________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् / / अध्ययनं 32 ] [ 170 करिन्ति किंचि // 100 // न कामभोगा समयं उविन्ति, न यावि भोगा विगई उविन्ति / जे तप्पडोसी य परिग्गही य, सो तेसु मोहा विगइं उवेइ // 101 // कोहं च माणं च तहेव मायं, लोभं दुगुठं अरई रइं च / हासं भयं सोगपुमिस्थिवेयं, नपुंसवेयं विविहे य भावे // 102 // भावजई एवमणेगरूवे, एवंविहे कामगुणेसु सत्तो / अन्ने य एयप्पभवे विसेसे, कारुगणदीणे हिरिमे वइस्से // 103 // कप्पं न इच्छिज्ज सहायलिच्छू, पच्छाणुतावण तवप्पभावं एवं विकारे अमियप्पयारे, भावजई इन्दियचोरवस्से // 104 // तो से जायन्तिं पयोषणाई, निमजिउं मोहमहन्नवम्मि / सुहेसिणो दुक्खविणोय(मुक्ख)णट्टा, तप्पच्चयं उज्जमए अरागी // 105 // विरजमाणस्स य इन्दियस्था, सद्दा(वरणा)इया तावइयप्पगारा / न तस्स सव्वेवि मणुन्नयं वा, निव्वत्तयन्ति अमणुन्नयं वा // 106 // एवं ससंकप्पविकप्पणासु, संजाई समयमुवट्टियस्स / अत्थे च संकप्पययो तथो से, पहीयए कामगुणेसु तगहा // 107 // सो वीयरागो कयसव्वकिच्चो, खवेइ नाणावरणं खणेणं / तहेव जं दंसणमावरेड, जं चन्तरायं पकरेइ कम्मं // 108 // सव्वं तो जाणइ पासई य, अमोहणो होइ निरन्तराए / अणासवे माणसमाहिजुत्तो, बाउक्खए मुक्खमुवेइ सुद्धे // 101 // सो तस्स सबस्स दुहस्स मुक्खो, जंबाहई सययं जन्तुमेयं / दीहामयविप्पमुक्को पसत्थो, तो होइ अञ्चन्तसुही कयत्थो // 110 // अणाइकालप्पभवस्स एसो, सव्वस्स दुक्खस्स पमुक्खमग्गो / वियाहियो जं समुविच सत्ता, कमेण अञ्चन्तसुही भवन्ति // 111 // ति बेमि // // इति द्वात्रिंशमध्ययनम् // 32 //