासुरहाइहाणं च // 487 // पच्छा-संथवदोसा सासू विहवादि-धूयदाणं च / भजा ममेरिसिन्चिय सजो घाउ वयभंगो वा // 488 // मायावी चडुयारी अम्हं योहावणं कुणइ एसो। निच्छुभगाई पंतो करिज भद्देसु पडिबंधो // 481 // गुणमंथवेण पुब्बिं संतासंतेण जो थुणिजाहि / दायारमदिन्नमी सो पुबिसंथवो हवइ // 410 // एसो सो जस्स गुणा वियरंति अवारिया दसदिसानु / इहरा कहासु सुणिमो पचक्खं श्रज दिट्ठोऽसि // 411 // गुणसंथवेण पच्छा संतासंतेण जो थुणिजाहि / दायारं दिन्नमी सो पच्छासंथवो होइ॥ 412 // विमली-कयऽम्ह चक्खु जहत्थया(यो) वियरिया गुणा तुझं / पासि पुरा मे संका संपय निस्संकियं जायं // 413 // विजामंतपख्वण विजाए भिक्खुवासयो होइ / मंतंमि सीसवेयण तत्थ मुरुडेण दिढतो // 414 // परिपिडियमुल्लावो अइपंतो भिक्खुवासयो दावे / जइ इच्छह अणुजाणह घयगुल वत्थाणि दावेमि // 415 // गंतु विजामंतण किं देमि ? घयं गुलं च वस्थाई / दिन्ने पडिसाहरणं केण हियं केण मुट्ठोमि ? // 416 // पडिविज-थंभणाई सो वा अन्नो व से करिजाहि / पात्राजीवी. माई कम्मणगारी य गहणाई // 417 // जह जह पएसिणी जाणुगंमि पालित्तयो भमाडेइ / तह तह सीसे वियणा पणस्सइ मुरुंडरायस्स // 418|| पडिमंत-थंभणाई सो वा यन्नो व से करिजाहि / पावाजीवियमाई कम्मणगारी Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'श्रीपिण्डनियुक्तिः ] . भो वी // 411 // चुन्ने अंतद्वाणे चाणक्के पायलेवणे जोगे। मूल विवाहे दो दंडिगी उ यायाणपरिसाडे / / 500 // जंघाहीणा योमे कुसु. मपुरे सिस्लजोग-रहकरणं / खुडुदुगंजण सुणणा गमणं देसंतरे सरणं // 44 // भिक्खे परिहायंते थेराणं तेसि योमि दिताणं / सहभुज चंदगुत्ते योमोयरियार दोबल्लं // 45 // चाणक पुच्छ इट्टालचुराणदारं पिहित्तु धूमे य / द? कुच्छ पसंसा थेरसमीवे उवालंभो // 46 // (भा०) जे विजमंतदोसा ते चिय वसिकरणमाइचुन्नेहिं / एगमणेग परोसं कुजा पत्थारयो वापि // 501 // सूभगदुभग्गकरा जोगा श्राहारिमा य इयरे य / पापंसधूववासा पायपलेवाइणो इयरे // 502 // नइकराहबिन्न दीवे वंचसया तावसाण निवसति / पत्वदिवसेसु कुलवई पालेवुत्तार सकारे // 503 // जण सापगाण खि लण समियखण माइठाण लेवेण / सावय पयत्तकरणं यविणय लोए चलणधोए // 504 // पडिलाभिय वच्चंता निब्बुड नइकूल मिलण समियाऽऽयो / विम्हिय पंचसया तावसाण पव्वज साहा य // 505 // यकुमार खयं जोणी विवरीयट्ठा निवेसणं वावि, गम्मपए पायं वा जो कुबइ मूल कम्मं तं ॥(प.) अधिई पुच्छा अासन्न विवाहे भिन्नकन्नसाहणया / यायमणपियण योसह अवखय जज्जीवहिगरणं // 506 // जंघा परि जय सड्डी अद्धिइ याणिजए मम सवत्ती / जोगो जोणुग्घाडण पडिसेह पोस उड्डाहो // 507 // मा ते फंसेज कुलं यदिजमाणा सुया वयं पत्ता / धम्मो य लोहियस्सा जइ बिंदू तत्तिया नरया // 508 // किं न ठविजइ पुत्तो पत्तो कुलगोत्त-कित्तिसंतागो। पच्छावि यतं कज्ज असंगहो मा य नासिज्जा // 50 // कि अद्धि इत्ति पुच्छा सवित्तिणी गम्भिणित्ति से देवी / गम्भाहाणं तुज्झवि करोमि मा अद्धिई कुणसु // 510 // जइवि सुत्रो मे होही तहवि कणिहोत्ति इयरो जुवराया। देइ परिसाडणं से नाए य पयोस पत्थारो // 511 // संखडिकरणे कापा. कामपवित्तिं च कुणइ एगत्थ / एगत्थुड्डाहाई जजिय Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 74 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमौ विभागः भोगंतरायं च // 512 // एवं तु गविट्ठस्सा उग्गमउप्पारणा-विर द्धरस / गहणविसोहि-विसुद्धस्स होइ गहणं तु पिंडरस // 513 / / उप्पायणाएँ दोसे साहूउ समुट्ठिए वियाणाहि / गहणेसणाइ दोसे डायपरसमुट्ठिए वोच्छं - // 514 // दोन्नि उ साहुसमुत्था संकिय तह भावोऽपरिणयं च / सेसा वि नियमा गिहिणो य समुट्ठिए जाण // 515 // नाम टपणा ददिए - भावे गहणेसणा मुणेयव्वा / दवे वानरजूहं भावमि य दस पया हुँति // 516 // परिसडिय-पंडुपत्तं वणसंडं दट्ठ अन्नहिं ऐसे / जूहबई पडियरए जूहेण समं तहिं गच्छे // 517 // सयमेवासोएउं जूहबई तं वणं समतेण / वियरइ तेसि पयारं चरिऊण य तो दहं गच्छे // 518 // बोयरत पयं दर्छ, नोहरंत न दीसई / नालेण पियह पाणीयं, नेम निकारणो दहो // 511 // संकिय मक्खिय निविखत्त पिहिय साहरिय दायगुग्मीसे / अपरिणय लित्त छड्डिय एसणदोसा दस हवंते // 520 // संकाए चगो दोसुवि गहणे य भुजणे लग्गो। जं संकियमावन्नो पणतीसा चरिमए सुद्रो // 521 // उग्गमदोसा सोलस ग्राहाकम्माइ एसणादोमा / नव मविखयाइ एए पणवीसा चरिमए सुद्धो॥ 522 // बटमत्थो मुयनाणी गवेसए (उवउत्तो) उज्जुयो पयत्तेणं / श्रावन्नो पणवीसं सुरनाणपमाग यो सुद्धो // 523 // ओहो सुयोवउत्तो सुयनाणी जइवि गिराहइ असुद्धं / तं केवलीवि भुजइ अपमाण सुयं भवे इहरा // 524 // सुत्तस्स अप्पमाणे चरणाभावो तो य मोक्खस्स / मोक्खस्सऽविय श्रावे दिवखपवित्ती निरत्था उ / / 525 // किंतु(ति)ह खद्धा भिवखा दिज्जइ न य तरइ पुच्छउं हिरिमं / इत्र संकाए घेत्तुं तं भुजइ सकियो चेव // 526 // हियएण संकिएणं गहिया अन्नेण सोहिया सा य। पगयं पहेणगं वा सोउं निस्संकियो भुजे // 527 // जारिसया चिय लद्धा खडा भिवखा मए अमुयगेहे / अन्नेहिवि तारिसिया वियत निसामए तइए।५२८॥ जइ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओपिण्डनियुक्ति ] संका दोसकरी एवं सुद्धपि होइ अविसुद्धं / निस्संकमेसियंति य श्रणेसणिज्जपि निदोसं // 526 // अविसुद्धो परिणामो एगयरे अवडियो य पक्खंमि / एसिपि कुणइ णेसिं अणेसिमेसि विसुद्धो उ // 530 // दुविहं च मक्खियं खलु सच्चित्तं चेव होइ अचित्तं / सचित्तं पुण तिविहं अचित्तं होइ दुविहं तु // 531 // पुढवी याउ वणस्सइ तिविहं सच्चित्तमक्खियं होइ / अचित्तं पुण दुविहं गरहियमियरे य भयणा उ॥५३२॥ सुक्केण सरवखेणं मक्खिय-मोल्लेण पुढविकाएण / सर्वपि मक्खियं तं एत्तो पाउंमि वोच्छामि // 533 // पुरपच्छकम्म ससिणिद्धदउल्ले चउरो बाउभेयायो / उकिट्ठरसालित्तं परिऽणतं महि रहेसु // 534 // सेसेहिं काएहिं तीहिवि तेऊसमीर. णतसेहिं / सच्चितं मीसं वा न मक्खितं अस्थि उल्लं वा // 535 // सचितमविखयंमी हत्ये मते य होइ चउभंगो। पाइतिए पडिसेहो चरिम भंगे यणुनायो // 536 // अचित्तमक्खियंमि उ चउसुवि भंगेसु होइ भयणा उ। अगरहिएण उ गहणं पडिसेहो गरहिए होइ // 537 // संसजिमेहिं वज्ज अगरहिएहिपि गोरसदवेहिं / महुघयतेलगुलेहि य मा मच्छिपिपीलियाबायो // 538 // मंसवस-सोणियासव लोए वा गरहिएहिवि वज्जेजा। उमयोऽवि गरहिएहिं मुनुबारेहिं चित्तंपि // 531 // सचित्त मीसएसु दुविहं काएसु होइ निखितं / एक्केक्कं तं दुविहं अणंतर परंपरं चेव // 54 // पुढवीयाउकारतेऊवाउ-वणस्सइ-तसाणं / एक्केक दुहाऽणंतर-परंपरगणंमि सत्तविहा // 541|| सच्चित्त पुढविकाए सचित्तो चेत्र पुढवि-निखित्तो / ग्राऊतेउवणस्सइ-समीरण-तसेसु एमेव // 542 // एमेव सेसयाणवि निवखेवो होइ जीव(काय)काएसु(निकाएस) एवकको सट्टाणे परटाणे पंच पंचेव // 543 // एमेव मीसएसुवि मीसाण सचेयणेसु निक्खेवो / मीसाणं मीसेसु य दोरहंपि य होइऽचितेसु // 544 // जत्थ उ सचित्तमीसे चउभंगो तत्थ चउसुवि अगिझोतंतु अणंतर इयरंपरित्तऽणतंचवणकाए॥५४५॥ अहव ण सचित्त Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतर परंपर वक्ते (लीण) दीसेइ इंधणे 76 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः मीसो उ एगयो एगयो उ अचित्तो। एत्थं चउक्कभेश्रो तत्थाइतिए कहा नस्थि // 546 // जं पुण अचित-दव्यं निक्खिप्पड चेयणेसु मीसेसु / तहिं मग्गणा उ इणमो श्रणंतरपरंपरा होइ // 547 // योगाहिमायणंतर परंपरं पिढरगाइ पुढवीए / नवणीयाइ अणंतर परंपरं नावमाईसु // 548 // विज्झाय-मुम्मु. रिंगालमेव अपत्तपत्त-समजाले / योवकते (लीणे) सत्तदुगं जंतोलित्ते य जयणाए // 546 // विज्झाउत्ति न दीसइ अग्गी दीसेइ इंधणे छूढे / थापिंगल अगणिकणा मुम्मुर निजाल इंगाले // 550 // अपत्ता उ उत्थे जाला पिढरं तु पंचमे पत्ता / छठे पुण कराणसमा जाला समइच्छिया चरिमे // 551 // पासोलित्त-कडाहे परिसाडी नथि तंपि य विसालं / सोऽपि य अचिरच्छूटो उच्छुरसो नाइउसिणो य // 552 / / उसिणोदगंपि घेप्पइ गुडरसपरिणामियं अणच्चुसिणं / जं च अगट्ठियकन्नं घट्टियपडणंमि मा अग्गी // 553 // पासोलित्त-कडाहेऽनच्चुसिणे अपरिसाडऽघट्टते / सोलस भंगविगप्पा पढमेऽणुन्ना न सेसेसु // 554 // पयसमदुग-प्रभासे माणं भंगाण तेसिमा रयणा / एगंतरियं लहुगुरु दुगुणा दुगुणा य वामेसु // 555 // दुविहविराहण उसिणे छड्डण हाणी य भाणभेयो य / वाउविखत्ताणंतरपरंपरा पप्पडिय वत्थी // 556 // हरियाइ-अणंतरिया परंपरं पिढरगाइसु वणंमि / पूपाइ पिट्ठऽणंतर भरए कुउबाइसू इयरा // 557 // सचित्ते अचित्ते मीसग पहियंमि होइ चउमंगो। श्राईतिगे पडिसहो चरिमे भंगंमि भाणा उ // 558 // जह चेव उ निवखत्ते संजोगा चेव होंति भंगा य। एमेव य पिहियंमिवि नाणत्तमिणं तइयगे // 55 // चंगार धूवयाई अणंतरो संतरो सरावाई / तत्थेव अइर वाऊ परंपरं बस्थिणा पिहिए // 560 // अइरं फलाइपिहितं वणंमि इयरं तु छब्ब-पिठराई / कच्छव-संचाराई अणंतराणंतरे छ? // 561 // गुरु गुरुणा गुरु लहुगा लहुयं गुरुएण दोऽवि लहुयाई / अचित्तेणवि पिहिए चउभंगो दोसु श्रग्गेझ // 562 // Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपिण्डनियुक्ति सचित्ते अचित्ते मीसग साहारणे य चउभंगो। श्राइतिए पडिसेहो चरिमे भंगंमि भयणा उ // 563 // जह चेव उ निक्खिते संजोगा चेव होंति भंगा य / तह चेत्र उ साहरणे नाणतमिणं तइयभंगे // 564 // मत्तेण जेण दाहिद तत्थ अदिज्जं तु होज असणाई / छोड तयन्नहिं तेणं देई अह होइ साहरणं // 565 // भूमाइएसु ते पुण साहरणं होइ सुवि काएसु / जं तं दुहा अचित्तं साहरणं तत्थ चउभंगो॥ 566 // सुक्के सुक्क पदमो सुक्के उल्लं तु बिइययो भंगो। उल्ले सुक्कं तइयो उल्ले उल्लं चउत्थो उ // 567 // एक्ककक चउभंगो सुकाईएसु चउसु भंगेसु / थोवे थोवं थोवे बहुँ च विवरीय दो अन्ने // 568 // जत्थ उ थोवे थोवं सुक्के उल्लं च छुहह तं गेझ(मभं) / जइ तं तु समुक्खेउं थोवाभारं दलइ अन्नं // 561 / उक्खेवे निक्खेवे महल्लभाणं मे लुद्ध वह डाहो / अचियत्तं वोच्छेत्रो छक्कायवहो य गुरुमत्ते // 570 // थोवे थोवं छूटं सुक्के उल्लं तु तं तु पाइन्न / बहुयं तु अणाइन्नं कडदोसो सोत्ति काऊणं // 571 // बाले' वुड्ढे” भत्ते' उम्मने वेविरे य जरिए य / अंधिलए पगरिए प्रारूढे पाउहाहिं च // 572 // "हत्थिदुनियलबद्धे "विवजिए"चेव हत्थपाएहिं / तेरासि" गुम्विणी" बालवच्छ" भुजंति" घुसुलिती" // 573 // भज्जंतीय दलंती" कंडती चेत्र तह य पीसंती" / पीजंतीचंती कत्तंति" पमद्दमाणी" य // 574 // छक्कायवग्गहरथा समणट्ठा निक्खिवित्तु ते चेव / ते चेवोगाईती८ "संघट्टताऽऽभंती य // 575 // संसत्तेण य दवेण लित्तहत्या" य लित्तमता" य / उव्यत्तती" साहारणं व दिती" य चोरिययं" / / 576 // पाहुडियं च ठेवंती" सानवाया" परं च उद्दिस्स। "श्राभोगमणाभोगेण दलंती वजणिज्जा ए // 577 // एएसि दायगाणं गहणं केसिंचि होइ भइयव्वं / केसिंची अग्गहणं तविवरीए भवे गहणं // 578 // कब्बढिग अप्पाहण दिन्ने अन्नन्न गहण पजतं / रतिय मग्ग Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 27] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः प्रयोदशमी विभागः णदिन्ने उड्डाह पयोस चारभंडा // 576 // थेरो गलंतलालो कंपणहत्थो पडिज वा देतो। अपहुत्ति य अचियत्तं एगयरे वा उभययो वा // 580 // अवयास घाय(भाण) भेश्रो वमणं असुइत्ति लोगगरिहा य उड्डाहो / एए चेय उ (पंतावणं च) मत्ते वमणविवजा य उम्मत्ते // 581 // वेविय परिसाडणया पासे व छुभेज भाणभेयो वा / एमेव य जरियमिवि जरसंकमणं च उड्डाहो // 582 // उड्डाह कायपडणं अंधे भेयो य पास छुहणं च / तहोसी संकमणं गलंत-भिसभिन्न देहे य // 583 // पाउय-दुरूढपडणं वद्धे परियाव असुइ खिंसा य / करछिन्नासइ खिंसा ते चिय पायेऽवि पडणं च // 584 // याय-परोभयदोसा अभिक्ख-गहणंमि खोभण नपुसे / लोगदुगुंछा संका एरिमया नूग मेएऽवि / / 585 // गुम्विणि गम्भे संघट्टणा उ उटुंतुवेसमाणीए / बालाई मंसुडग मज्जाराई विराहेजा / / 586 // भुजंती श्रायमणे उदगं छोट्टी य लोगगरिहा य / घुसुलती संसत्ते करंमि लित्ते भवे रसगा // 587 // दगबीए संघट्टण पीसणकंडदल भजणे डहणं / पिंजंत रुचणाई दिन्ने लिते करे उदगं // 588 // लोणंदगयगणि वत्थी फलाइ मच्छाइ सजिय हत्थंमि / पाएणोगाहणया संघट्टण सेसकाएणं // 581 // खणमाणी धारभए मजइ धोयइ व सिंचए किंचि / छेयविसारणमाई दिइ छट्टे फुस्फुरुते // 510 // छकाय-वग्गहत्था केई कोलाइ कनलइयाई / सिद्धत्थग-पुष्पाणि य सिरंमि दिन्नाई वजंति // 511 // अन्ने भणंति दससुवि एसणदोसेसु नत्थि तग्गहणं / तेण न वज्जं भन्नइ नणु गहणं दायगग्गहणा // 512 // संसजिमम्मि देसे संसजिम-दव्वलित्त-करमत्ता / संचारो श्रोयत्तण उविखप्पंतेवि ते चेव // 513 // साधारणं बहूणं तत्थ उ दोसा जहेव अणिसिट्टे / चोरियए गहणाई भयए सुराहाइ वा दंते // 514 // पाहुडि उवियगदोसा तिरिउमहे तिहा अवायायो / धम्मियमाई ठवियं परस्स परसंतियं वावि // 515 // अणुकंपा पडिणीयट्ठया व ते कुणइ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मीपिण्डनियुक्तिः ]:उ अदो अपाणंतो // 516 // भिक्खामित्ते अवियालणा उ बालेण दिजाणं मे / संदितु वा गहणं अबहुय वियालणेऽणुन्ना // 517 // थेर पहु थरथरते धरिए अन्नेण दढसरीरे वा। अवत्त-मत्तसडढे अभिले वा असागरिए // 518 // सुइभद्दग-दित्ताई दढग्गहे वेविए जरंमि सिवे / अन्नधरियं तु सड्ढो देयंघोऽन्नेण वा धरिए / / 516 // मंडल-पसूति-कुट्ठी:सागरिए पाउयागए अयले / कमबद्धे सवियारे इयरे वि? असागरिए // 600 // पंग अप्पडिसेवी वेला थणजीवि इयर सव्वंपि / उक्खित्त-मणावाए न किंचि लग्गं ठवंतीए // 601 // पीसंती निप्पि? फासु वा घुसुलणे असं उत्तं / कत्तणि असंखचुन्नं चुन्नं वा जा चोक्खलिणी // 602 // उब्धट्टणि संपत्तेण वावि गट्ठीलए न घट्टइ। पिंजण-पमद्दणसु य पच्छाकम्मं जहा नात्थ // 603 // सेसे पु य पडिबक्खो न संभवइ का गहणमाईसु / पडिवक्खस्स अभावे नियमा उ भवे तयग्गहणं // 604 // सचित्ते अचते मीसग उम्मीसगंसि चउभंगो। पाइतिए पडिसेहो चरिमे भंग मे भयणा उ॥ 605 // जह चेव य संजोगा कायाणं हेट्टयो य साहरणे / तह चेव य उम्मीसे होइ विसेसो इमो तत्थ // 606 // दायब्वमदायव्वं च दोऽवि दब्बाइं देइ मीसेउं / योयणकुसुणाईणं साहरण तयन्नहिं बोङ॥ 607 // तंपि य सुक्के सुवकं भंगा चत्तारि जह उ साहरणे / अप्पबहुएऽवि चउरो तहेव पाइन्नऽणाइन्ने // 608 // अपरिणयपि य दुविहं दब्बे भावे य दुविहमेक्केवकं / दव्बंमि होइ छवकं भावंमि य होइ सझिलगा // 601 // जीवतंमि अविगए अपरिणयं परिणयं गए जीवे / दिट्ठतो दुद्धदही इय अपरिणय परिणयं तं च // 610 // दुगमाई सामन्ने जइ परिणमई उ तत्थ एगस्स / देमित्ति न सेसाणं अपरिणयं भावो एयं॥६११॥ एगेण वावि एसिं मणंमि परिणमियं न इयरेणं / तंपि हु होइ अगिमं सन्झिलगा सामि साहू वा // 612 // घेत्तव्य-मलेवकडं लेवकडे मा हु Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6.] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमी विभागः पच्छम्माई / न य रसगेहिपसंगो इअ वुत्ते चोयगो भणइ // 613 // जइ पच्छकम्मदोसा हवंति मा चेव भुजऊ सययं / तवनियम-संजमाणं चोयग ! हाणी खमंतस्त // 614 // लित्तंति भाणिऊणं छम्मासा हायए चउत्थं तु / यायंबिलस्स गहणं असंथरे अप्पलेवं तु // 615 // आयंबिल-पारणए छम्मास निरंतरं तु खविऊणं / जइ न तरइ छम्मासे एगदिणूणं तयो कुणउ // 616 // एवं एकेकदिणं यायंबिलपारणं खवेऊणं / दिवसे दिवसे गिराहउ थायंबिलमेव निल्लेवं / / 617 // जइ से न जोगहाणी संपइ एसे व होइ तो खमयो / खमणंतरेण पायंबिलं तु निययं कुणइ // 618 // हेटावणि कोसलगा सोवीरग कूरभोईणो मणुया / जइ तेऽवि जति तहा किं नाम जई न जाविति ? // 611 // तिय सीयं समणाणं तिय उराह गिहीण तेणऽणुन्नायं / तकाईणं गहणं कट्टरमाईसु भइयव्वं // 620 // थाहार उवहि सेजा तिरिणवि उराहा गिहीण सीएऽवि / नेण उ जीरइ तेसिं दुहयो उसिणेण आहारो॥ 621 // एयाई चिय तिन्निवि जईण सीयाइं होंति गिम्हेवि / तेणुव हम्मइ अग्गी तयो य दोसा अजीराई . // 622 // योयण मंडग सत्तुग कुम्मासा रायमास कल वल्ला / त्यरि मसूर मुग्गा मासा य अलेवडा सुका // 623 // उभिज पिज-वंगू तक्कोलण-सूवर्कजि-कढियाई / एए उ अप्पलेवा पच्छाकम्म तहिं भयं // 624 // खीर दहि जाउ कट्टर तेल घयं फाणियं सपिंडरसं / इच्चाई बहुलेवं पच्छाकम्मं तहिं नियमा // 625 // संसट्टेयर हत्थो मत्तोऽविय दव्य सावसेसियरं। एएसु अट्ठ भंगा नियमा गहणं तु श्रोएसु // 626 // सञ्चित्त अचित्ते मीसग तह छड्डणे य चउभंगो। चउभंगो पडिसेहो गहणे श्राणाइणो दोसा // 627 // उसिणस्स छड्डणे देतो व डझेझ कायदाहो वा / सीयपडणमि काया पडिए महुबिंदु-बाहरणं // 628 ॥णामं ठवणा दविए भावे घासेसणा मुणेयव्वा / दव्वे मच्छाहरणं भावंमि य होइ पंचविहां // 626 // Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीपिण्डनिपुतिः ] [81. चरियं व कप्पियं वा पाहरणं दुविहमेव नायव्वं / अत्थस्स साहणट्ठा इंधण. मिव बोयणटार // 630 // ग्रह मंसंमि पहीणे झायने माच्छयं भगइ मच्छो / किं झायमि तं एवं ? सुण तार जहा अहिरियोऽसि // 631 // तिबलाग-मुहुम्मुक्को, तिखुत्तो वलयामुहे / तिसत्तक्खुत्तो जालेणं, सइ छिन्नोदए दहे // 632 // एयारिसं ममं सत्तं, सढं घट्टिय-घट्टणं / इच्छसि गलेण घेत्तु, अहो ते अहिरीयया // 633 // बायालीसेसण-संकमि गहणंमि जीव ! न हु छलि यो / इसिंह जह न छलिजसि भुजतो रागदोसेहिं // 634 // घासेपणा उ भावे होइ पसत्था तहेव अपसस्था / अपसत्था पंचविहा तव्विवरीया पसत्था उ // 635 // दव्वे भावे संजोयणा उ दव्वे दुहा उ बहियंतो। भिक्खं चिय हिंडतो संजोयंतमि बाहिरिया // 636 // खीरदहि-सूबकट्टरलंभे गुडमप्पि वडग-वालुके / अंतो उ तिहा पाए लंबणं वयणे विभासा उ॥६३७॥ संयोयणाए दोसो जो संजोएइ भत्तपाणं तु / दवाई रमहेउं वाघायो तस्सिमो होइ // 638 // संजोयणा उ भावे संजोएऊण दवाई / संजोयइ कम्मेणं भवं तयो दुक्खं // 631 // पत्तेय पउरलंभे भुत्नुवरिए य सेसग-मणट्ठा / दिट्ठो संजोगो खलु ग्रह कमो तस्सिमो होइ // 640 // रसहेउं पडिसिद्धो संयोगो कप्पए गिलाणट्ठा / जरस व अभत्तछंदो सुहोचि. थोऽभावियो जो य // 641 // बत्तीसं किर कबला याहारो कुच्छिपूरयो भणियो / पुरिसस्म महिलियाए अट्ठावीसं भवे कवला // 642 // एत्तो किणाइ हीणं अद्धं श्रद्धद्धगं च श्राहारं / साहुस्स बिति धीरा जायामायं च श्रोमं च // 543 // पगाम च निगामंच, जो पनीयं भत्तपाणमाहरे / अइबहुयं अइबहुसो, पमाणदोसो मुणेयव्यो // 644 // बत्तीसाइ परेणं पगाम निच्चं तमेव उ निकामं / जं पुण गलंतनेहं पणीयमिति त बुहा बेति // 645 // अइबहुयं अइबहुसो अइपमाणेण भोयणं भो। हाएज व वामिज व मारिज वतं अजीरंतं // 646 / / बहुयातीयमइबहुँ अबहुसो तिनि Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 82] / श्रीमद्भागमसुधासिन्धुः / / त्रयोदशमो विभाग तिन्नि व परेणं / तं त्रिय अइप्पमाणं भुजइ जंवा अतिप्पंतो // 647 // हियाहारा मियाहारा, अप्पाहारा य जे नरा / न ते विजा तिगिच्छति, अप्पाणं ते तिगिच्छगा॥ 648 // तेल्लदहि-समारोगा अहियो खीरदहि-कंजियाणं च / पत्थं पुण रोगहरं न य हेऊ होइ रोगस्स // 641 // अद्धमसणस्म सव्वंजणस्स कुजा दवस्स दो भागे / वाऊ-पवियार-गट्ठा छन्भायं ऊणयं कुजा // 650 // मियो उसिणो साहारणो य कालो तिहा मुणेय वा / माहारणंमि काले तत्थाहारे इमा मत्ता // 651 // सीए दवस्म एगो भत्ते चत्तारि अहव दो पाणे / उसिणे दवरस दोन्नि उ तिन्नि व सेसा उ भत्तस्स / 652 // एगो दवस्त भागो अवट्ठितो भोयणस्स दो भागा / वडांति व हायति व दो दो भागा उ एक्केक्के // 653 // एत्थ उ तइय-चउत्था दोगिण य अणवट्ठिया भवे भागा। पंचमट्ठो पढमो वियोऽवि श्रवट्ठिया भागा // 654 / / तं होइ सइंगालं जं श्राहारेइ मुच्छियो संतो। तं पुण होइ सधूमं जं थाहारेइ निंदतो // 655 // अंगारत्तमपत्तं जलमाणं इंधणं सधूमं तु। अंगारत्ति पवुच्चइ त चिय दडदं गए धूमे // 656 // रागग्गि-संपलित्तो भुजंतो फासुपि श्राहारं / निद्ददंगाल-निभं करेइ चरणिंधणं खिप्पं // 657 // दोसग्गीवि जलंतो अप्पत्तिय-यूम-धूमियं चरणं / अंगार-मित्तसरिसं जा न हवइ निद्दही ताव // 658 // रागेण सइंगालं दोसेण सधूमगं मुणेयध्वं / छायालीप्त दोसा बोद्धव्वा भोयणविहीए // 65 // श्राहारंति तवरसी विगइंगालं च विगयधूमं च / झाणज्झया-निमित्तं एसुवएसो पवयणस्स // 660 // छहिं कारणेहिं साधू श्राहारितोऽवि थायरइ धम्मं / छहिं चेव कारणेहिं णिज्जू. हिंतोऽवि थायरइ // 661 // वेयण वेयावच्चे इरियट्टाए' य संजमाए। तह पाणवत्तियाए छ8पुण धम्मचिंताए // 662 // नत्थि छुहाए सरिसा वियणा भुजेज तप्पसमणट्टा / छायो वेयावच्चं ण तरइ काउं अयो भुजे // 663 // इरिग्रं न वि सोहेई पेहाईधं च संजमं काउं। थामो वा Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपिण्डनियु किन ] [3 परिहायइ गुणऽणुप्पेहासु अ असत्तो॥६६४॥ अहव ण कुजाहारं, छहिं ठाणेहिं संजए / पच्छा पच्छिम-कालंमि, काउं अप्पक्खमं खमं // 665 // श्रायंके' उवसग्गे, तितिक्खया बंभचेर-गुत्तीसु / पाणिदया तवहेउँ, सारीखोच्छेयण-ट्टाए // 666 // श्रायको जरमाई रायासनायगाइ उवसग्गो। बंभवयपालणट्टा पाणिदया वासमहियाई // 667 // तवहेउ चउत्थाई जाव उछम्मासियोतवो होइ / छ8 सरीर-वोच्छेयणट्ठया होत्रणाहारो // 668|| सोलस उग्गमदोसा सोलस उप्पायणाए दोसा उ। दस एसणाएँ दोसा संजोयणमाइ पंचे // 66 // एमो थाहार-विही जह भणियो सबभाव-दंसीहिं / धम्मावस्सग-जोगा जेण न हायति तं कुजा // 670 // जा जयमाणस्स भवे. विराहणा सुत्तविहिसमग्गस्स / सा होइ निजरफला अज्झत्थ-विसोहि-जुत्तस्स // 671 // // इति श्रीपिण्डनियुक्तिः समाप्ता // (ग्रन्थागं 835) Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . इति 8 श्रीपिण्डलियुक्तिः 8 ( समाप्ता // Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // अहम् // पूर्वोद्धृतजिनभाषित-श्रुतस्थाविर सन्दृब्ध षट्त्रिंशदध्ययन-समलङ्कृतं // श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् // // 1 // अथ विनयश्रुताख्यं प्रथममध्ययनम् // संजोगाविप्पमुक्कस्स, अणगारस्स भिक्खुणो / विणयं पाउकरिस्सामि, श्राणुपुब्बिं सुणेह मे // 1 // श्राणानिर्देसकरे गुरुणमुववायकारए। इङ्गियागारसंपन्ने से विणीएत्ति वुच्चइ // 2 // प्राणा निद्देसकरे, गुरूणमणुववायकारए / पडिणीए असंबुद्धे, अविणीएत्ति बुच्चइ // 3 // जहा सुणी पूइकराणी, निक्कसिज्जइ सव्वसो। एवं दुस्सीलपडिणीए मुहरी निकसिन्जइ // 4 // कणकुण्डगं चइत्ताणं, विट्ठ भुञ्जइ सूयरे / एवं सीलं चइत्ताणं, दुस्सीले रमई मिए // 5 // सुणियाऽभावं साणस्स, सूयरस्स, नरस्स य / विणए ठऽवेज अप्पाणमिच्छन्तो हियमप्पणो // 6 // तम्हा विणयमेसिज्जा, सीलं पडिलभे जयो। बुद्धपुत्ते(त)निश्रागट्ठी, न निकसिज्जइ कराहुई // 7 // निसन्ते सियाऽमुहरी, बुद्धाणं अन्तिए सया। अट्ठजुत्ताणि सिक्खिजा निरट्ठाणि उ वजए // 8 // अणुसासियो न कुप्पिजा खन्ति सेविज पण्डिए / खुड्डे हिं सह संसग्गि हासं कीडं च वजए // 1 // मा य चराडालियं कासी, बहुयं मा य थालवे / कालेण य अहिज्जित्ता, तो झाइज एगगो // 10 // श्राहच्च चण्डालियं कटु, न निराहविज कयाइ वि / कडं कडित्ति भासेज्जा, अकडं नो कडित्ति य // 11 // मा गलियस्सुव्व कसं, वयणमिच्छे पुणो पुणो / कसं व दट्ठ माइगणे, पावगं परिवजए Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 86 ] / भीमदागमसुधासिन्धुः // त्रयोदशमो विभाग // 12 // अणासवा थूलवया कुसीला, मिउं पि चण्डं पकरिन्ति सीसा / चित्ताणुया लहु दक्खोववेया / पसायए ते हु दुरासयं पि // 13 // नापुट्ठो वागरे किंचि, पुट्ठो वा नालियं वए। कोहं असच्चं कुविजा, धारेजा पियमप्पियं / / 14 // श्रप्पा चेव (मेव) दमेययो, अप्पा हु खलु दुद्दमो / यप्पा दन्तो सुही होइ, अस्सि लोए परस्थ य // 15 // वरं मे अप्पा दन्तो, संजमेणं तवेण य / माहं परेहिं दम्मन्तो बन्धणेहिं वहेहि य // 16 // पडिणीयं च बुद्धाणं, वाया अदुव कम्मुणा / यावी वा जई वा रहस्से, नेव कुजा कयाइ वि // 17 // न पक्खयो न पुरयो, नेव किचाण पिट्टयो / न जुझे ऊरुणा ऊरु, सयणे नो पडिस्सुणे // 18 // नेव पल्हत्थियं कुजा, पक्खपिण्डं च संजए / पाए पसारए (पसारे नो) वावि, न चिट्ठ गुरुणन्तिए // 11 // यायरिएहि वाहित्तो, तुसिणीयो न कयाइ वि / पसायपेही (पसायट्टी) नियागट्टी, उवचि? गुरु सया // 20 // बालवन्ते लवन्ते वा, न निसीएज कयाइ वि / चइऊण ग्रासणं धीरो, जयो जत्तं पडिस्सुणे // 21 // यासगगयो न पुच्छेजा, नेव सेजागयो कया। पागम्मुक्कुडुयो सन्तो, पुच्छिजा पञ्जलीग(उ)डो॥ 22 // एवं विणयजुत्तस्स, सुत्तं अत्थं च तदुभयं / पुच्छमाणम्स सीसस्स, वागरिज जहासुयं // 23 // मुसं परिहरे भिक्खू, न य योहारिणिं वए। भासादोसं परिहरे, मायं च वजए सया // 24 // न लवेज पुट्ठो सावज्ज, न निरटु न मम्मयं / यप्पणट्ठा परट्ठा वा, उभयस्सऽन्तरेण वा // 25 // समरेसु अगारेसु, सन्धीसु य महापहे / एगो एगत्थिए सद्धिं, नेव चिट्ठ न संलवे // 26 // जम्मे बुद्धाऽणुसासन्ति, सीए(ले)ण फरसेण वा / मम लाहोत्ति पेहाए, पयो तं पडिस्सुणे // 27 // अणुसासण मोवायं, दुक्कडस्स य चोयणं / हियं सं मगाए पराणो, वेसं होह असाहुणो // 28 // हियं विगयभया बुद्धा, Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नीमचाभ्ययनरत्रम् / अध्ययनं / / फरुसं पि अणुसासणं / वेसं तं होइ मूढाणं, खन्तिसोहिकरं पयं // 21 // श्रासणे उवचि? जा, अणुच्चे अकुए थिरे / अप्पुट्ठाई निरुट्ठाई, निसाइज्जऽप्पकुक्कुए // 30 // कालेण निक्खमे भिक्खू, कालेण य पडिक्कमे / अकालं च विवजित्ता काले कालं समायरे // 31 // परिवाडीए न चिट्टे जा, भिक्खू दत्तेसणं चरे। पडिरूवेण एसित्ता, मियं कालेण भक्खए // 32 // नाइदूरमणासन्ने, नऽन्नेसिं चक्रवृफासयों / एगो चिट्ठज भत्तट्टा, लचित्ता तं नइकमे // 33 // नाइउच्चे व नीए वा, नासन्ने नाइदूरो। फासुयं परकडं पिराडं, पडिगाहेज संजए // 34 // अप्पपाणऽप्पवीयंमि, पडिच्छनं मे संबुडे / समयं संजए भुजे, जयं अपरिसाडियं // 35 // सुकडि त्ति सुपक्कित्ति, सुच्छिन्ने सुहडे मडे / सुणिट्ठिए सुलट्ठित्ति, सावज्ज वजए मुणी // 36 // रमए पण्डिए सासं, हयं भद्द व वाहए / बालं सम्मइ सामन्तो, गलियस्सं व वाहए // 37 // खड्डयाहिं चवेडाहिं अकोसेहि वहेहि य (खड्ड या मे चवेडा मे, अकोसा य वहा य मे)। कल्लाणमणुसासन्तो(तं), पावदिट्टि ति मन्नइ // 38 // पुत्तो मे भाय नाइत्ति, साहू कल्लाण मन्नइ / पावदिट्टि उ अप्पाणं, सासं दासि ति मनइ // 31 // न कोवए थायरियं, अप्पाणं पि न कोवए / बुद्धोवघाई न सिया, न सिया तोत्तगवेसए॥४०॥ आयरियं कुवियं नचा पत्तिएण पसायए। विज्झवेज पञ्जलिउडो, वएज न पुणो त्ति य॥४१॥ धम्मजियं च ववहारं, बुद्धेहिं पायरियं सया। तमायरन्तो ववहारं, गरहं नाभिगच्छई॥४२॥ मणोगयंवक्कगयं (मणोएइं वक्कएई) जाणित्ताऽऽयरियस्स उ / तं परिगिज्झ वायाए, कम्मुणा उववायए // 43 // वित्ते अचोइए निच्चं खिप्पं हवइ सुचोइए (वित्ते अबोइए खिप्पं, पसन्ने थामवं करे) / जहोवइट्ट सुकयं, किच्चाई कुम्वई सया // 44 // नचा नमइ मेहावी, लोए किती से जायए / हवई किचाणं सरणं, भूयाणं जगई जहा // 45 // पुजा जस्स पसीयान्त संबुद्धा पुत्रमंथुया / पसन्ना लंभइस्सन्ति, विउलं Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [बीमंदागमसुभासिन्धुः त्रयोदशमी विमानः अट्ठियं सुयं // 46 // स पुजसत्थे सुविणीयसंसए, मणोरुई चिट्ठइ कम्मसंपया(-1) (मणिच्छियं संययमुत्तमं गया)। तवोसमायारि-समाहिसंवुडे, महज्जुई पञ्च वयाई पालिया // 47 // स देवगन्धवमणुस्सवइए, चइत्तु देहं मलपङ्कपुव्वयं / सिद्धे वा हवइ सासए, देवे वा अप्परए महड्डिए // 48 // त्ति बेमि। // इति प्रथममध्ययनम् // 1 // // अथ परीषहाख्यं द्वितीयमध्ययनम् // सुयं मे पाउसं तेण भगवया एवमख्खायं / इह खलु बावीसं परिसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोचा नचा जिचा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयन्तो पुट्ठो ण विहराणेजा। कयरे खलु ते बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सुच्चा नच्चा जिचा अभिभूय भिवखायरियाए परिव्वयन्तो पुट्ठो नो विहरागोज्जा // इमे खलु ते बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सुना नच्चा जिचा अभिभूय भिक्खायरियाए परिवयन्तो पुट्ठो नो विहगणेजा / तं जहा दिगिच्छापरीसहे 1 पिवासापरीसहे 2 सीयपरीसहे 3 उसिणपरिसहे 4 दसमसयपरिसहे 5 अचेलपरीसहे 6 अरइपरीसहे 7 इत्थीपरीसहे 8 चरियापरीसहे 1 निसीहिया. परीसहे 10 सेजापरीसहे 11 अक्कोसपरीसहे 12 वहपरीसहे 13 जायणापरीसहे 14 अलाभारीसहे 15 रोगपरीसहे 16 तणफासपरीसहे 17 जलपरीसहे 18 सकारपूरकारपरीसहे 11 पन्नापरीसहे 20 अन्नाणपरीसहे 21 दंसणपरीसहे (सम्मत्तपरीसहे) 22 // परीसहाणं पविभत्ती कासवेणं पवेइया / तं भे उदाहरिस्सामि श्राणुपुदि सुणेह मे // 1 // दिगिछापरियावेण (दिगिछापरिगए देहे) तवस्ती भिक्खू थामवं // न छिन्दे न छिन्दा. अए, न पए न पयावए // 2 // कालीपव्वङ्ग-संकासे, किसे धमणि Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनस्त्रम् / / अध्ययनं 2 ] . __ (45 संतते / मायन्ने असणगणस्स, श्रदीणमणसो चरे // 3 // 1 / तो पुट्ठो पिवासाए, दोगुजछीलद्धसंजमे(लजसंजए, लजसंजमे) / सीयोदगं न सेविजा वियडस्सेसणं चरे // 4 // छिन्नावाएसु पन्थेसु, पाउरे सुपिवासिए। परिसुकमुहेऽदीण (सव्यतो य परिव्वए), तं तितिक्खे परिसहं // 5 // 2 / चरन्तं विरयं लूह, सीयं फुसइ एगया / नाइवेलं विहनिजा पावदिट्ठी विहन्नइ (मुणी गच्छे सोचाणं जिणसासणं)॥६॥ न मे निवारणं अस्थि, छवित्ताणं न विजई / ग्रहंतु अग्गि सेवामि, इइ भिक्खू न चिन्तए // 7 // 3 / उसिणपरियावेणं, परिदाहेण तजिए। प्रिंसु वा परियावेणं, सायं नो परिदेवर // 8 // उन्हाहितत्तो मेहावी, सिणाणं नाभि-(नो वि) पत्थए / गायं नो परिसिञ्चे जा, न वीएजा य अप्पयं // 1 // 4 / पुट्ठो य दंसमसएहिं, समरेव महामुणी / नागो संगामसीसे वा, सूरो अभिहणे परं // 10 // न संतसे न वारेजा, मणंपि न परोसए। उवेह न हणे पाणे, भुञ्जन्ते मंससोणियं // 11 // 5 / परिजुगणेहिं वत्थेहि, होक्खामित्ति अचेलए। अदुवा सचेलए होक्खं, इइ भिक्खू न चिन्तए // 12 // एगयाऽचेलए (अचेलए सयं) होइ, सचेले प्रावि एगया। एयं धम्महियं नचा, नाणी नो परिदेवए / / 13 // 6 / गामाणुगामं रीयन्तं, अणगारं अकिंचणं / अरई अंणुप्पविसे, तं तितिक्खे परिसहं // 14 // अरई पिट्ठयो किच्चा, विरए थायरक्खिर / धम्मारामे निरारम्भे, उवसन्ते मुणी चरे // 15 // 7 / सङ्गो एस मगुस्साणं, जायो लोगम्मि इथियो / जस्स एया परिन्नाया, सुकडं तस्स सामराणं // 16 // एमाणा(दा)य मेहावी, पङ्कभूया उ इथियो (जहा एया लहुस्सगं)। नो ताहिं विणिहनिजा, चरेजऽत्तगवेसए // 17 // 8 / एग (एगे) एव चरे लाढे(द), अभिभूय परीसहे / गामे वा नगरे वावि, निगमे वा रायहाणिए // 18 // यसमाणो चरे भिक्खू, नेव कुजा परिग्गहं / असंसत्तो गिहत्थेहि, अणिकेश्रो परिव्वए // 11 // 1 / सुसाणे Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदगिमसुधासिन्धु प्रयोदशमी विमागा सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व एगयो / अकुक्कुयो निसीएजा, न य बित्तासए परं // 20 // तत्थ से चिट्ठ(अच्छ)माणस्स, उत्सग्गाऽभिधारए (उवसग्गभयं भवे) / सङ्काभीयो न गच्छेजा, उद्वित्ता अन्नमासणं // 21 // 10 / उन्नावयाहिं सेनाहिं, तबस्सी भिक्खू थामवं / नातिवेलं विहन्नेजा, पावदिट्ठी विहन्नइ // 22 // पइरिक्कं उबस्सयं, लद्बुकल्लाणं अदुव पावयं / किमेगरायं करिस्सइ, एवं तत्थहियासए // 23 // 11 / अक्कोसेजा परो भिक्खु, न तेर्सि पडिसंजले / सरिमो होइ बालाणं, तम्हा भिक्खू न संजले // 24 // सोचाणं फरसा भासा, दारुणा गामकराटया। तुसिणीयो उवेहेजा, न तायो मणसीकरे // 25 // 12 / हो न संजले भिक्खू, मणंपि न परोसए / तितिक्खं परमं नचा, भिक्खू धम्मं विचिन्तए // 26 // समणं संजयं दन्तं, हणेजा कोइ कत्थई। नस्थि जीवस्त नासो त्ति, ण तं पेहे असाहुवं (एवं पेहेज संजए) (न य पेहे असाधुयं) // 27 // 13 / दुक्करं खलु भो निच, अणगारस्स भिक्खुगो / सव्वं से जाइयं होइ, नत्थि किंचि अजाइयं // 28 // गोयरग्गपविट्ठस्स, पाणी नो सुप्पसारए। सेयो अगारवासु त्ति, इह भिक्खू न चिन्तए // 21 // 14 / परेसु घासमेसेजा, भोयणे परिणिहिए। लद्धे पिराडे बाहरिजा, अलद्धे नाणुतप्पए (वा नाणुतप्पिज पण्डिए) // 30 // अजेवाहं न लम्भामि, अवि लाभो सुए सिया। जो एवं पडिसचिवखे अलाभो तं न तज्जए॥ 31 // 15 नचा उप्पइयं दुक्खं, वेयणाए दुहट्ठिए। श्रदीणो गवए पन्न, पुट्ठो तत्थ हियासए // 32 // तेगिच्छं नाभिनन्देज्जा, संचिक्खऽत्तगेवसए। एवं खु तस्स सामगणं, जं न कुज्जा न कारवे // 33 // 16 / अचेलगस्स लूहस्स, संजयस्स तवस्सिणो / तणेसु सुयमाणस्स, हुज्जा गायविराहणा // 34 // श्रायवस्स निवारणं, तिदुला (अतुला, त्रिपुला) हवइ वेयणा एवं (एय) नचा न सेवन्ति, तन्तुजं (तंतयं) तणतजिया Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [11 भीमदत्तराध्ययनस्त्रम् ।मध्ययन 3] // 35 // 17 किलिनगाए मेहावी, पङ्कणं व रएण वा। प्रिंसु वा परितावेण, सायं नो परीदेवए // 36 // वेएज (वेइंतो) निजरा-पेहि अारियं धम्मणुत्तरं / जाव सरीरभेश्रोत्ति, जल्लं कारण धारए (जल्लं काए ण उबटे) // 37 // 18 / अभिवायण-मन्भुटाणं, सामी कुजा निमन्तणं / जे ताई पडिसेवन्ति, न तेसिं पीहए मुणी // 38 // अणुक्कस्साई अप्पिच्छे, अन्नाएसी अलोलुए। रसेसु (सरसेसु) नाणुगिज्झेजा, नाणुतप्पेज पन्नवं // 31 // 16 / से नूणं मए पुव्वं, कम्माऽणाणफला कडा / जेणाहं नाभिजागामि, पुट्ठो केणइ कराहुई // 40 // यह पच्छा उदिजन्त, कम्माऽणाणफला कडा / एवमस्सासि अप्पाणं, नचा कम्मविवागयं // 41 // 20 / निरझुगम्मि विरयो, मेहुणायो सुसंवुडो / जो सक्खं नाभिजाणामि, धम्म कलाणपावगं // 42 // तवोवहाणमादाय, पडिमं पडिवजिय (पडिवजो ) / एवं पि विहरयो मे, छउमं न निबट्टइ // 43 // 21 / नत्थि नूनं परलोए, इड्डी वावि तवस्सिणो। अदुवा वञ्चियो मित्ति, इइ भिक्खू न चिन्तए // 44 // अभू जिणा अस्थि जिणा, अदुवावि भविस्सई / मुसं ते एवमाहंसु, इइ भिक्खू न चिन्तए // 45 // 22 / एए परीसहा सव्वे, कासवेणं पवेइया / जे भिक्खू न विहन्नेजा, पुट्ठो केणइ कन्हुइ // 46 // त्ति बेमि // // इति द्वितीयमध्यनम् // 2 // // 1 // अथ चतुरङ्गीयाख्यं ततीयमध्ययनम् // चत्तारि परमङ्गाणि, दुल्लहाणीह जन्तुणो(देहिणो) / माणुसत्तं सुई सद्धा, संजमम्मि य वीरियं // 1 // समावन्ना गा संसारे, नाणागोत्तासु जाइसु / कम्मा नानाविहा कटु, पुढो विस्संभिया पया // 2 // एगया देवलोएसु, नरएसुवि एगया। एगया त्रासुरं कायं, अहाकम्मेहिं गच्छई // 3 // एगया खत्तियो होई, तयो चण्डालबोक्कसो / तयो कीडपयङ्गो य, तयो कुन्थुपि. Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 19]. [ श्रीमदागनसुपसिधा त्रयोदशमी बिनाना वीलिया // 4 // एवमावजोणीसु, पाणिणो कम्मकिविसा / न निवजन्ति संसारे, सबढेसु य खत्तिया // 5 // कम्ममङ्गोहिं सम्मूढा, दुक्खिया बहु. वेयणा / प्रमाणुसासु जोणीसु, विनिहम्मन्ति पाणिणो // 6 // कम्माणं तु पाहाणाए, थाणुपुब्बी कयाइ उ / जीवा सोहिमणुप्पत्ता, प्राययन्ति मणुस्सयं (जायन्ते मणुसत्तयं)॥७॥ माणुस्सं विग्गहं लद्ध, सुई धम्मस्स दुल्लहा / जं सोचा पडिवजन्ति, तवं खन्तिमहिंसयं // 8 // श्राहच्च सवणं लद्ध, सद्धा परमदुल्लहा / सोचा नेत्राउयं मग्गं, बहवे परिभस्मई // 1 // सुई च लद्भुसद्धं च, वीरियं पुण दुल्लहं / बहवे रोयमाणावि, नो य णं पडिवजई // 10 // माणुसत्तंमि थायात्रो, जो धम्मं सोच सरहे / तवस्सी वीरियं लद्भु, संबुडे निद्भुणे रयं // 11 // सोही उज्जुयभूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई / निधाणं परमं जाइ, घयसित्ति ब पावए // 12 // विगिश्च कम्मुणो हेउं, जसं संचिणु खन्तिए / पावं सरीरं हिच्चा, उडढं पकमई दिसिं // 13 // विसालिसहिं सीलेहि,जख्खा उत्तर उत्तरा / महासुका व दिप्पन्ता, मन्नंता अपुणचवं // 14 // अप्पिया देवकामाणं, कामरूवविउविणो / उड्ढं कप्पेसु चिट्ठन्ति, पुवा वाससया बहु // 15 // तत्थ टिच्चा जहाठाणं, जक्खा बाउक्खए चुया / उविन्ति माणुसं जोणिं, से दसङ्गेऽभिजायए // 16 // खितं वत्थु हिरगणं च, पसवो दासपोरसं / चत्तारि कामखन्धाणि, तत्थ से उखवजई // 17 // मित्तवं नायवं होइ, उच्चागोए य वरणवं / अप्पायंके महापन्ने, अभिजाए जसो बले // 18 // भोच्चा माणुस्सए भोए, अप्पडिरूवे श्रहाउयं / पुदि विसुद्धसद्धम्मे, केवलं बोहि बुझिया // 16 // चउरङ्गदुल्लह मच्चा, संजमं पडिवजिया / तवसा धुतकम्मसे सिद्धे हवइ सासए // 20 // त्ति बेमि / // इति तृतीयमध्ययनम् // 3 // Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमदुत्तरी ययनसूत्रम्: अध्ययन 4 // 4 // अथ प्रमादाप्रमादा (असंखया)भिवं चतुर्थमध्ययनम् // , असंखयं जीविय मा पमायए, जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं / एवं वियाणाहि जणे पमत्ते, कराणु विहिंसा अजया गिहिन्ति // 1 // जे पावकम्मेहि धणं मणूमा, समाययन्ती अमई गहाय.। पहाय ते पासपयट्टिए नरे, वेराणुबद्धा नरयं उवेन्ति // 2 // तेणे जहा सन्धिमुहे गहीए, सकम्मुणा किन्नइ पावकारी / एवं पया पेच इहं च लोए, कडाण कम्माण न मुक्ख अस्थि // 3 // संसारमावन परस्स अट्टा, साहारणं जं च करेइ कम्मं / कम्मरस ते तस्स उ वेयकाले. न बन्धवा बन्धवयं उवेन्ति // 4 // वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते, इमम्मि लोए अदुवा परस्था। दीवप्पण? व अणन्तमोहे. नेयाज्यं दद्रुमदट्ठमेव // 5 // सुत्तेसु यावी पडिबुद्धजीवी, न वीससे पण्डिए यासुपन्ने / घोरा मुहुत्ता अबलं सरीरं, भारुण्डपक्खी व चरऽप्पमत्तो // 6 // चरे पयाई परिसङ्कमाणो, जंकिञ्चि पासं इह मन्नमाणो। लाभन्तरे जीविय बूहइत्ता, पच्छा परिनाय-मलावधंसी // 7 // छन्दं निरोहेण उवेइ मोक्खं, अासे जहा सिक्खियवम्मधारी / पुव्वाइं वासाई चरऽप्पमत्तो, तम्हा मुणी खिप्पमुवेइ मुक्खं // 8 // म पुवमेवं न लभेज पच्छा, एसोऽवमा सासयवाइयाणं। विसीदई सिढिले पाउयंमि / कालोवणीए सरीरस्स भेदे // 1 // खिप्पं न सक्केइ विवेगमेउं, तम्हा समुट्ठाय पहाय कामे / समिच्च लोग समया महेसी, अप्पाणरक्खी चर मप्पमत्तो // 10 // मुहुमुह मोहगुणे जयन्तं, श्रणेगरूवा समणं चरन्तं / फासा फुमन्ती असमञ्जसं च, न तेसु भिक्खू मणसा पउस्से // 11 // मन्दा य फासा बहुलोहणिजा, तहप्पंगारेसु मणं न कुजा / रक्खिज कोहं विणएज माणं,मायं न सेवेज पहेज लोहं // 12 // जे संखया तुच्छ-परप्पवाई, ते विजदोसाणुगया परझा / एते अहम्मे ति दुगुच्छमाणो कङ्के गुणे जाव सरीरभेश्रो // 13 // त्ति बेमि // ॥इति चतुर्थमध्ययनम् // 4 // Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64-]. [ भीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो पिनागः // 5 // अथ अकाममरणीयाख्यं पञ्चमं अध्ययनम् // अण्णवंसि महोहंसि, एगे तिराणे दुरुत्तरे। तत्थ एगे महापन्ने, इमं पराहमुदाहारे // 1 // सन्तिमे य दुवे ठाणा, अक्खाया मारणन्तिया / अकाममरणं चेव, सकाममरणं तहा // 2 // बालाणं (तु) कामं तु, मरणं असई भवे / पण्डियाणं सकामं तु, उक्कोसेण सई भवे // 3 // तत्थिमं पढमं ठाणं, महावीरेण देसियं / कामगिद्धे जहा बाले, भिसं कूराइं कुब्बई // 4 // जे गिद्धे कामभोगेसु, एगे कूडाय गच्छइ / न मे दिट्टे परे लोए, चक्रवृदिट्ठा इमा रई // 5 // हत्थागया इमे कामा, कालिया जे श्रणागया। को जाणई परे लोए, अस्थि वा नत्थि वा पुणो ? // 6 // जणेण सद्धिं होक्खामि, इइ बाले पगभई / कामभोगाणुराएणं. केसं संपडिवजई // 7 // तयो से दराडं समारभई, तसेसु थावरेसु य / अट्ठाए य अणट्ठाए, भूयग्गाम विहिंसई // 8 // हिंसे बाले मुसाबाई, माइल्ले पिसुणे सढे / भुञ्जमाणे सुरं मंसं,सेयमेयं ति मन्नई // 1 // कायसा वयसा मत्ते, वित्ते गिद्धे य इत्थिसु / दुहयो मलं संचिणइ, सिसुणागोव्व मट्टियं // 10 // तयो पुट्ठो श्रायङ्कणं, गिलाणो परितपई / पभीयो परलोगस्स, कम्माणुप्पेहि अप्पणो // 11 // सुया मे नरए ठाणा, असीलाणं च जा गई / बालाणं कूरकंम्माणं पगाढा जस्थ वेयणा // 12 // तत्थोऽववाइयं ठाणं, जहा में तमणुस्सुयं / श्राहाकम्मेहिं गच्छन्तो, सो पच्छा परितप्पइ // 13 // जहा सागडियो जाणं, समं हिचा महापहं / विसमं मग्गमोइराणो(गाढो), अक्खे भग्गम्मि सोयइ // 14 // एवं धम्मं विउक्कम्म, अहम्मं पडिवजिया / बाले मच्चमुहं पत्ते, अक्खे भग्गे व सोयइ // 15 // तयो से मरणन्तंमि, बाले सन्तसइ भया / अकाममरणं मरइ, धुत्ते वा कलिणा जिए // 16 // एवं अकाममरणं, बालाणं तु पवेइयं / एत्तो सकाममरणं, पण्डियाणं सुणेह मे // 17 // मरणं पि सपुराणाणं, जहा मे तमणुस्सुयं / विप्पसन्नमणाघायं, संजयाणं वुसीमयो // 18 // Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् / अध्ययनं 5) न इमं सवेसु भिक्खूमु, न इमं सव्वेसुऽगारिसु / नाणासीला श्र गारस्था, विसमसीला य भिक्खुणो // 11 // सन्ति एगेहिं भिक्खुहिं, गारत्था संजमुत्तरा / गारत्थेहि य सव्वेहि, साहवो संजमुत्तरा // 20 // चीराजिणं नगिणिणं, जडीसंघाडिमुण्डिणं / एयाई पि न तायन्ति, दुस्सीलं पडियागयं // 21 // पिराडोलएव दुरसीले, नरगाश्रो न मुच्चई / भिक्खाए वा गिहत्थे वा, सुव्वए कम्मई दिवं // 22 // अागारिसामाइयङ्गाणि, सड्ढी कारण फोसए। पोसहं दुहयो पक्खं, एगरायं न हावए // 23 // एवं सिक्खासमावन्ने, गिहवासे वि सुव्वए / मुच्चइ छविपव्वायो, गच्छे जक्खसलोगयं // 24 // अह जे संवुडे भिक्खू, दोगहमेग(मन्न)यरे सिया / सव्वदुक्खपहीणे वा, देवे वावि महिड्ढिए // 25 // उत्तराई विमोहाई, जुइमन्ताऽणुपुव्वसो / समाइराणाइं जक्खेहिं, बारासाई जसंसिणो // 26 // दीहाउया इढि(दित्ति) मन्ता, समिद्धा कामरूविणो / बहुणोववन्नसंकासा, भुजो अच्चिमालिप्पभा // 27 // ताणि ठाणाणि गच्छन्ति, सिक्खित्ता संजमं तवं / भिक्खाए वा गिहित्थे वा, जे सन्ति पडिनिव्वुडा // 28 // तेसिं सोचा सपुजाणं, संजयाण वुसीमयो। न संतसन्ति मरणन्ते सीलवन्तो बहुस्सुया // 21 // तुलिया विसेसमादाय, दयाधम्मस्स खन्तिए। विप्पसीएज मेहावी, तहाभूएण अप्पणा // 30 // तो काले अभिप्पेए, सड्ढी तालिसमन्तिए / विणइज्ज लोम हरिसं, भेयं देहम्स कंखए॥ 31 // ग्रह कालम्मि संपत्ते आघायाय समुस्सयं सकाममरणं मरइ, तिराह-मन्नयरं मुणि // 32 // त्ति बेमि // // इति पञ्चममध्ययनम् // 5 // // 6 // अथ क्षुल्लनिग्रन्थीयं षष्ठमध्ययनम् // जीवन्तविजा पुरिसा, सव्वे ते दुक्खसंभवा / लुप्पन्ति बहुसो मूदा संसारंमि अणन्तए // 1 // समिक्स पण्डिए तम्हा (तम्हा समिक्ख मेहावी), पासजाईपहे बहू / अप्पणा (अत्तट्टा) सच्चमेसेजा, मेत्तिं भूएसु कप्पए // 2 // Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 66 ] [नामदागमसुधासिन्धुः प्रयोदशमी विमाना माया पिया न्हुसा भाया, भजा पुत्ता य श्रोरसा / नालं ते मम ताणाय लुप्पन्तस्स सकम्मणा // 3 // एयमटुंसपेहाए, पासे समियदंसणे / छिन्द गेद्धिं (हिं) सिणेह च, न कळे पुव्वसंथवं // 4 // गवासं मणिकुडलं, पसवो दास पोरुसं। सबमेयं चइत्ताणं, कामख्वी भविस्ससि // 5 // थावरं जंगमं चेव, धणं धन्न उवक्खरं / पञ्चमाणस्स कम्मेहिं, नालं दुक्खाश्रो मोयणे // 6 // अज्झत्यं सव्वयो सव्वं, दिस्स पाणे पियायए / न हणे पाणिणो पाणे, भयवेरायो उवरए // 7 श्रादाणं नरयं दिस्स, नायइज्ज तणामवि / दोगुञ्छी अप्पणो पाए, दिन्न भुञ्जज भोयणं // 8 // इहमेगे उ मनन्ति, अप्पचक्खाय पावगं / पायरियं (अायाऽऽरियं) विदित्ता णं, सव्वदुक्खा विमुच्चई // 1 // भणन्ता अकरेन्ता य, बन्धमोक्खपइगिणणो / वायाविरियमेत्तेण, समासासन्ति अप्पयं // 10 // न चित्ता तायए भासा कयो विज्जाणुसासणं ? / विसन्ना पावकम्मे(किञ्च हिं, बाला पण्डियमाणिणो ? // 11 // जे केइ सरीरे सत्ता, वराणे रूवे य सव्वसो / मणासा वचसा चेव (कायवकणं), सब्वे ते दुक्खसंभवा // 12 // श्रावना दिहमद्धाणं, संसारम्मि अणन्तए / तम्हा सबदिसं पस्सं (पप्प), अप्पमत्तो परिव्वए // 13 // बहिया उड्ढमादाय नाऽवकंखे कयाइ वि। पुव्वकम्मखयट्ठाए, इमं देहं समुद्धरे (देहमुदाहरे) // 14 // विविच (विगिंच) कम्मुणो हेउं कालकंखी परिव्वए। मायं पिण्डस्स पाणस्स, कडं लभ्रूण भक्खए // 15 // सन्निहिं च न कुग्विजा, लेवमायाए संजए। पक्खीपत्तं समादाय, निरवेक्खो परिवए // 16 // सएणासमिश्रो लज्जू , गामे अणियथो चरे / अप्पमत्तो पमत्तेहिं, पिण्डवायं गवेसए // 17 // एवं से उदाहु, अणुत्तरनणी अणुत्तरदंसी अणुत्तरनाणदंसणधरे अरहा नायपुत्ते भगवं वेसालिए वियाहिए // 18 // ति बेमि // ... ॥इति पटमभ्ययनम् // 6 // Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामदुत्तराध्ययसूत्रम् :: अध्पयनं . ] [0 // 7 // अथ औरभ्रीयाख्यं सप्तममध्ययनम् // ... जहाऽऽएसं समुदिस्स, कोइ पोसेज एलयं / श्रोदणं जवसं देजा, पोसेन्जावि सयङ्गणे // 1 // तत्रो से पढे परिवूढे, जायमेदे महोदरे। पीणिए विउले देहे, पाएसंपडि(रि)कङ्खए // 2 // जाव न एइ पाएसे, ताव जीवइ से दुही। श्रह पत्तंमि आएसे, सीसं छेत्तूण भुजइ // 3 // जहा खलु से उम्भे, श्राएसाए समीहिए / एवं बाले अहम्मि8, ईहइ निरयाउयं // 4 // हिंसे बाले (कोही) मुसाबाई, श्रद्धाणम्मि विलोवए / अन्नदत्तहरे बाले (तेणे), माई करानुहरे सढे // 5 // इत्थीविसयगिद्धे य, महारम्भपरिग्गहे / भुञ्जमाणे सुरं मंसं, परिवूढे परंदमे // 6 // अयककरभोई य तुन्दिल्ले चियलोहिए / अाउयं नरए कङ्ख, जहाऽऽएसंव एलए // 7 // यासणं सयणं जाणं, वित्ते कामाणि (वित्तं कामे य) भुजिया / दुस्साहडं धणं हिच्चा, बहुँ संचिणिया रयं // 8 // तश्रो कम्मगुरू जन्तू, पच्चुप्पन्नपरायणे / अएव्व आगयाऽऽएसे, मरणन्तम्मि सोयइ // 1 // तयो ग्राउ परिक्खीणे, चुयो देहा विहिंसगा। श्रासुरीयं दिसं बाला, गच्छन्ति अवसा तमं // 10 // जहा कागिणिए हेउं, सहस्सं हारई नरो। अपत्थं अम्बगं भोचा, राया रज्जं तु हारए // 11 // एवं माणुस्सगा कामा, देवकामाणमन्तिए / सहस्सगुणिया भुजो, अाउं कामा य दिबिया // 12 // अणेगवासा नउया, जा सा पनवश्रो ठिई / जाणि जीयन्ति (हारेंति) दुम्मेहा, ऊणे वाससयाउए // 13 // जहा ए तिन्नि वरिणया, मूलं घेत्तूण निग्गया। एगोऽस्थ लहए लाभं, एगो मूलेण श्रागश्रो // 14 // एगो मूलंपि हारित्ता, थागो तत्थ वाणियो / ववहारे उवमा एसा, एवं धम्मे वियाणह // 15 // माणुमत्तं भवे मूलं, लाभो देवगई भवे / मूलच्छेएण जीवाणं, नरगतिरिक्खतणं धुवं // 16 // दुहयो गई बालस्स, श्रावई बहुमूलिया। देवत्तं माणुसत्तं च, जं जिए लोलया सढे // 17 // तो जिए सई होई, दुविहं Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदांगमसुधासिन्धुः // त्रयोदश्चमी विभागः दोग्गइं गए / दुलहा तस्स उम्मग्गा, श्रद्धाए सुचिरादवि // 18 // एवं जियं सपेहाए, तुलिया बालं च पण्डियं / मूलियं ते पवेसन्ति, माणुसं जोणिमिन्ति जे // 11 // वेमायाहिं सिक्खाहिं, जे नरा गिहिसुव्वया / उवेन्ति माणुसं जोणिं, कम्मसच्चा हु पाणिणो // 20 // जेसि तु विउला सिक्खा, मूलियं ते अइच्छिया (अतिट्टिया, विउट्टिया) ।सीलवन्ता सवीसंसा, अदीणा जन्ति देवयं // 21 // एवमद्दीणवं भिक्खु, अागारिं च वियाणिया / कहराणु जिचमेलिक्खं, जिचमाणो न संविदे // 22 // जहा कुसग्गे उदगं, समुद्दण समं मिणे / एवं माणुस्सगा कामा, देवकामाण-मन्तिए // 23 // कुसग्गमेत्ता इमे कामा, सन्निरुद्ध म्मि पाउए / कस्म हेउं पुराकाउं, जोगक्खेमं न संविदे // 24 // इह कामाणियट्टस्स, अत्तठे अवरज्मई / सुच्चा (पत्तो) नेयाउयं, मग्गं, जं भुजो परिभस्सइ // 25 // इह कामा नियट्टस्स, अत्त8 नावरज्झइ / पूइदेह-निरोहेणं, भवे देवे तिमे सुयं // 26 // इड्ढी जुई जसो वराणो, अाउं सुहमणुत्तरं / भुजो, जत्थ मणुस्सेसु, तत्थ से उबवजई // 27 // बालस्स पस्त बालतं, अहम्मं पडिवजिया / चिचा धम्मं अहम्मि?, नरए उअवजई // 28 // धीरस्स पस्स धीरत्तं, सच्चधम्माणुवत्तिणो / चिचा अधम्मं धम्मि8, देवेसु उववजई // 21 // तुलियाण बालभावं, अवालं चेव पण्डिए / चइऊण बालभावं. अबालं सेवए मुणी // 30 // त्ति बेमि // ॥इति सप्तममध्ययनम् // 7 // // 8 // अथ कापिलीयाख्यमष्टममध्ययनम् // ... अधुवे असासयम्मि (अधुवंमि मोहगहणए) संसारम्मि दुक्खपउराए।कि नाम होज तं कम्मयं ?, जेणाहं दोग्गई न गच्छेजा (जेणाधं दुग्गई तो मुच्चेज) // 1 // विजहित्तु पुव्वसंजोगं, न सिणेहं कहिंचि कुवेजा। असिणेह. सिणेहकरेहिं दोसपउ(यो सेहिं मुच्चए भिक्खु // 2 // तो नाणदसण-समग्गो हियनिस्सेअसाए सबजीवाणं / तेसिं विमोक्खणढाए, भासई मुणिवरो Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् :: अध्ययनं 81 [ 69 विगयमोहो // 3 // सबं गन्थं कलहं च, विपनहे तहाविह(हो) भिक्खू / सव्वेसु कामनाएसु, पासमाणो न लिप्पई ताई // 4 // भोगामिस-दोसविसन्ने, हियनिस्सेयस-बुद्धिविवजत्थे / बाले य मन्दिए मूढे, बझई मच्छिया व खेलम्मि // 5 // दुपरिचया इमे कामा, नो सुजहा अधीरपुरिसेहिं / अह सन्ति सुब्बया साहू, जे तरन्ति अतरं वणिया वा (वणिया व समुद्द) // 6 // समणा मु एगे वदमाणा, पाणवहं मिया श्रायाणन्ता / मन्दा निरयं गच्छन्ति, बाला पावियाहिं दिट्ठीहिं / / 7 / / न हु पाणवहं अणुजाणे, मुच्चेज कयाइ सव्वदुक्खाणं / एवमारिएहिं अक्खायं, जेहिं इमो साहुधम्मो पन्नत्तो // 8 // पाणे य नाइवाएज्जा, से समिएति वुच्चई ताई / तयो से पावयं कम्म, निजाइ (निराणाई) उदगं व थलायो // / जगनिस्तिएहिं भूएहिं, तसनामेहिं थावरेहिं च (जगनिस्सियाण भूयाणं, तसाणं थावराण य), (जगनिस्सिएहि भूएहि, तसनामेहि थावरेहि य)। नो तेसिमारभे दराडं, मणसा वयसा कायसा चेव // 10 // सुद्धेसणायो नचाणं तत्थ ठवेज भिक्खू अप्पाणं / जायाए घासमेसेजा, रसगिद्धे न सिया भिक्खाए // 11 // पन्ताणि चेव सेवेजा, सीयपिण्डं पुराणकुम्मासं / अदु वुक्कसं पुलागं वा, जवणट्ठा(ए) निसेवए मंथु॥ 12 // जे लक्खणं च सुमिणं, अङ्गविज्जं च जे पउञ्जन्ति / न हु ते समणा वुचन्ति, एवं थायरिएहिं अक्खायं // 12 // इह जीवियं अणियमेत्ता, पब्भट्टा समाहिजोगेहिं / ते कामभोग-रसगिद्धा, उववजन्ति श्रासुरे काए // 14 // ततोऽवि य उवट्टित्ता, संसारं बहुँ अणु(परि)यडन्ति(वरंति) / बहुकम्म-लेवलित्ताणं, बोही होइ (जत्थ) सुदुल्लहा तेमि // 15 // कसिणं पि जो इमं लोयं, पडिपुराणं दलेज एगस्त / तेणावि से न संतूस्से (तुसेज) इइ दुप्पूरए इमे पाया // 16 // जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवडई / दोमासकयं कज्जं, कोडिए वि न निट्ठियं // 17 // नो रक्खसीसु गिज्झेजा, गराडवच्छासु णेगचित्तासु / जायो पुरिसं पलोभित्ता, खेलन्ति जहा व दासेहिं // 18 // नारीसु नो Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . [ श्रीमदागमसुधासिस्थुः // त्रयोदशमी विभाग:पगिज्झेजा, इत्थी-विप्पजहें अणगारे / धम्मं च पेसलं नचा, तत्थ ठविज भिक्खु अप्पाणं // 11 // इइ एस धम्मे अक्खाए, कविलेणं च विसुद्धपन्नेणं / तरिहिन्ति जे उ काहिन्ति, तेहिं पाराहिया दुवे लोगु // 20 // त्ति बेमि // // इति अष्टममध्ययनम् // 8 // // 6 // अथ नमिप्रव्रज्याख्यं नवममध्ययनम् // चइऊण देवलोगायो, उववन्नो माणुसम्मि लोगंमि / उवसन्त-मोह. णिजो, सरइ पोराणियं जाई // 1 // जाई सरित्तु भयवं, सहसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे / पुत्तं ठवेत्तु रज्जे, अभिणिक्खमई नमी राया // 2 // सो देवलोगसरिसे, अन्तेउर-वरगया वरे भोए / भुजित्तु नमी राया, बुद्धो भोगे परिचयइ // 3 // मिहिलं सपुरजणवयं बलमोरोहं च परियणं सव्वं / चिच्चा अभिनिखन्तो, एगन्त-महिटियो भयवं // 4 // कोलाहलगभूयं, श्रासी मिहिलाए पव्वयंतमि / तइया रायरिसिम्मि, नमिम्मि अभिणिक्ख-मन्तम्मि // 5 // अभुट्ठियं रायरिसिं, पव्वजा-ठाणमुत्तमं / सको माहणरूवेण, इमं वयणमञवी // 6 // किराणु भो ! अज मिहिलाए, कोलाहलगसंकुला। सुव्वन्ति दारुणा सद्दा, पासाएसु गिहेसु य // 7 // एयम8 निसामित्ता, हेउकारणचोइयो। तयो नमी रायरिसी, देविन्दं इणमब्बवी // 8 // मिहिलाए चेइए वच्छे, सीयच्छाए मणोरमे / पत्तपुप्फ-फलोवेए, बहूणं बहुगुणे सया // 1 // वारण हीरमाणंमि, चेइयंमि मणोरमे / दुहिया असरणा अत्ता, , एए कन्दन्ति भो ! खगा // 10 // एयम४ निसामित्ता, हेउकारणचोइयो। तो नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी // 11 // एस अग्गी व वाऊ य, एयं डझइ मन्दिरं / भयवं अन्तेउरं तेणं, कीस णं नावपिक्खह // 12 // .. एयमट्ठ निसामित्ता, हेउकारणचोइयो / तयो नमी रायरिसी, देवेन्दं इणमन्बी // 13 // सुई वसामो जीवामो, जेसि मो नत्थि किंच णं / मिहि. Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीमदत्तराध्ययनसूत्रम् / अध्ययन 41. [1.1 लाए डज्झमाणीए, न मे डन्झइ. किंच णं // 14 // चत्तपुत्तकलत्तस्स, निव्वापारस्स भिक्खुणो / पियं न विजई किंचि, अप्पियंपि न विजए // 15 // बहु खु मुणिणो भइ, अणगारस्स भिक्खुणो / सबथो विप्पमुक्करस, एगन्तमणुपस्सयो॥ 16 // एयमटुं निसामित्ता, हेउकारणचोइयो। तयो नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी // 17 // पागारं कारइत्ताणं, गोपुरऽट्टालगाणि य / उस्सूलए सयग्धी य, तो गच्छसि खत्तिया ! // 18 // एयमटुं निसामित्ता, हेउकारणचोइयो / तयो नमी रायरिसी, देवेन्दं इणमब्बवी // 11 // सद्धं नगरि किना, तवसंवरमग्गलं / खन्ति निउण-पागारं, तिगुत्तं दुप्पधंसयं // 20 // धणु परकम किच्चा, जीवं च ईरियं सया / घिई च केयणं किच्चा, सच्चेणं पलिमन्थए // 21 // तवनारायजुत्तेणं, भेत्तूणं कम्मकंचुयं / मुणी विगयसंगामो, भवायो परिमुच्चति // 22 // एयमढें निसामित्ता, हेउकारणचोइयो / नयो नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी // 23 // पासाए कारइत्ताणं, बड्डमाण गिहाणि य / वालग्गपोइयायो य, तो गच्छसि खत्तिया ! // 24 // एयमट्ट निसामित्ता, हेउकारणचोइयो। तयो नमी रायरिसी, देविन्दं इणमब्बवी // 25 // संसयं खलु सो कुणई, जो मग्गे कुणई घरं / जत्थेव गन्तुमिच्छेजा, तत्थ कुविज सासयं // 26 // एयम निसामित्ता, हेउकारण चोइयो / तयो नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमबवी // 27 // ग्रामोसे लोमहारे य, गरािठभेए य तकरे / नगररस खेमं काऊणं, तो गच्छसि खत्तिया ! // 28 // एयमट्ठ निसास्त्तिा , हेउकारणचोइयो / तयो नमी रायरिसी, देविन्दं इणमबवी // 21 // असई तु मणुस्सेहि, मिच्छा दराडो पउंजई / अकारिणोऽत्थ बज्झन्ति, मुचई कारो जणो // 30 // एयमटुं निसामित्ता. हेउकारण,चोइयो / तयो नमि रायरिसि, देविन्दो इणमब्बवी // 31 // जे केई. पत्थिवा तुभं, नानमन्ति नराहिवा ! / वसे ते ठावइत्ताणं, तो गच्छसि खत्तिया ! // 32 // एयम? Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 102 [ श्रीमंदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमी विमागेः निसामित्ता, हेउकारणंचोइयो / तत्रो नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी॥३३॥ जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुजए जिणे / एगं जिणेज अप्पाणं, एस से परमो जयो // 34 // अप्पाणमेव जुज्झाहि, किं ते जुन्झेण बज्झयो / अप्पाणमेवमप्पाणं, जिणित्ता सुहमेहति // 35 // पंचिन्दियाणि कोहं, माणं मायं तहेव लोहं च / दुजयं चेव अप्पाणं, सव्वं अप्पे जिए जियं // 36 // एयमटुं निसामित्ता, हेउकारणचोइयो / तयो नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमबवी // 37 // जइत्ता विउले जन्ने, भोइत्ता समणमाहणे / दचा भोचा य जट्टा य, तो गच्छसि खत्तिया ! // 38 // एयमटुंनिसामित्ता, हेउकारणचोइयो। तश्रो नमी रायरिसी, देविन्दं इणमब्बवी // 31 // जो सहस्सं सहस्साणं, मासे मासे गवं दए। तस्सावि संजमो सेयो, अदिन्तस्स वि किंच णं // 40 // एयम8 निसामित्ता हेउकारणचोइयो / तयो नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी // 41 // घोरासमं चइत्ता(जहित्ता) णं, अन्नं पत्थेसि थासमं / इहेब पोसहरयो, भाहि मणुयाहिवा ! // 42 // एयम8 निसामित्ता, हेउकारणचोइयो / तयो नमी रायरिसी, देविन्दं इणमब्बवी // 4 // मासे मासे तु जो बालो, कुसग्गेणं तु भुजइ / न सो सुअक्खायधम्मस्स, कलं अग्घइ सोलसिं // 44 // एयम४ निसामित्ता, हेउकारणचोइयो / तयो नमिं रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी // 45 // हिरगणं सुवरणं मणिमुत्तं, कंसं दूसं च वाहणं / कोसं च वढइत्ताणं, तो गच्छसि खत्तिया ! // 46 // एयमटुं निसामित्ता, हेजकारणचोइयो / तयो नमी रायरिसी, देवेन्दं इणमब्बवी // 17 // सुवरणरुप्पस्स य पव्वया भवे, सिया हु केला. ससमा असंखया / नरस्स लुद्धस्स न तेहिं किंचि, इच्छा हु अागाससमा अणन्तया // 48 // पुढवी साली जवा चेव, हिरगणं पसुभिस्सह / पडि. पुराणं नालमेगस्स, इइ विजा तवं चरे // 41 // एयमटुंनिसामित्ता, हेउकारणचोइयो / तयो नमि रायरिसिं, देविन्दो इएमबवी // 50 // अच्छेरय Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययननम् / अध्ययनं 1 : [ 103 मन्भुदये, भोए जहसि(चयसि) पत्थिंवा ! असन्ते कामे पत्थेसि, संकप्पेण विहसि // 51 // एयम8 निसामित्ता, हेउकारण चोइयो / तयो नमी रायरिसी, देवेन्दं इणमब्बवी // 52 // सल्लं कामा विसं कामा, कामा यासीविसोवमा / कामे य पत्थेमाणा, अकामा जन्ति दोग्गइं // 53 // अहे वयइ कोहेणं, माणेणं अहमा गई / माया गइपडिग्यायो, लोभायो दुयो भयं // 54 // अवउभिऊण माहणरूवं विउरूव्विऊण इन्दत्तं / वन्दइ अभित्थुणन्तो, इमाहि महुराहिं वग्गूहि // 55 // अहो ते निजियो कोहो, ग्रहो माणो पराजियो / ग्रहो ते निरकिया माया, अहो लोभो वसीकयो // 56 // ग्रहो ते अजवं साहु, अहो ते साहु मद्दवं / अहो ते उत्तमा खन्ती, ग्रहो ते मुत्ति उत्तमा / 57 // इहं सि उत्तमो भन्ते ! पच्छा होहिसि उत्तमो / लोगुत्तमुत्तमं ठाणं, सिद्धिं गच्छसि नीरो // 58 // एवं अभित्थुणन्तो, रायरिसिं उत्तमाए सद्धाए / पायाहिणं करेन्तो, पुणो पुणो वन्दए सको // 51 // तो वन्दिउण पाए, चक्कंकुस-लक्खणे मुणिवर. स्स / अागासेऽणुप्पइयो ललिय चवल-कुण्डल-तिरीडी // 6 // नमी नमेइ अप्पाणं, सक्खं सक्केण चोइयो / चइऊण गेहं वइदेही, सामराणे पज्जुवटियो / / 61 // एवं करन्ति संबुद्धा, पण्डिया पवियवखणा / विणियन्ति भोगेसु, जहासे नमी रायरिसि // 62 // त्ति बेमि // // इति नवममध्ययनम् // 9 // . . // 10 // अथ द्रमपत्रकाख्यं दशममध्ययनम् // दुमपत्तए पगडुयए जहा, निवडइ रायगणाण श्रवए। एवं मणुयाण जीवियं, समयं गोयम ! मा पमाथए // 1 // कुसग्गे जह योसबिन्दुए, थोवं चिट्ठइ लम्बमाणए। एवं मणुयाण जीवियं, समयं गोयम ! मा पमायए // 2 // इह इत्तरियम्मि अाउए, जीवियए बहुपचवायए। विहुणाहि रयं पुराकडं, समयं गोयम ! मा पमायए // 3 // दुलहे खलु माणुसे भवे, Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः // त्रयोदशमी विभागः चिरकालेण वि सव्वपाणिणं। गादा य विवाग कम्मुणो, समयं गोयम ! मा पमायए // 4 // पुढविकाय-मइगयो उक्कोसं जीवो उ संवसे / कालं संखाईयं, समयं गोयम ! मा पमायए॥ 5 // श्राउकायमइगयो, उक्कोसं जीवो उ संवसे। कालं संखाईयं, समयं गोयम ! मा पमायए // 6 // तेउकाय-मइगयो, उक्कोसं जीवो उ संवसे। कालं संखाईयं, समयं गोयम ! मा पमायए // 7 // वाउकायमइगयो, उक्कोसं जीवो उ संवसे / कालं संखाईयं, समयं गोयम! मा पमायए // 8 // वणस्सइकाय-मइगयो, उक्कोसं जीवो उसंवसे / कालमणन्त-दुरन्तयं, समयं गोयम ! मा पमायए॥१॥ बेइन्दियकाय-मइगयो, उक्कोसं जीवो उ संबसे। कालं संखिजसन्नियं, समयं गोयम ! मा पमायए // 10 // तेइन्दिकायमइगयो, उक्कोसं जीवो उ संवसे / कालं संखिजसन्नियं, समयं गोयम ! मा पमायए // 11 // चउरिन्दियकाय-मइगयो, उक्कोसं जीवो उ संवसे / कालं संखिज्जसन्नियं समयं गोयम ! मा पमायए // 12 // पंचिन्दियकाय-मइगयो, उक्कोसं जीवो उ संवसे / सत्तठ्ठ-भवगहणे, समयं गोयम ! मा पमायए // 13 // देवे नेरइए अइगयो, उक्कोसं जीवो उ संवसे / इसे कभवगहणे, समयं गोयम ! मा पमायए // 14 // एवं भवसंसारे संसरइ, सुहासुहेहिं कम्मेहिं / जीवो पमायबहुलो, समयं गोयम ! मा पमायए // 15 // लभ्रूणवि माणुसत्तणं, पारियतं णं पुणरवि दुल्लहं / बहवे दसुया मिलेक्खुया, समयं गोयम ! मा पमायए // 16 // लक्षुण वि पारियत्तणं, अहीणपंचिन्दियया हु दुलहा / विगलिन्दियया हु दीसइ, समयं गोयम ! मा पयामए // 17 // अहीणपंचिन्दियत्तं पि से लहे उत्तमधम्मसुई हु दुल्लहा। मिच्छत्तनिसेवए जणे, समय गोयम ! मा पमायए॥ 18 // लण वि उत्तमं सुई, सद्दहणा पुणरावि दुल्लहा। मिच्छित्तनिसेवए जो, समयं गोयम ! मा पमायए // 11 // धम्म पि हु सद्दहन्तया, दुल्लहया कारण Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीमदत्तराध्ययनम् / अध्ययन 10 ] "'. ... [1 // फासया। इह कामगुणेहिं (हि) मुच्छिया, समयं गोयम ! मा पमायए // 20 // परिजूरइ ते सरीरये, केसा पराडरया हवन्ति ते / से सोयबले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए // 21 // परिजूरइ ते सरीरयं केसा पराडुरया हवन्ति ते / से चक्खुबले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए // 22 // परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पराडुरया हवन्ति ते / से घाणवले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए // 23 // परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पराडुरया हवन्ति ते / से जिब्भबले य हायई, समयं गोयम ! मा पमाषए // 24 // परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पराडुरया हवन्ति ते / स फासबले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए // 25 // परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते / से सव्वबले य हायई,समयं गोयम ! मा पमायए // 26 // अरई गण्डं विसूइया, श्रायंका विविहा फुसन्ति ते / विहडइ विद्धंसइ ते मरीरयं, समयं गोयम ! मा पमायए // 27 // वुच्छिन्द सिणेहमप्पणो, कुमुयं सारइयं व पाणियं से सव्वसिणेहवजिए, समयं गोयम ! मा पमायए // 28 // चिचाण धणं च भारियं, पव्वइयो हि सि श्रणगारियं / मा वन्तं पुणो वि याविए, समयं गोयम ! मा पमायए // 21 // अवउझिय मित्तवन्धवं, विउलं चेव धणोहसंचयं / मा तं बिइयं गवेसए, समयं गोयम ! मा पमायए // ३०॥न हु जिणे अज दिस्सई, बहुमए दिस्सइ मग्गदेसिए / संपइ नेयाउए पहे, समयं गोयम ! मा पमायए // 31 // श्रवसोहियकराटगापहं, श्रोइराणोऽसि पहं महालयं / गच्छसि मग्गं विसोहिया, समयं गोयम ! मा पमायए // 32 // अबले जह भारवाहए, मा मग्गे विसमेऽवगाहिया। पच्छा पच्छाणुतावए, समयं गोयम ! मा पमायए // 33 // तिगणो हु सि अण्णवं, महं किं पुण चिट्ठसि तीरमागयो ? / अभितुर पारं गमित्तए, समयं गोयम ! मा पमायए // 34 // अकलेवरसेणिमूसिया, सिद्धिं गोयम ! लोयं गच्छसि / खेमं च सिवं अणु Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमार्गमसुभासिनु त्रयोदशमो विभाग: तर, समयं गोयम ! मा पमायए // 35 // बुद्धे परिनिव्वुड़े चरे, गामगए नगरे व संजए / सन्तीमग्गं च बूहए, समयं गोयम ! मा पमायए // 36 // बुद्धस्स निसम्म भासियं, सुकहिय-मट्ठ-पयोवसोहियं / रागं दोसं च छिन्दिया, सिद्धिं गई गए भयवं गोयमे // 37 // त्ति बेमि // // इति दशममध्ययनम् // 10 // // 13 // अथ बहुश्रुत-पूजाख्यमेकादशममध्ययनम् // ____ संजोगा विप्पमुक्कस्स, अणगारस्म भिक्खुणो / अायारं (विणयं) पाउकरिस्सामि, प्राणुपुरि सुणेह मे // 1 // जे यावि होइ निविज्जे, थद्धे लुद्धे अणिग्गहे / अभिक्खणं उल्लवई, अविणीए अबहुस्सुए // 2 // ग्रह पञ्चहिं ठाणेहिं, जेहिं सिक्खा न लगभई / थम्भा मोहा पमाएणं रोगेणालस्सेण य // 3 // यह अहिं गणेहिं, सिक्खासीले ति वुच्चइ / अहस्सिरे सया दंते, न य मम्ममुदाहरे // 4 // नासीले व विसीले, न सिया अइलोलुए। अकोहणे सच्चरए, सिक्खासीले ति वुच्चइ // 5 // अह चउद्दसहिं ठाणेहिं, वट्टमाणे उ संजए। अविणीए वुचई सो उ, निव्वाणं च न गच्छइ // 6 // अभिक्खणं कोही भाइ पबन्यं च पकुवइ / मित्तिजमाणो वमइ, सुयं लभ्रूण मजइ // 7 // अवि पावपरिक्खेवी, अवि मित्तेसु कुप्पई / सुप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे भासइ पावयं // 8 // पइन्नवाई दुहिले, यद्धे लुद्धे अनिग्गहे / असंविभागी प्रचियत्ते, अविणीए त्ति वुच्चइ // 1 // ग्रह पनरसहि गणेहिं, सुविणीए त्ति वुच्चइ / नीयावित्ती अचवले अमाई अकुऊहले // 10 // अप्पं च अहिक्खिवइ, पबंधं च न कुब्बई / मित्तिजमाणो भयई, सुयं लटुन मन्जई // 11 // न य पावपरिक्खेवी, न य मित्तेसुः कुपई / अप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे कलाण भासई // 12 // कलहडमरवजए, बुद्धे अभिजाइगे। हिरिमं पडिसंलीणे सुविणीए ति वुचई // 13 // वसे गुरुकुले निच्चं, जोगवं उवद्यावं / पियंकरे पियंवाई, से सिवखं लद्ध Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराग्ययनरत्र / अध्ययन र] मरिहई // 14 // जहा सङ्खम्मि पयं निहिये, दुहयोति विरायइ / एवं बहु. स्सुए भिक्खू, धम्मो कित्ती तहा सुयं // 15 // जहा से कम्बोयाणं, थाइराणे कन्थए सिया / श्रासे जवेण पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए // 16 // जहाऽऽइराणसमारुढे, सूरे दढपरक्कमे / उभयो नन्दिघोसेणं, एवं हवइ बहुस्सुए // 17 // जहा करेणु-परिकिराणे, कुजरे सट्ठिहायणे / बलवन्ते अप्पडिहए, एवं हवइ बहुरसुए // 18 // जहा से तिक्खसिङ्ग, जायखन्धे विरायई / वसहे जूहाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए // 11 // जहा से तिक्खदाढे, उदग्गे दुप्पहंसए / सीहे मियाण पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए // 20 // जहा से वासुदेवे, संख चक्क-गदाधरे / अपडिहयबले जोहे, एवं हवइ बहुस्सुए // 21 // जहा से चाउरन्ते, चकवट्टी महड्डिए। चोदस-रयणाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए // 22 // जहा से सहस्सक्खे, वजपाणी पुरन्दरे / सक्के देवाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए // 23 // जहा से तिमिरविद्धंसे, उत्तिट्ठति दिवायरे / जलन्ते इव तेएणं, एवं हवइ बहुस्सुए // 24 // जहा से उडुवई चंदे, नक्खत्त-परिवारिए। पडिपुराणो पुराणमासीए, एवं हवइ बहुस्सुए // 25 // जहा से सामाइयाणं (सामाइयंगाणं) कोट्ठागारे सुरक्खिए / नाणाधन-पडिपुराणे, एवं हवइ बहुस्सुए // 26 / / जहा सा दुमाण पवरा, जब्बू नाम सुदंसणा / अणाढियस्स देवस्स, एवं हवइ बहुस्सुए // 27 // जहा सा नईण पवरा, सलिला सागरंगमा / सीया नीलवन्तप्पभ(व)हा, एवं हवइ बहुस्सुए // 28 // जहा से नगाण पवरे, सुमहं मन्दरे गिरी / नाणोसहिपजलिए, एवं हवइ बहुस्सुए // 21 // जहा से सयंभूरमणे, उदही अक्खयोदए / नाणारयण-पडिपुराणे, एवं हवइ बहुस्सुए // 30 // समुद्द-गम्भीरसमा दुरासया, अचक्किया केणइ दुप्पहंसया / सुयस्स पुराणा विउलस्स ताइणो, खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गया // 31 // तम्हा सुयहिट्टिजा, उत्तमट्ठ-गवेसए / जेणऽप्पाणं परं चेव, सिद्धिं संपाउणेजासि // 32 // ति बेमि // .... . // इति एकादशममध्यमनम् // 11 // ... Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधामिन्धु यादशमी विािंगा // 12 // अथ हरिकेशीयाख्यं द्वादशमध्ययनम् // सोवागकुलसंभूयो, गुणुत्तरधरो मुणी / हरिएसबलो नाम, ग्रासि 'भिक्खू जिइन्दियो // 1 // इरिएसणभासाए, उच्चारसमिईसु य / जयो थायाणनिक्खेवे, संजयो सुसमाहियो॥२॥मणगुतो वयगुत्तो कारगुत्तो जिइन्दियो / भिक्खट्ठा बम्भइज्जम्मि, जन्नवाडमुवट्ठियो // 3 // तं पासिऊणमिजन्तं, तवेण परिसोसियं / पन्तोवहिउवगरणं, उवहसन्ति प्रणारिया // 4 // जाइमयं पडिथ(ब)द्धा, हिंसगा अजिइन्दिया / अबम्भचारिणो बाला, इमं वयणमब्बवी // 5 // कयरे पागच्छई दित्तरूवे (को रे) ? काले विकराले फोकनासे / योमचेलए पंसुपिसायभृण, संकरदूसं परिहरिय कराठे // 6 // कयरे (को रे) तुम इय अदंसणिज्जे ! काए व पासा इहमागयोऽसि / श्रोमचेलगा ! पंसुपिसायभूया ! गच्छ क्खलाहि किमिहं ठियोऽसि // 7 // जक्खो तहिं तिन्दुयरुखवासी, अणुकम्पयो तस्स महामुणिस्स / पच्छायइत्ता नियगं सरीरं, इमाई वयणाइमुदाहरित्था // 8 // समणो अहं संजयो बम्भयारी, विरयो धणपयण-परिग्गहायो / परप्पवित्तस्स उ भिक्खकाले, अन्नस्स अट्ठा इहमागयो मि // 1 // वियरिजइ खजइ भुजई य, अन्नं पभूयं भवयाणमेयं / जाणाहि मे जायणजीविणो त्ति, सेसावसेसं लहऊ तबस्सी // 10 // उवक्खडं भोयण माहणाणं, अत्तट्ठियं सिद्धमिहेगपक्खं / न ऊ वयं एरिसमनपाणं, दाहामु तुझ किमिहं ठियोसि // 11 // थलेसु बीयाइ वयन्ति काप्तया, तहेव निन्नेसु य बाससाए। एयाइ सद्धाइ दलाह मज्झ, याराहए पुराणमिणं खु खित्तं // 12 // खित्ताणि अम्हं विदियाणि लोए, जहिं पकिरणा विरहन्ति पुराणा / जे माहणा जाइविजोववेया, ताई तु खित्ताई सुपेसलाई // 13 // कोहो य माणो य बहो य जेसिं, मोसं श्रदत्तं च परिग्गहं च / ते 'माहणा जाइविजाविहूणा, ताई तु खित्ताई सुपावयाई // 14 // तुभित्थ भो ! भारधरा(वहा).गिराणं, अटुं न जाणाहः अहिज वेए / उच्चावयाई Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुमाध्ययनसूत्रम् / / अध्ययनं 19 ] . [106 मुणिणो चरन्ति, ताई तु खेताई सुपेसलाई // 15 // अन्झावयाणं पडि. कूलभामी, पभाससे किं, नु सगासि अम्हं ? / अवि एतं विणस्सउ अन्नपाणं, न य णं दाहामु तुमं निगराठा ! // 16 // समिईहिं मझ सुसमाहियस्म, गुतीहि गुतस्स जिइन्दियस्स / जइ मे न दाहित्य अहेसणिज्ज / किमज जन्नाण लहित्य लाहं ? // 17 // के इत्थ खत्ता उवजोइया वा, यज्झावया वा सह खारोडएहिं ? / एवं तु दराडेण फलेण हन्ता, कराठम्मि घितूण खलेज जो णं // 18 // अज्झावयाणं वयणं सुणित्ता, उद्धाइया तत्थ बहू कुमारा / दराडेहिं वित्तेहिं कसेहिं चेव, समागया तं इसि ताल. यन्ति // 11 // रन्नो तहिं कोसलियस्स धूया, भदत्ति नामेण अणिन्दियङ्गी। तं पासिया संजय हम्ममाणं, कुद्धे कुमारे परिनिव्ववेइ // 20 // देवाभियोगेण नियोइएणं, दिन्ना मु रन्ना मणसा न झाया। नरिन्द-देविन्दःभिव. न्दिएणं. जेणामि वन्ता इसिणा स एसो // 21 // एसो हु सो उग्गतको महापा, जितिन्दियो संजयो बम्भयारी। जो मे तया नेच्छइ दिजमाणिं, पिउणा सयं कोसलिएण रन्ना // 22 // महाजमो एसो महाणुभागो(लो), घोरवयो घोरपरकमो य / मा एयं हीलह अहीलणिज्जं, मा सवे तेएण भे निदहिज्जा // 23 // एयाइं तीसे वयणाई सुच्चा, पत्तीइ भद्दाइ सुभासियाई / इसिस्स व्यावडियट्ठयाए, जवखा वुमारे विणिवारयन्ति // 24 // ते घोररूवा ठिय अन्त:लक्खे, असूरा तहिं तं जण तालयन्ति / ते भिन्नदेहे रुहिरं वमन्ते, पासित्तु भद्दा इणमाहु भुजो // 25 // गिरि नहेहिं खणह, अयं दन्तेहि .. खायह / जायतेयं पायेहिं हणह, जे भिवखु अवमन्नह // 26 // श्रासीविसो. उग्गतवो महेसी, घोरव्वयो घोरपरकमो य / अगणि व परखन्द पयंगसेणा, जे भिवखु भत्तकाले वहेह / / 27 // सीसेण एवं सरणं उवेह, समागया सबजगोण तुम्हे / जइ इच्छह जीवियं वा धणं वा, लोगं पि एसो कुवियो डहिज्जा // 28 // अवहेडिय-पिट्टिसउत्तमंगे, पसारिया-बाहु-पक . Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 110 } [ श्रीमदार मसुधारिन्धुः त्रयोदशमी विभागः म्मचिट्ठ / निन्भेरियच्छे रुहिरं वमन्ते, उडमुहे निग्गयजीहनेत्ते // 26 // ते पासिया खण्डिय कट्ठभूए, विमणो विसरणो ग्रह माहणो सो। इसिं पसाएइ सभारियायो, हीलं च निन्दं च खमाह भन्ते ! // 30 // बालेहिं मूढेहिं अयाणएहिं, जं हीलिया तस्स खमाह भन्ते ! / महप्पसाया इसि(मुणि)णो हवन्ति, न हु मुणी कोवपरा हवन्ति // 31 // पुब्बि च इसिंह च अणागयं च (पुल्विं च पच्छा तहेव मज्झे), मणप्पदोसो न मे अस्थि कोइ / जवखा हु वेयावडियं करिन्ति, तम्हा हु एए निहया कुमारा // 32 // अत्थं च धम्मं च वियाणमाणा, तुब्भे न वि कुप्पह भू पन्ना / तुभं तु पाए सरणं उवेमो, समागया सब्वजणेण अम्हे // 33 // अच्चेमु ते महाभागा ! न ते किंचि न अचिमो। भुजाहि सालिमं कूरं, नाणावंजणसंजुयं // 34 // इमं च मे अस्थि पभूयमन्नं, तं भुजसू अम्ह अणुग्गहट्ठा / बादंति पडिच्छइ भत्तपाणं, मासस्स उ पारणए महप्पा // 35 // तहियं गन्धोदयपुप्फवासं, दिव्वा तहि वसुहारा य बुट्टा / पहया दुन्दुहीयो सुरेहिं, अागासे अहो दाणं च घुटु // 36 // सक्खं खु दीमइ तवोविसेसो, न दीसई जाइविसेस कोई / सोवागपुत्तं हरिएससाहुँ, जस्सेरिसा इट्ठि महाणुभागा // 37 // किं माहणा ! जोइसमारभन्ता, उदएण सोहिं बहिया विमग्गहा ? / जंमग्गहा बाहिरियं विसोहिं, न तं सुदिट्ठ कुसला वयन्ति // 38 // कुसं च जूवं तणकट्ठमग्गि. सायं च पायं उदगं फुसन्ता। पाणाई भूयाई विहेडयन्ता, भुजोऽवि मन्दा ! पगरेह पावं // 36 // कहं च रे भिक्खु वयं जयामो ?, पापाई कम्माई पणुल्लयामो / अक्खाहि णे संजय ! जक्खपूइया, कहं सुज? कुसला वयन्ति ? // 40 // छजीवकाए असमारभन्ता, मोसं अदत्तं च असेवमाणा। परिग्गहं इथियो माण मायं, एयं परिन्नाय चरन्ति दन्ता // 41 // सुसं. वुडा पंचहिं संवरेहि, इह जीवियं श्रणवकङ्खमाणा / वोसट्टकाए सुइचत्तदेहा, महाजयं जयति जनसिटुं॥ 42 // के ते नोई ? के व ते जोइठाणा ?, का. HAMARATHI Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् : अध्ययनं 12 ] [ 111 ते सुया ? किं च ते कारिसङ्ग ? / एहा य ते कयरा सन्ति भिक्खू ?. क्यरेण होमेण हुणासि जोई ? // 43 // तवो जोई जीवो जोइठाणं, जोगा सुया सरीरं कारिसङ्ग / कम्मेहा संजम जोगसन्ती, होमं हुणामि इसिणं पसत्थं // 44 // के ते हरर के य ते सन्तितित्थे ? कहं सि णायो व रयं जहासि ? / थायक्ख णे संजय ! जवखपूइया, इच्छामो नाउं भवो सगासे // 45 // धम्मे हरए बम्भे सन्तितित्थे, अणाविले अत्तपसन्नलेसे / जहिंसि राहायो विमलो विसुद्धो, सुसीर(ल)भूयोण पजहामिदोसं // 46 // एवं सिणाणं कुसलेहि दिट्ठ, महासिणाणं इसिणं पसत्थं / जहिं सि राहाया विमला विसुद्धा, महारिसी उत्तमं ठाणं पत्ति // 47 // त्ति बेमि // . // इति द्वादशममध्ययनम् // 12 // // 13 // अथ चित्रसम्भूतीयाख्यं त्रयोदशमनध्ययनम् // जाईपराजियो खलु, कासि नियाणं तु हथिणपुरम्मि / चुलणीइ बम्भदत्तो, उपवनो नलिण(पउम)गुम्मायो // 1 // कम्पिल्ले सम्भूयो, चित्तो पुण जायो पुरिमतालाम्म / सिट्टिकुलम्मि विसाले, धामं सोऊण पव्यइयो // 2 // कम्पिल्लम्नि य नयरे, समागया दोऽवि चित्तसम्भूया / सुहदुक्खफलविवागं, कहिन्ति ते इक्कमिकस्स // 3 // चकाट्टि महिड्डीयो, बम्भदत्तो महायसो / भायरं बहुमाणेण, इमं वयणमब्बवी // 4 // श्रासिमो भायरा दोऽवि, अन्नमन्नवसाणुगा / अन्नमन्नमणूरत्ता, अन्नमन्नहितेसिणो // 5 // दासा दसराणे श्रासी, मिया कालिंजरे नगे / हंसा मयङ्गतीराए, सोवागा कासिभूमिए // 6 // देवा य देवलोगम्मि, श्रासि अम्हे महिड्डिया / इमा णो छट्टिया जाई, अन्नमन्नण जा विणा // 7 // कम्मा नियाणपयडा, तुमे राय ! विचिन्तिया / तेसिं फलविवागेणं, विप्पश्रोगमुवागया // 8 // सच तोयप्पगडा, कम्मा मए पुरा कडा / ते अज परिभुजामो, किं नु चित्ते वि से तहा ? // 1 // सव्वं सुचिराणं सफलं नराणं, कडाण कम्माण न Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 112 [ श्री.दागमभुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः मुक्खु अस्थि / प्रत्येहि कामेहि य उत्तमेहिं पाया ममं पुराणफलोववेत्री // 10 // जाणाहि संभूय ! महाणुभागं, महिड्डियं पुराणफलोववेयं / चित्तं पि जाणाहि तहेव रायं !, इड्डी जुई तस्तवि अपभूया // 11 // महत्थरूषा वयणप्पभूषा, गाहाणुगीया नरसंघमज्झे ।जं भिक्खुणो सीलगुणोववेया, इहऽजयन्ते स(सु)मणोऽम्हि जाश्रो // 12 // उच्चोयए महु कक्के य बम्भे, पवेइया श्रावसहा य रम्मा / इमं गिहं वित्त धणप्पभूयं, पासाहि पंचालगुणोपवेयं // 13 // नट्टहि गीएहि य वाइएहिं, नारीजणाई परिवारयन्तो (पनियारियंतो) / भूजाहि भोगाई इमाई भिक्खू ?, मम रोयई फरजा हु दुक्खं // 14 // तं पुब्वनेहेण कयाणुरागं नराहिवं कमगुणेसु गिद्धं / धम्मस्सियो तस्स हियाणुपेही, चित्तो इमं वयण-मुदाहरित्था // 15 // सव्वं विलवियं गीयं, सव्वं नट्ठ विडम्बणा / सव्वे अाभारणा भारा, सब्वे कामा दुहावहा // 16 // बालाभिरामेसु दुहावहेसु, न तं सुहं कामगुणसु रायं ! / विरत्तकामाण तबोधणाणं, जं भिक्खुणं सीलगुणे रयाणं // 17 // नरिंद ! जाई ग्रहमा नराणं, सोवाग जाई दुहयो गयाणं / जहिं वयं सब जणस्त वेस्सा, वसीय सोवाग निवेसणेसु // 18 // तीसे य जाईइ उ पावियाए, वुच्छामु सोवागनिवेसणेसु / सव्वस्स लोगस्स. दुगंछणिजा, इहं तु कम्माई पुरेकडाई॥ 11 // सो दाणि सिं राय महाणुभागो, महिड्डियो पुराणफलोववेत्रो। चइत्तु भोगाई असासयाई, श्रादाणहेउं अभिणिदखमाहि (अायाणमेवा-णुचिंतयाही) // 20 // इह जीविए राय ! असासयम्मि, धणियं तु पुराणाइ अकुब्धमाणो / से सोयई मच्चुमुहोवणीए, धम्मं अकाऊण परम्मि लोए // 21 // जहेह सीहो व मियं गहाय, मच्चू नरं नेइ हु अन्तकाले / न तस्स माया व पिया व भाया, कालम्मि तम्मंसहरा भवंति // 22 // न तस्स दुक्खं विभयन्ति नाइयो, न मित्तवग्गा न सुया न बंधवा / एको सयं पञ्चणुहोइ दुक्खं, कतारमेवं अणजाइ कम्मं // 23 // चिचा दुपयं च चउप्पयं Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुसराध्ययनस्त्रम् : अध्ययनं 15] च, खितं गिहं धणधन्नं च सव्वं / सकम्मवीयो अवसो पयाई, परं भवं सुंदर पावगं वा // 24 // तं इकगं तुच्छमरीरगं से, चिईगयं दहिउं पावगेणं / भजा य पुत्तावि य, नाययो य दायारमन्नं अणुसंकमन्ति॥ 25 // उवणिजई जीवियमप्यमायं, वरणं जरा हरइ नरस्स रायं ! पंचालराया, वयणं सुणाहि, मा कासि कम्माई. महालयाई // 26 // अहं पि जाणामि जहेह साहू (जो एत्थ सारो), जं मे तुमं साहसि वकमेयं / भोगा इमे सङ्गकरा बान्न, जे दुजया अजो ! अम्हारिसेहिं // 27 // हत्थिणपुरम्मि चित्ता ! दट्टणं नरवई महिड्डियं / कामभोगेसु गिद्धेणं, नियाणमसुहं कडं // 28 // तस्म मे अप्पडिकन्तस्स, इमं एयारिसं फलं / जाणमाणोऽवि जं धम्मं, कामभोगेसु मुच्छियो // 21 // नागो जहा पंकजलावसनो, द? थलं नाभिसमेइ तीरं / एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा, न भिक्खुणो मंग्गमणुव्ययामो // 30 // अञ्चेइ कालो तूरन्ति राइयो, न यावि भोगा पुरिसाण निच्चा / उविच भोगा पुरिसं चयन्ति, दुमं जहा खीणफलं व पक्खी // 31 // जई. (त) से भोगे चइ असत्तो, अजाइ कम्माइ करेही रायं ! / धम्मे ठियो सव्व रयाणुकम्पी, तं होहिसि देवो इयो विउव्वी // 32 // न तुझ भोगे चइऊण बुद्धि, गिद्धो सि पारम्भपरिग्गहेसु / मोहं कयो इत्तिउ विप्पलावो, गच्छामि रायं ! यामन्तियोऽसि // 33 // पंचालरायाऽवि य बम्भदत्तो, साहुस्स तस्स वयणं अकाउं। अणुत्तरे भुजिय कामभोगे, अणुत्तरे सो नरए पविठ्ठो // 34 // चित्तोऽवि कामेहिं विरत्तकामो, उदत्त(ग्ग)चारित्ततवो महेसी / अणुत्तरं संजम पालइत्ता, अणुत्तरं सिद्धिगई गयो // 35 // त्ति बे.मे॥ // इति त्रयोदशममध्ययनम् // 13 // // 14 // अथ इषुकारीयाख्यं चतुर्दशममध्ययनम् // देवा भवित्ताण पुरे भाम्मी, केई चुया एगविमाणासी / पुरे पुराणे Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 114] / श्री दागममुधासिन्धुः // त्रयोदशमी विभागः उसुयारनामे, खाये समिद्धे सूर लोगरम्मे // 1 // सकम्म सेसेण पुराकएणं, कुलेसुदग्गे(ते)सु य ते पसूया / निव्वराण संसार मया जहाय, जिणिंदमग्गं सरणं पवन्ना // 2 // पुमत्तमागम्म कुमार दोऽवि, पुरोहियो तस्स जसा य पत्ती / विसालकित्ती य तहेसुयारो, रायस्थ देवी कमलावई य॥३॥ जाईजरामचुमयाभिभूया(ए), बहिं विहाराभिनिविट्ठचित्ता। संसारचक्कस्स विमोक्खणट्ठा, दवण ते कामगुणे विरत्ता // 4 // पिययुत्तगा दुनिवि माहणस्त, सकम्मसोलस्स पुरोहियस्स / सरितु पोराणिय तत्थ जाई, तहा सुचिएणं तब संजमं च // 5 // ते कामभोगेसु असन्जमाणा, माणुस्सएसुजे यावि दिव्वा / मोक्खाभिकंखी अभिजायसद्धा, तायं उबागम्म इमं उदाहु // 6 // असासयं दठ्ठ इमं विहारं, बहुअन्तरायं न य दीहमाउं / तम्हा गिहंसी न रई लभामो, अामन्तयामो चरिस्सामु मोणं // 7 // यह तारगो तस्थ मुणीण तेसिं, तवस्त वाघायकरं वयासी / इमं वयं वेयवियो वयन्ति, जहा न होई असुयाण लोगो॥८॥ अहिज वेर परिविस्ल विप्पे, पुत्ते पडि(रि)ठ्ठप्प गिहंसि जाया ! / भोचाण भोए सह इत्थियाहिं, पारराणगा होह मुणी पसत्था // 1 // सोयग्गिणा पायगुणिन्धणेणं, मोहाणिला पजलणाहिएणं / संतत्तभावं परितप्पमाणं, लाल(लोलु)पमाणं बहुहा बहुँ च // 10 // पुरोहियं तं कमसोऽणुणन्तं, निमंतयन्तं च सुए धणेणं / जहक्कम कामगुणेहि चेव, कुमारगा ते पसमिक्ख वक्कं // 11 // वेया ग्रहीया न भवन्ति ताणं, भुत्ता दिया निन्ति तमं तमेणं / जाया य पुत्ता न हबन्ति ताणं, को णाम ते अणुमनेज एवं ? // 12 // खणमेत्त-सोरखा बहुकाल-दुक्खा, पगामदुक्खा अनिगाम-सोक्खा / संसारमोक्खस्स विपक्खभूया, खाणी अणत्थाण उ कामभोगा॥ 13 // परिव्बयन्ते अनियत्तकामे, अहो य रायो परितप्प माणे / अन्नप्पमत्ते धणमेसमाणे, पप्पोत्ति मच्चु पुरिसो जरं च // 14 // इमं च मे अत्थि इमं च नत्थि, इमं च मे किच इमं अकिच / तं एवमेवं Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् :: अध्ययनं 14] [ 115 लालप्रमाणं, हरा हरंति ति कहं पमायो ? - // 15 // छणं पभुयं सह इत्थियाहिं समणा तहा कामगुणा पगामा। तवं कए तप्पइ जस्स लोगो, ते सब्बसाहीणमिहेव तुझ // 16 // धणेण किं धम्म धुराहिगारे ? सयणेण वा कामगुणेहिं चेव / समणा भविस्सामु गुणोहधारी, बर्हिविहारा अभिगम्म भिक्खं // 17 // जहा य अग्गी अरणीउऽसन्तो, खीरे घयं तेल्लमहा तिलेसु / एमेव जाया सरिरंमि सत्ता, संमुच्छई नासइ नावचिठे // 18 // नो इन्दियग्गिझ अमुत्तभावा, अमुत्तभावा चि य होइ निचो। अमत्यहेउं निययऽस्स बन्धो, संसारहेउं च वयन्ति बन्धं // 11 // जहा वयं धम्ममजाणमाणा, पावं पुरा कम्ममकासिमोहो / गोरुज्झमाणा परिक्खयन्ता, तं नेव भुनावि समा रामो // 20 // अभाहयंमि लोगंमि, सबश्रो परिवारिए। अमोहाहिं, पडन्तीहिं, गिर्हसि न रइं लभे॥२१॥ केण अभाइयो लोगो, केण वा परिवारियो ? / का वा अमोहा वुत्ता ? जाया चिंतावरो हु मे // 22 // मच्चुणाभाहयो लोगो, जगए परिवारियो / अमोहा रयणी वुत्ता, एवं ताय ! विजाणह // 23 // जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियनई / अहम्मं कुणमाणस्त, अफला जन्ति राइनो॥ 24 // जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई / धम्मं च कुणमाणस्त, सफला जन्ति राइयो // 25 // एगयो संवसित्ताणं, दुहयो सम्मत्तसंजुया / पच्छा जाया गमिस्सामो, भिक्खमाणा कुले कुले // 26 // जस्सऽत्थि मच्चुणा सक्खं, जस्स वऽस्थि पलायणं / जो जाणइ न मरिस्सामि, सो हु कंखे सुए सिया // 27 // अज्जेव धम्म पडिवजयामो, जहिं पवना न पुणब्भवामो। अणागयं ने य अत्थि किंची, सद्धाखमं नो विणइत्तु रागं // 28 // पहीणपुत्तस्स हु नत्थि वासो, वासिट्टि ! भिक्खायरियाइ कालो / साहाहि रुक्खो लहई समाहि, छिन्नाहि साहाहि तमेव खाणु // 21 // पंखाविहूणो व जहेव पक्खी, भिचविहूणो व रणे नरिन्दो / विवन्नसारो वणिउव्व पोए, पहीण Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / त्रयोदशमो विभागः पुत्तो मि तहा अहं पि॥ 30 // सुसंभिया. कामगुणा इमे ते, संपिरािडया अग्गरसापभूया / भुजामु ता काम गुणे पगाम, पच्छा गमिस्सामु पहाण मग्गं // 31 // भुत्ता रसा भोइ ! जहाइ णे वयो, न जीवियट्ठा पजहामि भोए / लाभं थलाभं च सुहं च दुक्खं, संचिक्खमाणो चरिस्सामि मोणं // 32 // मा हू तुमं सोयरियाण सम्भरे, जुराणो व हंसो पडिसोयगामी / भुजाहि भोगाई मए समाणं, दुक्खं खु भिक्खायरिया विहारो // 33 // जहा य भोई (भागा) ? तणुयं भुयंगे, निम्मोयणिं हिच्च पलेइ मुत्तो / एमेए जाया पजहन्ति भोए, तेहं कहं नाणुगमिस्समेको ? // 34 // छिन्दित्तु जालं अवलं व रोहिया, मच्छा जहा कामगुणे पहाय / धोरेयसीला तवसा उदारा, धीरा हु भिक्खायरियं चरन्ति // 35 // नहेव कुंचा समइकमन्ता, तयाणि जालाणि दलित्तु हंस / पलिन्ति पुत्ता य पई य मझ, तेऽहं कहं नाणुगमिस्समे का ? // 36 // पुरोहियं तं ससु सदारं, सोचाऽभिनिक्खम्म पहाय भोए / कुडुम्बमारं विउलुत्तमं तं, रायं अभिक्खं समुवाय देवी // 37 // वन्तासी पुरिसो रायं !, न सो होइ पसंसियो / माहणेण परिच्चत्तं, धणं श्रादाउमिच्छसि // 38 // सव्वं जगं जइ तुहं, सव्वं वावि धणं भवे / र.व्वं पि ते अपज्जत्तं, नेव ताणाय तं तव // 31 // मरिहिसि रायं ! जया तया वा, मणोरमे कामगुणे पहाय / एक्को हु धम्मो नरदेव ! ताणं, न विजई अन्न(ज)मिहेह किंचि // 40 // नाहं रमे पविखणि पंजरे वा, संताण चिन्ना चरिस्सामि मोणं / अकिरणां उज्जुकडा निरामिसा, परिन्गहारम्भ-नियत्तदोसा // 41 // दवग्गिणा जहा रगणे, डज्ममाणेसु जन्तुसु / अन्ने सत्ता पमोयन्ति, रागहोसवसं गया // 42 // एवमेव वयं मूढा, कामभोगेसु मुच्छिया ! डझमाणं न बुज्झामो, रागदोसग्गिणा जगं // 43 // भोगे भोचा वमित्ता य, लहुभूय विहारिणो / ग्रामोयमाणा गच्छन्ति, दिया कामकमा इव // 44 // इम य बद्धा फन्दन्ति, मम हत्थऽजमागया / वयं च सत्ता Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीमदुत्तराभ्ययनक्षत्रम् :: अध्ययनं 15 ] [ 11 कामेस्, भविस्सामो जहा इमे // 45 // सामिसं कुललं दिस्सा, बज्ममाणं निरामिसं / ग्रामिसं सव्वमुज्झित्ता, विहरिस्सामो निरामिसा // 46 // गिद्धोवमे य नच्चाणं, कामे संसारवडणे / उरगो सुवराणपासेव्व, सङ्कमाणो तणु चरे // 47 // नागुब्ब बन्वणं छित्ता, अपणो वसहिं वए / एवं पत्थं (इति एत्थं) महाराय !, उसुयारि ति सुयं // 48 // चइत्ता विउलं रटुं (रज्ज), कामभोगे य दुच्चए / निविसया निरामिसा, निन्नेहा निप्परिगहा // 4 // सम्म धम्मं वियाणित्ता, चिच्चा कामगुणे वरे। तवं पगिज्मऽहक्खायं, घोरं घोरपरकम्मा // 50 // एवं ते कमसो बुद्धा, सब्वे धम्मपरायणा (धम्मपरंपरा)। जम्ममच्चुभउबिग्गा, दुक्खस्सन्तगवेसिणो // 51 // सालणे विगयमोहाणं, पुब्धि भावणभाविया / अचिरेणेव कालेण, दुक्खस्सन्तमुवागया // 52 / / राया सह देवीए, माहणो य पुरोहियो / माहणी दारगा चेव, सव्वे ते परिनिवुडि // 53 // त्ति बेमि // // इति चतुर्दशममध्ययनम् // 14 // // 15 // अथ सभिक्षुनामकं पंचदशममध्ययनम्॥ मोणं चरिस्सामि समिच धम्म, सहिए उज्जुकडे नियाणचिन्ने / संथवं जहिज अकामकामे, अन्नायएसी परिपए स भिक्खू / / 1 / / रायोवरयं चरेज लाढे, विरए वेयवियाऽऽयरविखए / पन्ने अभिभूय सव्वदंसी, जे कम्हि वि न मुच्छिए स भिक्खू // 2 // अक्कोसवहं विइत्तु धीरे, मुणी चरे लाढे निञ्चमायगुत्ते / अव्वग्गमणे असंपहि?, जो कसिणं अहियासए स भिवखू // 3 // पंतं सयणासणं भइत्ता, सीउगह विविहं च दंसमसगं / अव्वग्गमणे असंपहि8, जो कसिणं अहियासए स भिक्खू // 4 // नो सकिइमिच्छई न पूयं, नोविय वन्दणगं कुयो पसंसं ? / से संजए सुब्बए तवस्सी, सहिए थायगवेसए स भिक्खू // 5 // जेण पुण जहाइ जीवियं, मोहं वा कसिणं नियच्छई / नरनारिं पजहे सया तवस्सी, न य कोऊहलं Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 118' [ श्रीमदागमसुधासिन्धु: / / त्रय दशमी विमागः उवेइ स भिक्खू // 6 // छिन्नं सरं भोममन्तलिक्वं, सुमिणं लक्खणं दराडं वत्थुविज्ज / अङ्गवियारं सरस्स विजयं, जो विजाहिं न जीवई स भिक्खू // 7 // मंतं मूलं विविहं विजचिन्तं, वमण-विरेयण-धूमणेत्तसिणाणं / बाउरे सरणं तिगिच्छियं च, तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू // 8 // खत्तियगण उग्गरायपुत्ता, माहण भोइ य विविहा य सिप्पिणो (सिप्पिणोऽन्ने)। नो तेसिं वयइ सिलोगपूयं, तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू // 1 // गिहिणो जे पव्वइएण दिट्ठा, अप्पवइएण व संथुया हविजा / तेसिं इहलोइयफलट्ठा, जो संथवं न करेइ स भिक्खू // 10 // सयणासणपाणभोयणं, विविहं खाइमसाइमं परेसि / अदए पडिसेहिये नियराठे, जे तत्थ न परोसई स भिवखू // 11 // जं किंचि श्राहारपाणं विविहं, खाइमसाइमं परेसिं लद्धं / जो तं तिविहेण नाणुकम्पे, मणवयकायसु-संवुडे स भिक्खू // 12 // श्रायामगं चेव जत्रोदणं च, सीयं सोवीरं जवोदगं च / नो हीलए पिराडं नीरसं तु, पंतकुलाणि परिव्वए स भिक्खू // 13 // सदा विविहा- भवंति लोए, दिवा माणुसया तहा तिरिछा / भीमा भाभेरवा उराला, जो सोचा न बिहिजई स भिक्खू // 14 // वादं विविहं समिञ्च लोए. सहिए खेयाणुगए य कोवियप्पा / पन्ने अभिभूय सव्वदंसी, उवसंते अवहेडए स भिक्खू // 15 // असिप्पजीवी अगिहे अमित्ते, जिइंदियो सव्वयो विप्पमुक्के / अणुकसाई लहुअप्प मक्खी, चिच्चा गिहं एगचरे स मिक्खु // 16 // त्ति बेमि // // इति पञ्चदशममध्ययनम् // 15 // // 16 // अथ ब्रह्मचर्यसमाधिनामकं षोडशमध्ययनम् // __सुयं मे, पाउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहिं भगवन्तेहिं दस बम्भवेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोचा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिन्दिए गुत्तबम्भयारी सया अप्पमत्ते विहरिजा। कयरे खलु तेथेरेहिं भगवन्तहिं दस बम्भचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनस्त्रम् / / अध्ययनं 16 ] सोचा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिन्दिए गुत्तबम्भयारी सदा अप्पमते विहरिजा ? इमे खलु ते थेरेहिं भगवन्तेहिं दस बम्भ. चेरठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोचा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिन्दिए गुत्तबम्भयारी सया अप्पमत्ते विहरिजा / तं जहाविवित्ताई सयणासणाई सेविजा से निग्गन्थे, नो इत्थी-पसु--पराडग-संसताई सयणासणाई सेवित्तो भवति से निग्गन्थे, तं कहमिति चेदायरियाऽऽहनिग्गन्थस्स खलु इत्थि-पसु-पण्डग-संसत्ताई सयणासणाई सेवमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे सङ्का वा कला वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वालभिजा उम्मायं वा पाउणिजा, दीहकालियं वा रोगायङ्क हवेना, केवलिपनत्तायो धम्मायो वा भंसिज्जा, तम्हा नो इत्थि- पसु--पराडग-संसत्ताइ सयणासणाई सेवित्ता हवइ से निग्गन्थे // सूत्रं 1 // नो इत्थीणं कहं कहित्ता भवति से निग्गन्थे, तं कहमिति चेदायरियाऽह-निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं कहं कहेमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे सङ्का वा कङ्खा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिज्जा, भेदं वा लभिजा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायङ्क हविजा, केवलि पन्नत्तायो वा धम्मायो भसिज्जा, तम्हा नो इत्थिणं कहं कहिजा // सू० 2 // नो इत्याहि सद्धिं सन्निसेजागए विहरित्ता भवइ से निग्गथे, तं कह. मिति चेदायरियाऽऽह-निग्गन्थस्स खलु इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेजागयस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे सङ्का वा कला बा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लभिजा, उम्मायं वा पाउणिजा, दीहकालियं वा रोगायत हविजा, केवलिपन्नत्तागोवा धम्मायो भंसिज्जा, तम्हा खलु नो निग्गंथे इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेन्जागए विहरिजा॥ सू० ॥नी इत्थीग इंदियाइं मणोहराई मणोरमाई पालोइत्ता निझाइत्ता भवति से निरगंथे, तं कहमिति चेदायरियाह-निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं इन्दियाई मणोहराई मणोरमाई आलोएमाणस्स निज्माएमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भवेरे सङ्का वा कडा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः ॐ त्रयोदशमो विभागा वा लभिजा, उम्मायं वा पाउणजा, दीहकालियं वा रोगायङ्क हविजा, केवलिपन्नत्तायो वा धम्मायो भंसिजा, तम्हा ख नु नो निग्गये इत्थीणं इंदियाइं मणोहराई मणोरमाइं बालोएजा निभाएजा // सू० 4 // नो इत्यीणं कुड्डन्तरंसि वा दूसन्तरंसि वा भित्तियंतरंसि वा दुइ सद्द वा रुझ्यसवा गीयसह वा हसियसह वा थणियसद्द वा कंदियसह वा विलवियसह वा सुणित्ता भवति से निग्गन्थे, तं कहामिति चेदायरियाऽऽह-निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं कुड्डन्तरंसि वा दूसन्तरंसि वा भित्तिअंतरंसि वा कुइयसहवा इस वा गीयसद वा हसियसह वा थणियसह वा कन्दियसह वा विलवियसद्द वा सुणित्ता हवइ से निग्गंथे, तं कहं इति चेदायरियाऽऽहइत्थीणं कुड्डुतरंसि वा दूसंतरंसि वा भित्तियंतरंसि वा जाव विलवियसई वा सुणमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे सङ्का वा कङ्खा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भे वा लभिजा उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायक हविजा, केवलिन्नत्तायो वा धम्मायो भंसिन्जा, तम्हा नो इत्थीणं कुड्डन्तरंसिवा दूसनारि वा भित्तअंतरंसि वाकुइय सहग रुझ्यसहवागीयसह वा हसियसई वा थणियस हवा कन्दियसद्द वा विलवियसह वा सुणेमाणे विहरिजा // सू० 5 // नो इत्थोणं पुवरयं पुञ्चकीलियं अणुसरित्ता हवइ से निग्गन्थे,तं कहमिति चेदायरियाऽऽह-निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं पुव्वरयं पुव्व कीलियं अणुसरमाणस्त बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लभिज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा दीहकालियं वा रोगायंकं हविजा, केवलिपन्नत्तायो वा धम्मायो भंसिज्जा, तम्हा नो खलु निग्गंथे इत्थीणां पुधरयं पुवकीलियं अणुसरिजा // सू० 6 // नो पणीयं श्राहारं थाहरित्ता हवइ से निग्गन्थे, तं कहमिति चेदायरियाह-निग्गन्थस्स खलु पणीयं श्राहारं पाहारेमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लभिज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनमत्रम् / अध्ययनं 16 ] (121 दीहकालियं वा रोगायक हविज्जा, केवलिपन्नतायो वा धम्मायो भंसिज्जा, तम्हा खनु नो निग्गन्थे पणीयं श्राहारं पाहारिज्जा // सू० 7 // नो अतिमायाए पाणभोयणं याहारित्ता भवति से निग्गन्थे, तं कहमिति चेदायरियाऽऽह-निग्गन्थस्स खलु अतिमायाए पाणभोयणं श्राहारेमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लभिजा, उम्मायं वा पाउणिज्जा दीहकालियं वा रोगायक हविजा, केवलिपन्नत्तायो वा धम्मायो भंसिजा, तम्हा खलु नो निग्गन्थे अतिमायाए पाणभोयणं पाहारिजा॥ सू० 8 // नो विभूसाणुवादी हवइ से निग्गन्ये, तं कहमिति चेदायरियाऽऽह-विभूपावत्तिए विभूसियसरीरे इत्थि जणस्स अभिलस्सणिज्जे हवइ, तत्रोणं तस्स इथिजणेणं अभिलसिजमाणग्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लभिजा, उम्मायं वा पाउणिजा, दीहकालियं वा रोगायकं हविजा, केवलिपनत्तायो वा धम्मायो भंसिजा, तम्हा खलु नो निग्गंथे विभूसाणुवादी हविज्जा (सिया) // सू० 1 // नो सद्द-रूव-रस-गंध-फासाणुवाई हवइ से निग्गन्ये, तं कहामिति चेदायरियाऽऽह निग्गन्थस्स खलु सह-रूव-रस-गन्ध-फासाणुवाइयस्स बग्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिज्जा, भेदं वा लभिजा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायक हविजा केवलिपनत्तायो वा धम्मायो भंसिज्जा, तम्हा खलु नो सदरूव-रसगन्ध-फासाणुवादी हवइ से निग्गन्थे, दसमे बम्भचेर-समाहिठाणे. भवति // सू० 10 // भान्ति य इत्थ सिलोगा, तं जहा-जं विवित्तमणाइगणं, रहियं थीजगेण य / बम्भचेरस्त रक्खट्टा, बानयं तु निसेवए // 1 // मणपल्हायजणणी, कामरागविवडणीं / बम्भचेररयो भिक्खू, थीकहं तु विवज्जए // 2 // समं च संयवं थीहिं, संकहं च अभिक्खणं / बम्भचेररयो भिक्खू, निच्चसो परिवज्जए // 3 // अंग पच्चंग संगणं, चारुलवियपेहियं / बम्भचेररो Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदगिमसुभासिन्ध त्रयोदशी विमानः थीणं, चक्खुगिज्म विवजए // 4 // कुइयं रुइयं गीय, हसियं थणियं कन्दियं / बम्भचेररो थीणं, सोगिक विवज्जए॥ 5 // हासं खिड्ड रई दप्पं, सहसावत्तासियाणि य / बम्भचेररथो थीणं, नाणु चिन्ते कयाइवि // 6 // पगीयं भतपाणं च, खिप्पं मयविवडणं / बम्भचेररयो भिक्खू, निचसो परिवजए // 7 // धम्मलद्धं (छु) मियं काले, जत्तत्थं पणिहाणवं / नाइमत्तं तु भुजिजा, बम्भचेररयो सया // 8 // विभूसं परिवजिजा, सरीरपरिमंडणं बम्भचेररयो भिक्खू, सिंगारत्थं न धारए // 1 // सद्दे रूवे य गन्धे य, रसे फासे तहेव य / चविहे कामगुणे, निचसो परिवजए // 10 // श्रालयो थीजणाइनो, थीकहा य मणोरमा / संथवो चेव नारीणं, तासिं इन्दियदरिसणं // 11 // कुइयं रुइयं गीयं, हसियं भुत्तासियाणि य / पणीयं भत्तपाणं च, अइनायं पाणभोयणं // 12 // गत्तभूसणमिटुं च, कामभोगा य दुजया। नरस्सऽत्तगवेसिस्स, विसं तालउ जहा // 13 // दुजए कामभोगे य, निचसो परिवजए / संकाठाणाणि सव्वाणि, वजिजा पणिहाणवं // 14 // धम्माराम चरे भिक्खू, घिईमं धम्मसारही / धम्मारामरए दन्ते, बम्भचेरसमाहिए // 15 // देवदाणव-गन्धव्वा, जक्खरक्खस-किन्नरा / बम्भयारिं नमसन्नि, दुक्करं जे करनि तं // 16 // एस धम्मे धुवे निच्चे (नियए), सासए जिणदेसिए / सिद्धा सिज्झन्ति चाणेणं, सिज्झिस्सन्ति तहापरे // 17 // ति बेमि // ॥इति षोडशमध्ययनम् // 16 // // 17 // अथ पापश्रमणीयाख्यं सप्तदशमध्ययनम् // जे केइ उ (जे के इमे) पवइए नियंठे, धम्म सुणित्ता विणयोववन्ने सुदुल्लहं लहिउं बोहिलाभ, विहरिज पच्छा य जहासुहं तु // 1 / ' सिज्जा दढा पाउरणं मि अत्थि, उप्पजई भुत्तु तहेव पाउं / जाणामि जं वट्टइ पाउ. मुत्ति, किं नाम काहामि सुएण ? भन्ते ! // 2 // जे केइ उ पब्बईए, निद्दा Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययन पूत्रम् :: अध्ययनं 17 ] . [ 125 सीले पगामसो / भुच्चा पिचा सुहं सुबई (वसइ) पारसमणेत्ति वुचई // 3 // यायरिसउज्माएहिं, सुयं विणयं च गाहिए / ते चेत्र खिसई बाले, पावसमणेत्ति वुच्चई // 4 // पायरियउवझायाणं, सम्मं न पडितप्पई / अपडिपू. यए थ द्र, पावसमाणे ति वुचई // 5 // सम्ममाण पाणाणि, बीयाणि हरियाणि य / असंजए संजयमन्नमाणे, पावसमणेति वुचई // 6 // संथारं फलां पीदं, निसिज्जं पायकम्बलं / अप्पमजियमारुहई, पावसमणेत्ति वुच्चइ // 7 // दवदवस चरई, पमत्ते य अभिक्खणं / उल्लंघणे य चराडे य, पावस पणेत्ति वुचई // 8 // पडिलेहइ पमत्तो, अवउज्झइ पायकम्बलं / पडि. लेहा याणाउने, पावसमणेत्ति वुचई // 1 // पडिलेहेइ पमत्ते, से किं.चे हु निसामिया। गुरुं परिभास(व)ए निच्चं, पावसमणेत्ति वुचई // 10 // बहुमाई पमुहरी, थद्धे लुढे अणिग्गहे / असंविभागी अचियने, पावसमणेत्ति वुचई // 11 // विवादं च उदीरेइ, अधम्मे अत्तराहहा / वुग्गहे कलहे रत्ते, पावसमणेत्ति वुचई // 12 // अथिरासणे कुक्कुईए, जत्थ तत्थ निसीइ / अापणंमि अणाउत्ते, पावसमणेत्ति वुच्चई // 13 // ससरक्खपायो सुअइ, सिन्जं न पडिलेहई / संथारए अणाउत्तो, पावसमणोत्ति वुबई // 14 // दुद्रदही-विगईयो, थाहारेइ अभिक्खणं / अरए य तवोकम्मे, पारसमणेत्ति वुच्चई // 15 // अत्यंतमि य सूरम्भि, थाहारेइ अभिक्खणं / चोइयो पडि. चोएइ, पारसमणेत्ति वुचई // 16 // श्राय रेय-परिचाई, परपासंडसेपए। गाणंगणिए दुभूए, पावसमणेत्ति वुच्चई // 17 // सयं गेहं परिचज, परगेहंमि वावरे (ववहरे) / निमित्तेण य ववहरई, पावसमणेत्ति वुच्चई // 18 // सत्राइ पिंडं जे मेइ, निच्छई सामुदाणियं / गिहिनिसिज्जं च वाहेइ, पावसमणेत्ति वुचई // 11 // एयारिसे पंचकुसीलऽसंबुडे, रूवंधरे मुणिपवराण हिट्ठिमे / अयंसि लोए विममेव गरहिए, न से इहं नेव परत्थलोए // 20 // जे व जर एए सदा उ दोले, से सुबए होइ मुणीण मज्झे / अयंति लोए Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / त्रयोदश्नमो-विभाग अमयं व पूइए, धाराहए दुहयो लोगमिणं तहा परं // 21 // त्ति बेमि // ॥इति सप्तदशमध्ययनम् // 19 // // 18 // अथ संयतीयाख्य-मष्टादशमध्ययनम् // कम्पिल्ले नगरे राया, उदिन्नबलवाहणे / नामेणं संजयो नाम, मिग वं उवनिग्गए // 1 // हयाणीए गयाणीए, रहाणीए तहेव य / पायताणीए महया, सव्वयो परिवारिए // 2 // मिए छुभित्ता हयगयो, कंपिल्लु. जाणकेसरे / भीए सन्ते मिए तत्थ, वहेइ रसमुच्छिए // 3 // अह केसरम्मि उज्जाणे, अणगारे तवोधणे / सज्झायझाण-जुत्ते, धम्मज्माणं झियायइ // 4 // अप्फोवमंडवम्मि, झायई झवियासवे / तस्सागए मिए पासं, वहेइ से नराहिवे // 5 // यह श्रासगयो राया, खिप्पमागम्म सो तहिं / हए मिए उ पासित्ता, अणगारं तत्थ पासई // 6 // ग्रह राया तत्य संभंतो, अणगारो मणाऽऽहयो / मए उ मन्दपुराणेणं, रसगिद्धेण घंतुणा // 7 // यासं विसजइत्ताणं, अणगारस्स सो निवो। विणएणं वन्दई पाए, भगवं ! इत्थ मे खमे // 8 // यह मोणेण सो भगवं, अणगारो झाणमस्सियो / रायाणं न पडिमन्तेइ, तयो राया भयद्द यो॥ 6 // संजयो ग्रहमस्सीति, भगवं ! वाहराहि मे। कुद्धे तेएण अणगारे, दहिजा नरकोडियो // 10 // अभयो पत्थिवा ! तुझं, अभयदाया भवाहि य / अणिच्चे जीवलोगम्मि, किं हिंसाए पसज्जसि ? // 11 // जया सव्वं परिचन्ज, गन्तव्यमवसस्त ते / अणिच्चे जीवलोगम्मि, किं रजम्मि पसन्जसि ? // 12 // जीवियं चेव एवं च, विज्जुसं. पायचंचलं / जत्थ तं मुझसी रायं ! पिञ्चत्थं नाववुज्मसी // 13 // दाराणि य सुया चेव, मित्ता य तह बन्धका / जीवन्तमणुजीवन्ति, मयं नाणुव्व यन्ति य // 14 // नीहरंति मयं पुत्ता, पितरं परमदुविखया ! पितरो वि तहा पुत्ते, वन्यू रायं ! तवं चरे // 15 // तयो तेणजिए दव्वे, दारे य परिरक्खिए। कीलन्तन्ने नरा रायं , हट्टतुट्ठ-मलंकिया // 16 // तेणावि जं कयं कम्म, Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनस्त्रम् / / अध्ययनं 18 ] [ 125 सुहं वा जइ वा दुहं / कम्मुणा तेण संजुयो, गच्छइ उ परं भवं // 17 / / सोऊणं तस्स सो धम्म, अणगारस्स अन्तिए / महया संवेगनिव्वेदं, समावन्नो नराहियो॥ 18 // संजयो चहउं रज्जं, निक्खन्तो जिणसासणे / गद्दभालिस्म भगवयो, अणगारस्स अन्तिए / // 11 // चिच्चा रटुं पव्वइयो, खत्तियो परिभासई / जहा ते दीमई रूवं, पसन्नं ते तहा मणो // 20 // कि नामे किंगुत्ते, कस्सट्टाए व माहणे ? / कहं पडियरसी बुद्धे ? कहं विणीएत्ति वुच्चसि ? // 21 // संजयो नाम नामेणं, तहा गुत्तेण गोतमो / गद्दभाली ममायरिया, विजाचरणपारगा // 22 // किरियं अकिरियं विणयं, अन्नाणं व महामुणी ! / एएहिं चउहिँ ठाणेहिं, मेयन्ने किं पभासई ? // 23 // इइ पाउकरे बुद्धे, नापए परिनिव्वुडे। विजाचरणसंपन्न, सच सच्चपरकमे // 24 // पडन्ति नरए घोरे, जे नरा पावकारिणो / दिव्यं च गई गच्छन्ति चरिता धम्ममारियं // 25 // मायाबुझ्यमेयं तु, मुसाभासा निरस्थिया / मंजममाणोऽवि अहं, वसामि इरियामि य // 26 // सव्वे ते विइया मझ मिच्छादिट्टी अणारिया। विजमाणे परे लोए, सम्मं जाणामि अप्पगं // 27 // ग्रहमासि महागणे, जुइमं वरिससोवमे / जा सा पाली महापाली, दिवा वरिस-सयोवमा // 28 // से चुए बम्भलोगायो, माणुस्सं भदमागए। अप्पणो य परेसिं च, ग्राउं जाणे जहा तहा // 21 // नाणारइं च छन्द च, परेवजिज संजयो। अणट्ठा जे य सव्वत्था, इइ विजामणुसंचरे // 30 // पडिकमामि पसिणाणं, परमन्तेहिं वा पुणो / अहो उट्टियो ग्रहोरायं, इति विजा तवं चरे // 31 // जं च मे पुच्छसी काले, सम्म सुद्धेण चेयना / ताई पाउकरे बुद्धे, तं नाणं जिणसासणे // 32 // किरियं च रोयर धीरो, अकिरियं परिवजए। दिट्ठीए दिट्ठीसंपन्नो, धम्मं चरसु दुचरं // 33 // एवं पुराणायं सुना अथवम्मोव-सोहियं / भरहोऽवि भारहं वासं, विचा कामाइ पब्बए // 34 // सगरोऽवि सागरन्तं, भरहवासं नराहियो। Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 126 ] ( श्रीमदागमसुधासिन्धुर त्रयोदशमो विभाग: इस्सरियं केवलं हिचा, दयाए परिनिव्वुडे // 35 // चइत्ता भारहं वासं, चकवट्टी महिड्डियों / पयजमभुवगयो, मघवं नाम महाजसो // 36 // सणंकुमारो मणुस्सिन्दो, चकवट्टी महिड्डियो / पुत्तं रज्जे उवित्ताणं, सोवि राया तवं चरे // 37 // चइत्ता भारहं वासं, चकवट्टी महिड्डियो। सन्ती सन्तिकरो लोए, पत्तो गइमणुत्तरं // 38 // इक्खागरायवसहो, कुन्थू नाम नरेसरो। विक्खायकित्ती धीइमं पत्तो गइमणुत्तरं (मुक्खं गयो अणुत्तरं) // 31 // सागरन्तं जहित्ताणं, भरहवासं नरेसरो। अरो य अरयं(सं) पत्तो, पत्तो गइमणुत्तरं // 40 // चइत्ता भारहं वासं, चकवट्टी महिड्डियो / चिचा य उत्तमे भोए, महापउमो दमं चरे // 41 // एगच्छत्तं पसाहित्ता, महिं माणनिसूरणो। हरिसेणो मणुस्सिन्दो, पत्नो गइमणुत्तरं // 42 // अन्नियो रायसहस्सेहिं, सुपरिचाई दमं चरे। जयनामो जिणवखायं, पत्तो गइमगुत्तरं // 43 // दसरणरज्जं मुदियं, चइताणं मुणी चरे / दसणभदो निक्खन्तो, सक्खं सक्केण चोइयो // 44 // नमी नमेइ अप्पाणं, सक्खं सक्केण चोइयो / जहित्ता रज्जं (चइऊण गेहं) वइदेही, सामन्ने पज्जुवटियो // 45 // करकंडू कलिंगाणं(गेसु) पंचालाण(लेसु) य दुम्मुहो / नमी राया विदेहाणं(हे तु) गन्धाराण(रेसु) य नग्गई // 46 // एए नरिन्दवसभा, निक्खन्ता जिणसासणे / पुत्ते रज्जे ठवित्ताणं, सामराणे पज्जुवट्ठिया // 47 // सोवीर-रायवसभो, चइत्ताण मुणी चरे। उद्दायणो पब्वइयो, पत्तो गइमणुत्तरं // 48 // तहेव कासिरायावि, सेयोसञ्च-परक्कमो। कामभोगे परिचज, पहणे कम्ममहावणं // 41 // तहेव विजयो राया, अणट्टा(प्राणट्ठा)कित्ति पव्वए / रज्जं तु गुणसमिद्धं पयहित्तु महायसो // 50 // तहेवुग्गं तवं किचा, अवक्खित्तेण चेयसा / महाबलो रायरिसी, अदाय सिरसा सिरं (यादाय सिरसो सिरिं)॥ 51 // कहं धीरो यहेऊहिं, उम्मतोव्व महिं चरे ? / एए विसेसमादाय, सूरा दढपरकमा Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययमसूत्रम् / अध्ययनं 19 ] // 52 // बन्न-नियाणखमा, एमा (सव्वा) मे भासिया वई। अतरिंसु तरन्तेगे (तरन्तिऽराणे), तरिस्सन्ति अणागया // 53 // करं धीरे अहेऊहिं, अायं (अताणं) परियावसे / सम्बसंगविणिम्मुक्को, सिद्धे भवइ नीरए // 54 // ति बेमि॥ ॥इति अष्टादशममध्ययनम् // 18 // // 16 // अथ मृगापुत्रीयाख्य-मेकोनविंशतितममध्ययनम् // सुग्गीवे नयरे रम्मे, काणणुजाणसोहिए / रापा बलभदो तत्थ, मिया तस्सऽग्गमाहिसी // 1 // तेसिं पुत्ते बलसिरी, मियापुत्तत्ति विस्सए / अम्मापिऊहिं दइए, जुवराया दमीसरे // 2 // नंदणे सो उ पासाए, कीलए सह इत्थिहिं / देवो दोगुंदगो चेव, निच्चं मुदितमाणसो // 3 // मणिरयणकुट्टि मतले, पासायालोयणे ठियो / पालोएइ नगरस्स, चउकतियचच्चरे // 4 // अह अथ अइच्छंतं, पासई समणसंजयं / तवनियमसंजमधरं, सीलड्ढ गुणयागरं // 5 / तं पेहई मियापुत्ते, दिट्टीए अणिमिसाइ उ / कहिं मन्नेरिसं रूवं, दिट्ठपुव्वं मए पुरा ? // 6 // साहुस्स दरिसणे तस्स, अज्झवसाणंमि सोहणे / मोहं गयस संतस्स, जातीसरणं समुप्पन्नं // 7 / जातीसरणे समुप्पन्ने, मियापुत्ते महिड्डिए / सरइ पोराणियं जाई सामराणं च पुराकयं (देवलोगचुयो संतो, माणुमं भवमागयो / सन्निनाणे समुप्पन्ने, जाई सरह पुराणयं) // 8 // विसएसु अरजन्तो, रजन्तो संजमं मे य / अम्मापियरं उवागम्म, इमं वयणमब्बवी // 1 // सुयाणि मे पंच महव्वयाणि, नरएसु दुक्खं च तिरिक्खजोणिसु / निविणकामो मि महराणवायो, अणुजाणह पव्वइस्साम अम्मो ! // 10 // अम्मताय ! मए भोगा, भुत्ता विसफलोवमा / पच्छा कडुयविवागा, अणुबंधदुहावहा // 11 / / इमं सरीरं अणिच्चं, असुई असुइसंभवं / असासयावासमिणं, दुक्खकेसाण भायणं // 12 // असासए सरीरंमि, रई नोवलभामऽहं / पच्छा पुरा व चइयव्वे, फेणबुब्बुयसन्निभे Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 128 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः // 13 // माणुसत्ते असारम्मि, वाहीरोगाण आलए / जरामरणपत्थंमि, खणंपिं न रमामऽहं // 14 // जम्म दुक्खं जरा दुक्खं, रोगा य मरणाणि य / अहो दुक्खो हु संसारो, जत्थ कीसन्ति जंतुणो // 15 // खित्तं वत्थु हिरराणं च, पुत्तदारं च बन्धना / चइत्ताण इमं देहं, गंतब्वमरसस्स मे // 16 // जह किंपागफलाणं, परिणामो न सुदरो। एवं भुत्ताण भोगाणं, परिणामो न सुन्दरो // 17 // श्रद्धाणं जो महंतं तु, अपाहेजो पवजई / गच्छंतो से दुही होड, छुहातगहाहिं पीडियो॥ 18 // एवं धम्म अकाऊणं, जो गच्छइ परं भवं / गच्छंतो से दुही होई, वाहिरोगेहिं पीडियो // 11 // श्रद्धाणं जो महंत तु, सपाहेजो पवजई / गच्छंतो से सुही होइ, छूहातराहाविवजियो // 20 // एवं धम्मपि काऊणं, जो गल्छइ परं भवं / गच्छंते से सुही होइ, अप्पकामे अवेयणे // 21 // जहा गेहे पलित्तंमि, तस्स गेहस्स जो पहू। सारभंडाणि नीणेइ, असारं अवउज्झइ // 22 // एवं लोए पलित्तंमि, जराए मरणेण य / अप्पाणं तारइस्सामि, तुम्भेहिं अणुमनियो // 23 // तं विनि अम्मापियरो, सामगणं पुत्त ! दुचरं / गुणाणं तु सहस्लाणि, धारेयवाई भिक्खुणा // 24 // समया सबभूएसु, सत्तुमित्तेसु वा जगे / पाणाइवायविरई यावज्जीवाय दुक्करं // 25 // निच्चकालाप्पमत्तेणं, मुसावायविवजणं / भासिपव्वं हियं सच्चं, निचाउत्तेण दुक्करं // 26 // दंतसोहणमाइस्स, अदत्तस्स विवजणं / अणवज्जेसणिजस्स, गिगहणा अवि दुक्करं // 27 // विरई अबम्भवेरस्स, कामभोगरसन्नुणा / उग्गं महव्वयं बम्भ, धारेयव्वं सुदुक्करं // 28 // धणयनपेसाग्गेसु, परिग्गहविवजणं / सवारम्भपरिचायो, निम्ममत्तं सुदुक्करं // 21 // वउविहेवि ग्राहारे, राई. भोयणवजणा / सन्निही संचयो चेव, वज्जेयधो सुदुक्करं // 30 // छुहा तराहा य सीउराह, दंसमसगा य वेयणा / अकोसा दुक्खसिजा य, तणफासा जल्लमेव य // 31 // तालणा तजणा चेव, वहबन्धपरीसहा / दुक्खं भिक्खा Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् :: अध्ययनं 19] . [ 126 यरिया, जायणा य अलाभया / / 32 // काबोया जा इमा वित्ती, केसलोयो अ दारुणा / दुक्खं बम्भवयं घोरं, धारेउ अमहप्पणो // 33 // सुहोइयो तुमं पुत्ता !, सुकुमालो सुमजियो / न हुसी पभू तुमं पुत्ता !, सामगणमणु पालिया // 34 // जावजीवमविस्तामो, गुणाणं तु महब्भरो। गरुयो लोहमारुन, जो पुत्ता ! होइ दुब्बहो // 35 // श्रागासे गंगसोउब्व, पडिसोउच दुत्तरो। बाहाहिं सागरो चेव, तरियब्यो य गुणोदही // 36 // वालुयाकवले चे, निरस्साए उ संजमे / असिधारागमणं चेव, दुक्करं चरिउं तवो // 37 // ग्रही वेगन्तदिट्टीए, चरित्ते पुत्त ! दुचरे / जवा लोहमया चेव, चावेयव्वा सुदुक्करं // 38 // जहा अग्गिसिहादित्ता, पाउं होइ सुदुक्करं / तह दुकरं करेउं जे, तारुगणे समणतणं // 31 // जहा दुक्खं भरेउं जे, होइ वायस्म कुस्थलो। तहा दुक्खं करेउं जे, कीवेणं समणत्तणं // 40 // जहा तुलाए तोलेउं, दुक्करं मन्दरो गिरी। तहा निहुअनीसंके, दुकरं समणत्तयां // 41 // जहा भुयाहिं तरिउं, दुकरं रयणायरो। तहा अणुवसंतेणं, दुक्करं दमसागरो // 42 // भुज माणुस्सए भोए पंचलवखणए तुमं / भुत्तभोगी तो जाया ! पच्छा धम्मं चरिस्ससि // 43 // तं (तो) बेंतऽम्मापियरो, एवमेयं जहाफुडं / इह लोए निप्पिवासस्स, नत्थि किंचिवि दुकरं // 44 // सारीरमाणसा चेव, वेयणा उ अणंतसो / मए सोढायो भीमायो अमई दुक्खभयाणि य // 45 // जरामरणकंतारे, चाउरते भयागरे / मया सोटाणि भी नाई, जम्माई मरणाणि य // 46 // जहा इहं अगणी उगहो इत्तोऽणन्तगुणो तहिं / नरएसु वेपणा उराहा, अस्साया वेइया मए (इत्तोऽणन्तगुणा तहिं) // 47 // जहा इहं इमं सीयं, इत्तोऽणन्तगुणं(णा) तहिं / नरऐसु वेयणा सीया, अस्साया वेड्या मए // 48 // कंदतो कंदुवुनीसु, उद्धपायो ग्रहोसिरो। हुयासणे जलन्तम्मि, पक्कपुब्वो अणततो // 46 / / महादवग्गि-संकासे, मरुम्मि वइरवालुए / कालम्ब-वालुयाए उ, दडपुब्बो Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमंदागमसुंधासिन्धुः / / त्रयोदशमी निमागा श्रणंतसो // 50 // रसंतो कंदुकुम्भीषु, उड्डे बद्रो अबन्धवो / करवत्तकरकयाईहिं, छिनपुत्रो अणं तसो // 51 // अइतिख-कराटगाइराणे, तुगे सिंबलिपायवे / खेवि पासबद्रेणं, कट्ठोकड्डाहि दुक्करं // 52 // महाजंतेसु उच्छू वा, पारन्तो सुभेरखं / पीलियो मि सकम्मे हिं, पावकम्मो अणन्तसो ॥५३॥कूवन्नो कोलसुणएहि, सामेहिं सबलेहि य। पाडियो फालियो छिनो, विष्फुरन्तो अणेगसो // 54 // अरसाहिं (असीहिं) अयसिवराणेहिं, भल्लीहि पट्टिसेहि य / छिन्नो भिन्नो विभिन्नो य, उपवनो (योइराणो) पावकम्मुणा // 55 // अवसो लोहरहे जुत्तो, जलन्ते(त-) समिलाजुए / चोइयो तुत्तजुत्तेहिं, रुज्झो वा जह पाडियो // 56 // हुयासणे जलंतंमि, चियासु महिसो विव। दद्धो एको य श्रवसो, पावकम्मेहिं पावियो // 57 // बला संडासतु'डेहिं, लोहतुडेहिं पक्खिहिं / विलुत्तो विलवन्तोऽहं, ढंकगिद्धेहिंऽणन्तसो // 58 // तराहाकिलंतो धावतो, पत्तो वेयरणिं नई / जलं पाहंति चिंतन्तो, खुरधाराहिं विवाइयो // 51 // उराहाभितत्तो संपत्तो, सिपतं महावणं / असिपत्तेहिं पडतेहिं, छिन्नपुव्वो अणेगसो // 60 // मुग्गरेहिं मुसुदीहिं, सूलेहिं मूसलेहि य / गयासंभग्गगत्तेहि, पत्तं दुक्खं अणंतसो // 61 // खुरेहि तिक्खधाराहिं, छुरियाहिं कप्पणीहि य / कप्पियो फालियो छिन्नो, उकित्तो (वुकन्तो) य अणेगसो // 62 // पासेहिं कूडजालेहिं, मिश्रो वा अवसो अहं / वा(ग)हियो बद्धरुद्धो य, विवसो चेव विवाइश्रो // 63 // गलेहि मगरजालेहिं, मच्छो वा अवसो अहं / उल्लियो फालियो गहियो, मारियो य अणन्तसो // 64 // विदंसएहि जालेहिं, लिप्पाहि सउणो विव / गहियो लग्गो य बद्धो य, मारियो य अणन्तसो // 65 // कुहाडपरसुमाईहिं, बड्डईहिं दुमो विव / कुट्टियो फालियो छिन्नो, तच्छियो य अणन्तसो // 66 // चोडमुट्ठिमाईहिं, कुमारेहिं अयं पिव / ताडिओ कुट्टियो भिन्नो, चुगिणयो य अणन्तसो // 6 // Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीमदत्तराज्ययनयंत्रम् / अध्ययनं -16]. तत्ताई तम्बलोहाई, तउाई सीसगाणि य। पाइयो कलकलन्ताई, बारसन्तो सुभेरखं // 18 // तहपिसाई मंलाई, खराडाइं सुल्लगाणि य / खावित्रो मि समंसाई, अग्गिवगणाई णेगतो // 6 // तुहं पिया सुरा सीहू, मेरो य महूणि य / पजियो मि जलन्तीयो, वसानो रुहिराणि य // 70 // निव्वं भीएण तत्येणं, दुहिएणं वहिएण य। परमा दुहसंबद्धा, वेयणा वेइया मए // 7 // तिब्ध-चण्डप्पगाढायो, घोरायो अइदुस्सहा / महब्भयायो (महालयात्रो) भीमायो,नरएसुवेइया मए // 72 // जारिसा माणुसे लोए, ताया ! दीसन्ति वेपणा। इत्तो अणन्तगुणिया, नरएसुदुक्खवेयणा ॥७३॥सव्वभवेसु अस्साया, वेयणा वेइया मए / निमिसन्तरमित्तंपि, जं साया नत्थि वेयणा // 74 // तं वितऽम्मापियरो, छन्देणं पुत्त पव्वया / नवरं पुण सामराणे, दुक्खं निप्पडिकम्मया // 75 // सो बिंतऽम्मापियरो !, एवमेयं जहाफुडं / परिकम्मं को कुणई, अरगणे मिगपक्खिणं ? // 76 // एगभूयो अरगणे वा, जहा ऊ चरई मिगो / एवं धम्मं चरिस्सामि, संजमेण तवेण य // 77 // जहा मिगस्स श्रायंको, महारराणम्मि जायई / अच्छतं रुवखमूलंमि, को णं ताहे चिगिच्छई // 78 // को वा से श्रोसहं देइ, को वा से पुच्छई सुहं / को से भत्तं व पाणं वा, अाहरितु पणामई ? // 79 // जया य से सुही होइ, तया गच्छइ गोपरं / भत्तराणस्स अट्टाए, वल्लराणि सराणि य // 80 // खाइत्ता पाणियं पाउं, वल्लरेहिं सरेहि य / मिगचारियं चरित्ताणं, गच्छई मिगचारियं // 1 // एवं समुट्ठिए भिक्खू, एवमेव श्रणेगए (अणिएयणे) / मिगचारियं चरित्ताणं, उड्ड पक्कमई दिसं // 2 // जहा मिए एग अणेगचारी, अणेगवासे धुवगोयरे य। एवं मुणी गोयरियं पविट्ठ, नो हीलए नोविय खिसइजा // 83 // मिगचारियं चरिस्सामि, एवं पुत्ता ! जहासुहं / अम्मापिऊहिंऽणुनायो, जहाइ उबहिं तयो // 84 // मिगचारियं चरिस्सामो, सव्वदुक्ख-विमुक्खणिं / तुन्भेहिं अम्बऽणुनायो, गच्छ पुत्त ! जहासुहं // 85 // एवं सो अम्मा Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 132 [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमी विमार्गः पियरं, अणुमाणित्ताण बहुविहं / ममत्तं छिन्दई ताहे, महानागुब्ब कंचुयं // 86 // इडी वित्तं च मित्ते य, पुत्तदारं च नायो / रेणुयं व पडे लग्गं, निझुणित्ताण निग्गयो // 87 // पंचमहव्वयजुत्तो, पंचसमिश्रो तिगुत्तिगुत्तो य / सन्भिन्तरवाहिरिए, तवोकम्ममि उज्जुयो॥ 88 // निम्ममो निरहंकारो, निरसंगो चत्तगारयो / समो य सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य // 86 // लाभालाभे सुहे दुवखे, जीविए मरणे तहा / समो निन्दापसंसासु, तहा माणावमाणो // १०॥गारवेसु कसाएसु, दंडसल्लभएसु य / नियत्तो हाससोगायो, अनियाणो अबन्धणो // 11 // अणिस्सियो इह लोए, परलोए अणिस्सियो / वासीचन्दणकप्पो य, असणे अणसणे तहा // 12 // अप्पसस्थेहिं दाहेिं, सब यो पिहियासवो। अझप्पज्झाण-जोगेहिं, पसत्थदमसासणो // 13 // एवं नाणेण चरणेण, दंसणेण तवेण य / भावणाहिं विसुद्धाहिं, सम्मं भावित्तु अप्पयं // 14 // बहुयाणि उ वासाणि, सामन्नमणुपालिया। मासिएण उ भत्तेणं, सिद्धिं पत्तो अणुत्तरं // 15 // एवं करन्ति संबुद्धा, पण्डिया पवियक्खणा / विणिपट्टन्ति भोगेस, मियापुत्ते जहामिसी // 16 // महप्पभावस्स महाजसस्स, मियाइपुत्तस्स निसम्म भासियं / तवप्पहाणं चरियं च उत्तम, गइप्पहाणं च तिलोअविस्सुतं // 17 // वियाणिया दुक्खविवडणं धणं, ममत्तांधं च महाभयावहं / सुवावहं धम्मधुरं अणुतरं, धारेह निव्वाणगुणावहं महं // 18 // त्ति बेमि // // इति एकोनविंशतितममध्ययनम् // 19 // // 20 // अथ महानिर्ग्रन्थीयाख्यं विंशतितममध्ययनम् // सिद्धाण नमो किच्चा, संजयाणं च भावो / अत्थधम्मग(व)ई तच्चं, अणुसिद्धिं सुणेह मे // 1 // पभूयरयणो राया, सेणियो मगहाहियो। विहारजत्तं निजायो मण्डिकुच्छिसि चेइए // 2 // नाणादुम-लयाइराणं, नाणापविख-निसेवियं / नाणाकुसुम-संछन्नं, उज्जाणं नंदगोवमं // 3 // Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदत्तराज्यपनस्त्रम् : अध्ययनं 2] . [ 135 तत्थ सो पासए साहुँ, संजयं सुसमाहियं / निसन्नं रुक्खमूलंमि, सुकुमालं सुहोइयं // 4 // तस्स रूवं तु पासित्ता, राइणो तम्मि संजए। अच्चंतपरमो श्रासी, अउलो स्वविम्हो // 5 // अहो वनो अहो रूवं, अहो अजस्स सोमया। ग्रहो खंती अहो मुत्ती, अहो भोगे अमंगया // 6 // तस्स पाए उ वन्दित्ता, काऊण य पयाहिणं / नाइदूर-मणासन्ने, पंजली पडिपुच्छई // 7 // तरुणोऽसि अजो ! पवइयो, भोगकालम्मि संजया ! / उवट्ठि(हि)ोऽसि सामराणे, एअमट्ठ सुणेमु ता // 8 // अणाहो मि महारायं !, नाहो मझ न विजई / अणुकम्पयं सुहिं वावि, कंची नाहि तुमे(नाभिसमे.) महं // 1 // ततो सो पहसियो राया, सेणियो मगहाहिवो / एवं ते इडिमंतस्स, कहं नाहो न विजई ? // 10 // होमि नाहो भयंताणं, भोगे भुजाहि संजया!। मित्तनाईपरिवुडो, माणुस्सं खु सुदुल्लहं // 11 // अप्पणावि अणाहोसि, सेणिया ! मगहाहिवा / अप्पणा अणाहो संतो, कह(स्स) नाहो भविस्ससि ? // 12 // एवं वुत्तो नरिंदो सो, सुसंभंतो सुविम्हिो / वयणं अस्सुयपुव्वं, साहुणा विम्हयं नियो॥ 13 // अस्सा हत्थी मणुस्सा मे, पुरं अंतेउरं च मे / भुंजामि माणुसे भोप, प्राणा इस्सरियं च मे // 14 // परिसे संपयग्गंमि, सव्वकाम-समप्पियो / कहं अणाहो भवई ? मा हु भंते ! मुसं वए // 15 // न तुमं जाणे अणाहस्स प्रत्थं पुच्छ (पोत्थं) च पत्थिवा ! / जहा श्रणाहो भवई, सणाहो वा नराहिव ! // 16 // सुणेहि मे महारायं !, अव्वक्खित्तेण चेयसा / जहा श्रणाहो भवई, जहा मेत्र पवत्तियं // 17 // कोसंबीनाम नयरी, पुराण-पुरभेयिणी / तत्थ श्रासी पिया मझ, पभूयधणसंचयो / / 18 / / पढमे वए महाराय ! अउला मे अच्छिवेयणा / बहुत्था ति(वि)उलो दाहो, सव्वगत्तेसु (सब्गेसु) पत्थिवा ! // 11 // सत्थं जहा परमतिक्खं, सरीरविवरंतरे। पविसिज (सरीरबीयअंतरे / श्रावेलिज) अरी कुद्धो, एवं मे अच्छिवेयणा // 20 // तियं मे अंतरिच्छं च, उत्तिमंगं च Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 154 [ भीमागमसुभासिन्धुः त्रयोदशमी किमान पीडई / इंदासणिसमा घोरा, वेयणा परमदारुणा // 21 // उवट्टिया मे शायरिया, विजामंत-चिगिच्छया / अबीया सत्थकुसला (नानासस्थत्थकुसला) मंतमूल-विसारया // 22 // ते मे तिगिव्छ कुवंति, चाउप्पायं जहाहियं / न य मे दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्झ अणाहया // 23 // पिया मे सबसारंपि, दिजाहि मम कारणा / न य दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्म अणाहया // 24 // माया (वि) मे महाराय !, पुत्तसोगदुहदिया / न य दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्झ अणाहया // 25 // भायरा मे महाराय !, सगा जिट्टकणिट्ठगा। न य दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्झ अणाहया // 26 // भइणीयो मे महाराय !, सगा जिट्ठकणिट्ठगा / न य दुवखा विमोयन्ति, एसा मज्म अणाहया // 27 // भारिया मे महाराय !, अणुरत्त-मणुव्वया / अंसुपुराणेहिं नयणेहिं, उरं मे परिसिंचई // 28 // अन्नं पाणं च राहाणं च गधाल विलेवणं ?, मए नायमनायं वा, सा बाला नो य भुजई // 26 // खणंपि मे महाराय !, पासायोवि न फिट्टई / न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्म अणाहया // 30 // तयोऽहं एवमाहंसु, दुक्खमा हु पुणो पुणो / वेयणा अणुहविउं जे, संसारम्मि अणन्तए // 31 // सयं च जइ मुचिजा वेयणा विउला इयो / खन्तो दन्तो निरारम्भो, पव्वइए अणगारियं // 32 // एवं च चिन्तइत्ताणं, पासुत्तो मि नराहिवा ! / परियत्तन्तीइ राईए, वेयणा मे खयं गया // 33 // तो कल्ले पभायम्मि, पाउच्छित्ताण बन्धवे / खन्तो दन्तो निरारम्भो, पव्वईयो अणगारियं / / / 34 // ततोऽहं नायो जाहो, प्पणो य परस्स य / सव्वेसिं चेव भूयाणं, तसाणं थावराण य // 35 // अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली / अप्पा कामदुहा घेणू, अप्पा मे नन्दणं वणं // 36 // अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य / अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्यट्ठियसुपट्ठियो // 37 // इमा हु अन्नावि अाहया निवा!, तामेगचित्तो निहुयो सुणेहि मे। नियंठधम्म लहियाणवी जहा, Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीमदत्तराध्मयवस्त्रम् / / अम्पयनं 20 ) [ 13 // सीयन्ति एगे बहुकायरा नरा // 38 // जे पव्वइत्ताण महब्वयाई, सम्मं च नो फासयई पमाया / श्रणिग्गहप्पा य रसेसु गिद्धे, न मूलयो छिन्दइ बन्धणं से // 31 // पाउत्तया जस्स य नत्थि कावि, इरियाइ भासाइ तहेसणाए / आयाणनिक्खेवदुगुछणाए, न वीरजायं अणुजाइ मग्गं // 40 // चिरंपि से मुराडलई भवित्ता, अथिरव्वए तवनियमेहिं भट्ठ / चिरंपि अप्पाण किलेसइत्ता, न पारए होइ हु संपराए // 41 // पुल्लेव (पोल्लार) मुट्ठी जह से असारे, अयन्तिते कूडकहावणे य / राढामणी वेरुलियप्पगासे, श्रमहग्धए होइ हु जाणएसु // 42 // कुसीललिंगं इह धारइत्ता, इसिज्मयं जीविय वहइत्ता / असंजए संजय-लप्प(लाभ)माणे, विणिघाय-मागच्छइ से चिरंपि // 43 // विसं तु पीयं जह कालकूडं, हणाइ सत्थं जह कुग्गहीयं / एसेव धम्मो विसयोववन्नो, हणाइ वेयाल इवाविवन्नो (इवाविबंधणो) // 44 // जो लक्खणं सुविण पउंजमाणो, निमित्त-कोऊहल-संपगाढे / कुहेड-विजासवदारजीवी, न गच्छई सरणं तम्मि काले // 45 // तमंतमेणेव उ से असीले सया दुही विपरियासुवेइ / संधावई नरग-तिरिक्खजोणी, मोणं विराहित्तु असाहुरूवे // 46 // ऊद्दे सियं कीयगडं नियागं, न मुच्चई किंचि अणेसणिज्ज / श्रग्गीविवा सव्वभक्खी भवित्ता, इयो चुयो गच्छइ कट्ठ पावं // 47 // न तं श्ररी कराठ छित्ता करेइ, जं से करे अप्पणिया दुरप्पा / से नाहिई मच्चुमुहं तु पत्ते, पच्छाणुतावेण दयाविहूणो // 48 // निरत्थया नग्गई उ तस्स, जे उत्तम? विवयासमेइ / इमेवि से नत्थि परेवि लोए, दुहयो वि से झिज्झइ तत्थ लोए // 41 // एमेवऽहाछन्द-कुसीलरूवे, मग्गं विराहित्तु जिणुत्तमाणं / कुररी विवा भोगरसाणुगिद्धा, निरट्ठसोया परितावमेइ // 50 // सुच्चाण मेहावि सुभासियं इमं, अणुसासणं नाणगुणोववेयं / मग्गं कुसीलाण जहाय सव्वं, महानियंठाण वए पहेणं // 51 // चरित्तमायारगुणन्निए तश्रो, अणुत्तरं संजम पालियाणं / निरासवे संखवियाण कम्म, Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 136 ] [ श्रीमदाममसुधासिन्धुः त्रयोदशमी विभागः उवेइ ठाणं विउलुत्तमं धुवं // 42 // एवुग्गुदनवि महातवोधणे, महामुणी महापइणे महायसे / महानियंठिजमिणं महासुयं, से काहए महया वित्थरेणं // 53 // तुट्ठो अ सेणियो राया, इणमुदाहु कयंजली / अणाहयं जहाभूयं, सुठ्ठ मे उवदंसियं // 54 // तुझ सुलद्धं खु मणुस्सज.म्नं, लाभा सुलद्धा य तुमे महेसी ! / तुम्भे सणाहा य सान्धवा य, जं भे ठिया मग्गि जिणुत्तमाणं // 55 // तंमि नाहो अणाहाणं, सव्वभूयाण संजया / / खामेमि ते महाभाग ! इच्छामि-अणुसासिउं॥५६॥ पुच्छिऊण मए तुम्भ, झाणविग्घोय जं कत्रो / निमन्तिया य भोगेहि, तं सव्वं मरिसेहि मे // 57 // एवं थुणित्ताण स रायसीहो, यणगारसीहं परमाइ भत्तिए / सोरोहो य सपरियणो (सबन्धवो) य, धम्माणुरत्तो विमलेण चेयसा // 58 // ऊससिय-रोमकूवो, काऊण य पयाहिणं / अभिवन्दिऊण सिरसा, अइयायो नराहिवो // 51 // इयरो वि गुणसमिद्धो, तिगुत्तिगुत्तो तिदंडविरो य / विहग इव विप्पमुक्को, विहरइ वसुहं विगयमोहु // 60 // त्ति बेमि // // इति विंशतितममध्ययनम् // 20 // :: // 21 // अथ समुद्रपालीयाख्यमेकविंशमध्ययनम् // चम्पाए पालिए नाम, सावए यासि वाणिए।महावीरस्स भगवो,सीसो सो उ महप्पणो // 1 // निग्मन्ये पावयणे, सावए से विकोविए / पोएण ववहरन्ते, पिहुँडं नगरमागए // 2 // पिहुडे ववहरन्तस्स, वाणियो देइ धूरं / तं ससत्तं पइगिज्झ, सदेसमह पत्थियो॥३॥ श्रह पालियस्स घरणी, समुद्दमि पसवइ / अह दारए तहिं जाए, समुद्दपालित्ति नामए // 4 // खेमेण श्रागए चम्पं, सावए वाणिए घरं / संवडई घरे तस्स, दारए से सुहोइए // 5 // बावत्तरीकलाश्रो श्र, सिक्खिए नीइकोविए / जुव्वणेण य श्रफुगणे (संपरागो), सुरुवे पियदंसणे // 6 // तस्स रूववई भज्ज, पिया Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीमदत्तराध्ययनसूत्रम् :: अध्ययनं 21 ] [ 130 याणेइ रूविणिं / पाताए कीलए रम्मे, देवो दोगुन्दगो जहा ॥७॥श्रह अनया कयाई, पासायलोयणे ठियोः। वज्झमराडण-सोभागं, वझ पासइ बझगं // 8 // तं पासिऊण संविग्गो, समुद्दपालो इणमब्बवी / अहोऽसुहाण कम्माणं. निजाणं पावगं इमं // 1 // संबुद्धो सो तहिं भयवं, परमं संवेगमागयो। पापुच्छऽम्मापियरो, पब्बए अणगारियं // 10 // जहिज सग्गन्थ (जहित्तु-जहाय संगं च) महाकिलेसं, महन्तमोहं कसिणं भयाणगं / परियायधम्मं चाभिरोअइज्जा, वयाणि सीलाणि परीसहे य॥ 11 // अहिंस सच्चं च अतेणगं च, तत्तो अ बम्भं अपरिग्गरं च / पडिव. जिया पंच महव्वयाणि, चरिज धम्मं जिगदेसियं विऊ // 12 // सव्वेहिं भूएहिं दयाणुकम्पी(पो) खन्तिक्खमे संजयबम्भयारी / सावजजोगे परिवजयन्तो, चरिज भिक्खू सुसमाहिइन्दिए // 13 // कालेण कालं विहरिज रटे, बलाबलं जाणिय अप्पणो य / सीहो व सद्दे ण न संतसिज्जा, वइजोग सुच्चा न असब्भमाहु // 14 // उवेहमाणो उ परिव्वइजा, पियमप्पियं सव्व तितिक्खइजा / न सब सव्वत्थाभिरोयइजा, न यावि पूयं गरिहं च संजए // 15 // अणेगछन्दा मिह माणवेहिं, जे भावो से पकरेइ भिक्खू / भयभेरवा तत्थ उइन्ति भीमा, दिव्या मणुस्सा अदुवा तिरिच्छा // 16 // परीसहा दुविसहा अणेगे, सीयंति जत्था बहुकायरा नरा / से तत्थ पत्ते न वहिज पंडिए, संगामसीसे इव नागराया // 17 // सीयोसिणा दंसमसगा फासा, पायंका विविहा फुसन्ति देहं / अकुक्कुयो (अककर) तत्थऽहियासइजा, रयाई खेविज पुराकडाई // 18 // पहाय रागं च तहेव दोसं, मोहं च भिक्खू सययं वियक्खणे / मेरुव वारण अकम्पमाणे, परिसहे पायगुत्ते सहिज्जा // 11 // अणुन्नए नावणए महेसी, न. यावि पूयं गरहं च संजए। से उज्जुभावं पडिवज संजए, निबाणमग्गं विरए उवेइ // 20 // अरइरइ सहे पहीणसंथवे, विरए श्रायहिए पहाणवं / परमट्ठपएहिं चिट्ठई, छिन्नसोए Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 138 [भीमदागमसपासि प्रयोदशनो विमान अममे अकिंचणे // 21 // विवित्तलयणाई भइज ताई, निरोवलेवाइं असं. थडाई / इसीहिं चिराणाई महायसेहिं, कारण फासिज परीसहाई // 22 // सन्ना(स ना)णनाणोवगए महेसी, अणुत्तरं चरियं धम्मसंचयं / अणुत्तरे, (गुणुत्तरे) नाणधरे जसंसी, श्रोभासई सूरिए वऽन्तलिक्खे // 23 // दुविहं खवेऊण पुराणपावं, निरंजणे सव्वश्री विष्पमुक्के / तरित्ता समुद्द व महाभवोहं, समुद्दपाले अपुणागमं गए // 24 // त्ति बेमि // // इति एकविंशमध्ययनम् // 21 // // 22 // अथ रथनेमीयाख्यं द्वाविंशमध्ययनम् // सोरियपुरंमि नयरे, पासि राया महड्डिए / वसुदेवत्ति नामेणं, रायलक्खणसंजुए // 1 // तस्स भजा दुवे अासि, रोहिणी देवई तहा / तासिं दोगहंपि दो पुत्ता, इट्टा (जे) रामकेसवा // 2 // सोरियपुरंमि नयरे, पासि राया महड्डिए। समुहविजये नाम, रायलक्खण-संजुए॥३॥ तस्स भन्जा सिवा नाम, तीसे पुत्तो महायसो / भयवं अरिट्टनेमित्ति, लोगनाहे दमीसरे // 4 // सोरिट्टनेमिनामो अ, लक्खण(वंजण)स्सर-संजुश्रो / श्रट्ठसहस्सलक्खणधरो, गोयमो कालगच्छवि // 5 ॥वजरिसह-संघयणो, समचउरंसो झसोदरो / तस्स राईमई कन्नं, भज्जं जायइ केसवो॥ 6 // ग्रह सा रायवरकन्ना, सुसीला चारुपेहिणी। सव्वलक्खण-संपन्ना, विज्जुसोया-मणिप्पभा // 7 // अहाह जणश्रो तीसे, वासुदेवं महड्डियं / इहागच्छउ कुमरो, जा से कन्नं ददामऽहं // 8 // सव्वासहीहिं गहविश्रो, कयकोऊय-मंगलो / दिव्वजुयल-परिहिश्रो, श्राभरणेहिं विभूसियो॥ 1 // मत्तं च गन्धहत्थि च, वासुदेवस्स जिट्टयं / श्रारूढो सोहई अहियं, सिरे चूडामणी जहा // 10 // अह ऊसिएण (सीतोसिएण) छत्तेण, चामराहि य सोहियो / दसारचक्केण तश्रो, सब्बश्रो परिवारिए / 11 // चउरंगिणीए सेनाए, रइयाए जहकर्म / Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीमदुत्तरीयपनत्रमा अध्ययन 22 : तुडियाणं सन्निनाएणं, दिव्वेणं गगणंफुसे // 12 // एयारिसीइ इवीए, जुइए उत्तमाइ य / नियगायो भवणाश्रो, निजागो वरिहपुगवो // 13 // अह सो तत्थ निज्जतो, दिस्स पाणे भयद्द ए। वाडेहिं पंजरेहिं च, सन्नि(बद्ध)रुद्धे सुदुक्खिए // 14 // जीवियन्तं तु संपत्ते, मंसट्ठा भक्खियब्वए। पासित्ता से महापन्ने, सारहिं इणमब्बवी // 15 // कस्सट्ठा इमे पाणा, एए सब्वे (बहुपाणे) सुहेसिणो / वाडेहिं पंजरेहिं च सन्निरुद्धा य अच्छहि ? // 16 // सारही तो भणइ, एए भद्दा उ पाणिणो / तुझं विवाहकज्जंमि, भोयावेउं बहुँ जणं / 17 // सोऊण तस्स वयणं, बहुपाणि-विणासणं / चिन्तेइ से महापन्ने, साणुकोसे जिएहिउ // 18 // जइ मज्झ कारणा एए, हम्मन्ति (हम्मिहति) सुबहू जिया। न मे एयं तु निस्सेसं, परलोगे भविस्सई // 16 // सो कुराडलाण जुयलं, सुत्तगं च महायसो / श्राभरणाणि य सव्वाणि, सारहिस्स पणामई // 20 // मणपरिणामो श्र को, देवा य जहोइयं समोइन्ना / सविड्डीइ सपरिसा, निवखमणं तस्स काउं जे // 21 // देवमणुस्स-परिवुडो, सिबियारयणं तो समरूढो / निक्खमिय बारगायो, रेवययंमि ठिो भयवं // 22 // उजाणे संपत्तो श्रोइनो, उत्तमाउ सीयायो। साहस्सीए परिवुडो, श्रह निक्खमइ उ चित्ताहिं // 23 // श्रह सो सुगन्धगन्धिए, तुरीयं मउअकुंचिए / सहमेव लुचई केसे, पंचमुट्ठीहिं समाहियो // 24 // वासुदेवो अ णं भणई, लुत्तकेसं जिइन्दियं / इच्छियमणोरहे तुरियं, पावसू तं दमीसरा // 25 // नाणेणं दंसणेणं च, चरित्तेणं तवेण य। खन्तीए मुत्तीए, वद्धमाणो भवाहि य // 26 // एवं ते रामकेसवा, दसारा य बहु जणा / अरिट्टनेमि वन्दित्ता, अइगया बारगारिं // 27 // सोऊण रायकन्ना, पव्वज्जं सा जिणस्स उ। णीहासा उ निराणन्दा, सोगेण उ समुच्छिया // 28 // राईमई विचिन्तेइ, धिरत्थु मम जीवियं / जाऽहं तेणं परिवत्ता, सेयं पव्वइउं मम // 21 // अह सा. भमरसन्निभे, कुचफणसप्पसा Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 142] [भीमदाममसुनासिधा में प्रयोदश्चमी विभागाहिए। सयमेव लुचई केसे, घिइमंती ववस्सिया // 30 // वासुदेवो य णं भणइ, लुत्तकेसि जिइंदियं संसारसागरं घोरं, तर कन्ने ! लहुँ लहुं // 31 // सा पव्वईया सन्ती, पवावेसी तहिं बहुँ / सयणं परियणं चेव, सीलवन्ता बहुस्सुया // 32 // गिरिं रेवययं जन्ती वासेणोल्ला उ अन्तरा / वासन्ते अन्धयारंमि, श्रन्तो लयणस्स सा ठिया // 33 // चीवराणि विसारंती, जहा जायत्ति पासिया। रहनेमी भग्गचित्तो, पच्छा दिट्ठो य तीइवि // 34 // भीया य सा तहिं द? एगते संजयं तयं / बाहाहिं काउं संगुप्फं, वेवमाणी निसीयई // 35 // अह सोऽवि रायपुत्तो, समुदविजयंगयो / भीयं पवेविरं 8 इमं वक्कमुदाहरे // 36 // रहनेमी अहं भद्दे ! सुरुवे ! चारुभासिणी ! / ममं भयाहि सुअणु !, न ते पीला भविस्सई // 37 // एहि ता भुजिमो भोगे, माणुस्सं ख सुदुल्लहं / भुत्तभोगा पुणो पच्छा, जिणमग्गं चरिस्सिमो // 38 // दट्ठण रहनेमि तं, भग्गुजोय-पराइयं राईमई असंभंता, अप्पाणं संवरे तहिं // 31 // ग्रह सा रायवर कन्ना, सुट्टिया नियमव्वए / जाई कुलं च सीलं च, रक्खमाणी तयं वदे // 40 // जइसि रूवेण वेसमणो, ललिएण नलकूबरो। तहावि ते न इच्छामि, जइसि सक्खं पुरंदरो॥४१॥ धिरत्यु ते जसोकामी !, जो तं जीवियकारणा / वन्तं इच्छसि श्रावेउं, सेयं ते मरणं भवे // 42 // श्रहं च भोगरायस्स, तं चासि अंधगवरािहणो / मा कुले गन्धणा होमो, संजमं निडयो चर // 43 // जइ तं काहिसि भावं, जा जा दिच्छसि नारियो / वायाविद्धव हडो, अद्विअप्पा भविस्ससि // 14 // गोवालो भंडवालो वा, जहा तद्दवणिस्सरो / एवं श्रणीसरो तपि, सामराणस्स भविस्ससि // 45 // तीसे सो वयणं सुच्चा, संजयाई सुभासियं / अंकुसेण जहा नागो, धम्मे संपडिवाइयो // 46 // मणगुत्तो वयगुत्तो कायगुत्तो जिइंदियो / सामन्नं निचलं फासे, जावजीवं दढव्वयो // 47 // उग्गं तवं चरित्ता णं, जाया दुन्निवि केवली / सव्वं कम्मं खवित्ता णं, सिद्धिं पत्ता Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनस्त्रम् :: अध्ययनं 23-] श्रणुतरं // 48 // एवं करेंति संयुद्धा, पण्डिया पवियक्खणा / विणियट्टति भोगेसु, जहा सो पुरिसोत्तमो // ४॥त्ति बेमि // // इति द्वाविंशमध्ययनम् // 22 // // 23 // अथ केशीगौतमीयाख्यं त्रयोविंशमध्ययनम् // जिणे पासित्ति नामेणं, अरहा लोगाइए / संबुद्धप्पा य सव्वन्नू, धम्मतित्थयरे जिणे (अरिहा लोयविस्सुए। सव्वन्नु सव्वदंसी य, धम्मतित्थस्म देमए) // 1 // तस्स लोगपईवस्स, श्रासि सीसे महायसे / केसी कुमारसमणे, विजाचरणपारगे॥ 2 // भोहिनाणसुए बुद्धे, सी संघ-समाउले / गामाणुगामं रीयन्ते, सेवि सावत्थि मागए // 3 // तिंदुयं नाम उजाणं, तम्मि नगरमंडले / फासुएसिज-संथारे, तत्थ वासमुवागए // 4 // ग्रह तेणेव कालेणं, धम्मतित्थयरे जिगणे / भयवं वडमाणुत्ति, सबलोगंमि विस्सुए / 5 // तस्स लोगपईवस्म, यासि सीसे महायसे / भयवं गोयमे नाम, विजाचरणपारगे // 6 // बारसंगविऊ बुद्धे, सीससंघ-समाउले / गामाणुगामं रीयंते, सेवि सावस्थिमागए // 7 // कुट्टगं नाम उजाणं, तंमि नगरमराडले / फासुएसिजसंथारे, तत्थ वासमुवागए // 8 // केसी कुमारसमणे, गोयमे य महायसे / उभयोऽवि तत्थ विहरिसु, अल्लीणा सुसमाहिया // 1 // उभो सीस. संघाणं, संजयाणं तवरिसणं / तत्थ चिन्ता समुप्पन्ना, गुणवंताण ताइणं // 10 // केरिसो वा इमो धम्मो, इमो धम्मो व केरिसो ? / बायार-धम्मप्पणिही, इमा वा सा व केरिसी ? // 11 // चाउजामो य जो धम्मो, जो इमो पंचसिक्खियो। देसियो बद्धमाणेणं, पासेण य महामुणी // 12 // अचेलगो य जो धम्मो, जो इमो संतरुत्तरो। एगकज-पवन्नाणं, विसेसे किं नु कारणं ? // 13 // अह ते तत्थ सीसाणं, विनाय पवियकियं / समागमे कयमई, उभयो केसिगोयमा // 14 // गोयमो पडिस्वन्न, सीससंघ-समाउले / जि8 Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ '142) [ श्रीमदेागमसुधासिन्धुः :: त्रयोदशमी विभागः कुलमविक्खतो, तिन्दुयं वणमागयो // 15 // केसी कुमारसमणे, गोयम दिस्समागयं / पडिरूवं पडिवत्तिं सम्मं संपविजई // 16 // पलालं फासुयं तस्थ, पंचमं कुसतणाणि य / गोयमस्स निसिजाए, खिप्पं संपणामए // 17 // केसी कुमारसमणे, गोयमे य महायसे / उभयो निसन्ना सोहन्ति, चंदसूरसमप्पहा // 18 // समागया बहू तत्थ, पासंडा कोउगासिया (कोउगामिगा)। गिहत्थाण अणेगायो, साहस्सीयो समागया // 16 // देवदाणव-गंधब्या जक्खरक्खस-किनरा / अदिस्साण य भूयाणं, यासि तत्थ समागमो // 20 // पुच्छामि ते महाभाग !, केसी गोयममब्बवी / तयो केसि बुवन्तं तु, गोयमो इणमबबी // 21 // पुच्छ भन्ते ! जहिच्छं ते, केसि गोयममबवी / तो केसी अणुनाए, गोयमं इणमब्बवी // 22 // चाउजामो अ जो धम्मो, जो इमो पंचसिक्खियों। देसियो वद्धमाणेणं, पासेण य महामुणी // 23 // एगक. जपवनाणं, विसेसे किं नु कारणं ? / धम्मे दुविहे मेहावी, कई विप्पचयो न ते ? // 24 // तयो केसि बुवन्तं तु, गोयमो इणमबवी / पन्ना समिक्खए धम्म, तत्तं तत्तविणिच्छियं // 25 // पुरिमा उज्जुजड्डा उ, वकजड्डा य पच्छिमा / मज्झिमा उज्जुपन्ना उ, तेण धम्मे दुहा कए // 26 // पुरिमाणं दुबिसुझो उ, चरिमाणं दुरणुपालयो / कप्पो मज्झिमगाणं तु, सुविसुभो सुपालश्रो // 27 // साहु गोयम ! पन्ना ते (पन्नाए) छिन्नो मे संसश्रो इमो / अन्नो वि संसयो मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ! // 28 // अचेलयो य जो धम्मो, जो इमो सन्तरुत्तरो। देसियो वद्धमाणेण पासेण य महामुणी ! // 21 // एगकज-पवन्नाणं, विसेसे किं नु कारणं ? लिंगे दुविहे मेहावी!, कहं विप्पच्चयो न ते ? // 30 // केसिमेवं बुवाणं तु, गोयमो इणमबवी / विनाणेण समागम्म, धम्मसाहण-मिच्छियं // 31 // पञ्चयत्थं च लोगस्स नाणाविह-विकप्पणं / जत्तत्थं गहणत्थं च, लोगे लिंगपयोयणं / / 32 // यह भवे पइन्ना उ, मुक्खसन्भूय-साहणा / नाणं च दंसणं चैव, चरित्तं चेव Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीमदुत्ताध्ययनस्त्रम् : अध्ययनं 23 ] :: निच्छए // 33 // साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसश्रो इमो / अन्नोऽवि संमयों मझ, तं मे कहसु गोयमा ! // 34 // अणेगाण सहस्साणं, मज्झे चिट्ठसि गोयमा / ते अ ते अभिगच्छन्ति, कहं ते निजिया तुमे ? // 35 // एगे जिए जिया पंच, पंच जिए जिया दस / दसहा उ जिणित्ता णं, सव्वसत्तू जिणामहं // 36 // सत्तू य इइ के वुत्ते ?, केसी गोयममब्बवी / तयो केसि बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी // 37 // एगप्पा अजिए सत्तू, कसाया इंदि'याणि य / ते जिणित्तू जहानायं, विहरामि अहं मुणी ! // 38 // साहु गोयम ! पन्ना तें, छिन्नो मे संसश्रो इमो / अन्नोऽवि संसश्रो मझ, तं मे कहसु गोयमा ! // 31 // दीसंति बहवे लोए, पासबद्धा सरीरिणो / मुक्कपासो लहुन्भूयो, कहं तं विहरसी मुणी ! // 40 // ते पासे सव्वसो छित्ता निहन्तूण उवायत्रो / मुक्कपासो लहुन्भूयो, विहरामि अहं मुणी ! // 41 // पासा य इइ के वुत्ता ?, केसी गोयममबवी / केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो. इणमब्बवी // 42 // रागदोसादयो तिव्वा, नेहपासा भयंकरा / ते छिदित्तू जहानायं, विहरामि जहकम्मं // 43 // साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसयो इमो। अन्नोऽवि संसश्रो मझ, तं मे कहसु गोयमा ! // 44 // अंतो हिश्रयसंभूया, लया चिट्ठइ गोयमा ! / फलेइ विसभक्खीणं, सा उ उद्धरिया कहं ? // 45 // तं लयं सव्वसो छित्ता, उद्धरित्ता समूलियं / विहरामि जहानायं, मुक्कोमि विसभक्खणं // 46 // लया य इइ का वुत्ता ?, केसी गोयममब्बी। केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी // 17 // भवतराहा लया वुत्ता, भीमा भीमफलोदया। तमुच्छित्तु जहानायं, विहरामि महामुणी ! // 48 // साहु गोयम ! पन्ना (पराणाए) ते, छिन्नो मे संसश्रो इमो / अन्नोऽवि संसश्रो मझ, तं मे कहसु गोयमा ! // 41 // संपजलिया घोरा, अग्गी चिट्ठइ गोयमा ! / जे डहंति (जा डहेति) सरीरत्था, कहं विज्माविया तुमे ? // 50 // महामेहप्पसूयात्रो, गिज्म वारि जलुत्तमं / सिंचामि Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 144 ] [ श्रीमंदार्गमसुंधासिन्धुः त्रयोदशमो विमामा सययं तेउ (देहि) (तं तु) सित्ता नो व डहति मे // 51 // अग्गी य इइ के वुत्ने ?, केसी गोयममब्बवी / तयो केसि बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी // 52 // कसाया अग्गिणो वुता, सुयसीलतवो जलं / सुयधारा-भिहया संता भिन्ना हु न डहति मे // 53 // साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसश्रो इमो। अनोऽवि संसयो मज्झ, तं मे कहसु गोयमा!॥५४॥ अयं साहस्सियो भीमो, दुट्ठस्सो परिधावई। जसि गोयम ! अारूढो, कहं तेण न हीरसि?॥५५॥ पहावंतं निगिराहामि, सुयरस्सी-समाहियं / न मे गच्छइ उम्मग्गं, मग्गं च पडिवजई // 56 // अस्से य इइ के वुत्ते ?, केसी गोयममबयो / तयो केसि बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बबी // 47 // मणो साहस्तियो भीमो, दुट्ठस्तो परिधावइ / तं सम्मं तु निगिराहामि, धम्मसिक्खाइ कन्यगं // 58 // साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसश्रो इमो। अन्नोऽवि संमयो मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ! // 56 // कुप्पहा बहवे लोए, जेसि नासंति जंतुणो / श्रद्धाणे कह वट्टतो तं न नाससि गोयमा ! ? // 60 // जे य मग्गेण गच्छन्ति, जे य उम्मग्गपट्ठिया / ते सो विइया मज्झ, तो न नस्सामहं मुणी ! // 61 // मग्गे य इइ के वुत्ते !, केसी गोयममबवी / तयो केसि बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी // 62 // कुप्पवयण-पासंडी, सब्बै उम्मग्गपट्ठिया / सम्मग्गं तु जिणक्खायं, एस मग्गे हि उत्तमे // 63 // साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसश्रो इमो / अन्नोऽवि संसपो मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ! // 64 // महाउदगवेगेणं, वुझमाणाण पाणिणं / सरणं गई पइ8 च, दीवं कं मन्नसी ? मुणी ! // 65 // अत्थि एगो महादीवो, वारिमज्झे महालयो / महाउदगवेगस्स, गई तत्थ न विजई ॥६६॥दीवे यइइ के वुत्ते?, केसी गोयममबवी। तयो केसि बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी // 67 // जरामरणवेगेणं, वुझमाणाण पाणिणं / धम्मो दीवो पइट्टा य, गई सरणमुत्तमं // 68 // साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसयो इमो। अन्नोऽवि संसश्रो मझ, तं मे Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् / / अध्ययन 23 ] . [ 14 कहसु गोयमा ! // 61 // अण्णवंती महोहंसी, नावा विपरिधावई / जसि गोयममारूढो, कहं पारं गमिस्तसि ? // 70 // जा उ अस्सा(सस्सा)विणी नावा, न सा पारस्स गाणिमी / जा निरस्साविणी नावा, सा उ पारस्स गामिणी // 71 // नावा य इइ का वुत्ता ? केसी गोयममबवी / तयो केसि बुवंतं तु, गोयमो इणमबवी // 72 // सरीरमाहु नावत्ति, जीवो वुच्चइ नावियो / समारो अण्णवो वुत्तो, जं तरन्ति महेसिणो // 73 // साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसश्रो इमो / अन्नोऽवि संसयो मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ! // 74 // अन्धयारे तमो घोरे, चिट्ठन्ति पाणिणो बहू / को करिस्मइ उज्जोयं सबलोगंमि पाणिणं ? // 75 // उग्गयो विमलो भाणू, सव्वलोगपभंकरो / सो करिस्सइ उज्जोयं, सबलोगंमि पाणिणं // 76 // भाणू य इति के वुत्ते ?, केसी गोयममब्बवी / तयो केसि बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी // 77 // उग्गयो खीणसंसारो, सव्वन्नू जिगभक्खरो। सो करिस्सइ उज्जोयं, सबलोगंमि पाणिणं // 78 // साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसयो इमो / अन्नोऽवि संसयो मझ, तं मे कहसु गोयमा ! // 79 // सारीरमाणसे दुक्खे, बज्झमाणाण पाणिणं / खेमं सिवमणाबाह, ठाणं किं मन्नसी मुणी ! ? // 80 // अत्थि एगं धुवं ठाणं, लोगग्गंमि दुरारुहं / जत्थ नत्थि जरा मच्चू, वाहिणो वेयणा तहा // 81 // ठाणे य इइ के वुत्ते ?, केसी गोयममबवी / तयो केसि बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बबी // 82 // निव्वाणं ति अबाहंति, सिद्धी लोगग्गमेव य / खेमं सिवं अणावाहं, जं तरन्ति महेसिणो // 83 // तं गणं सासयं वासं, लोगगंमि दुरारुहं / जं संपत्ता न सोयन्ति, भवोहन्तकरा मुणी // 84 // साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसश्रो इमो / नमो ते संसयाईय ! सव्वसुत्तमहोयही ! // 85 // एवं तु संसए छिन्ने, केसी घोर. परकमे / अभिवन्दित्ता सिरसा, गोयमं तु महायसं // 86 // पंचमहव्वयं Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदाममसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विमानः धम्मं, पडिवजइ भावयो / पुरिमस्स पच्छिमंमि, मग्गे तत्थ सुहावहे // 8 // केसी गोयमयो निच्चं, तम्मि बासि समागमे / सुयसील-समुक्करिसो, महत्थत्थ-विणिच्छश्रो॥८८ // तोसिया परिसा सव्वा, मम्मग्गं समुवट्ठिया / संथुया ते पसीयन्तु, भयवं केसीगोयम् // 81 // त्ति बेमि // ॥इति त्रयोविंशमध्ययनम् // 23 // // 24 // अथ प्रवचनमातृनामकं चतुर्विशममध्ययनम् // अट्टप्पवयणमायायो, समिई गुत्ती तहेव य / पंचेव य समिईश्रो, तो गुत्तीउ वाहिया // 1 // इरिया-भासेसणाऽऽदाणे, उच्चारे समिई इय / मणगुत्ती वयगुत्ती, कायगुत्ती उ अट्ठमा // 2 // एयाश्रो अट्ठ समिईश्रो, समासेण वियाहिया। दुवालसगं जिणक्खायं, मायं जत्थ उ पवयणं // 3 // श्रालम्बणेण कालेण, मग्गेण जयणाइ य / चउकारण-परिसुद्धं, संजए इरियं रिए॥ 4 // तत्थ पालम्बणं नाणं, दंसणं चरणं तहा / काले य दिवसे वुत्ते, मग्गे उप्पहवजिए // 5 // दव्वयो खित्तयो चेव, कालो भावो तहा / जायणा चउब्विहा वृत्ता, तं मे कित्तयत्रो सुण // 6 // दव्वश्रो चक्खुसा पेहे, जुगमित्तं च खित्तयो / कालो जाव रीइजा, उवउत्तो य भावो // 7 // इंदियत्थे विवजित्ता, सज्मायं चेव पंचहा / तम्मुत्ती तप्पुरकारे, उवउत्ते रियं रिए // 8 // कोहे माणे य मायाए, लोभे य उवउत्तया / हासे भये मोहरिए, विकहासु तहेव य (कोहे य माणे य माया य लोभे य तहेव य / हास भय मोहरीए विकहा य तहेव य) // 1 // एयाई अट्ठ ठाणाई, परिवजित्तु संजयो। असावज्जं मियं काले, भासं भासिन्ज पनवं // 10 // गवेसणाए गहणे य परिभोगेसणा य जा। श्राहा. रोवहि-सिजाए, एए तिन्नि विसोहए (गवेसणाए गहणेणं, परिभोगेसणाणि य। श्राहारमुवहिं सेज्ज, एए तिनि विसोहिया) // 11 // उग्गमुप्पायणं Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् :: अध्ययर्न 24 / / पढमे, बीए सोहिज एसणं / परिभोगंमि चउक्कं, विसोहिज जयं जई // 12 // श्रोहोवहोवग्गहियं, भंडयं दुविहं मुणी / गिराहतो निक्खिवंतो य पउंजिन्ज इमं विहिं // 13 // चक्खुसा पडिलेहित्ता, पमजिज जयं जई / श्रादिए निक्खिविजा वा, दुहयोऽवि समिए सया // 14 // उच्चारं पासवणं, खेलं सिंघाण. जल्लियं / श्राहारं उवहिं देहं, अन्नवावि तहाविहं // 15 // अणावाय मसंलोए अगावाए चेव होइ संलोए / श्रावायम-संलोए, आवाए चेव संलोए // 16 // अणावाय मसंलोए, परस्सऽणुवघाइए / समे अझुसिरे वावि, अचिरकालक्यंमि य // 17 // विच्छिन्ने दूरमोगाडे, णासन्ने बिलवजिए / तसपाणबीयरहिए, उच्चाराईणि वोसिरे // 18 // एयायो पंच समिईयो, समासेण वियाहिया / इत्तो उ तयो गुत्तीश्रो, बुच्छामि अणुपुब्वसो // 16 // सच्चा तहेव मोसा य, सञ्चमोसा तहेव य / चउत्थी असच्चमोसा य, मणगुत्ती चउ. बिहा // 20 // संरम्भ-समारम्भे, श्रारम्भे य तहेव्व य / मणं पवट्टमाणं तु, नियत्तिज जयं जई // 21 // सच्चा तहेव मोसा य, सच्चामोसा तहेव याचउत्थी असचमोसा य, वयगुनी चउव्विहा // 22 // संरम्भ-समारम्भे, प्रारम्भ . य तहेव य। वयं पवत्तमाणं तु, नियत्तिज जयं जई // 23 // ठाणे निसीयणे चेव, तहेव य तुयट्टणे / उल्लंघण पल्लंघण, इंदियाण य जुजणे // 24 // संरम्भसमारभे, थारंभे य तहेव य / कायं पवत्तमाणं तु नियत्तिज जयं जई // 25 // एयायो पंच समिईयो, चरणस्स य पवत्तणे। गुत्ती नियत्तणे वुत्ता, असुभत्थेसु य सव्वसो॥ 26 // एसा पवयणमाया, जे सम्मं श्रायरे मुणी / सो खिप्पं सव्वसंसारा, विप्पमुच्चइ पंडिए // 27 // त्ति बेमि // // इति चतुविंशमध्ययनम् // 24 // Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( श्रीमदासमसुधासिन्धुः : त्रयोदशमो विभागः // 25 // अथ यज्ञीयाख्यं पंचविंशमध्ययनम् // . माहणकुल-संभूयो, पासि विप्पो महायसो / जायाई जमजन्नंमि, जयघोसत्ति नामश्रो॥ 1 // इन्दियग्गाम-निग्गाही, मग्गगामी महामुणी / गामाणुगामं रीयन्ते, पत्तो वाणारसिं पुरिं // 2 // वाणारसीइ बहिया, उजाणंमि मणोरमे / फासुए सिजसंथारे, तत्थ वासमुवागए // 3 // ग्रह तेणेव कालेणं, पुरीए तत्थ माहणे / विजयघोसत्ति नामेणं, जन्नं जयइ वेश्वी // 4 // श्रह से तत्थ अणगारे, मासक्खमण-पारणे। विजयघोसस्स जन्नंमि, भिक्खमट्ठा उपट्ठिए // 5 // समुवट्ठियं तहिं सन्तं, जायगो पडि. सेहए / न हु दाहामि ते भिक्खं. भिक्खू ! जायाहि अनो॥ 6 // जे य वेयविऊ विप्पा, जन्नमट्ठा य जे दिया / जोइसंगविऊ जे य, जे य धम्माण पारगा ॥७॥जे समत्था समुद्धत्तु', परं अप्पाणमेव य। तेसिमन्नमिणं देयं, भो भिक्खू ! सव्वकामियं // 8 // सो तत्थ एव पडिसिद्धो, जायगेण महामुणी। नवि रुट्ठो नवि तुट्ठो, उत्तमट्ठ-गवेसयो॥ 1 // नऽराण8 पाणहेउं वा, नवि निबाहणाय वा / तेसिं विमुक्खणट्ठाए, इमं वयणमब्बवी // 10 // नवि जाणासि वेयमुहं, नवि जनाण जं मुहं / नक्खत्ताण मुहं जं च, जं च धम्माण वा मुहं // 11 // जे समत्था समुद्धत्तु, परं अप्पणमेव य / न ते तुमं विजाणामि, यह जाणासि तो भण // 12 // तस्सऽम्खेवपमुक्खं च, अचयन्तो तहिं दियो / सपरिसो पंजलीहोउं, पुच्छई तं महामुणिं // 13 // वेयाणं च मुहं ब्रूहि, ब्रूहि जन्नाण ज मुहं / नक्खत्ताण मुहं ब्रूहि, बहि धम्माण वा मुहं // 14 // जे समत्था समुद्रत्तु परं अप्पाणमेव य / एयं मे संसयं सव्वं, साहू ! कहय पुच्छियो // 15 // अग्गिहुत्तमुहा वेया, जन्नट्ठी वेयसा मुहं / नक्खत्ताण चन्दो, धम्माणं कासवो मुहं // 16 // जहा चन्दं गहाईया, चिट्टन्ते पंजलीउडा। वन्दमाणा नमसन्ता, उत्तम मणहारिणो (जहा चंदे जहाईए, धिटुंती पंजलीउडा / णमंसमाणा घेद ती, Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बामदुराज्ययनरत्रम् / अध्ययनं 25] [1 उद्धत्त(तु)मणहारिणो) // 11 // अजाणगा जनवाई, विजामाहणसंपया। मू(पू)डा सम्झायतवसा(स्स), भासच्छन्ना इवग्गिणो // 18 ॥जो लोए बम्भाणो वुत्तो, अग्गी वा महियो जहा। सदा कुसलसंदिटुं, तं वयं बूम माहणं // 11 // जो न सजइ आगन्तु, पवयन्तो न सोयई। रमए अजवयणमि, तं वयं ब्रूम माहणं // 20 // जायख्वं ज(म)हा मट्ठ, निद्धंतमलयावगं / रागद्दोसभयाईयं, तं वयं बूम माहणं // 21 // तवस्सियं किस दन्तं, अवचिय-पंसमोणियं / सुव्वयं पत्तनिव्वाणं, तं वयं बूम माहणं // 22 // तसेपाणे वियाणित्ता , संगहेण य (म-) थावरे। जो न हिंसइ तिविहेणं, तं वयं बूम माहणं // 23 // कोहा वा जवा हासा, लोहा वा जइवा भया। मुसं न वयई जो उ, तं वयं बूम माहणं // 24 // चित्तमन्तमचित्तं वा, अप्पं वा जइबा पहुं / न गिराहइ श्रदत्तं जो, तं वयं ब्रूम माहणं // 25 // दिव्वमाणुस्स-तेरिच्छं, जो न सेवेइ मेहुणं / मणसा कायवक्केणं, तं वयं बम माहणं // 26 // जहा पोमं जले जायं, नोवलिप्पइ वारिणा / एवं थलितं कामेहि, तं वयं बूम माहणं // 27 // अलोलुयं मुहाजीविं, अणगारं अकिंचणं / असंसत्तं गिहत्थेहि, तं वयं ब्रूम माहणं // 28 // जहित्ता पुषसंजोगं, णाइसंगे य बंधवे / जो न सज्जइ भोएहि, तं वयं बूम बंभणं // 26 // पसुबन्धा(बद्धा) सव्ववेया, जटुंच पावकम्मुणा / न तं तायन्ति दुस्मीलं, कम्माणि बलवन्तिह // 30 // नवि मुडिएण समणो, न ओंकारेण बम्भणो, न मुणी रगणवासेणं, कुसचीरेण न तावसो // 31 // समयाए समणो होइ, बम्भचरेण बम्भणो। नाणेण य मुणी होई, तवेणं होइ तावसो // 32 // कम्मुणा बम्भणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तियो। वइस्सो कम्मुणा होइ, सुद्दो हवइ कम्मुणा // 33 // एए पाउकरे बुद्धे (पाउकरा धम्मा), जेहिं होइ सिणाययो / सव्वकम्म-विणिम्मुक्क, तं वयं बूम माहणं // 34 // एवं गुणसमाउत्ता, जे हवन्ति दिउत्तमा। ते समत्था उ उद्धत्तु, परं श्रप्पाणमेव Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / प्रयोदशमी दिमागः य // 35 // एवं तु संसए छिन्न, विजयघोसे य बंभ(माह)णे / समुदाय (संजाणतो) तथो तं तु, जयघोसं महामुणिं // 36 // तुट्टे य विजयघोसे, इणमुद्दाहु कयंजनी / माहणत्तं जहाभूयं, सुट्ट मे उबदंसियं // 37 // तुम्भे जझ्या जन्नाणं, तुझे वेयविदो विऊ / जोइसंगविऊ तुज्भे, तुम्भे धम्माण पारगा॥ 38 // तुम्भे समत्था उद्धत्तु, परं अप्पाणमेव य / तमणुग्गहं करेहऽम्हं भिक्खेणं भिक्खुउत्तमा // 31 // न कज्ज मज्म भिखेणं, खिप्पं निक्खमसू दिया। मा भमिहिसि भयावत्ते, घोरे (भवावत्ते दीहे) संसारसागरे // 40 // उबलेको होइ भोगेसु, अभोगी नोवलिप्पई / भोगी भमइ संसारे, अभोगी विप्पमुचई // 41 // उल्लो सुक्को य दो छूढा, गोलया मट्टियामया। दी वि श्रावहिया कुड्ड, जो उल्लो सोज्य लग्गई // 42 // एवं लग्गन्ति दुम्मेहा, जे नरा कामलालसा। विरत्ता उ न लग्गन्ति, जहा से सुक्कगोलए // 43 // एवं से विजयबोसे, विजयघोसस्स अन्तिए। अणगारस्स निक्खन्तो, धम्मं सु(तो)चा अणुत्तरं (गकेवलं) // 44 // खवित्ता पुनकम्माई, संजमेण तवेण य / जयघोस-विजयघोसा, सिद्धिं पत्ता अणुत्तरं // 45 // ति बेमि // // इति पञ्चविंशमध्ययनम् // 25 // . // 26 // अथ सामाचारीनामकं षड़विंशमध्ययनम् // ___सामायारिं पवक्खामि, सम्वदुक्ख-विमुक्खणिं / जं चरित्ता ण निग्गन्या तिराणा संसारसागरं // 1 // पढमा श्रावस्सिया नाम, बिइया य निसीहिया / श्रापुच्छणा य तइया, चउत्थी पडिपुछणा // 2 // पंचमा छंदणा नाम, इच्छाकारो य छट्ठयो / सत्तमो मिच्छकारो य, नहकारो य श्रट्ठमो // 3 // अभुटाणं च नवमा, दसमा उवसंपया। एसा दसंगा साहूणं, सामायारी पवेझ्या // 4 // गमणे श्राव Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदत्तराज्पयनत्रम् :: अययनं 26 ] [ 151 स्तियं कुन्जा, गणे कुना निसीहियं / पापुच्छणां सर्यकरणे, परकरणे पडि. पुच्छणा // 5 // छंदणा दव्वजाएणं, इच्छकारो य सारणे / मिच्छाकारो य निदाए, तहकारो पडिस्सुए // 6 // अभुट्ठाणं गुरुप्या, अच्छणे उपसंपया। एवं दुपंचसंजुत्ता (एसा दसंगा साहूणं), सामायारी पवेइया ॥णा पुग्विल्लंमि चउभागे, श्राइच्चमि समुट्टिए। भंडयं पडिलेहित्ता, वंदित्ता य तो गुरु // // पुच्छिजा पंजलिउडो, किं कायव्वं मए इहं ? / इच्छं नियोइउं भंते !, वेयावच्चे व सज्झाए // 1 // वेयावच्चे निउत्तेण, कायव्वं अगिलायो। सम्झाए वा निउत्तेणं, सब्बदुक्खविमुक्खणे // 10 // दिवसस्स चउरो भागे, कुजा भिक्खू वियक्खणो / तयो उत्तरगुणे कुजा, दिणभागेसु चउसुवि // 11 // पढमं पोरिसिं सज्झायं, बीयं भाणं मियायई / तइयाए भिक्खायरियं, पुणो चउत्थीइ सज्झायं // 12 // श्रासाढे मासे दुपया, पोसे मासे चउप्पया। चित्तासोएसु मासेसु, तिप्पया हवइ पोरसी // 13 // अंगुलं सत्तरत्तेणं, पक्खेणं तु दुभंगुलं / वडए हायए वावि, मासेणं चउरंगुलं // 14 // श्रासाद-बहुलपक्खे, भद्दवए कत्तिए य पोसे य / फग्गुण-वइसाहेसु य नायव्वा योमरत्ता उ // 15 // जिट्ठामूले अासाढसावणे, छहिं अंगुलेहिं पडिलेहा / अट्टहिं बीइयतियंमी, तइए दस अट्ठहिं चउत्थे // 16 // रतिपि चउरो भागे, भिक्खू कुजा वियत्रणो / तयो उत्तरगुणे कुजा, राइभोगेसु चउसुवि // 17 // पढमं पोरिसि सज्झायं, बीयं झाणं झियायई / तइयाए निद्द. मुक्खं तु, चउत्थी भुजोवि सन्मायें // 18 // जं नेइ जया रत्तिं, नक्खत्तं तंमि नहचउभाए / संपत्ते विरमिजा, सज्झाय परोसकालम्मि // 11 // तंमेव य नक्खत्ते गयणं, चउभागसावसेसेमि। वेरत्तियपि कालं, पडिलेहित्ता मुणी कुजा // 20 // पुब्बिल्लंमि चउभागे, पडिलेहित्ताण भंडयं / गुरु वंदित्तु सज्झायं, कुजा दुक्खविमुक्खणिं // 21 // . पोरिसीए- चउभाए, वंदित्ता ण तो गुरु / अपडिकमित्त कालस्स, भायणं पडिलेहिए // 22 // Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 142 [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / त्रयोदशमो विनाका मुहपत्तिं पडिलेहित्ता, पडिलेहिज गुच्छयं / गुच्छगलइयंगुलियो, वत्थाई पडिलेहए // 23 // उड्ढ थिरं अतुरियं, पुचि ता वत्थमेव पडिलेहे / तो बिइयं पप्फोडे, तइयं च पुणो पमजिजा // 24 // अणचावियं श्रवलियं, श्रणाणुवंधि अमोसलिं / चेव छप्पुरिमा नव खोडा, पाणीपाणिविसोहणं (पमजणं) // 25 // श्रारभडा सम्मदा, वज्जेयवा य मोसली तइया / पप्पोडगा उत्थी, विविखत्ता वेइया छट्टा // 26 // पसिढिल-पलम्ब-नोला, एगा मोसा अणेगरूवधुणा / कुगाइ पमाणि पमायं, संकिय गणणोवगं कुन्जा // 27 // अण्णाइरित्त पडिलेहा, अविवच्चासा तहेव य / पढमं पयं पसत्थं, सेसाणि उ अप्पसत्थाणि // 28 // पडिलेहणं कुणंतो, मिहो कहं कुणइ जगावयकहं वा / देइ व पञ्चक्खाणं, वाएइ मयं पडिच्छइ वा // 26 // पुढवी ग्राउकाए, तेऊ वाऊ वणस्सइ तसाणं / पडिलेहणापमत्तो, छराहंपि विराहयो होइ // 30 // पुढवी श्राऊक्काए, तेऊ वाऊ वणस्सइ तसाणं / पडिलेहणा-याऊत्तो, छराहं संरक्खश्रो होइ // 31 // तइयाए पोरिसीए, भत्तं पाणं गवेसए / छराहं अन्नयरागंमि, कारणमि समुट्ठिए // 32 // वेयण वेयावच्चे, इरियट्ठाए य संजमट्टाए / तह पाणवत्तियाए, छ8 पुण धम्मचिंताए // 33 // निग्गन्थो धिइमन्तो, निग्गन्थीवि न करिज छहिं चेव / थाणेहिं तु इमेहिं, अणइक्मणा य से होइ // 34 // श्रायंके उवसग्गे, तितिक्खया बम्भरगुत्तीसु। पाणिदया तवहेडं, सरीरकुच्छेयणटाए // 35 // अवसेसं भंडगं गिज्मा, चक्खुसा पडिलेहए। परमद्धजोयणाओ, विहारं विहरे मुणी // 36 // चउत्थीए पोरिसीए, निक्खिवित्ता ण भायणं / सज्झायं च तश्रो कुजा, सव्वभावविभावणं (सव्वदुक्ख-विमोवखणं) // 37 // पोरिसीए चउभाए, वंदित्ता ण तो गुरु पडिक्कमित्ता कालस्स, सिज्जं तु पडिलेहए // 38 // पासवणुचारभूमिं च, पडिलेहिज जयं जई / काउस्सग्गं तो कुजा, सव्तदुक्ख-विमुक्खणं // 31 // देसियं च अतीचारं, चिंतिज अणु Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीमदत्तराज्यपननम् / मायावनं.२६ / / [ पुचसो / नाणंमि दंसणे चेव, चरित्तम्मि तहेव य // 40 // पारिय-काउस्सगो, वंदित्ता य तथो गुरु। देसियं तु अतीचारं, आलोइज जहकर्म // 41 / / पडिक्कमित्ताण निस्सल्लो, वंदित्ताण तयो गुरुं / काउस्सग्गं तो कुज्जा, सबदुक्ख-विमुक्खणं // 42 // सिद्धाणं संथवं किचा, वंदित्ताण तश्रो गुरु। थुइमंगलं च, काऊणं, कालं संपडिलेहए // 43 // पढमं(मा) पोरिसिं(सि) सज्झायं, बीयं झाणं मियायई / तईयाए निदमुक्खं तु, चउत्थि भुजोवि सज्झायं(चउभाए चउत्थए) // 44 // पोरिसीए चउत्थीए, कालं तु पडिलेहए। सज्झायं तु तयो कुज्जा, श्रबोहंतो असंजए (कालं तु पडिलेहित्ता, अचोहिंतो असंजए / कुज्जा मुणी य सज्झायं, सव्वदुक्खविमोक्खणं)॥ 45 // पोरिसीए चउभाए, वंदित्ताण ततो(सेसे वंदितु तो) गुरुं / पडिक्कमित्तु कालस्स कालं तु पडिलेहए // 46 // श्रागए कायवुस्सग्गे, सव्वदुक्खविमुक्खणे / काउस्सग्गं तो कुजा, सव्वदुक्खविमुक्खणं // 47 // राईयं च अईयारं, चिंतिज्ज अणुपुब्बसो। नाणंमि दंसणंमि य, चरित्तंमि तवंमि य॥ 18 // पारियकाउस्सग्गो, वंदित्ताण तो गुरुं। राइयं तु अतीचारं, आलोइज जहकमं // 41 // पडिक्कमित्तु निस्सल्लो, वंदित्ताण तो गुरुं / काउस्सग्गं तयो कुजा सव्वदुक्खविमुक्खणं // 50 // किं तवं पडिवज्जामि ? एवं तत्थ विचिंतए / काउस्सग्गं तु पारित्ता, करिजा जिणसंथवं // 51 // पारियकाउस्सग्गो, वंदित्ताण तो गुरु। तवं संपडिवजित्ता, करिज सिद्धाण संथवं // 53 // एसा सामायारी, समासेण वियाहिया। जं चरित्ता बहू जीवा, तिना संसारसागरं // 53 // ति बेमि // // इति षड्विंशमभ्ययनम् // 26 // Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 154 [ श्रीमदागमसुधासिन्धु त्रयोदशी विमागः // 27 // अथ यं सप्तविंशमध्ययनम् // थेरेगणहरे गग्गे, मुणी पासि विसारए / बाइगणे गणिभावंमि, समाहिं पडिसंधए // 1 // वहणे वहमाणस्स, कतार अइवत्तए / जोगे वहमाणस्स, संसारो अइवत्तए // 2 // खलु के जो उ जोएइ, विहंमाणो किलिस्सई / असमाहिं च वेएइ, तुत्तयो से य भजई // 3 // एगं डसइ पुच्छमि एगं विधइशभक्खणं / एगो भंजइ समिलं, एगो उप्पहपट्टियो // 4 // एगो पडइ पासेणं, निवेसइ निविजई / उक्कुदइ उप्फिडई, सढे बालगवी वए // 5 // माई मुद्धेण पडई कुद्धे गच्छइ पडिवहं / मयलक्खेण चिट्ठाई, वेगेण य पहावई // 6 // छिन्नाले छिदई सिल्लिं, दुद्दन्ते भुजई जुगं / सेविय सुस्सुयाइत्ता, उज्जुहित्ता पलायई ॥णाखलुका जारिसा जुजा, दुस्सीसा विहु तारिसा / जोइया धम्मजाणंमि, भजन्ता धिइदुब्बला // 8 // इड्डीगारविए एगे, एगित्य रसगारखे / सायागारविए एगे, एगे सुचिरकोहणे // 1 // भिक्खाऽऽलसिए एगे, एगे श्रोमाणभीरुए थद्धे / एगं च अणुसासंमी, हेउहिं कारणेहि य // 10 // सोऽवि अंतरभासिल्लो, दोसमेव पकुवई (पभासइ)। थायरियाणं तं वयणं, पडिकूलेइ अभिक्खणं // 11 // न सा ममं वियाणाइ, नवि सा मज्झ दाहिई / निग्गया होहिई मन्ने, साहू अन्नोऽत्थ वचउ // 12 // पे(पो)सिया पलिउंचति, ते परियति समंतश्रो / रायविट्टि च मन्नंता, करिन्ति भिउडिं मुहे // 13 // वाइया संगहिया चेव, भत्तपाणेहिं पोसिया। जायपक्खा जहा हंस, पक्कमति दिसो दिसि // 14 // अह सारही विचितेइ, खलुके हि समागए। किं मम दुट्ठसीसेहिं ? अप्पा मे श्रवसीयई // 15 // जारिसा मम सीसा उ, तारिसा गलिगदहा / गलिगदहे चइत्ताणं, दढं प(रि)गिराहई तवं ॥१६॥मिउमद्दवसंपन्नो, गंभीरो सुसमाहियो / विहरइ महि महप्पा, सीलभूएण अप्पणा // 17 // ति बेमि // // इति सप्तविंशमभ्ययनम् // 27 // Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तरीध्ययनम् / अध्ययन 28 }.... [ // 28 // अथ मोक्षमार्गगत्याख्य-मष्टाविंशमध्ययनम् // ___मुक्खमेग्गई तच्चं, सुणेह जिणभासियं चउकारण-संजुत्तं, नाणदंसणलखणं // 1 // नाणं च दंसणं चेव, चरितं च तवो तहा / एस मग्गुत्ति पन्नतो, जिणेहिं वरदंसिहि // 2 // नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। एयं मग्गमणुप्पत्ता, जीवा गच्छति सुग्गई // 3 // तत्थ पंचविहं नाणं सुयं याभिणियोहियं / श्रोहिनाणं तु तइयं, मणनाणं च केवलं // 4 // एयं पंचविहं नाणं, दवाण य गुणाण य / पजवाणं च सव्वेसिं, नाणं नाणीहिं देसियं // 5 // गुणाणं वासयो दव्वं, एगदव्वस्सिया गुणा / लक्खणं पजवाणं तु, उभयो यस्सिया भवे // 6 // धम्मो अधम्मो अागासं, कालो पुग्गल जंतयो / एस लोगुत्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहिं // 7 // धम्मो अधम्मो थागासं, दव्वं इक्केवमाहियं / अणंताणि य दव्वाणि, कालो पुग्गल जंतवो // 8 // गइलवखणो उ धम्मो, अहंमो ठाणलक्खणो / भायणं सबदव्वाणं, नहं योगाहलक्खणं // 1 // वत्तणालक्खणो कालो, जीवो उपयोगलकखणो / नाणेणं दंसणेणं च, सुहेण य दुहेण य // 10 // नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा ।वीरियं उपयोगे य, एवं जीवस्स लक्खणं // 11 // सहधयार उज्जोयो, पभा छायाऽऽतवृत्ति वा / वरपरसगंधफामा, पुग्गलाणं तु लक्खणं // 12 // एगतं च पुहत्तं च. संखा संगणमेव य / संजोगा य विभागा य, पजवाणं तु लक्खणं // 13 // जीवाऽजीवा य बंधो य, पुसणं पावाऽऽसवो तहा। संवरो निजरा मुक्खो, सन्तेए तहिका नव // 14 // तहियाणं तु भावाणं, सम्भावे उपएसणं / भावेण सद्दहन्तस्स, सम्मत्तं (तं) वियाहियं // 15 // निस्सग्गुवएस-6ई, प्राणरइ सुत्तबीयरइमेव / अभिगम-वित्थाररुई, किरियासंखेव-धम्मरुई // 16 // भूयत्थेणाहिगया. जीवाऽजीवा य पुराणपावं च / सहसम्मुइयाऽऽसव-संवरो रोएइ उ निसग्गो // 17 // जो जिणदिट्टे भावे Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 156) [ भीमदागमसुभासिन्धुः / प्रयोदशमों विभाग: चउविहे सदहाइ सयमेव / एमेव नन्नत्ति य, निस्सग्गरुइत्ति नायब्बो // 18 // एए चेव उ भावे, उवइ8 जो परेण सद्दहइ / छउमत्येण जिणेण व, उवएसरुइत्ति नायवो // 16 // रागो दोसो मोहो, अन्नाणं जस्स गयं होइ। आणाए रोयन्तो, सो खलु पाणारई नाम // 20 // जो सुतमहिज्जन्तो सुएण, श्रोगाहई उ सम्मत्तं / अंगेण बाहिरेण व, सो सुत्तरुइत्ति नायव्यो // 21 // एगेण अणेगाई पयाई, जो पसरई उ सम्मत्तं उदयन्त्र तिलबिन्दू, सो बीयरुइत्ति नायब्बो // 22 // सो होइ अभिगमरुई सुयनाणं, जस्स प्रत्ययो दिटुं। इक्कारस अंगाई, पइराणगं दिट्टिवायो य // 23 // दव्वाण सवभावा सव्वपमाणेहिं जस्स उवल्लद्धा / सव्वाई नयविहीहि य,वित्थाररुइत्ति नायब्धो ॥२४॥दसणनाणचरित्ते, तवविणए सच्चसमिइगुत्तीसु। जो किरियाभावरुई, सो खलु किरियाई नाम // 25 // अणभिग्गहियकुदिट्ठी, संखेवरुइत्ति होइ नायबो। अविसारो पवयणे, अणभिग्गहियो य सेसेसु // 26 // जो अत्थिकायधम्म, सुयधम्मं खलु चरित्तधम्मं च / सदहइ जिणाभिहियं, सो धम्ममइत्ते नायबो // 27 // परमत्थसंथवो वा, सुदिट्ठपरमत्थसेवणा वावि। वावन्न-कुदंसण-वज्जणा य सम्मत्तसदहणा // 28 // नत्थि चरितं सम्मत्तविहूणं, दंसणे उ भइयध्वं / सम्मत्तचरित्ताई, जुगवं पुत्वं व सम्मत्तं // 26 // णादंसणिस्स नाणं, नाणेण विणा न हुन्ति चरणगुणा। श्रगुणिस्स नत्थि मुक्खो, नत्थि अम्मुक्खस्स निवाणं // 30 // निस्संकिय. निक खिय-निबितिगिच्छं अमूढदिट्ठी य / उववूह थिरीकरणं, वन्छल्ल पभावणेऽ?ते // 31 // सामाइयन्त्थ पढम, छेदोवट्ठावणं भवे बितियं / परिहार. विसुद्धीयं, सुहुमं तह संपरायं च // 32 // अकसायं अहक्खायं, छउमत्थस्स जिणस वा। एयं चयरित्तकर, चारित्तं होइ श्राहियं // 33 // तवो अ दुविहो वुत्तो, बाहिरमन्तरो तहा। बाहिरो छब्विहो वुत्तो, एवमभितरो तवो // 34 // नाणेण जाणई भावे, सम्मत्तेण य सरहे / चरित्तेगा निगि Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुराराध्ययनस्त्रम् :: अन्वयनं 2 ]: [ 150 राहाइ, तवेण परिसुझई // 35 // खवित्ता पुनकम्माई, संजमेण तवेण य / सबदुक्खप्पहीणटा, पक्कमन्ति महेसिणो // 36 // त्ति बेमि // // इति अष्टावशिंमध्ययनम् // 28 // // 26 // अथ सम्यक्त्वपराक्रमाख्य-मेकोनत्रिंशमध्ययनम् // सुयं मे याउमं ! तेणं भगवया एवमवखायं-इह खलु सम्मत्तपरकमे नामऽभयण समोणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइए, जं सम्मं सद्दहइना पत्तियाइत्ता रोयइत्ता फासइत्ता पालइत्ता तीरइत्ता किट्टइत्ता सोहइत्ता थाराहइत्ता प्राणाए अणुपालइत्ताबहवे जीवा सिझति बुझति मुच्चंति परिनिबायंति सयदुक्खाणमंतं करेंति // तस्स णं अयम? एवमाहिजइ, तं जहासंवेगे 1 निब्बेए 2 धम्मसद्धा 3 गुरुसाहम्मियसुस्सूसणया 4 पालोयणया 5 निंदणया 6 गरिहणया 7 सामाइए 8 चउवीसत्थए 1 वंदणये 10 पडिकमणे 11 काउस्सग्गे 12 पञ्चक्खाणे 13 थयथुइमंगले 14 कालपडिलेहणया 15 पायच्छित्तकरणे 16 खमावणया 17 सज्झाए 18 वायणया 11 परिपुच्छणया 20 पडियट्टणया 21 अणुप्पेहा 22 धम्मकहा 23 सुयस्स बाराहणया 24 एगग्गमणसंनिवेसणया 25 संजमे 26 तवे 27 वोदाणे 28 सुहसाए 21 अपडिबद्रया 30 विवित्तसयणासणसेवणया 31 विणिवट्टणया 32 संभोगपञ्चक्खाणे 33 उवहिपच्चयखाणे 34 श्राहारपञ्च. क्खाणे 35 कमायपचक्खाणे 36 जोगपञ्चक्खाणे 37 सरीरपञ्चक्खाणे 38 महायपञ्चक्खाणे 31 भत्तपञ्चक्खाणे 40 सम्भावपचक्खाणे 41 पडिस्बया 12 वेयावच्चे 43 सव्वगुणसंपुराणया 44 वीपरागया 45 खंती 46 मुत्ती 17 महवे 48 अजवे 41 भावसच्चे 50 करणसच्चे 51 जोगसच्चे 52 मा.गुत्तया 53 वयगुत्तया 54 कायगुत्तया 55 मणसमाधारणया 56 वयसमाधारणया 57 कायसमाधारणया 58 नाणसंपन्नया 51 दंसणसंपन्नया Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ भीर्मदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः 6. चरित्तसंपन्नया 61 सोबंदियनिग्गहे 62 चक्खिदियनिग्गहे 63 घाणिं. यनिग्गहे 64 जिभिदियनिग्गहे 65 फासिंदियनिग्गहे 66 कोहविजए 67 माणविजए 68 मायाविजा 61 लोभविजए 70 पिजदोसमिछादसणवि नए 71 से नेसः 72 अकम्ममा 73 (द्राराणि) // संवेगेणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? संवेगेणं अणुनरं धम्मसद्धं जण्यइ, अणुत्तराए धम्म सहाए संवेगं हब्वमागच्छइ, अणंताणुबंधि-कोहमाण-मायालोभे खवेइ, कम्मं न बंधइ तप्पचइयं च मिच्छत्तविसोहिं काऊण दंसणाराहए भवड, दमणविसोहीए णं विसुद्धाए प्रत्येगइया तेणेव णं भवग्गहणेणं सिज्झन्ति बुज्झति विमुचंति परिनिव्यायन्ति सम्बदुक्खाणमंतं करेंति, सोहीए य णं विसुद्धाए तच्चं पुणो भवग्गहणं नाइकमंति॥१॥निवेएणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? निव्वेएणं दिव्यमाणुस्स-तिरिच्छिएसु कामभोगेसु निव्वेयं हव्यमागचड़, सव्वविसएसु विरज्जइ, सबविसएसु विरजमाणे प्रारंभारिचायं करेड, प्रारंभपरिच्चायं करेमाणे संसारमग्गं वुच्छिदइ सिद्धिमग्गपडिवन्ने य हवइ // 2 // धम्मसद्वाए णं भंते ! जीवे किंजणयइ ? धम्मसद्धार णं सायासुक्खेसु रजमाणे विरजइ अगारधम्मं च णं चयइ, अणगारिए णं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं छे णभेयणसंजोगाईणं वुच्छेयं करेइ अव्वाबाहं च णं सुहं निव्वत्तेइ // 3 // गुरु.ाहमिय-सुस्सूलणयाए णं भंते ! जीवे किं जणोइ ? गुरु प्ताहमिय सुस्सूगयाए णं विणयपडि. वत्तिं जणेइ, विणयाडिवन्ने णं जीवे अणचासा गसीले नेरइयतिरिक्खजोणिय-मणुस्सदेव-दुग्गईयो निरु भइ, वरणसंजलण-भत्तिबहुमाणयाए माणुस्सदेव-सुग्गईश्रो निबंधइ सिद्धिसुगइं च विसोहेइ, पसस्थाई च णं विणयमूलाई सव्वकजाई साहड़, अन्ने य बहवे जीवे विणइत्ता हवइ // 4 // बालोयगाए णं भंते ! जीवे किं जमोइ ? अालोयणाए णं मायानियाण-मिच्छादरिसण-सल्लाणं मुक्खमग्गविग्घाणं अणंतसंसारबद्धणाणं उद्धरणं करेइ उजु. भावं च जगोइ, उज्जुभावं पडिवन्ने य णं जीवे अमाई इत्थीवेयं Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदोरीचयनमत्रम् / अध्ययन रही नपुंसगवेयं च न बंधइ, पुव्वबद्धं च णं निजरइ // 5 // निंदणयाए णं भंते ! जीवे किं जगेइ ?, निंदण ाए णं पछाणुतावं जणाइ, पच्छाणुतावेणं विरजमाणे करणगुणसेटिं पडिवज्जइ, करणगुणसेढि-पडिबन्ने य 'यणगारे मोहणिज्ज कम्मं उग्बाएइ // 6 // गरिहणाए गf भंते ! जीवे किं जणेइ ? गरिहणार णं अपुरकारं जोइ, अपुरकारगए णं जीवे अप्पसत्येहितो जोगेहितो नियत्तइ, पसत्थेहि य पडिवजइ, पसत्थजोगाडेिवन्ने य णं अणारे यगांताई पज्जवे-खवेइ // 7 // सामाइएणं भंते ! जीवे किं जणेइ ? सामाइएगां सावज्ज-जोगविरई जणयइ // 8 // चयी स्थाणं भंते ! जोवे किं जणेइ ! चवीसत्यएगां दमणविसोहिं जणे // 1 // वंदणएगां भंते ! जीवे किं जणेइ ? वंदणएगां नीयागोयं कम्म खोइ, उच्चागोयं निबंधइ, सोहग्गं व गां अपडिहयं ग्राणाफलं निवत्तेइ दाहिणभावं च णं जणेइ // 10 // पडिकमणेणं भंते ! जीवे कि जणेइ ? पडिकमणेणं वयछिदाई पिहेइ, पिहियवयछिद्दे पुण जीवे निरुद्धासवे असवलचरिते अट्ठपु पवयणमायासु उपउत्ते अपुहुत्ते सुप्पणिहिए विहरइ // 11 // काउस्सन्गेणं भंते ! जीवे किं जणेइ ? काउस्सग्गेणं तीयपडुपन्नं पायच्छित्तं विसोहेइ, विसुद्धप्रायछित्ते य जीवे निवुयहियए योहरियभरुव भारवहे धम्मज्माणोवगए सुहं सुहेणं विहरइ // 12 // पञ्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणेइ ? पञ्चक्खाणेणं यासवदाराई निरु भइ, (पञ्चक्खाणेणं इच्छानिरोहं जगयइ, इच्छानिरोहं गए य णं जीवे सम्बदव्वेसु विणीयतराहे सीयलभूए विहरइ) // 13 // थयथुः मंगलेणं भंते ! जीवे कि जणेइ ? थयथुइ-मंगलेणं नाणदंसणचरित्तबो हेलाभं संजणड, नाणदसण-वरित्तो हेलाभ-संपन्ने णं जीवे (अगं)नकिरियं कप्पविमाणोववत्तियं बाराहणं पाराहेइ // 14 // कान पडिलेहणाए | भंते ! जीवे किं जणेइ ? कालपडिलेहणाए नाणावरणिज्ज कम्म खवेइ // 15 // पायच्छित्तकरणेणं भंते ! जीवे किं जोइ ? Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15.] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः पायच्छित्तकरणेणं पावकम्मविसोहिं जगोइ, निरइयारे प्रावि भवड, सम्मं च णं पायच्छित्तं पडिवजमाणे मग्गं च मग्गफलं च विसोहेइ, अायारं पायरफलं च बाराहेइ // 16 // खमावणयाए णं भंते ! जीवे कि जणेइ ? खमावणयाए णं पल्हायणभावं जणेइ, पल्हायण-भावमुवगए य सवपाणभूय-जीवसत्तेसु मित्तीभावं उप्पाएइ, मित्तीभावमुवगए य जीवे भावविसोहिं काऊण निभए भवइ // 17 // सज्झाएणं भंते ! जीवे किं जोइ ? सज्झाएणं नाणावरणिज्जं कम्म खवेइ // 18 // वायणयाए णं भंते ! जीवे किं जणेइ ? वायणयाए निजरं जणेइ सुयस्स य अणुसजणाए यणासापणाए वट्टा, सुयस्स य अणुसज्जणाए अणासायणाए वट्टमाणे तित्थधमं अवलंबइ, तित्थधंम-मवलंबमाणे महानिजराए महापजवसाणे हवइ // 11 // पडिपुच्छणाए णं भंते ! जीवे किं जोइ ? पडिपुच्छणाए णं सुत्तत्थतदुभयाई विसोहेइ, कंखामोहणिज्ज कम्मं वुच्छिदेइ // 20 // परियट्टणयाए णं भंते ! जीवे कि जणेइ ? परियट्टणयाए णं वंजणाई जणेइ वंजणलद्धिं च उप्पाएइ // 21 // श्रणुप्पेहाए णं भंते ! जीवे किं जोइ ? अणुप्पेहाए णं श्राउयवजायो सत्तकम्मपयडीयो घणियबंधण-बद्धायो सिदिलबंधण-बद्धाश्रो पकरेट, दीहकाल-ट्टिईयायो हस्सकाल-ट्टिईयायो पकरेइ, तिव्वाणुभावायो मंदाणुभावायो पकरेइ, बहुप्पएसग्गायो अप्पपएसग्गायो पकरेइ, अाउं च णं कम्म सिय बंधइ सिय नो बंधड, अस्साया वेयणिज्जं च णं कम्मं नो भुजो भुजो उवचिणइ, (सायावेयणिज्ज च णं कम्मं भुजो भुजो उचिणाति) अणाइयं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंत-संसारकंतारं खिप्पामेव वीइबयइ // 22 // धम्मकहाए णं भंते ! जीवे किं जणेइ ? धम्मकहाए णं निजरं जणेइ, धम्मकहाए णं पवयणं पभावेइ, पवयणपभावएणं जीवे श्रागमिसस्सभदत्ताए कम्म निबंधइ // 23 // सुयस्स बाराहणयाए णं भंते ! जीवे किं जणेइ ? सुयस्स थाराहणयाए णं अन्नाणं खवेइ, न य संकिलिस्सइ // 24 // एगग्गमण Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराष्पयनसूत्रम् :: अध्ययनं 2 ] [161 संनिवेमणयाए णं भंते ! जीवे किं जणेइ ? एगग्गमण-संनिवेसणयाए णं चित्तनिरोहं करेइ // 25 / संजमेणं भन्ते ! जीवे किं जणेइ ? संजमेणं अणराहयत्तं जणेइ // 26 // तवेणं भन्ते ! जीवे किं जणेइ ? तवेणं वोयाणं जणेइ // 27 // वोयाणेणं भन्ते ! जीवे कि जोइ ? वोयाणेणं अकिरियं जोइ, अकिरियाए भवित्ता तो पच्छा सिन्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वायइ, सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ // 28 // सुहसायाए (सुहसाए) णं भन्ते ! जीवे किं जणेइ ! सुहमायाए णं अणुस्सुयत्तं जोड, अणुस्सुए णं जीवे अणुकम्पए अणुभडे विगयपोगे चरित्तमोहणिज्जं कम्मं खवेइ॥२॥यप्पडिबद्धयाए णं भन्ते ! जीवे किं जोइ ? अप्पडिबद्धयाए णं निस्संगत्तं जोइ, निस्सगंरेणं जीवे एगे एगग्गचित्ते दिया य रायो य असजमाणे अप्पडिबद्धे प्रावि विहरइ // 30 // वि.वेत्त मयणा रणयाए णं भन्ते ! जीवे किंजणेइ ? विवित्तसयणासणयाए णं चरिनगुत्तिं जोइ, चरित्तगुत्ते णं जीवे विवित्ताहारे दढचरित्ते एगन्तरए मुक्खभाव-पडिवन्ने अट्टविहं कम्मगशिंठ निजरेइ // 31 // विणिवट्टणयाए भन्ते ! जीवे कि जणेइ ? विणिवट्टणयाए णं पावकम्माणं अकरणयाए अभुदेइ, पुव्यवद्धाण य निजरणयाए पावं नियत्तेइ, तो पच्छा चाउरन्तं संसारकन्तारं वीईवयइ // 32 // संभोग-पञ्चवखाणेणं भन्ते ! जीवे किं जोइ ? संभोग-पञ्चक्खाणेणं आलंबणाई खवेइ, निरालम्बणस्म य थाययट्ठिया जोगा भवन्ति, सएणं लाभेणं संतूसइ परस्स लाभं नो यासाएइ नो ताकेइ नो पीहेइ नो पत्थेइ नो अभिलसइ, परस्म लाभं अणासाएमाणे अतक्केमाणे अपीहेमाणे अपत्थेमाणे अणभिलसेमाणे दुच्चं सुहसिज्ज उवसंपज्जित्ता णं विहरइ // 33 // अहिपञ्चक्खाणेणं भन्ते ! जीवे किं जणेइ ? उवहिपञ्चवखाणेणं अपलिमन्थं जणेइ, निरुवहिए णं जीवे निक्कंखे उवहिमन्तरेण य न संकिलिस्सइ ॥३४॥आहारपञ्चक्खाणेणं भन्ते ! जीवे किंजणेइ ? थाहार-पच्चक्खाणेणं जीवियासंसप्पयोगं वुच्छिन्दइ, जीवियासंसप्पयोगं वृच्छिदित्ता (जीवियासविष्पयोगं Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11] ... [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अये.दशमी विभागः वोल्छिदिय) जीवे थाहारमन्तरेण न संकिलिस्सा ॥३५॥कसाय-पञ्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किंजणेइ ? कसाय-पत्र खाणेणं वीयरायभावं जोड, वीयरायभावं पडिपन्नेऽविय णं जीवे समसुहदुवखे भवइ // 36 // जोगपञ्चरखाणेणं भंते ! जीवे कि जणेइ ? जोगपञ्चक्खाणेणं अजोगयं जणे,इ, अजोगी णं जीवे नवं कम्म न बंधर, पुत्रबद्धं निजरेइ // 37 // सरीरपञ्चवखाणेणं भंते ! जीवे किं जणेइ ? सरीरपञ्चक्वाणेणं सिद्धाइसय-गुणकित्तणं निव्वत्तेइ, सिद्धाइसयगुणसंपन्ने य णं जीवे लोगग्गभावमुवगए परमसुही भवइ // 38 // सहायपञ्चवखाणेणं भंते ! जीये कि जोइ ? सहा-पञ्चक्खाणेणं एगीभावं जोइ, एगीभावभूए य जीवे एगग्गं भावमाणे अप्पसद्दे अप्पझझे अप्पकलहे अप्यकसाए अपतुमतुमे संजमबहुले संवरबहुले समाहिए श्रावि भवइ // 31 / / भत्तपञ्चवखाणेणं भंते ! जीवे कि जोइ ? भत्तपञ्चक्खाणेणं अणेगाई भवसयाई निरु भइ // 10 // समाव-पच खाणेणं भंते ! जीवे कि जोइ ? सम्भाव-पञ्चक्खाणेणं अणियट्टि जणयइ, अणियट्टि पडिबन्ने (पडिवन्ननिव्वुइए) य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मसे खवेइ, तं जहा-वेयणिज्ज आउयं नाम गोयं, तो पच्छा सव्वदु. क्खाणमन्तं करेइ (तयो पच्छा सिझड)॥४१॥ पडिरूवयाए णं भंते ! जीवे किं जणोइ ? पडिरूवयाए णं लापवियं जणेइ, लहुभूए णं जीवे अप्पमत्ते पागडलिंगे पसाथ लगे विसुद्धसम्मत्ते सत्तसमिइसमत्ते सव्वपाणभूयजीव सत्तेनु वीससणिजरूचे अप्प(प)डिलेहे जिईदिए विउलतव-समिइ-समन्नागए यावि भवइ // 42 // वेयावच्चेणं भंते ! जीवे किं जोइ ? वेयावच्चेणं तिस्थयरनामगुतं कम्मं निबंधः // 43 // सव्वगुणसंपुन्नयाए णं भंते ! जीवे कि जोइ ? सव्वगुण-संपुन्नयाए णं अपुणरावत्तिं जणेइ, अपुणरावति पत्तए णं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं नो भागी भवइ // 44 // वीयरागयाए णं भंते ! जीवे किं जणेइ ? वीयरागयाए णं नेहाणुबंधणाणि तराहाणुबन्धणाणि य वुच्छिदइ, मणुराण.मगुर.णेसु सद्द-रूव-रस-फरिस-गंधेसु सचित्ताचित्तमीसएसु Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदत्तराध्ययनस्त्रम् :: अध्ययन 26 ] [166 चव विरजइ // 45 // खंतीए णं भंते ! जीवे किं जणेइ ? खंतीए णं परीसह जिणे // 16 // मत्तीए णं भंते ! जीवे किं जणेइ ? मुत्तीए णं अकिंवणं जोड, अकिंवणे य जीवे अत्थलोलाणं पुरिसाणं अपत्थणिज्जे भवइ // 17 // अजवयाए णं भंते ! जीवे किंजणेइ ? अजायाए णं काउज्जुययं भावुज्जुययं भासुज्जुययं अविसंवायणं जणेड, अविसंवायण-संपन्नयाए णं जीवे धम्मस्स बाराहए भवइ // 48 // मद्दवयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणेइ ? महवयाए णं अणुस्सियत्तं जोइ, अणुस्सियत्तेणं जीवे मिउमद्दवसंपन्ने अट्ठ मयट्ठाणाई निट्ठवेइ / / 41 // भावमच्चेणं भन्ते ! जीवे किं जणेइ ? भावसच्चेणं भावविसोहिं, जणेड, भावविसोहीए वट्टमाणे अरहन्तपन्नत्तस्स धम्मस्स बाराहण्याए अभु?इ, अरहन्तपन्नत्तस्स धम्मस्स बाराहणयाए अब्भुट्टित्ता परलोगधम्मस्स (परलोगे) धाराहए भवइ // 50 // करणसञ्चेणं भन्ते ! जीवे कि जोइ ? करणसच्चेणं करणसत्ति जणेइ, करणमच्चे वट्टमाणो जहावाई तहाकारी भवइ // 51 // जोगसच्चेणं भन्ते ! जीवे कि जणेड ? जोगसञ्चेणं जोगे विसोहेइ // 52 // मग.गुत्तयाए णं भन्ने ! जीवे किं जणेइ ? मणगुत्तयारणं एगग्गं जोइ, एगग्गचित्ते णं मणगुत्ते संजमाराहए भाइ // 53 // वयगुत्तयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणेइ ? वयगुत्तयाएणं निधिकारत्तं जणेइ, निम्विकारे णं जीवे वइगुत्ते जोगे अझप्प-जोग-साहणजुत्ते यावि भवइ (निधियारेणं जीवे वयगुतयं जणयति) / 54 / कायगुत्तयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणेइ ? कायगुत्तयाए णं संवरं जणयइ, संघरेणं कायगुत्तेणं पुणो पावासवनिरोहं करेइ // 55 // मणसमाधारणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणेइ ? मण समाधारणयाए णं एगग्गं जणे, एगग्गं जणइत्ता नाणपजवे जणयइ, नाणपजवे जणइत्ता सम्मत्तं विसोहेइ मिच्छत्तं च निजरेइ // 56 // वयसमाहारणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणेइ ? वयसमाधारणयाए णं वयसाहारणं दसणपजवे विसोहेइ, वइसाहारणं देसणपजवे विसोहित्ता सुलहबो Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमंदागरवासि त्रयोदशमे विभागः हिपत्तं च निवत्तेइ, दुल्लहयोहियत्तं निजरेइ // 57 // कायसमाधारणयाए णं भन्ते ! जीवे कि जणेइ ? काम-समाधारणयाए णं चरित्तपजवे विसोहेइ चरित्ताजवे विसोहित्ता अहवखायचरित्तं विसोहेइ, श्रहक्खायचरित्तं विसोहित्ता चत्तारि केवलि कम्मसे खवेइ, तयो पच्छा मिज्झइ बुज्झइ मुबइ परिनिव्वा. यइ सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ // 58 // नाममपन्नयाए णं भन्ते ! जीवे कि जणयई ? नाणसंपन्नयाए णं सव्वभावाभिगमं जणेइ, नाणसंपन्ने णं जीवे चाउरन्ते संसारकन्तारे न विगास्सई,-जहा सूई ससुत्ता, पडिया न विणस्सई / तहा जीवे ससुत्ते, संसारे न विणस्सई / 1 // नाणविणय-तवचरित्तजोगे संपाउणइ, सप्तमय-परसमय-विसारए असंघायणिज्जे भइ // 51 // दंसणसंपन्नयाए णं भन्ते ! जावे किं जगइ ? दंसणसंपन्नयार ण भवमिच्च. त्तयणं करेइ, परं न विज्भायड, अणुत्तरेण नाणदंसणेण अप्पाणं संजोएमाणे सम्म भावमाणे (अणुत्तरेणं नाणदसणेणं) विहरइ // 60 // चरित्तसंपन्नाए णं भन्ते ! जीवे किं जणेइ ? चरित्तसंपन्नयाए | सेलेसीभावं जरो इ, सेलेसि पडिवन्ने अणगारे चत्तारि कम्मसे खवेइ, त्यो पच्छ सिज्मा बुज्मः जाव अन्तं करेइ // 61 // सोइन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे कि जरोइ ? सोइन्दियनिग्गहेणं मणुन्नामणुन्नेसु सद्दे सु रागदोसनिग्गहं जोइ, तप्पच्चइयं च णं कम्मं न बन्धइ पुबवद्धं च निजरेइ // 62 // चक्खिन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे किं जणेइ ? चक्खिन्दियनिग्गहेणं मणुनामणुन्नेसु रूवेसु रागहोसनिग्गहं जोइ, तप्पञ्चइयं च णं कम्मं न बन्धइ पुव्वबद्धं च निजरेइ // 63 // घाणिन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे किं जणेइ ? घाणिन्द्रियनिग्गहेणं मणुन्नामणुन्नेसु गन्धेसु रागहोप्तनिग्गहं जणेइ, तप्पच्चइयं च णं कम्मं न बन्धइ पुत्वबद्धं च निजरेइ // 64 // जिभिन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे किं जणेइ ? जिन्भिन्दिय-निग्गहेणं मणुनामणुन्नेसु रसेसु रागदोसनिग्गहं जोइ, तप्पच्चइयं च णं कम्मं न बन्धइ पुत्वबद्धं च निजरेइ // 65 // फासिन्दियनि Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदत्तराज्यपनसूत्रम् / अध्ययनं 26 ] ... ग्गहेणं भन्ने ! जीवे किं जणेइ ? फासिन्दियनिग्गहेण मणुनामणुन्नेसु फासेसु रागहोसनिग्गहं जणेइ, तप्पच्चइयं च णं कम्मं न बन्धइ पुबबद्धं च निजरेइ // 66 // कोहविजएणं भन्ते ! जीवे किं जोइ ? काहविजएणं खन्ति जणेइ, कोहवेयणिज्ज कम्मं न बंधइ पुवनिबद्धं च निजरेइ // 67 // माणविजएणं भंते ! जीवे किं जणेइ ? माणविजएणं मद्दवं जणेड, माणवेषणिज्ज कम्मं न बंधइ पुव्ववद्धं च निजरेइ // 68 // मायाविजएणं भन्ते ! जीवे किं जोइ ? मायाविजएणं अजवं जगोइ, मायावेयणिज कम्मं न बंधइ पुबबद्धं चनिजरेइ॥६॥लोभविजएणं भन्ते ! जीवे किंजगोइ ? लोभविजएगां संतोसंजगोड, लोभवेयणिज्ज कम्मं न बंधइ पुवबद्धं च निजरेइ // 7 // पिजदोस-मिच्छादसण-विजएणं भंते ! जीवे किं जगोइ ? पिज्जदोस-मिच्छादसणविजएणं नाणदंसरण-चरित्ताराहणयाए अब्भुटुइ अट्टविहस्स कम्मस्स कम्मगरिठ-विमोयणयाए (अट्टविहकम्म-विमोयणाए) तप्पटमयाए जहाणुपुवि अट्टावीमइविहं मोहणिज कम्मं उग्घाएइ, पंचविहं नाणावरणिज्जं, नवविहं दंसणावरणिज पंचविहं अंतराय, एए तिन्नि कम्मसे जुगवं खवेइ, तो पच्छा अणुत्तरं श्रणंत कसिगं पडिपुराणं निरावणं वितिमिरं विसुद्धं लोगालोगप्पभासगं केवलवरनाण-दंसणं समुप्पाडेइ, जाव सजोगी हवइ ताव य इरियावहियं कम्मं निबंधइ सुहफरिसं दुसमयट्टिईयं, तं पढमसमए बद्धं बिइयसमए वेइयं तइयसपए निजिगणं, तं बद्धं पुढे उदीरियं वेइयं निजिराणं, सेयाले अकम्म चावि भवइ / / 71 // अहाउयं पालइत्ता अंतोमुहत्तद्धावसेसाए जोगनिरोहं करेमाणो सुहुमकिरियं अप्पडिवाइं सुकमाणं झायमाणे तप्पढमयाए मणजोगं निरु भइ, वयजोगं निरंभर, प्राणा गणनिरोहं करेइ, ईसि पंवहस्सक्खरुवारणद्धाए य णं अणगारे समुच्छिन्नकिरियं अनियट्टिसुकमाणं झियायमाणे वेयणिज पाउयं नामं गुत्तं च, एए चतारिवि कम्मसे जुगवं खवेई (मेलेसीए णं भंते ! जीवे किं जणइ ? अकम्मयं जणति, अकम्मयाए Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( श्रीमदागमसुधासिन्युः त्रयोदशमो विभागः जीवे सिझत्ति) // 72 // तो ओरालिय-कम्माई च सव्वाहिं विप्पजहणाहिं विप्पजहित्ता उज्जुसेटीपत्ते अफुसमाणगई उड्ढ एगसमएणं अविग्गहेणं तत्थ गन्ता सागारोवउत्ते सिज्मइ बुभइ जाव अन्तं करेइ // 73 // एसे खलु सम्मत्तपरकमस्स अज्मरणस्स अट्ठ समोणं भगवया महावीरेणं श्राघविए पनविए परूविए दंसिए निर्देसिए उवदंसिए // त्ति बेमि / / // इति एकोनविंशमध्ययनम् // 29 // // 30 // अथ तपोमार्गगतिनामकं त्रिंशमध्ययनम // जहा उ पावगं कम्म, रागद्दोस-समजियं / खवेइ तवसा भिक्खू, तमेगग्गमणो सुण॥ 1 // पाणिवहमुसावाया, श्रदत्तमेहुणपरिग्गहा विरयो / राईभोयणविरो, जीवो भवइ अणासवो // 2 // पंचममियो तिगुत्तो, अकसायो जिइंदियो। अगारयो अनिस्सल्लो, जीवो भवइ अणासवो // 3 // एपसिं तु विवजासे, रागदोस-समजियं / खवेइ तं जहा भिक्खू, तं मे एगमणो सुण / / 4 / / जहा महातलागस्स, संनिरुद्धे जलागमे / उस्सिंत्रणाए तवणाए, कमेणं सोसणा भवे // 5 // एवं तु संजयस्सावि, पावकम्मनिरासवे / भाकोडीसंचियं कम्म, तवसा निजरिजई // 6 // सो तवो दुविहो वुत्तो, बाहिरभंतरो तहा। बाहिरो छबिहो दुत्तो, एवमभितरो तवो // 7 // अणसणमूगोअरिया, भिक्खायरिया य रसपरिचायो / कायकिलेसो संलीणया य बज्भो तवो होइ // 8 // इत्तरियमरणकाला य, अगसणा दुविहा भवे / इत्तरिया सावकंखा, निरवकंखा उ बिइजिया // 1 // जो सो इत्तरियतबो, सो समासेण छविहो / सेढितको पयरतवो, घणणे य तह होइ वग्गो य॥ 10 // तत्तो य वग्गवग्गो उ, पंचमो छट्टयो पइराणतवो / मणइच्छियचित्तत्थो, नायवो होइ इत्तरिश्रो॥ 11 // जा सा अणसणा मरणे, दुविहा सा वियाहिया। सवियारमवियारा, कायचिट्ठ पई भवे // 12 // अहवा Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् / अध्ययन 30 ] मारिकम्ना, अारिकम्मा य ाहिया / नीहारिमणीहारी, श्राहारच्छेश्रो दुसुवि // 13 // योमोयरणं पंचहा, ममासेण वियाहियं / दबयो खितकालेणं, भावेणं पजवेहि य // 14 // जो जस्स उ थाहारो, तत्तो श्रोमं तु जो करे / जहन्नेणेगसित्थाई, एवं दव्वेण ऊ भवे // 15 // गामे नगरे तह, रायहाणिनिगमे य ागरे पल्ली / खेडे कब्बडदोणमुह-पट्टण-मडंब-संबाहे // 16 // था रमाए विहारे, सन्निवेसे समायघोसे य / थलिसेणा-खंधारे, सत्थे संवट्टकोट्टे य // 17 // वाडेसु य रत्थासु य, घरेसु वा एव मित्तियं खितं / कप्पइ उ एवमाई, एवं खित्तेण ऊ भवे // 18 // पेडा य श्रद्धपेडा, गोमुत्ति पयंगवीहिया चेव / मबुका-बट्टाऽऽयय-गन्नु पच्छागया छट्टा // 11 // दिव. सस्म पोरिसीणं, चउराहंपि उ जत्तियो भवे कालो / एवं चरमाणो खलु, कालोमाणं मुणेयव्वं // 20 // अहवा तइयपोरिसीए, ऊणाए घासमेसंतो। चउभागूणाए वा, एवं कालेण ऊ भवे // 21 // इत्थी वा पुरिसो वा, अलंकियो वाऽणलंकियो वावि / अनयरवयत्थो वा, अनयरेणं च वत्थेणं // 22 // अन्नेण विसेसेणं, वराणेणं भावमणुमुअन्ते उ / एवं चरमाणे खनु, भावो मोणं मुणे .व्वं // 23 // दव्वे खित्ते काले, भावंमि य ग्राहिया उ जे भावा / एएहिं योमचरयो, पजवचरयो भवे भिक्खू // 24 // अविहगोयरग्गं तु, तहा सत्तेव एसणा / अभिग्गहा य जे अन्ने, भिवखायरियमाहिया // 25 // खीरदहि-सप्पिमाई, पणीयं पाणभोयणं / परिवजणं रगणं तु, भणियं रसविवजणं // 26 // ठाणा वीरामणाईया, जीवरस उ सुहावहा / उग्गा जहा धरिज्जंति, कायकिलेसं तमाहियं // 27 // एगंतमणावाए, इत्थी सु-विवजिए / सयणासण-सेवणया, विवित्तं सयणासणं // 28 // एसो बाहिरगतवो, समासेण वियाहियो / अम्भितरं तवं इत्तो, कुच्छामि अणुपुव्वसो // 21 // पायच्छित्तं विणो, वेयावच्चं तहेव सज्झायो / झाणं च विउस्सगो, एसो अभितरो लवो // 30 // पालोयणा Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . 168] अट्टाहाणि वजन। अणुप्पेहा धम्मकाहीं // 33 // वायगावच्चे य दसविहे [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः // त्रयोदशमो विमांगः रिहाईयं, पायच्छित्तं तु दसविहं / जे भिवखू वहई सम्म, पायच्छित्तं तमाहियं // 31 // यम्भुट्ठाणं अंजलिकरणं, तहेवासण-दायणं / गुरुभत्ति-भावसुरसूसा, विणयो एम वियाहियो // 32 // पायरिय-माईयंमि, वेयावच्चे य दसविहे श्रासेवणं जहाथाम, वेयावच्चं तमाहियं // 33 // वायणा पुच्छणा चेव, तहेव परियट्टणा / अणुप्पेहा धम्मकहा, सज्झायो पंचहा भवे // 34 // अट्टरुदाणि वजित्ता, भाइजा सुरूमाहिए / धम्मसुकाई भाणाई भाणं तं तु बुहा वए // 35 // सयणासण ठाणे वा, जे उ भिवखू ण वारे / कायस्स विउस्सग्गो, छट्टो सो परिकित्तियो // 36 // एवं तवं तु दुविहं, जं सम्म श्रायरे मुणी / से खिप्पं सव्वसंसारा, विप्पमुच्चइ पण्डिए // 37 // त्ति बेमि // // इति त्रिंशमध्ययनम् // 30 // // 31 // अथ चरणविधिनामक-मेकत्रिंशमध्ययनम् // चरणविहिं पवक्खा.म, जीवस उ सुहावहं / जं चरित्ता बहू जीवा, तिराणा संसारसागरं // 1 // एगो विरई कुजा, एगो अपवतणं / अस्संजमे नियत्तिं च, संजमे य पवत्तणं // 2 // रागदोसे 'य दो पावे. पावकम्मरवत्तणे। जे भिक्खू रु भई, निच से न अच्छइ मंडले // 3 // दंडाणं गारवाणं च, सल्लाणं च तियं तियं / जे भिक्खू चयई निच, से न अच्छइ मंडले // 4 // दिव्वे य जे उबस्सग्गे, तहा तेरिच्छमाणुमे / जे भिक्खू सहई निच, से न अच्छइ मण्डले // 5 // विगहाकसायसन्नाणं, माणाणं च दुयं तहा। जे भिक्खू वजई निच, से न अच्छइ मराडले // 6 // वएसु इन्दियत्येसु, समिईसु किरियासु य (समीतीसु य तहेव य)। जे भिक्खू जयई निच्चं, से न श्रच्छइ मण्डले // 7 // लेसासु छसु काएसु, छक अाहारवा. रणे / जे भिक्खू जयई निच, से न अच्छई मण्डले // 8 // पिंडुग्गह तिगणा संसारच, संजमे य पनिश्च से न अ निश्च से न बमहई Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्यानसूत्रम् :: अध्ययनं 31] [ 166 पडिमासु, भयहाणेसु सत्तसु / जे भिक्खू जयई निच, से न अच्छइ मंडले // 1 // मएमु वभगुती , भिावुध-मंमि दसविहे / जे भिक्खू जयई निच, से न अच्छइ मण्डले // 10 // उवास्गाणं पडिमास, भिक्खूणं पडिमासु य / जे भिखू जबई निचं, से न अच्छइ मण्डले // 11 // किरियासु भूयगामसु, परमाहम्मिएसु य / जे भिवखू जयई निच्चं, से न यच्छइ मराडले // 12 // गाहासोलसएहि, तहा अस्संजमंमिश्र / जे भिवखू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले // 13 // बभमि नायज्भयणेसु, टाणं सु यऽसमाहिए / जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले // 14 // इकवीमाए सबलेसुबाशीसाए परीमहे / जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले // 15 // तेवीसाइ सूयगडे, रूवाहिएसु सुरेसु य / जे भिक्ख जयई नि चं, से न अच्छइ मण्डले // 16 // पणवीसा भाषणाहिं च, उद्दे सेसु, दसाइणं / जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले // 17 // श्रणगारगुणेहिं च, पगप्प.म्म तहेव य / जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मराडले // 18 // पावसुय-पसंगेसु, मोहटाणेसु चेव य / जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मराडले // 11 // सिद्धाइगुण-जोगेसु, तित्तीसाऽऽसायणासु य / जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले // 20 // इ एएसु ठाणेसु, जे भिक्खू जयई सया। खिप्पं से सव्वसंसारा, विष्षमुबइ पण्डिए // 21 // ति बेमे // // इति एकत्रिंशमध्ययनम् // 31 // // 32 // अथ प्रमादस्थानाख्यं द्वात्रिंशमध्ययनम॥ अञ्चन्तकालस्स समूलयस्स, सव्वस्स दुक्खस्स उ जो पमोक्खो। तं भासयो मे पडिपुन्नचित्ता, सुणेह एगग्ग(एगन्त)हियं हियत्थं // 1 // नाणस्स सब(च)स्स पगासणाए अन्नाणमोहस्स विवजणाए / रागस्स दोसस्स य संखएणं, एगंतसुक्खं समुवेइ मोवखं // 2 // तस्सेस मग्गो गुरुविध सेवा, Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 17.) . . . / श्रीमदागमसुधासिन्धु :: त्रयोदशमो विभागः विवजणा बालजगस्त दूरा / सज्झाय एगंतनिसेवणा य, सुत्तत्थसंचिन्तणयाघिई य // 3 // याहारमिच्छे मियमेसणिज्जं, सहायमिच्छे निउणत्थरोह)बुद्धिं / निकेयमिच्छिज विवेगजोगं, समाहिकामे समणे तवस्सी // 4 // न वा लभिजा निउणं सहायं, गुणाहियं वा गुणयो समं वा / एगोवि पावाइ विवजयंतो (अणायरंतो), विहरेज कामेसु असज्जमाणो // 5 // जहा य अंडपभवा बलागा, अंडं बलागप्पभवं जहा य / एमेव मोहाययणं खु तरह, मोहं च तराहाययणं वयन्ति // 6 // रागो य दोसोवि य कम्मवीयं, कम्मं च मोहप्पभवं वयन्ति / कम्मं च जाईमरणस्स मूलं, दुक्खं च जाईमरणं वयन्ति // 7 // दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो, मोहो हथो जस्स न होइ तराहा / तराहा हया जस्स न होइ लोभो, लोभो हो जस्स न किंचणाई // 8 // रागं च दोसं च तहेव मोहं, उद्धत्तुकामेगा समूल-जालं / जे जे वाया पडि. वजियया (यपाया परेवजियवा), ते कित्तइस्सामि ग्रहाणुःवि // 1 // रसा पगामं न हु (नि-)सेवियव्वा, पायं रसा दित्तिकरा नराणं / दित्तं च कामा समभिवन्ति, दुमं जहा साउफलं व पक्खी // 10 // जहा दवग्गी पउरिन्धणे वणे, समास्यो नोवसमं उवेइ / एविन्दियागीवि पगामभोरणो, न बम्मयारिस्स हियाय कस्सई // 11 // विवित्त-सिज्जासण-जन्तियाणं, अोमासणाणं(-ई.) दमिइन्दियाणं / न रागसत्तू धरिसेइ चित्तं, पराइयो बाहिरियोसहेहिं // 12 // जहा विरालावसहरस मूले, न मूसगाणं वसही पसत्था / एमेव इत्थीनिलयस्स मज्झे, न बम्भयारिस्स खमो निवासो॥ 13 // न रूवलावराण-विलासहासं, न जंपियं गिय पेहियं वा / इत्थीण चित्तंसि निवेसइत्ता, दठ्ठ ववस्से समणे तवस्सी // 14 // यदंसणं चेव अपत्थणं च, अचिन्तणं चेवं अकित्तणं च। इत्थीनणस्सारिय-भाणजुग्गं, हियं सया बम्भवए रयाणं // 15 // कामं तु देवीहि विभूसियाहिं, न चाइया खोभाउं तिगुत्ता / तहावि एगन्तहियंति नचा, विवित्तवासो (भावो) मुगिणं पसत्थो Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् :: अभ्ययनं 32 ] [ 171 // 16 // स्वाभिकवित वि मा गस्त, संपारभीरुल ठिपल धम्मे / नेपारिमं दुत्तरमत्यि लोए, जहत्थियो बालमणोहरायो // 17 // एए य संगा समहक्कमित्ता, सुहुत्तरा चेव हवंति सेसा / जहा महासागरमुत्तरित्ता, नई भवे अवि गंगासमाणा // 18 // कामाणुगिद्धिप्पभवं खु दुक्खं, सव्वस्स लोगस्न सदेवगस / जं काइयं माणसियं च किंचि, तस्सन्तयं गच्छइ वीयरागो // 11 // जहा य किंागफला मणोरमा, रसेण वन्नेण य भुजमाणा। ते खुद्दए जीविय पञ्चमाणा, एयोवमा कामगुणा विवागे // 20 // जे इन्दियाणं वि तया मणुराणा, न तेसु भावं निमिरे कयाई / न यामणुन्नेसु मणं पि दुजा, समाहिकामे समणे तवस्सी // 21 // चक्खुस्स एवं गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुनमाहु / तं दोस्.हेउं अमणुन्नमाहु, समो अ जो तेसु स वीयरागो // 22 // रूपस्स चक्खु गहणं वय.न्त, चखुस्म रूवं गहणं वयन्ति / रागस्त हेउं समणु त्रमाहु, दो रस्म हेउं अमणुन शाहु // 23 // ख्वेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ से विणासं / रागाउरे से जह वा पयंगे, बालोअलोले समुवेइ मच्चु // 24 // जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि वखणे से उ उवेइ दुक्खं / दुइन्तदोसेण सएण जन्तु, न किंचि रूवं अवरझई से // 25 // एगन्तरत्तो रुइरंसि स्वे, अतालिसे कुणई पयो / दुक्खम्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागे // 26 // रूवाणुगाप्ता(वाया)णुगए य जीवे, चराचरेहिं सय(हिंसइ)णेगरूवे / वित्तेहिं ते परियायेइ बाले, पीलेइ अत्तद्वगुरू किलिट्टे // 27 // रुवाणुवाए(रागे)ण पोरेग्गहेण, उपायणे रक्खणसन्निधागे / वए वियोगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तिलाभे ? // 28 // रूवे अतित्ते अपरिग्गहमि, सत्तोवसत्तो उ उवेइ तुहि। अत्रुट्ठिोसेण दुही परस्स, लोभाविले अाययई अदत्तं // 26 // तराहाभिभूयस्म अदत्तहारिणो, रूवे अतित्तस्स परिग्गहे य / मायामुसं वडइ लोभदोमा, तत्थावि दुक्खा न विमुचई से // 30 // मोसरस Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ { श्रीमदाममसुधासिन्धुः त्रयोदशमो-विभागा पच्छा य पुरत्थयो य, पयोगकाले य दुही दुरन्ते / एवं अदत्ताणि समायअन्तो, रूवे अतित्तो दुहियो अणिस्सो // 31 // रूवाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कतो सुहं हुज कयाइ किंचि ? / तत्थोवभोगेऽवि किले सदुक्खं, निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं // 32 // एमेर रूवम्मि गयो पयोसं, उवेइ दुक्खोहपरंपरायो / पट्टचित्तो य चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे // 33 // रूवे विरत्तो मणुयो विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण / न लिप्पई भवमज्झेवि सन्तो, जलेण वा पुक्खरिणीपलासं // 34 // सोअस्स सह गहणं क्यन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु।तं दोसहेउं अमणुनमाहु, समो अ जो तेसुस वीरागो॥३५॥ सहस्त सोयं गहणं वयन्ति, सोयरस सद्द गहणंवयंति। रागस्म हेउं समणुनमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु (तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु / तं दोसहेउं यमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो)॥३६॥ सद्दे सु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ से विणासं / रागाउरे हरिणमिउव्व मुद्धे, सद्दे अनित्ते समुवेइ मच्चु॥ 37 // जे यावि दोमं समुवेइ तिब्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं / दुइन्तदोसेण सएण जन्तू, न किंचि सद्द अवरज्मई से // 38 // एगन्नरत्ते रुइरंसि सद्दे, अतालिसे से कुणई परोसं / दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागों // 31 // सदाणुगासागुगए य जीवे, चराचरेहिं सय(हिंमइ)णे गरूवे / चितेहिं ते परियावेइ बाले, पीलेइ अत्तट्ठगुरु किलि? // 40 // सदाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसनिरोगे। वए वियोगे य कहिं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तिलाभे ? // 41 // सद्दे अतिते अपरिग्गहमि, सत्तोवसतो न उवेइ तुढिं / अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले श्राययई अदत्तं // 42 // तराहाभिभूयस्स श्रदत्तहारिणो, सद्दे अतित्तस्स परिग्गहे य / मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुबई से / 43 // मोसस्स पच्छा य पुरत्थयो य, पयोगकाले य दुही दुरन्ते / एवं अदत्ताणि समायअन्तो, सद्दे अतित्तों दुहियों अणिस्सों Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् :: अध्ययनं 32 ] . [ 173 // 11 // महाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं हुज कयाइ किंचि / तत्थोंवभोगेति किलेसद्वखं, निव्वतई जस्स कए ण दुक्खं // 45 // एमेव सहमि गयो पयोम, उवइ दुक्खाहपरंपरायों। पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे // 46 // सद्दे विरत्तो मणुश्रो विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण / न लिप्पई भवमज्झवि सन्तो, जलेण वा पुक्खरिणीपलासं // 47 // घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति, तं रागहेतु मणु. त्रमाहु / तं दोरहे अमणुन्नमाहु, समो उ जो तेसु स वीयरागो॥४८॥ गन्धस्स घाणं गहणं वयन्ति, घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति / रागस्म हे समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं श्रमणुन्नमाहु // 41 // गन्धेसु जो गिद्धि मुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ से विणासं / रागाउरे श्रोसहिगन्धगिद्धे, सप्पे बिलायो विव निरखमन्ने // 50 // जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं / दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किंचि गन्धं अवरज्झई से // 51 // एगन्तरत्ते रुहरंमि गन्धे, अतालिसे से दुई पयोस / दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागे // 52 // गन्वाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरेहिं सय(हिंसइ)ोगरूवे / चित्तेहिं ते परियावेइ बाले, पिलेइ अत्तट्टगुरू किलि? // 53 // गन्धाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्नियोगे। वए वियोगे य कहिं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तिलाभे ? // 54 / / गन्धे अतित्तो य परिग्गहमि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुडिं। अत्रुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले श्राययई यदत्तं // 55 // तराहाभिभूयस्त अदत्तहारिणो, गंधे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से // 56 // मोसस्स पच्छा य पुरत्थयो य, पयोगकाले य दुही दुरन्ते / एवं अदताणि समाययन्तो, गंधे अतित्तो दुहियो अणिस्सो // 57 // गंधाणुरत्तस्स नरस्त एवं, कत्तो सुहं हुज कयाइ किंचि / तत्थोवभोगेऽवि किलेसदुक्खं, Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14) [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: त्रयोदशमी विभागः : निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं // 58 // एमेव गंधम्मि गयो पयोसं, उवेइ दुक्खोहपरंपरायो। पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे // 51 // गंधे विरत्तो मणुयो विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण / न लिप्पई भवमझेवि संतो, जलेण वा पुक्खरिणीपलासं // 6 // जीहाए रसं गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु / तं दोसहेउं अम. गुन्नमाहु, समो यो तेसु स वीयरागो॥ 61 // रसस्स जीहं गहणं वयन्ति, जि-भाए रसं गहणं वयन्ति / रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु // 62 // रसेसु जो गिछि मुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ से विणासं / रागाउरे बडिसविभिन्नकाए, मच्छे जहा ग्रामिसभोगगिद्ध / 63 / जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं / दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तु, न किंचि रसं अवरझई से // 64 // एगंतरत्ते रुइरंमि रसे, अतालिसे से कुणई पयोसं / दुक्खस्त संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागे // 65 // रसाणुगा ताणुगए य. जीवे, चराचरेहिं सय(हिंसइ)णेगरूवे / चित्तेहिं ते परियावेइ बाले, पिलेइ अत्तगुरु किलि? // 66 // रसाणुवाएण परिग्गहण, उप्पायणे रक्खणसन्नियोगे। वए वियोगे य कहिं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तिलाभे ? // 67 // रसे अतित्ते य परिग्गहमि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्टि। अतुट्टिदोसेण दुही परस्प्त, लोभाविले पाययई अदत्तं // 68 // तराहाभिभूरस्स अदत्तहारिणो, रसे अतित्तस्स परिग्गहे य / मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुवखा न विमुच्चई से // 61 // मोसस्स पच्छा य पुरस्थयो य, पयोगकाले य दुही दुरते / एवं अदत्ताःण समायअंतो, रसे अतित्तो दुहियो अगि.स्सो // 70 // रसाणु रनस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं हुन कयाइ किंचि / तत्थोवभोगेऽवि किलेसदुक्ख, निव्वत्तई जस्स कए ण दुवखं // 71 // एमेव रसम्मि गयो पयोसं उवेइ दुक्खोह परंपरायों / पट्टचित्तो य विणाइ कम्म, जं से Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् :: अध्ययनं. 32 . . . [ 175 पुणो होइ दुहं विवागे // 72 // रसे विरत्तो मणुगो विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण / लिप्पई भवमज्झवि संतो, जलेण वा पुस्खरिणीपलासं // 73 // कास्स फासं गहणं वयंति, तं रागहेडं तु मणुन्नमाहु / तं दोसहे अमान्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो // 74 // फासस्त कायं गहणं वयंति, कायस्स फासं गहणं वयंति। रागस्स हेडं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु // 75 // फासेसु जो गिद्धि मुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ से विणासं / रागाउरे सीयजला-बसन्ने, गाहग्गहीए महिसे व रन्ने // 76 // जे यावि दोसं समुवेइ तिब्वं, तंसिक्खणे से उ उवेइ दुक्खं / दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किंचि फासं अवरमई से // 77 // एगन्तरत्ते रुइरंसि फासे, अतालिसे से कुणई पयोसं / दुवखस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण पुणी विरागे // 78 // फासाणुगासाणुगए य जीव, चराचरेहिं सय(हिंसइ)णेगरूवे / चिहि ते परियावेइ वाले, पीलेइ यत्तगुरू किलि? // 79 // फासाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्रुणसन्नियोगे। वए वियोगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तिलाभे ? // 8 // फासे अतित्ते य परिग्गहमि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढि / यतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले पाययई यदत्तं // 81 // तराहाभिभूयस्स अदत्तहा रणो, फासे यतित्तस्स परिग्गहे य / मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्था.वे दुक्खा न विमुच्चई से // 82 // मोसस्स पच्छा य पुरत्थयो य, पयोगकाले य दुही दुरन्ते। एवं, अदत्ताणि समाययन्तो पासे अतित्तो दुहियो अणिस्सो // 83 // फासाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं हुज कयाइ किंचि / तत्थोवभोगेऽवि किलेसदुक्खं, निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं // 84 // एमेव फासम्मि गयो परोस, उवेइ दुक्खोहपरंपरायो / पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे // 85 // फासे विरत्तो मणुयो विसीगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण / न लिप्पई. भवमझेऽवि सन्तो, Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 176 ) [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमा विमागः जलेण वा पुवखरिणीपलासं // 86 // मणस्स भावं गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहुं / तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो अ जो तेसु स वीयरागो // 87 // भावस्स मणं गहणं वयन्ति, मणस्स भावं गहणं वयन्ति / रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु // 88 // भावेसु जो गिद्धिमुवेइ तिब्वं, अकालियं पावइ से विणासं। रागाउरे कामगुणेसु गिद्धे, करेणुमग्गावहिए व नागे॥ 81 // जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं / दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किंचि भावं अवरमई से // 10 // एगन्तरते रइरंसि भावे, अतालिसे से कुणई पयोसं। दुक्खस्स संपीलमुबेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागे // 11 // भावाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरेहिं सय(हिंसइ)ोगस्वे / चित्तेहिं ते परियावेइ बाले, पीलेइ अत्तद्वगुरू किलि? // 12 // भावाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खण-सन्नियोगे / वए वियोगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तिलाभे ? // 13 // भावे अतित्ते य परिग्गरंमि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढेि / अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले अाययई श्रदत्तं // 14 // तराहाभिभूयस्स श्रदत्तहारिणो, भावे अतित्तस्स परिग्गहे य / मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से // 15 // मोसस्स पच्छा य पुरस्थयो य, पयोगकाले य दुही दुरन्ते / एवं अदत्ताणि समाययन्तो, भावे अतित्तो दुहियो अणिस्सो // 16 // भावणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं हुज कयाइ किंचि ? / तत्थोवभोगेऽवि किलेसदुक्खं, निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं // 17 // एमेव भावम्मि गयो पत्रोसं, उवेइ दुक्खोहपरंपरायो। पदुट्ठ चित्तो अ चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे॥ 18 // भावे विरत्तो मणुयो विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण न लिप्पई भवमज्झेऽवि सन्तो, जलेण वा पुक्खरिणीपलासं // 16 // एविन्दियत्था य मणस्स अत्था, दुक्खस्स हेउं मणुयस्स रागियो / ते चेव थोपि कयाइ दुक्खं, न वीयरागस्स Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् / / अध्ययनं 32 ] [ 170 करिन्ति किंचि // 100 // न कामभोगा समयं उविन्ति, न यावि भोगा विगई उविन्ति / जे तप्पडोसी य परिग्गही य, सो तेसु मोहा विगइं उवेइ // 101 // कोहं च माणं च तहेव मायं, लोभं दुगुठं अरई रइं च / हासं भयं सोगपुमिस्थिवेयं, नपुंसवेयं विविहे य भावे // 102 // भावजई एवमणेगरूवे, एवंविहे कामगुणेसु सत्तो / अन्ने य एयप्पभवे विसेसे, कारुगणदीणे हिरिमे वइस्से // 103 // कप्पं न इच्छिज्ज सहायलिच्छू, पच्छाणुतावण तवप्पभावं एवं विकारे अमियप्पयारे, भावजई इन्दियचोरवस्से // 104 // तो से जायन्तिं पयोषणाई, निमजिउं मोहमहन्नवम्मि / सुहेसिणो दुक्खविणोय(मुक्ख)णट्टा, तप्पच्चयं उज्जमए अरागी // 105 // विरजमाणस्स य इन्दियस्था, सद्दा(वरणा)इया तावइयप्पगारा / न तस्स सव्वेवि मणुन्नयं वा, निव्वत्तयन्ति अमणुन्नयं वा // 106 // एवं ससंकप्पविकप्पणासु, संजाई समयमुवट्टियस्स / अत्थे च संकप्पययो तथो से, पहीयए कामगुणेसु तगहा // 107 // सो वीयरागो कयसव्वकिच्चो, खवेइ नाणावरणं खणेणं / तहेव जं दंसणमावरेड, जं चन्तरायं पकरेइ कम्मं // 108 // सव्वं तो जाणइ पासई य, अमोहणो होइ निरन्तराए / अणासवे माणसमाहिजुत्तो, बाउक्खए मुक्खमुवेइ सुद्धे // 101 // सो तस्स सबस्स दुहस्स मुक्खो, जंबाहई सययं जन्तुमेयं / दीहामयविप्पमुक्को पसत्थो, तो होइ अञ्चन्तसुही कयत्थो // 110 // अणाइकालप्पभवस्स एसो, सव्वस्स दुक्खस्स पमुक्खमग्गो / वियाहियो जं समुविच सत्ता, कमेण अञ्चन्तसुही भवन्ति // 111 // ति बेमि // // इति द्वात्रिंशमध्ययनम् // 32 // Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 178 ] [ श्रीमदगिमसुधासिन्धुः त्रयोदशमी विभागा // 33 // अथ कर्मप्रकृतिनामकं त्रयस्त्रिंशमध्ययनम // ___अट्ठ कम्माई वुच्छामि, प्राणुपुब्बि जहकमं / जेहिं बद्धे अयं जीवे, संसारे परिवत्तए // 1 // नाणस्सावरणिज्जं, दसणावरणं तहा / वेयणिज्जं तहा मोहं पाउकामं तहेव य // 2 // नामकम्मं च गोयं च, अन्तरायं तहेव य। एवमेयाई कम्माई, श्रट्ठव य समासयो॥ 3 // नाणावरणं पंचविहं, सुग्रं श्राभिणियोहियं / योहिं नाणं तईयं, मणनाणं च केवलं // 4 // निद्दा तहेव पयला, निहानिदा य पयलपयला य / तत्तो य थीणगिद्धी, पंचमा होइ नायब्बा // 5 // चक्खुमचक्खु-योहिस्स, दंसणे केवले य श्रावरणे / एवं तु नवविगप्पं, नायव्वं दंसणावरणं // 6 // वेयणियंपि हु य दुविहं, सायमसायं च ग्राहियं / सायस्स उ बहु भेया, एमेवासायस्सवि // 7 // मोहणियपि य दुविहं दसणे चरणे तहा / दंसणे तिविहं वुत्तं, चरणे दुविहं भवे // 8 // सम्मत्तं चेव मिच्छत्तं, सम्मामिच्छत्तमेव य / एयायो तिन्नि पयडियो, मोहणिजस्स दंसणे // 1 // चरित्तमोहणं कम्म, दुविहं तु वियाहियं / कमायमोहणिज्जं च, नोकसायं तहेव य॥ 10 // सोलसविहभेएणं, कम्मं तु कसायजं / सत्तविहं नवविहं वा, कम्मं नोकसायजं // 11 // नेरड्य-तिरिक्खाऊ, मणुस्साउं तहेव य / देवाऊयं चउत्थं तु, ग्राउकम्मं चउन्विहं // 12 // नामकम्म दुविहं, सुहमसुहं च ग्राहियं / सुहस्स उ बहु भेया, एमेव य असुहस्सवि // 13 // गायं कम्मं दुविहं, उच्चं नीयं च श्राहियं / उच्चं अट्टविहं होइ, एवं नीयपि अाहियं // 14 // दाणे लाभे य भोगे य, उवभोगे वीरेए तहा। पंचविह-मन्तरायं, समासेण वियाहियं // 15 // एयायो मूलपयडीयो, उत्तरायो य ग्राहिया / पएसग्गं खित्तकाले य, भावं चादुत्तरं सुण // 16 // सव्वेसिं चेव कम्माणं, पण्सग्ग-मणन्तगं / गरािठयसत्ताईयं, अन्तो मिद्धाण ग्राहियं // 17 // सबजीवाण कम्मं तु, संगहे छदिसागयं / सव्वेसुवि Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् / अध्ययनं 34 ].' [171 पएसेसु, सव्वं सब्वेण बद्रगं // 18 // उदहीमरिसनामाणं, तीसई कोडिकोडीयो / उक्कोसिया होइ ठिई, अन्तमुहत्तं जहनिया // 11 // यावरणिजाण दुराहंपि, वेयणिज्जे तहेव य / अन्तराए य कम्मम्मि, ठिई एसा वियाहिया // 20 // उदही-सरिसनामाणं, सत्तरि कोडिकोडियो / मोहणिजस्त उकोसा, अन्तमुहुत्तं जहन्निया // 21 // तित्तीस-सागरोवमा, उक्कोसेणं वियाहिया / ठिई उ अाउकम्मस्स, अन्तमुहुत्तं जहनिया // 22 // उदहीसरिसनामाणं, वीसई कोडिकोडियो / नामगोयाण उक्कोसा, अन्तमुहुत्तं जहनिया // 23 // सिद्धाणऽणन्तभागो, अणुभागा हवन्ति उ / सव्वेसु वि पएमग्गं, सव्वजीवेसुइच्छियं // 24 // तम्हा एएसि कम्माणं, अणुभागे वियाणिया। एएसिं संवरे चेव, खवणे य जए बुहे // 25 // त्ति बेमि // // इति त्रयस्त्रिंशमध्ययनम् // 33 // // 34 // अथ लेश्याख्यं चतुस्त्रिंशमध्ययनम् // . लेसज्झयणं पववखामि, आणुपुब्बि जहक्कम / छराहपि कम्मलेसाणं, अणुभावे सुणेहि मे // 1 // नामाई वरणरस गन्ध फासपरिणाम-लखणं टाणं / टिई गई च बार, लेसाणं तुरणेह मे ॥२॥किराहा नीला य काऊ य, तेऊ पम्हा तहेव य / सुकलेसा य छट्ठा उ, नामाइं तु जहक्कम // 3 // जीमूत-निद्ध-संकासा, गवल-रिट्ठग-सन्निभा / खंजंजण-नयणनिभा, किराहलेसा उ वराणो // 4 // नीलासोग-संकासा, चासपिच्छ-समप्पभा / वेरुलियनिद्ध-संकासा, नीललेमा उ वराणश्रो // 5 // अयसीपुष्फ-संकासा, कोइलच्छद(वि)मन्निभा / पारेवय-गीवनिभा, काउलेसा उ वरणयो // 6 // हिंगुलय धाउसंकासा, तरुणइच्चसन्निभा। सुयतुण्ड-पईवनिभा (सुयतुडालनदीवाभा), तेउलेसा उ वराणयो // 7 // हरियाल-भेयसंकाला, हलिदा-भेदसन्निभा / सणासण-कुसुमनिभा / पम्हलेसा उ वराणयो Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18. ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः प्रयोदशमो विभागः. // 8 // संख-ककुन्द-संकासा खीर तूल (पूर, धार) मापमा। रययहारसंकासा सुक्कलेसा उ वगणयो // 1 // जह कडुय-तुम्बयरसो, निम्बरसो कडुय-रोहिणिरसो वा। इत्तोवि अणन्तगुणो, रसो उ कराहाइ नारव्यो // 10 // जह तिकडुयस्स रसो, तिवखो जह हथिपिप्पलीए वा / इत्तोवि अणन्तगुणो, रसो उ नीलाइ नायव्वो // 11 // जह तरुण अम्बयरसो, तुवर-कवित्थरस वावि जारिसो। इत्तोवि अणन्तगुणो, रसो उ काऊइ णाययो // 12 // जह परिणयम्बग-रसो, पककविरथस्त वावि जारिसयो / इत्तोवि पणन्तगुणो, रसो उ तेऊइ नायवो // 13 // वरवारुणीइ व रसो, विविहाण व पासवाण जारिसयो / महुमेरगस्स व रसो, इत्तो पम्हाइ परएणं // 14 // खज्जुर-मुद्दियरसो, खीररसो खण्डसकररसो वा / इत्तोवि अणन्तगुणो, रसो उ सुक्काइ नायव्वो // 15 / / जह गोमडस्स गन्धो, सुग,गमडस्स व जहा अहिमडस्स / इत्तोवि अणन्तगुणो, लेसाणं अप्पसस्थाणं // 16 // जह सुरहिकुसुमगन्धो, गन्धवासाण पिस्समाणाणं / इत्तोवि अणन्तगुणो, पसत्थलेसाण तिराहपि // 17 // जह करगयस्स फासो, गोजिमाए व सागपत्ताणं / इत्तोवि अणन्तगुणो, लेसाणं अप्पसस्थाणं // 18 // जह बूरस्सवि फासो, नवणीयस्म व सिरीसकुसुमाणं / इत्तोवि पणन्तगुणो, पसत्थलेसाण तिराहपि // 11 // तिविहो व नवविहो वा सत्तावीसइ-विहिकसीयो वा। दुसयो तेयालो वा, लेसाणं होइ परि. णामो // 20 // पंचासवप्पम(व)त्तो तीहिं श्रगुत्तो छसू अविरयो य / तिवारम्भ-परिणयो, खुद्दो साहस्सियो नरो // 21 // निद्धंधस-परिणामो, निस्संसो अजिइन्दियो / एयजोग-समाउत्तो, कराहलेसं तु परिणम // 22 // इस्सा अमरिस अतवो, अविज्ज माया यहीरिया। गेहि पयोसे य सढे, रसलोलुए सायगवेसए य // 23 // श्रारम्भा अविरयो, खुद्दो साह. स्सियो नरो। एयजोग-समाउत्तो, नीललेसं तु परिणमे / / 24 // वैके Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् / अध्यपनं 34 [11 वंकसमायारे, नियडिल्ले अणुज्जुए। पलिउंचग श्रोवहिए मिच्छदिट्ठी अणारिए // 25 // उप्फालग-दुट्टवाई य, तेणे श्राविय मच्छरी / एयजोगसमाउत्तो, काउलेसं तु परिणमे // 26 // नीबावित्ती अचवले, अमाई अकुउहले / विणीयविणए दन्ते, जोगवं उवहाणवं // 27 // पियधम्मे दधम्मे, वनभीरू हिए(या)सए (अणासवे)। एयजोगसमाउत्तो, तेउलेसं तु परिणमे // 28 // पयणुक्कोहमाणो य, मायालोमे य पयणुए। पसन्तचित्ते दन्तप्पा, जोगवं उवहाणवं // 21 // तहा य पयगुवाई य, उवसन्ते जिइंदिए। एयजोगसमाउत्तो, पम्हलेसं तु परिणमे // 30 // अट्टरुदाणि वजित्ता, धम्मसुक्काणि साहए। पसन्तचित्ते दन्तप्पा, समिए गुत्ने य गुत्तिसु // 31 // सरागे वीयरागे वा, उवसंते (सुद्धजोगे) जिइंदिए / एयजोगसमाउत्तो, सुक्कलेसं तु परिणमे // 32 // अस्संखिजाणोसप्पि. णीण, उस्सप्पिणीण जे समया। संखाईया (असंखाईया) लोगा, लेसाण हवंति ठाणाई // 33 // मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तित्तीसा सागरा मुहुत्तहिया / उक्कोसा होह ठिई, नायव्वा किराहलेसाए // 34 // मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दसउदही पलिय मसंखभाग मभहिया / उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा नीललेसाए / / 35 // मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तिराणुदही पलियम-संखभाग-मभहिया / उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा काउलेसाए // 36 // मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दोराहुदही पलिय-मसंखभाग-मब्भहिया / उकोसा होइ ठिई, नायव्वा तेउलेसाए // 37 // मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दसउदही होइ मुहुत्त-मभहिया / उकोसा होइ ठिई, नायब्वा पम्हलेसाए // 38 // मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तित्तीसं सागरा मुहुत्तहिया / उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा सुक्कलेसाए // 31 // एसा खलु लेसाणं, पोहेण ठिई उ वरिणया होइ। चउसुवि गईसु इत्तो, लेमाण ठिई उ वुच्छामि // 40 // दसवास-सहस्साई, काऊए ठिई जहनिया होइ / तिनोदही पलिय-असंखेजभागं च उकोसा (उकोसा तिन्नु Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 182} [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः दही पलियमसंखेजभागऽहिया) // 41 // तिराणुदही-पलिग्रोवम मसंखभागो जहन्न नीलठिई / दसउदही पलिग्रोवम मसंखभागं च उक्कोसा // 42 // दसउदही पलियोवम-मसंखभागं जहनिया होइ / तित्तीससागराई, उक्कोसा होइ किराहाए // 43 // एसा नेरईयाणं लेसाण ठिई उ वरिणया होइ / तेण परं वुच्छामि, तिरियमणुस्साण देवाणं // 44 // अन्तोमुहुतमद्धं, लेसाण ठिई जहिं जहिं जा उ। तिरियाण नराणं वा, वजित्ता केवलं जेसं // 45 // मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, उक्कोसा होइ पुवकोडी उ। नवहिं वरिसेहिं ऊणा, नायव्यो सुक्कलेमाए // 46 // एसा ति रयन राणं, लेताण ठिई उ वरिणया होइ / तेण परं वु'छा.मे, ले ताण ठिई उ देवाणं // 47 // दस-वाससहस्साई, किराहाए ठिई जहनिया होइ / पलियमसंखिजइमो, उक्कोतो होइ किराहाए // 48 // जा किराहाइ ठिई खलु, उकोसा सा उ समयमभहिया / जहन्नेणं नीलाए, पलियमसंखं च उकोमा // 11 // जा नीलाइ ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमभहिया / जहन्नेणं काऊए, पलियमसंखं च उक्कोसा // 50 // तेण परं वुच्छामि, तेउलेसा जहा सुरगणाणं / भवणवइ वाणमन्तर-जोइस वेमाणियाणं च // 51 // पलियोदमं जहन्ना, उक्कोमा सागरा उ दुराहऽहिया / पलियमसंखिज्जेणं, होई भागेण तेऊए // 52 // दस वासहस्साई, तेऊइ ठिई जहन्निया होइ / दुन्नुदही पलियोवम, असंखभागं च उक्कोमा // 53 // जा तेउइ ठिई खलु, उक्कोसा उ समयमभहिया / जहन्नेणं पम्हाए, दस मुहुत्त हेयाई उक्कोसा // 54 // जा पम्हाइ ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमभहिया। जहन्नेणं सुक्कार, तित्तीस मुहुत्तमब्भहिया // 55 // किराहा नीला काऊ, तिनिवि लेसाउ अहम्म(अहम)लेसाउ / एयाहि तिहिवि जीवो, दुग्गई उववजई // 56 // तेउ पम्हा सुका, तिन्निवि एयाउ धम्मलेसाउ। एयाहि तिहिवि जीवो, सुग्गई उववजई // 57 // लेसाहिं सव्वाहिं, पढमे समयम्मि परिणयाहिं तु / न हु Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् , अध्ययनं 35 ] ... / [103 कस्सइ उववत्ति (उववायो), परे भवे अस्थि जीवस्स // 58 // लेसाहिं सब्वाहिं, चरमे समयम्मि परिणयाहिं तु / न हु कस्सइ उववत्ति, परे भवे अत्थि जीवस्स // 51 // अंतमुहुत्तमि गए, अन्तमुहुत्तम्मि सेसए चेव / लेसाहिं परिणयाहिं, जीवा गच्छन्ति परलोयं // 60 // तम्हा एयासि लेसाणं, अणुभावं वियाणिया / अप्पसत्थाउ वजित्ता, पसत्यायो अहिट्ठए मुणि // 61 // त्ति बेमि / . ॥इति चतुस्त्रिंशमध्ययनम् // 34 // // 35 // अथ अनगार-मार्गगतिनामकं पंचत्रिंशमध्ययनम् // सुणेह मे एगमणा, मग्गं सम्बन्नु (बुद्धेहिं) देसियं / जमायरन्तो भिक्खू, दुक्खाणन्तकरो भवे // 1 // गिहवासं परिचजा, पव्वज्जामस्सिए मुणी। इमे संगे वियाणिज्जा, जेहि सज्जन्ति माणवा // 2 // तहेव हिंसं अलियं, चोज्जं अबंभसेवणं / इच्छा कामं च लोभं च, संजयो परिवज्जए // 3 // मणोहरं चित्तघरं, मल्लधूवण वासियं / सकवाड पराडरलोयं, मणसावि न पत्थए // 4 // इन्दियाणि उ भिवखुस्स, तारिसम्मि उवस्सए / दुक्कराई निवारेउं (तु धारेउ) कामराग-विवडणे // 5 // सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व इक्कयो / पइरिक परकडे वा, वासं, तत्थऽभिरोयए // 6 // फासुयम्मि श्रणाबाहे, इत्थीहिं अणभिङ ए / तत्थ संकप्पए वासं, भिक्खू परमसंजए // 7 // न सयं गिहाई कुव्यिन्जा, ने व अन्नेहिं कारए / गिहकम्म-समारम्भ, भूयाणं दिस्सए वहाँ // 8 // तसाणं थावराण च, सुहृमाणं बायराण य / तम्हा गिहसमारम्भं, संजयो परिवजए // 1 // तहेव भत्तपाणेसु, पयणे पयावणेसु य पाणभूयदयट्ठाए, न पये ण पयावए // 10 // जलधन्न-निस्सिया, जीवा, पुढवीकट्ठनिस्सिया / हम्मति भत्तपाणेसु, तम्हा भिक्खू न पयावए // 11 // विसप्पे सव्वयो धारे, बहुपाण-विणासणे / Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः नत्थि जोइसमे सत्थे, तम्हा जोई न दीवए // 12 // हिरगणं जायस्वं च, मणसावि न पत्थए / समलिट्ठ-कंचणे, भिक्खू, विरए कयविक्कए // 13 // किान्तो कइयो होइ, विकिणन्तो अवाणियो / कयविक्कयम्मि वट्टन्तो, भिक्खू हवइ तारिसो॥ 14 // भिक्खियव्वं न केयव्वं, भिक्खुणा भिक्खवित्तिणा / कयविक्कयो महादोसो, भिक्खावित्ती सुहावहा // 15 // समुयाणं उंछमेसिजा, जहासुत्तमणिन्दियं / लाभालाभम्मि संतु?, पिराडवायं चरे मुणी // 16 // अलोलो न रसे गिद्धो, जिब्भादन्तो अमुच्छियो। न रसाए भुजिजा, जवणट्ठाए महामुणी // 17 // अञ्चणं रयणं चेव, वन्दणं पूअणं तहा। इड्डीसकार-सम्माणं, मणसावि न पत्थए // 18 // सुक्कं झाणं झियाइजा, अणियाणे अकिंचणे / वोसट्टकाए विहरिजा, जाव कालस्स पजयो // 11 // निज्जूहिऊण श्राहारं, कालधम्मे उवट्ठिए / चऊण माणुसं बुदि, पहू दुक्खा विमुचई // 20 // निम्ममो निरहंकारो, वीयरायो अणासवो / संपत्तो केवलं नाणं, सासयं परिनिव्वुडे // 21 // त्ति बेमि // // इति पंचत्रिंशमध्ययनम् // 35 // // 36 // अथ जीवाजीविभविक्तनामक पत्रिंशमध्ययनम् // __जीवाजीवविभत्ति, मे सुणेहे-गमणा इयो / जं जाणि.ऊण भिवखु, सम्मं जयइ संजमे // 1 // जीवा चेव अजीवा य, एस लोए वियाहिए। अजीव देसमागासे, अलोए से वियाहिए // 2 // दव्वो खित्तयो चेव, कालयो भावथो तहा / परूवणा तेसि भवे, जीवाणमजीवाण य॥३॥ रूविणो वऽस्वी य, अजीवा दुविहा भवे / अरूवी दसहा वुत्ता, रूविणोऽवि चउनिहा // 4 // धम्पत्थिकाए तब से, तप्पएसे य पाहिए / अधम्मे तस्स देसे य, तप्पएसे य श्राहिए // 5 // यागासे तस्स देसे य, तप्पएसे य Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बामदुत्तराध्ययनम् : अध्ययनं 36 ]... [ 15 पाहिए। अदासमए चेत्र, अरूषी दमहा भवे // 6 // धम्माधम्मे य दोऽवेए, लोगमित्ता वियाहिया / लोगालोगे य यागासे, समए समयखित्तिए // 7 // धम्मा यम्मागासा, तिनिवि एए अणाइया / अपजरसिया चेव, सम्बद्धं तु वियाहिया // 8 // समए वि सन्तई पप्प, एवमेव वियाहिया। श्राएमं पप्प साईए, सपजवसिएऽवि य // 1 // खन्धा य खन्धदेसा य, तप्पएमा तहेव य / परमाणुणो श्र बोद्धव्वा, रूविणो अचउबिहा // 10 // एगत्तेण पुहुत्तेणं, खन्धा य परमाणु य / लोएगदेसे लोए अ, भइअव्वा ते उ खित्तो // 11 // सुहुमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा / इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छ चउविहं // 12 // संतई पण तेऽणाई, अप्पजवसिया वि य / ठिई पडुच्च साईबा, सप्पजवसिावि य // 13 // असंखकाल-मुकोसं, इक्कं समयं जहन्नयं / अजीवाण य रूवीणं, ठिई एसा विवाहिया // 14 // अणन्तकालमुक्कोसं, इक्कं समयं जहन्नयं / अजीवाण य रुवीणं, अन्तरेयं विश्राहियं // 15 // वनयो गन्धयो चेव, रसयो फासयो तहा / संगणयो य विन्नेग्रो, परिणामो तेसि पंचहा // 16 // वन्नयो परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया / किराहा नीला य लोहिया, हालिद्दा सुकिला तहा // 17 // गन्धो परिणया जे य, दुविहा ते वियाहिया। सुब्भिगन्धपरिणामा, दुन्भिगन्धा तहेव य // 18 // रसो परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया / तित्तकडुयकसाया, अम्बिला महुरा तहा // 11 // फासो परिणया जे उ, अट्टहा ते पकित्तिया / कवखडा मउया चेव, गुरुया लहुया तहा // 20 // सीया उराहा य निद्रा य, तहा लुक्खा य ाहिया / इति फासपरिणया एए, पुग्गला समुदाहिया // 21 / संगण परिणया, जे उ पंचहा ते पकित्तिया / परिभंडला य वट्टा य, तंसा चउरंसमायया // 22 // वराणी जे भवे किराहे, भइए से उ गन्धयो / रसग्रो फासो चेव, भइए संगणोऽवि य // 23 // Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 186) [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभाग: वरण यो जे भवे नीले, भइए से उ गन्धयो / रसश्रो फासो चेव, भइए संगणोऽवि य // 24 // वरणयो लोहिए जे उ, भइए से उ गन्धयो / रसयो फासयो चेव, भइए संठाणयोऽवि य॥२५॥ वरायो पीअए जे उ, गइए से उ गन्धयो / रसयो फासश्रो चेव, भइए संठाणयोऽवि य // 26 // वगणयो सुकिले जे उ, भइए से उ गन्धयो / रसश्रो फासयो चेव, भइए संठाणयोऽवि य // 27 // गन्यो जे भवे सुब्भि, भइए से उ वरणयो / रसयो फासयो चेव, भइए संठाणोऽवि य // 28 // गन्धयो जे भवे दुन्भि, भइए से उ वराणयो / रसयो फासयो चेव, भइए संठाणोऽवि य // 21 // रसयो तित्तयो जे उ, भइए से उ वराणयो / गन्धयो फासयो चेव, भइए संठाणयोऽविय // 30 // रसयो कडुए जे उ, भइए से उ वरणयो / गन्धयो फासयो चेव, भइए संठाणयोऽवि य // 31 // रसयो कसाए जे उ, भइए से उ वराणयो / गन्धयो फासयो चेव, भइए संठाणयोवि य // 32 // रसयो अम्बिले जे उ, भइए से उ वगणयो / गन्धयो फासो चेत्र, भइए संठाणयोऽवि य // 33 // रसयो महुरए जे उ, भइए से उ. वराणयो। गन्धयो फासयो चेव, भइए संगणयोऽवि य॥ 34 // फासयो कक्खडे जे उ, भइए से उ वराणयो / गन्धयो रसयो चेव, भइए संठाणोऽवि य // 35 // फासयो मउए जे उ, भइए से उ वराणयो / गन्धयो रसयो चेव, भइए संगणयोऽवि य // 36 // फासो गुरुए जे उ, भइए से उ वराणयो। गन्धयो रसयो चेव, भइए संगणयोऽवि य // 37 // फासयो लहुए जे उ, भइए से उ वगणयो / गन्धो रसयो चेव. भइए संठाणोऽवि य // 38 // फासो सीयए जे उ, भइए से उ वराणयो / गन्धयो रसयो चेव, भइए संठाणयोऽवि य // 31 // फासयो उराहए जे उ, भइए से उ वराणयो। गन्धयो रसयो चेव, भइए संठाणयोऽवि य॥ 40 // फासयो निद्धए जे उ, भइए से उ वराणयो / गन्वयो रसयो चेव, भए संठाणयो Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् / अध्ययनं 36 ) [ 17 वि य // 41 // फारयो लुक्खए जे उ, भइए से उ वराणो। गंधयो रस पो चे, भार संठाण योऽवि य // 42 // परिमंडलसंठाणे, भइए से उ रागयो / गन्धयो रसयो चेव, भइए फासोऽवि य // 43 // संगणयो भवे वट्टे, भइए से उ वराणयो / गन्धयो रसश्रो चेव, भइए फासयोऽवि य // 44 // संगणयो भवे तंसे, भइए से उ वराणया / गन्धयो रसयो चेव, भाए फासयोऽधि य // 45 // संगणयो य चउरंसे भइए से उ वगणयो / गंधयो रसयो चेव, भइए फासयोऽवि य // 46 // जे श्राययसंठाणे, भइए से उ वराणयो। गंधयो रसयो चेव, भइए फासोऽविय // 47 // एसा अजीवविभत्ति, समासेण वियाहिया / इत्तो जीव विभत्ति, बुच्छामि अणुपुरसो।। 18 / संसारत्या यसिद्धाय, दुविहा जीवा वियाहिया (भवन्ति)। सिद्धा णेगविहा वुत्ता, तं (तत्थाणेगविहा सिद्धा, ते) मे कित्तययो सुण // 4 // इत्थी पुरिससिद्धा य, तहेव य नपुंसगा। सलिंगे अन्नलिंगे य, गिहिलिंगे तहेव य // 50 // उकोसोगाहणाए य, जहन्नमज्झिमाइ य / उड्डे अहे य तिरियं च, समुद्दम्मि जलम्मि य // 51 // दस य नपुंसएसु, वीसं इत्थियासु य / पुरिसेसु य अट्ठसयं, समएणेगेण सिझई // 52 // चत्तारि य गिहिलिंगे, अन्नलिंगे दसेव य / सलिंगेण य अट्ठसयं, समएणेगेण सिझई // 53 // उक्कोसोगाहणाए उ, सिज्मन्ते जुगवं दुवे / चत्तारि जहनाए, जवमज्मठुत्तरं सयं // 54 // चउरुडलोए य दुवे समुद्दे, तयो जले वीमहे तहेव / मयं च द्रुत्तर तिरियलोर, समएणेगेण उ सिझई धुवं // 55 // कहिं पडिहया सिद्धा ?, कहिं सिद्धा पइट्ठिया ? / कहिं बुन्दि चइत्ताणं ? कत्थ गन्तूण सिझई ? // 56 // अलोए पडिया सिद्धा, लोयग्गे य पइठिया / इहं बुन्दि चइत्ताणं तत्थ गन्तूण सिझई // 57 // बारमहिं जोयणेहिं, सब्वट्ठस्सुवरिं भवे / ईसीपभारनामा उ, पुढवी छत्तसंठिया // 58 // पणयालसय सहस्सा, जोयणाणं तु श्रायया / तावइयं चेव Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18] [ श्रीमदाममसुधासिन्धुः / त्रयोदशमो विभागः विच्छिन्ना, तिगुणो तस्सेव (साहिय)परिरयो // 51 // अट्ठजोयणबाहल्ला, सा मज्झम्मि वियाहिया / परिहायन्ती चरिमन्ते, मच्छिपत्ताउ तणुययरी // 60 // अज्जुण-सुवन्नगमई, सा पुढवी निम्मला सहावेणं / उत्ताणयछत्तयसंठिया य, भणिया जिणवरेहिं // 61 // संखंककुन्द-संकासा, पण्डुरा निम्मला सुभा / सीयाए जोयणे तत्तो, लोयन्तो उ वियाहियो // 6 // जोयणस्स उ जो तत्थ, कोसो उवरिमो भवे / तस्स कोसस्स छब्भाए, सिद्धारोगाहणा भवे // 63 // तत्थ सिद्धा महाभागा, लोगग्गम्मि पइट्ठिया। भवप्पवंच-उम्मुका, सिद्धिं वरगइं गया // 64 // उस्सेहो जस्स जो होइ, भवम्मि चरिमम्मि उ। तिभागहीणा तत्तो य, सिद्धाणोगाहणा भवे // 65 // एगत्तेण साइया, अपजवसियावि य। पुहुत्तेण अणाझ्या, अपजवसियावि य // 66 // अरूविणो जीवघणा, नाणदंसणसन्निया। अउलं सुहसंपत्ता, उवमा जस्स नत्थि उ // 67 // लोएग(ग्ग)देसे ते सव्वे, नाणदंसणसन्निया। संसारपार-निच्छिन्ना, सिद्धिं वरगइं गया // 68 // संसारत्था उ जे जीवा, दुविहा ते वियाहिया / तसा य थावरा चेव, थापरा तिविहा तहि // 61 // पुढवी ग्राउजीवा य, तहेव य वणस्सई / इचे ए थावरा तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे // 70 // दुविहा पुढविजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा। पजत्त-मप्पज्जत्ता, एवमेव दुहा पुणो // 71 // बायरा जे उ पज्जत्ता, दुविहा ते वियाहिया / सराहा खरा य बोद्ध व्वा, सराहा सत्तविहा तहिं // 72 // किराहा नीला य रुहिरा य, हालिदा सुकिला तहा। पराडपणग-मट्टिया, खरा छत्तीसई विहा // 73 // पुढवी य सकरा, वालुया य उवले सिला य लोणूसे। अय-तउय-तम्ब-सीसगरुप्प-सुवराणे य वइरे य॥७४ // हरियाले हिंगुलुए, मणोसिला, सासगंजण-पवाले / अब्भपडलऽभ-वालय, बायरकाए मणिविहाणा // 75 / / गोमिजए म रुयगे, अंके फलिहे य लोहियक्खे य / मरगय-मसारगल्ले, Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्यवनदनम् अध्ययनं 36 ] [ 186 भुयमोयग-इन्दनीले य / / 76 // चन्दण गेरुय-हंसगभ, पुलए सोगन्धिए य बोद्धव्वे / चन्दप्पभ-वेरुलिए, जलकन्ते सूरकन्ते य // 77 // एए खरपुढवीए, भेया छत्तीसमाहिया। एगविहमनाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया // 78 // सुहुमा य सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा / एत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छ चउविहं // 71 // संतई पप्पऽणाईया, अपज्जवसियावि य। ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य // 80 // बावीससहस्साई, वासाणुकोसिया भवे / बाउठिई पुढवीणं, अन्तोमुहुत्तं जहनिया // 1 // असंखकालमुकोसा, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं / कायठिई पुढवीणं, तं कायं तु यमुचयो / 82 / अणन्तकाल-मुकोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं / विजलुमि सए काए, पुढविजीवाण अन्तरं // 83 // एएसिं वराणथो चेव, गन्धयो रसफामयो / संगणादेसश्रो वावि, विहाणाई सहस्ससो // 84 // दुविहा थाउजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा। पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेव दुहा पुणो // 85 // बायरा जे उ पज्जत्ता, पंचहा ते पकित्तिया। सुद्धोदए य उस्से हरतणु महिया हिमे // 86 // एगविहमनाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया। सुहुमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा // 87 // सन्तइं पप्पणाईया, अपज्जवसिया वि य। टिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य // 8 // सत्तेव सहस्साई, वासाणुकोसिया भवे / पाउठिई श्राऊणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं // 81 // असंखकालमुक्कोसा, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं / काठिई ग्राऊणं, तं कायं तु अमुचयो // 10 // अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं / विजदंमि सए काए, भाउजीवाण अन्तरं // 11 // एएसिं वराणयो चेव, गन्धो रसफामयो। संठाणादेसो वावि, विहाणाई सहस्ससो // 12 // दुविहा वणम्सईजीवा, सुहुमा बायरा तहा। पज्जत्तमप. जत्ता, एवमेव दुहा पुणो // 13 // बायरा जे उ पज्जत्ता, दुविहा ते वियाहिया। साहारणसरीरा य, पत्तेगा य तहेव य // 14 // पत्तेयसरीरा Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 19.] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः // त्रयोदशमो विभाग उ, गहा ते पकित्तिया (बारसविहभेएणं पत्तेया उ वियाहिया)। रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य, लया वल्ली तणा तहा // 15 // वलय पव्वया कुहणा, जलरुहा श्रोसही तिणा। हरियकाया उ बोद्धबा, पत्तेया इति ग्राहिया // 16 // साहारणसरीराउ, गहा ते पकित्तिया। बालुए मूलए चेव, सिंगबेरे तहेव य // 17 // हिरिली सिरिली सिस्सिरीली जावई केयकंदली / पलंडु-लसण-कंदे य, कन्दली य कुहब्बए // 18 // लोहिणीहू य थीहू य, तु(कु)हगा य तहेव य। काहे य वजकन्दे य, कन्दे सूरणए तहा // 11 // अस्सकनी य बोद्धव्वा, सीहकनी तहेव य। मुसुंढी यहलिंदा य, गहा एवमाययो॥१००॥ एगविह-मणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया। सुहुमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा // 101 / / संतई पप्पऽणाईया अपजवसिपावि य। ठिइं पडुन साईया, सपजयसियावि य // 102 / / दस चेव सहस्लाई, वासाणुकोसिया भवे / वणलाईण ग्राउं तु, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं // 103 // अणन्तकाल-मुकोसा, अन्तोमुहृत्तं जहन्नयं / कायठिई पणगाणं, तं कायं तु अमुचयो॥१०४॥ असंखकाल-मुकोसा, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं / विजदंमि सए काए, पणगजीवाण अन्तरं // 105 // एएलि वराणो चेव, गन्धयो रसफासयो। संठाणादेसथो वावि, विहाणाई सहस्ससो // 106 // इच्चेए थावरा तिविहा, समासेण वियाहिया / इत्तो उ तसे तिविहे, बुन्छामि अणुपुव्वसो // 107 // तेऊ वाऊ य बोद्धव्वा, श्रीराला य तसा तहा / इच्चेए तसा तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे॥१०८।। दुविहा तेउजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा / पजत्तमाजत्ता, एवमेव दुहा पुणो // 101 // बायरा जे उ पजता, णेगहा ते वियाहिया। इंगाले मुम्मुरे अगणी, अचिं जाला तहेव य // 110 // उक्का विज्जू य बोद्धव्वा, णेगहा एवमाययो। एगविह-मनाणत्ता, सुहुमा ते वियाहिया // 111 // सुहुमा सबलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा / इत्तो कालविभागं तु, तेसिं बुच्छं Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् : अध्ययनं 36 ]. [111 चउब्विहं // 112 // संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य। ठिई पडुच्च साईया, सपजवसियावि य // 113 // तिन्नेव अहोरत्ता, उकोसेण वियाहिया / अाउठिई तेऊणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं // 114 // असंखकालमुक्कोसा, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं / कायठिई तेऊणं, तं कायं तु अमुचो // 115 // अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं / विजदंमि सए काए, तेउजीवाण अन्तरं // 116 // एएसिं वराणो चेव, रन्धयो रसफासयो / संगणादेसयो वावि, विहाणाई सहस्ससो॥ 117 // दुविहा वाउजीवा य, सुहुमा बायरा तहा। पजत्तमपजत्ता एवमेव दुहा पुणो // 118 // बावरा जे उ पज्जत्ता, पंचहा ते पकित्तिया / उकलिया मंडलिया, घणगुजा सुद्धवाया य // 111 // संवट्टगवाए य, णेगहा एवमाययो / एगविहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियराहिया // 120 // सुहुमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा / इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउन्विहं // 121 // संतई पप्पऽणाईया, अपजबमियावि य / ठिइं पडुच्च साईया, सपजवसियावि य // 122 // तिन्नेव सहस्साई, वासाणुकोसिया भवे / पाउठिई वाउणं, अन्तोमुहुत्तं जह. नयं // 123 // असंखकालमुक्कोसा, अन्तोमुहृत्तं जहन्नयं / कायठिई वाऊणं तं कायं तु अमुचयो / 124 // अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं / विजमि सए काए, वाउजीवाण अन्तरं // 125 // एएसिं वनश्रो चेव, गन्धयो रसफासयो / संठाणादेसश्रो वावि, विहाणाईसहस्ससो // 126 // अोराला तसा जे उ, चउहा ते पकित्तिया। बेइन्दिय-तेइन्दिय-चउरो-पंचिन्दिया चेव // 127 // बेइन्दिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया / पजत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे // 128 // किमिणो सोमंगला चेव, अलसा माइवाहया। वासीमुहा य सिप्पीया, संखा संखणगा तहा // 12 // पलोयाणुल्लया चेव, तहेव य वराडगा। जलूगा जालगा चेव, चन्दणा य तहेर य // 130 // इति बेइन्दिया एए, णेगहा एवमाययो / लोएगदेसे ते Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 142.1 [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमी विभागः सब्बे, न सम्बत्थ वियाहिया // 131 // संतई पप्पणाईया, अपज्जवसिया वि य। टिइ पडुच्च साईया, सपजवसियावि य // 132 // वासाई बारसेव उ उकोसेण वियाहिया। बेइन्दिय-याउठिई, अन्तोमुहुतं जहन्नयं // 133 // संखिजकाल-मुक्कोसा, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं / बेइन्दियकायठिई. तं कायं तु अमुचयो // 134 // अणन्तकालमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं / बेइन्दियजीवाणं, अन्तरेयं वियाहियं // 135 // एएसिं वराणयो चेव, गन्धयो रसफासयो / संठाणादेसभोवावि. विहाणाई सहस्ससो // 136 // तेइन्दिया य जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया / पजत्तमपजत्ता, तेसिं भेए सुोह में // 137 / / कुन्थु पिवीलि-उद्दसा, उक्कलुद्दोहिया तहा / तणहारा कट्टहारा य, मालूगा पत्तहारगा // 138 // कप्पासिऽट्टिमिंजा य, तिंदुगा तउसमिजगा। सदावरी य गुम्मी य, बोद्धव्वा इन्दगाइय // 136 // इन्दगोव समाईया, णेगहा एवमाययो / लोएगेदेस ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया // 140 // संतई पप्पऽणाईया, अपज्जवसियावि य। ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य॥ 141 // एगणवन्नऽहोरत्ता, उक्कोसेण वियाहिया। तेइन्दिय थाउठिई, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं // 142 // संखिज्जकालमुक्कोसा, अन्तो. मुहुत्तं जहन्नयं / तेइन्दियकायठिई, तं कायं तु अमुचयो // 143 // अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं / तेइन्दियजीवाणां, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं // 144 // एएसिं वराणो चेव, गन्धयो रसफासयो। संठाणादेसश्रो वावि, विहाणाई सहस्ससो // 145 // चरिंदिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया / पज्जत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे // 146 // अन्धिया पुत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा / भमरे कीडपयंगे य, टिंकणे कुंकणे तहा // 147 // कुक्कडे सिंगिरीडी य, नन्दावत्ते य विच्छिए / डोले भिंगिरीडियो, विरिली अच्छिवेहए // 148 // अच्छिरे माहले अच्छि (रोडए), विचित्ते चित्तपत्तए / योहिंजलिया जलकारी Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रामदुत्तराष्पयनसूत्रम् / अध्ययनं 36 ] [ 113 य, नीया तम्बगाइया // 141 // इइ चउरिन्दिया एए, गहा एवमाययो / लोगस्स एग देसंमि, ते सव्वे परिकित्तिया // 150 // संतई पप्पऽणाईया, अपजवसियावि य / ठिई पडुन साईया, सपजवसियावि य // 151 // छच्चेव य मासाऊ, उक्कोसेण वियाहिया / चउरिन्दिय-ग्राउठिई, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं // 152 // संखिन्जकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं / चउरिन्दियकायठिई, तं कायं तु अमुचयो // 153 // श्रान्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं / विजमि सए काए, यन्तरेयं वियाहियं // 154 // एएसिं वराणयो चेव, गंधयो रसफासयो। संठाणादेसो वावि, विहाणाई सहस्ससो॥ 155 // पंचिदिया उ जे जीवा, चउन्विहा ते वियाहिया / नेरइय तिखिखा य, मणुया देवा य श्राहिया // 156 // नेरइया सत्तविहा, पुढवीसू सत्तसू भवे / रयणाभ सकराभा, वालुयामा य ग्राहिया // 157 // पंकामा धुमाभा, तना तमतमा तहा / इइ नेरइया एए, सत्तहा परिकित्तिया // 158 // लोगत्स एगदेसम्मि, ते सव्वे उ वियाहिया / इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छ चउब्विहं // 15 // संतई पप्पऽणाईया. अपजवसिया वि य / ठिइं पडुच्च साईया, सपजवसियावि य / / 160 // सागरोवममेगं तु, उकोसेण वियाहिया / पढमाइ जहन्नेणं, दसवास-सहस्सिया // 161 // निराणेव सागराऊ, उकासेण वियाहिया / दुचाए जहन्नेणं, एगं तु सागरोवमै // 162 // सत्तेव सागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया / तई. याए जहन्नेणं, तिन्नेव उ सागरोवमा // 163 // दससागरोवमाऊ, उक्को सेण वियाहिया। चउत्थीइ जहन्नेणं, सत्तेव उ सागरोवमा // 164 // सत्तरससागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया / पंचमाए जहन्नेणं, दस चेव उ सागरा // 165 // बावीससागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया / छठ्ठीइ जहन्नेणं, सत्तरस सागरोवमा // 166 // तित्तीमसागराऊ, उक्कोसेंण वियाहिया / सत्तमाए जहन्नेणं, बायोसं सागरोपमा // 167 // जा चेव उ अाउठिई, नेरइयाणं Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 195] [ बीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभाग: वियाहिया / सा तेसिं कायठिई, जहन्नुकोसिया भवे // 168 // अणन्तकालमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं / विजदंमि सए काए, नेरइयाणं तु अंतरं // 16 // एएसिं वरणश्रो चेव, गन्धयो रसफासयो / संगणादेसयो वावि, विहाणाई सहस्ससो // 17 // पंचिन्दिय-तिरिक्खाउ, दुविहा ते वियाहिया। समुच्छिम-तिरिक्खाउ, गब्भववकंतिया तहा // 171 / / दुविहावि ते भवे तिविहा, जलयरा थलयरा तहा / खहयरा य बोद्धव्वा, तेसि भेए सुणह मे // 172 // मच्छा य कच्छभा य, गाहा य मगरा तहा। सुसुमारा य बोद्धव्वा, पंचहा जलयराऽहिया // 173 // लोए गदेसे ते सवे, न सम्वत्थ वियाहिया / इत्तो काल विभागं तु, तेसिं वुच्छं चउन्विहं // 174 // संतई पप्पऽणाईया, अपजवसियावि य / ठिई पडुच्च साईया, सपजवसियावि य // 175 // इक्काय पुब्धकोडीथो, उक्कोसेण वियाहिया। श्राउठिई जलयराणं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं // 176 // पुवकोडि-पुहुत्तं तु, उकोसेण वियाहिया / काठिई जलयराणं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं // 177 // अणंतकालमुकोसं, यंतोमुहत्तं जहन्नयं / विजटॅमि सए काए, जलयराणं तु अंतरं // 178 // (एएसि वनो चेव, गंधयो रसफासयो / संठाणभेदयो वावि, विहाणाई सहस्ससो।) चउप्पया य परिसप्पा, दुविहा थलयरा भवे / चउप्पया चरविहा उ, ते मे कित्तययो सुण // 176 // एगखुरा दुखुरा चेव, गंडीपय सणप्फया / हयमाई गोणमाई, गयमाई सीहमाइणो // 18 // भुयोरगपरिसप्पा, परिसप्पा दुविहा भवे / गोहाई अहिमाईया, इविका णेगहा भवे // 181 // लोएगदेसे ते सव्वे, न सम्वत्थ वियाहिया / इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउब्विहं // 182 // संतई पप्पऽणाईया, अपजवसियावि य / ठिई पडुच्च साईया, सपजवसियावि य // 183 // पलियोवमा उ तिन्नि उ, उक्कोसेण वियाहिया / बाउठिई थलयराणं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं // 184 // पलिग्रोवमाउ तिन्निउ, उक्कोसेण वियाहिया। पुवको Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् :: अध्ययनं 36 ] . [ डिपुहुत्तं तु, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं // 185 // कायठिई थलयराणं, अंतरं तेसिमं भवे / कालमणंतमुक्कोस, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं // 186 // (एएसिं वत्रयो चेव, गंधयो रसफासयों / संठाणभेदों वावि, विहाणाई सहस्ससो) विजम्मि सए काए, थलयराणं तु अंतरं / चम्मे उ लोमपक्खीया, तइया समुग्गपक्खिया // 187 // विययपक्खी य बोद्धव्वा, पक्खिणो य चरविहा / लोएगदेसे ते सधे, न सम्पत्य वियाहिया // 188 // संतई पप्पऽणाईया, अपजव सयावि य / ठिई पडुच्च साईया, सपजवसिया वि य॥ 18 // पलियोवमस्स भागो, असंखिजइमो भवे / पाउठिई खहयराणं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं // 110 // असंखभागो पलियस्स, उक्कोसेण उ साहियो / पुवकोडीपुहुतेणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं // 111 // कायठिई खहयराणं, अंतरं तेसि भवे (ते (रेयं) वियाहियं) / कालं अणंतमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं // 112 // एएसिं वराणो चेव, गंधयो रसफामयो। संगणादेसो वावि, विहाणाई सहस्ससो // 113 // मणुया दुविहभेया उ, ते मे कित्तययो सुण / संमुच्छिमाइ मणुया, गम्भवक्कंतिया तहा // 114 // गम्भवक्वंतिया जे उ, तिविहा ते वियाहिया / अकम्मकम्मभूमा य, अंतरद्दीवगा तहा // 115 // पन्नरस तीसइविहा (तीसं पन्नरसविहे), भेया अट्टवीसई। संखा उ कमसो तेसिं, इह एसा वियाहिया // 116 // संमुच्छिमाण एसेव, भेश्रो होइ ग्राहियो। लोगस्त एगदेमम्मि, ते सव्वेवि वियाहिया // 117 // संतई पप्पऽणाईया, अपजवसियावि य / ठिइं पडुच्च साईया, सपजवसियावि य॥११८॥ पलियोरमाइं तिनि य, उक्कोसेण वियाहिया। ग्राउठिई मणुयाणं, अन्तोमुहत्तं जहन्नयं // 11 // पलिग्रोवमाई तिन्नि उ, उक्कोसेण वियाहिया / व कोडिपुहुत्तेणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं // 200 // कायठिई मणुयाणं, अंतरं तेसिमं भवे। अणंत-कालमुकोस, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं // 201 // एएसि वराण यो चेत्र, गंधयो रसफासो / संठाणदेमा वावि, विहाणाई सहस्ससो Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 196 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागा. // 202 // देवा चउबिहा वुत्ता, ते मे कित्तयत्रो सुण / भोमिज वाणमंतर जोइस वेमाणिया तहा // 203 // दसहा उ भवणवासी, अट्टहा वणचारिणो। पंचविहा जोइसिया, दुविहा वेमाणिया तहा // 204 // श्रसुरा नागसुवराणा, विज्जू अग्गी अग्राहिया। दीवोदही दिसा वाया, थणिया भवणवासिणो // 205 // पिसाय भूय जक्खा य, रक्खसा किन्नरा य किंपुरिसा। महोरगा य गंध-वा, अट्ठविहा वाणमंतरा // 206 // चंदा सूरा य नक्खत्ता, गहा तारागणा तहा। दिसाविचारिणो चेव, पंचहा जोइसालया // 207 // वेमाणिया उ जे देवा, दुविहा ते पकित्तिया / कप्पोरगा य बोद्भवा, कप्पाईया तहेव य // 208 // कप्पोवगा बारसहा, सोह मीसाणगा तहा। सणंकुमार माहिंदा, वम्भलोगा य लंतगा // 201 // महासुका सहस्सारा, याणया पाणया तहा। श्रारणा अच्चुया चेव, इइ कप्पोवगा सुरा / 210 // कप्पाइया उ जे देवा, दुविहा ते वियाहिया / गेविजगा णुत्तरा चेव, गेविजा नवविहा तहिं // 211 // हिटिमा हिट्ठिमा चेव, हिटिमा-मज्झिमा तहा / हिट्ठिमा-उवरिमा चेव, मज्झिमा-हिटिमा तहा // 212 // मज्झिमा-मज्झिमा चेव, मज्झिमा- उवरिमा तहा। उवरिमाहिटिमा चेव, उवरिमा-मज्झिमा तहा // 213 // उवरिमा-उवरिमा चेव, इइ गेविजगा सुरा / विजया वेजयन्ता य, जयन्ता अप्पराजिया / / 214 // सव्वत्थसिद्धगा फेव, पंचहाऽणुत्तरा सुरा। इइ वेमाणिया एए, गहा एव. माययो // 215 // लोगस्स एगदेसम्मि, ते सव्वे परिकित्तिया / इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउब्विहं // 216 // संतई पप्पऽणाईया, अपजवसियावि य। ठिपडुच्च साईया, सपजवसियावि य // 217 // साहीयं सागरं इक्कं, उक्कोसेण ठिई भवे / भोमिजाण जहन्नेणं, दसवास-सहस्सिया // 218 // (पलियोवम दोऊणा, उक्कोसेण वियाहिया / असुरेन्दवज्जेताण, जहन्ना दस हिस्सगा। पसियोवममेगं तु, उक्कोसेण वियाहियं / वन्तराणं Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराष्पयनसूत्रम् / अध्ययनं 36 ) 6-17 जहन्नेणं, दमवाससहस्सिया // 211 // पलिम्रोवममेगं तु, वासलक्खेण साहियं / पलियोवमट्ठभागो, जोइसेसु जहनिया // 220 // दो चेव सागराई, उकोसेणं वियाहिया / सोहम्मंमि जहन्नेणं, एगं च पलिश्रोवमं // 221 // सागरा साहिया दुन्नि, उक्कोसेण वियाहिया। ईसाणम्मि जहन्नेणं, साहियं पलिग्रोवमं // 222 // सागराणि य सत्तेव, उकोसेण ठि भवे / सणंकुमारे जहन्नणं, दुन्नि ऊ सागरोवमा // 223 // सागरा साहिया सत्त, उक्कोसेण बियाहिया / माहिन्दमि जहन्न णं, साहिया दुन्नि सागरा // 224 // दम चेव सागराइं, उक्कोसेण वियाहिया। बम्भलोए जहन्नणं, सत्त उ सागरोवमा // 225 // चरद्दस सागराई, उकोसेण रियाहिया / लन्नगम्मि जहन्नणं, दस उ सागरोवमा // 226 // सत्तरस सागराइं, उकोसेण वियाहिया / महासुक्के जहन्नणं, चउद्दस सागरोवमा // 227 // अहारत सागराई, उक्कोसेण प्रियाहिया। सहस्सारे जहन्नणं, सतरल सागरोवमा // 228 // सागरा अउणवीसं तु, उकोसेण ठिई भवे / प्राणयम्मि जहन्नेणं, अट्ठारस सागरोवमा / 221 // वीसं तु सागराइं तु उक्कोसेणं ठिई भवे / श्राणयम्मि जहन्नेणं अट्ठारस सागरोवमा // 230 // वीसं तु सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे / पाणयम्मि जहन्नेणं, सागरा उणवीसई // 231 // सागरा इकवीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे / श्रारणम्मि जहन्नेणं, विसई सागरोवमा // 232 // बावीस सागराई, उक्कोसेणं ठिई भवे / श्रच्चुयम्मि जहन्नेणं, सागरा इक्वीसई // 233 / / तेवीस सागराइ, उकोसेण ठिई भवे / पढम.म्म जहन्नेणं, बावीसं सागरोवमा // 234 // चउवीम सागराइ, उक्को तेण ठिई भवे / बिइयम्मि जहन्नेणं, तेवीसं सागरोवमा // 235 // पणवीस सागरा ऊ, उक्कोसेण ठिई भवे / तइयम्मि जहन्नेणं, चउवीसं सागरोपमा // 236 // छब्बीस सागराई', उकोसेग लिई भवे। चउत्थयम्मि Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 198] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / त्रयोदशमो विभागः जहन्नेणं, सागरा पणवीसई // 237 // सागरा सत्तवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे / पंचमम्मि जहन्नेणं, सागरा उ छवीसई // 238 // सागरा श्रट्ठवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे / छट्ठम्मि जहन्नेणं, सागरा सत्तवीसई // 236 // सागरा अउणतीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे। सत्तमंमि जहन्नेणं, सागरा वीसई // 240 // तीसं तु सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे। अट्ठमम्मि जहन्नेणं, सागरा अउणतीसई // 241 // सागरा इकतीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे। नवमम्मि जहन्नेणं, तीसई सागरोवमा // 242 // तित्तीस सागरा उ, उकोसेण ठिई भवे / चउसुपि विजयाईसु, जहन्ना-इकतीसई // 243 // अजहन्न-मणुकोसं, तित्तीसं सागरोवमा / महाविमाण-सव्वट्टे, ठिई एसा वियाहिया // 244 // जा चेव उ पाउठिई, देवाणं तु वियाहिया / सा तेसिं कायठिई, जहन्नमुक्कोसिया भवे // 245 // अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं / विजदंमि सए काए, देवाणं हुज अन्तरं // 246 // एएति वराण यो चेव, गन्धयो रसफासयो। संगणादेसयो वावि, विहारणाइ सहस्ससो // 247 // संसारत्था य सिद्धा य, इइ जीवा वियाहिया। रूविणो चेवऽरूवी य, अजीरा दुविहावि य // 248 // (अणं,न्तकालमुक्कोस, वासपुहुत्तं जहन्नयं / ग्राणयाईण कप्पाण, गेविजाणं तु अन्तरं // संखिजसागरुकोसं, वासपुहुत्तं जहन्नयं / अणुत्तराण य देवाणं, अन्तरं तु वियाहिया // ) इइ जीवमजीवे य, सुच्चा सदहिऊण या सव्वनयाण अणुमए, रमिज्जा संजमे मुणी // 24 // तयो बहूणि वासाणि, सामराणमणुपालिया। इमेणं कम्मजोगेणं, अप्पाणं संलिहे मुणी // 250 // बारसेव उ वासाई, संलेहुक्कोसिया भवे / संवच्छरं मज्झिमिया, छम्मासा य जहन्निया // 251 // पढमे वासचउक्कमि, विगई (वित्ति) निज्जूहणं करे / बिइए वासचउकम्मि, विचित्तं तु तवं चरे // 252 // एगन्तरमायाम, कट्टू Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् : अध्ययन 36 ] [ 196 संवच्छरे दुवे / तो संवच्छरद्धं तु, नाइविगिट्ठ तवं चो॥ 253 / / तो संवच्छरद्धं तु, विगिट्ठ तु, तवं चरे। परिमियं चेव थायाम, तम्मि संवच्छरे करे // 254 // कोडीसहिय-मायाम, कटु संवच्छरे मुणी / मासद्ध मासिएणं तु, श्राहारेणं तवं चरे // 255 // कन्दप्प-माभियोगं, किबिसियं मोहमासुरत्तं च। एयायो दुग्गईओ, मरणम्मि विराहिया हुन्ति // 256 // मिच्छा-दंसणरत्ता, सनियाणा हु हिंसगा। इय जे मरन्ति जीवा, तेसिं पुण दुलहा बोही // 257 // सम्महसणरत्ता, अनियाणा सुक्कलेसमोगाढा। इय जे मरन्ति जीवा, सुलहा तेसिं भवे बोही // 25 // मिच्छादसणरत्ता, सनियाणा कराहलेसमोगाढा / इय जे मरन्ति जीवा, तेसिं पुण दुल्लहा बोही // 251 // जिणवयणे अणुरत्ता, जिणवयणं जे करेन्ति भावेणं / अमला असंफिलिट्ठा, ते हुन्ति परित्तसंसारा // 260 // बालमरणाणि बहुसो, अकाममरणाणि चेव बहुयाणि / मरिहन्ति ते वराया, जिणवयणं जे न याणन्ति // 261 // बहुभागमविन्नाणा, समाहिउप्पायगा य गुणगाही। एएण कारणेणं, अरिहा बालोयणं सोउं // 262 // कन्दप्प-कोक्कुईया, तह सीलसहाव-हासविगहाहिं / विम्हाविन्तो य परं, कन्दप्पं भावणं कुणइ // 263 // मन्ताजोगं काउं, भूईकम्मं च जे पउंजन्ति / सायरस-इड्डि-हेर्ड, अभियोगं भाषणं कुणइ // 264 // नाणस्स केवलीणं, धम्मायरियस्स संघ-साहूणं / माई अवगणवाई, किबिसियं भावणं कुणाइ // 265 // अणुबद्ध-रोसपसरो, तह य निमित्तंमि होइ पडिसेवी। एएहि कारणेहिं, आसुरियं भावणं कुणइ // 266 // सत्यग्गहणं विसभक्खणं च, जलणं Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: त्रयोदशमो विभाग च जलपवेसो य / अणायार-भण्डसेवी, जम्मणमरणाणि बन्धन्ति // 267 // इति पाउकरे बुद्धे, नायए परिनिव्वुए / छत्तीसं उत्तरभाए, भवसिद्धीयसम्मए (संवुडे) // 268 // त्ति बेमि // // इति षट्त्रिंशमध्ययनम् // 36 // // इति उत्तराध्ययनानि समाप्तानि // (ग्रन्धाग्रं 2000) ॥इति () 8 श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रं है समाप्तम्॥ 88000000000 Page #218 -------------------------------------------------------------------------- _