________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् / अध्ययनं 34 ].' [171 पएसेसु, सव्वं सब्वेण बद्रगं // 18 // उदहीमरिसनामाणं, तीसई कोडिकोडीयो / उक्कोसिया होइ ठिई, अन्तमुहत्तं जहनिया // 11 // यावरणिजाण दुराहंपि, वेयणिज्जे तहेव य / अन्तराए य कम्मम्मि, ठिई एसा वियाहिया // 20 // उदही-सरिसनामाणं, सत्तरि कोडिकोडियो / मोहणिजस्त उकोसा, अन्तमुहुत्तं जहन्निया // 21 // तित्तीस-सागरोवमा, उक्कोसेणं वियाहिया / ठिई उ अाउकम्मस्स, अन्तमुहुत्तं जहनिया // 22 // उदहीसरिसनामाणं, वीसई कोडिकोडियो / नामगोयाण उक्कोसा, अन्तमुहुत्तं जहनिया // 23 // सिद्धाणऽणन्तभागो, अणुभागा हवन्ति उ / सव्वेसु वि पएमग्गं, सव्वजीवेसुइच्छियं // 24 // तम्हा एएसि कम्माणं, अणुभागे वियाणिया। एएसिं संवरे चेव, खवणे य जए बुहे // 25 // त्ति बेमि // // इति त्रयस्त्रिंशमध्ययनम् // 33 // // 34 // अथ लेश्याख्यं चतुस्त्रिंशमध्ययनम् // . लेसज्झयणं पववखामि, आणुपुब्बि जहक्कम / छराहपि कम्मलेसाणं, अणुभावे सुणेहि मे // 1 // नामाई वरणरस गन्ध फासपरिणाम-लखणं टाणं / टिई गई च बार, लेसाणं तुरणेह मे ॥२॥किराहा नीला य काऊ य, तेऊ पम्हा तहेव य / सुकलेसा य छट्ठा उ, नामाइं तु जहक्कम // 3 // जीमूत-निद्ध-संकासा, गवल-रिट्ठग-सन्निभा / खंजंजण-नयणनिभा, किराहलेसा उ वराणो // 4 // नीलासोग-संकासा, चासपिच्छ-समप्पभा / वेरुलियनिद्ध-संकासा, नीललेमा उ वराणश्रो // 5 // अयसीपुष्फ-संकासा, कोइलच्छद(वि)मन्निभा / पारेवय-गीवनिभा, काउलेसा उ वरणयो // 6 // हिंगुलय धाउसंकासा, तरुणइच्चसन्निभा। सुयतुण्ड-पईवनिभा (सुयतुडालनदीवाभा), तेउलेसा उ वराणयो // 7 // हरियाल-भेयसंकाला, हलिदा-भेदसन्निभा / सणासण-कुसुमनिभा / पम्हलेसा उ वराणयो