________________ 112 [ श्री.दागमभुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः मुक्खु अस्थि / प्रत्येहि कामेहि य उत्तमेहिं पाया ममं पुराणफलोववेत्री // 10 // जाणाहि संभूय ! महाणुभागं, महिड्डियं पुराणफलोववेयं / चित्तं पि जाणाहि तहेव रायं !, इड्डी जुई तस्तवि अपभूया // 11 // महत्थरूषा वयणप्पभूषा, गाहाणुगीया नरसंघमज्झे ।जं भिक्खुणो सीलगुणोववेया, इहऽजयन्ते स(सु)मणोऽम्हि जाश्रो // 12 // उच्चोयए महु कक्के य बम्भे, पवेइया श्रावसहा य रम्मा / इमं गिहं वित्त धणप्पभूयं, पासाहि पंचालगुणोपवेयं // 13 // नट्टहि गीएहि य वाइएहिं, नारीजणाई परिवारयन्तो (पनियारियंतो) / भूजाहि भोगाई इमाई भिक्खू ?, मम रोयई फरजा हु दुक्खं // 14 // तं पुब्वनेहेण कयाणुरागं नराहिवं कमगुणेसु गिद्धं / धम्मस्सियो तस्स हियाणुपेही, चित्तो इमं वयण-मुदाहरित्था // 15 // सव्वं विलवियं गीयं, सव्वं नट्ठ विडम्बणा / सव्वे अाभारणा भारा, सब्वे कामा दुहावहा // 16 // बालाभिरामेसु दुहावहेसु, न तं सुहं कामगुणसु रायं ! / विरत्तकामाण तबोधणाणं, जं भिक्खुणं सीलगुणे रयाणं // 17 // नरिंद ! जाई ग्रहमा नराणं, सोवाग जाई दुहयो गयाणं / जहिं वयं सब जणस्त वेस्सा, वसीय सोवाग निवेसणेसु // 18 // तीसे य जाईइ उ पावियाए, वुच्छामु सोवागनिवेसणेसु / सव्वस्स लोगस्स. दुगंछणिजा, इहं तु कम्माई पुरेकडाई॥ 11 // सो दाणि सिं राय महाणुभागो, महिड्डियो पुराणफलोववेत्रो। चइत्तु भोगाई असासयाई, श्रादाणहेउं अभिणिदखमाहि (अायाणमेवा-णुचिंतयाही) // 20 // इह जीविए राय ! असासयम्मि, धणियं तु पुराणाइ अकुब्धमाणो / से सोयई मच्चुमुहोवणीए, धम्मं अकाऊण परम्मि लोए // 21 // जहेह सीहो व मियं गहाय, मच्चू नरं नेइ हु अन्तकाले / न तस्स माया व पिया व भाया, कालम्मि तम्मंसहरा भवंति // 22 // न तस्स दुक्खं विभयन्ति नाइयो, न मित्तवग्गा न सुया न बंधवा / एको सयं पञ्चणुहोइ दुक्खं, कतारमेवं अणजाइ कम्मं // 23 // चिचा दुपयं च चउप्पयं