________________ श्रीमदुत्तराध्ययनस्त्रम् / / अध्ययनं 18 ] [ 125 सुहं वा जइ वा दुहं / कम्मुणा तेण संजुयो, गच्छइ उ परं भवं // 17 / / सोऊणं तस्स सो धम्म, अणगारस्स अन्तिए / महया संवेगनिव्वेदं, समावन्नो नराहियो॥ 18 // संजयो चहउं रज्जं, निक्खन्तो जिणसासणे / गद्दभालिस्म भगवयो, अणगारस्स अन्तिए / // 11 // चिच्चा रटुं पव्वइयो, खत्तियो परिभासई / जहा ते दीमई रूवं, पसन्नं ते तहा मणो // 20 // कि नामे किंगुत्ते, कस्सट्टाए व माहणे ? / कहं पडियरसी बुद्धे ? कहं विणीएत्ति वुच्चसि ? // 21 // संजयो नाम नामेणं, तहा गुत्तेण गोतमो / गद्दभाली ममायरिया, विजाचरणपारगा // 22 // किरियं अकिरियं विणयं, अन्नाणं व महामुणी ! / एएहिं चउहिँ ठाणेहिं, मेयन्ने किं पभासई ? // 23 // इइ पाउकरे बुद्धे, नापए परिनिव्वुडे। विजाचरणसंपन्न, सच सच्चपरकमे // 24 // पडन्ति नरए घोरे, जे नरा पावकारिणो / दिव्यं च गई गच्छन्ति चरिता धम्ममारियं // 25 // मायाबुझ्यमेयं तु, मुसाभासा निरस्थिया / मंजममाणोऽवि अहं, वसामि इरियामि य // 26 // सव्वे ते विइया मझ मिच्छादिट्टी अणारिया। विजमाणे परे लोए, सम्मं जाणामि अप्पगं // 27 // ग्रहमासि महागणे, जुइमं वरिससोवमे / जा सा पाली महापाली, दिवा वरिस-सयोवमा // 28 // से चुए बम्भलोगायो, माणुस्सं भदमागए। अप्पणो य परेसिं च, ग्राउं जाणे जहा तहा // 21 // नाणारइं च छन्द च, परेवजिज संजयो। अणट्ठा जे य सव्वत्था, इइ विजामणुसंचरे // 30 // पडिकमामि पसिणाणं, परमन्तेहिं वा पुणो / अहो उट्टियो ग्रहोरायं, इति विजा तवं चरे // 31 // जं च मे पुच्छसी काले, सम्म सुद्धेण चेयना / ताई पाउकरे बुद्धे, तं नाणं जिणसासणे // 32 // किरियं च रोयर धीरो, अकिरियं परिवजए। दिट्ठीए दिट्ठीसंपन्नो, धम्मं चरसु दुचरं // 33 // एवं पुराणायं सुना अथवम्मोव-सोहियं / भरहोऽवि भारहं वासं, विचा कामाइ पब्बए // 34 // सगरोऽवि सागरन्तं, भरहवासं नराहियो।