________________ 178 ] [ श्रीमदगिमसुधासिन्धुः त्रयोदशमी विभागा // 33 // अथ कर्मप्रकृतिनामकं त्रयस्त्रिंशमध्ययनम // ___अट्ठ कम्माई वुच्छामि, प्राणुपुब्बि जहकमं / जेहिं बद्धे अयं जीवे, संसारे परिवत्तए // 1 // नाणस्सावरणिज्जं, दसणावरणं तहा / वेयणिज्जं तहा मोहं पाउकामं तहेव य // 2 // नामकम्मं च गोयं च, अन्तरायं तहेव य। एवमेयाई कम्माई, श्रट्ठव य समासयो॥ 3 // नाणावरणं पंचविहं, सुग्रं श्राभिणियोहियं / योहिं नाणं तईयं, मणनाणं च केवलं // 4 // निद्दा तहेव पयला, निहानिदा य पयलपयला य / तत्तो य थीणगिद्धी, पंचमा होइ नायब्बा // 5 // चक्खुमचक्खु-योहिस्स, दंसणे केवले य श्रावरणे / एवं तु नवविगप्पं, नायव्वं दंसणावरणं // 6 // वेयणियंपि हु य दुविहं, सायमसायं च ग्राहियं / सायस्स उ बहु भेया, एमेवासायस्सवि // 7 // मोहणियपि य दुविहं दसणे चरणे तहा / दंसणे तिविहं वुत्तं, चरणे दुविहं भवे // 8 // सम्मत्तं चेव मिच्छत्तं, सम्मामिच्छत्तमेव य / एयायो तिन्नि पयडियो, मोहणिजस्स दंसणे // 1 // चरित्तमोहणं कम्म, दुविहं तु वियाहियं / कमायमोहणिज्जं च, नोकसायं तहेव य॥ 10 // सोलसविहभेएणं, कम्मं तु कसायजं / सत्तविहं नवविहं वा, कम्मं नोकसायजं // 11 // नेरड्य-तिरिक्खाऊ, मणुस्साउं तहेव य / देवाऊयं चउत्थं तु, ग्राउकम्मं चउन्विहं // 12 // नामकम्म दुविहं, सुहमसुहं च ग्राहियं / सुहस्स उ बहु भेया, एमेव य असुहस्सवि // 13 // गायं कम्मं दुविहं, उच्चं नीयं च श्राहियं / उच्चं अट्टविहं होइ, एवं नीयपि अाहियं // 14 // दाणे लाभे य भोगे य, उवभोगे वीरेए तहा। पंचविह-मन्तरायं, समासेण वियाहियं // 15 // एयायो मूलपयडीयो, उत्तरायो य ग्राहिया / पएसग्गं खित्तकाले य, भावं चादुत्तरं सुण // 16 // सव्वेसिं चेव कम्माणं, पण्सग्ग-मणन्तगं / गरािठयसत्ताईयं, अन्तो मिद्धाण ग्राहियं // 17 // सबजीवाण कम्मं तु, संगहे छदिसागयं / सव्वेसुवि