________________ 176 ) [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमा विमागः जलेण वा पुवखरिणीपलासं // 86 // मणस्स भावं गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहुं / तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो अ जो तेसु स वीयरागो // 87 // भावस्स मणं गहणं वयन्ति, मणस्स भावं गहणं वयन्ति / रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु // 88 // भावेसु जो गिद्धिमुवेइ तिब्वं, अकालियं पावइ से विणासं। रागाउरे कामगुणेसु गिद्धे, करेणुमग्गावहिए व नागे॥ 81 // जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं / दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किंचि भावं अवरमई से // 10 // एगन्तरते रइरंसि भावे, अतालिसे से कुणई पयोसं। दुक्खस्स संपीलमुबेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागे // 11 // भावाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरेहिं सय(हिंसइ)ोगस्वे / चित्तेहिं ते परियावेइ बाले, पीलेइ अत्तद्वगुरू किलि? // 12 // भावाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खण-सन्नियोगे / वए वियोगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तिलाभे ? // 13 // भावे अतित्ते य परिग्गरंमि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढेि / अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले अाययई श्रदत्तं // 14 // तराहाभिभूयस्स श्रदत्तहारिणो, भावे अतित्तस्स परिग्गहे य / मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से // 15 // मोसस्स पच्छा य पुरस्थयो य, पयोगकाले य दुही दुरन्ते / एवं अदत्ताणि समाययन्तो, भावे अतित्तो दुहियो अणिस्सो // 16 // भावणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं हुज कयाइ किंचि ? / तत्थोवभोगेऽवि किलेसदुक्खं, निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं // 17 // एमेव भावम्मि गयो पत्रोसं, उवेइ दुक्खोहपरंपरायो। पदुट्ठ चित्तो अ चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे॥ 18 // भावे विरत्तो मणुयो विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण न लिप्पई भवमज्झेऽवि सन्तो, जलेण वा पुक्खरिणीपलासं // 16 // एविन्दियत्था य मणस्स अत्था, दुक्खस्स हेउं मणुयस्स रागियो / ते चेव थोपि कयाइ दुक्खं, न वीयरागस्स