________________ श्रीमदुसराध्ययनस्त्रम् : अध्ययनं 15] च, खितं गिहं धणधन्नं च सव्वं / सकम्मवीयो अवसो पयाई, परं भवं सुंदर पावगं वा // 24 // तं इकगं तुच्छमरीरगं से, चिईगयं दहिउं पावगेणं / भजा य पुत्तावि य, नाययो य दायारमन्नं अणुसंकमन्ति॥ 25 // उवणिजई जीवियमप्यमायं, वरणं जरा हरइ नरस्स रायं ! पंचालराया, वयणं सुणाहि, मा कासि कम्माई. महालयाई // 26 // अहं पि जाणामि जहेह साहू (जो एत्थ सारो), जं मे तुमं साहसि वकमेयं / भोगा इमे सङ्गकरा बान्न, जे दुजया अजो ! अम्हारिसेहिं // 27 // हत्थिणपुरम्मि चित्ता ! दट्टणं नरवई महिड्डियं / कामभोगेसु गिद्धेणं, नियाणमसुहं कडं // 28 // तस्म मे अप्पडिकन्तस्स, इमं एयारिसं फलं / जाणमाणोऽवि जं धम्मं, कामभोगेसु मुच्छियो // 21 // नागो जहा पंकजलावसनो, द? थलं नाभिसमेइ तीरं / एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा, न भिक्खुणो मंग्गमणुव्ययामो // 30 // अञ्चेइ कालो तूरन्ति राइयो, न यावि भोगा पुरिसाण निच्चा / उविच भोगा पुरिसं चयन्ति, दुमं जहा खीणफलं व पक्खी // 31 // जई. (त) से भोगे चइ असत्तो, अजाइ कम्माइ करेही रायं ! / धम्मे ठियो सव्व रयाणुकम्पी, तं होहिसि देवो इयो विउव्वी // 32 // न तुझ भोगे चइऊण बुद्धि, गिद्धो सि पारम्भपरिग्गहेसु / मोहं कयो इत्तिउ विप्पलावो, गच्छामि रायं ! यामन्तियोऽसि // 33 // पंचालरायाऽवि य बम्भदत्तो, साहुस्स तस्स वयणं अकाउं। अणुत्तरे भुजिय कामभोगे, अणुत्तरे सो नरए पविठ्ठो // 34 // चित्तोऽवि कामेहिं विरत्तकामो, उदत्त(ग्ग)चारित्ततवो महेसी / अणुत्तरं संजम पालइत्ता, अणुत्तरं सिद्धिगई गयो // 35 // त्ति बे.मे॥ // इति त्रयोदशममध्ययनम् // 13 // // 14 // अथ इषुकारीयाख्यं चतुर्दशममध्ययनम् // देवा भवित्ताण पुरे भाम्मी, केई चुया एगविमाणासी / पुरे पुराणे