________________ 114] / श्री दागममुधासिन्धुः // त्रयोदशमी विभागः उसुयारनामे, खाये समिद्धे सूर लोगरम्मे // 1 // सकम्म सेसेण पुराकएणं, कुलेसुदग्गे(ते)सु य ते पसूया / निव्वराण संसार मया जहाय, जिणिंदमग्गं सरणं पवन्ना // 2 // पुमत्तमागम्म कुमार दोऽवि, पुरोहियो तस्स जसा य पत्ती / विसालकित्ती य तहेसुयारो, रायस्थ देवी कमलावई य॥३॥ जाईजरामचुमयाभिभूया(ए), बहिं विहाराभिनिविट्ठचित्ता। संसारचक्कस्स विमोक्खणट्ठा, दवण ते कामगुणे विरत्ता // 4 // पिययुत्तगा दुनिवि माहणस्त, सकम्मसोलस्स पुरोहियस्स / सरितु पोराणिय तत्थ जाई, तहा सुचिएणं तब संजमं च // 5 // ते कामभोगेसु असन्जमाणा, माणुस्सएसुजे यावि दिव्वा / मोक्खाभिकंखी अभिजायसद्धा, तायं उबागम्म इमं उदाहु // 6 // असासयं दठ्ठ इमं विहारं, बहुअन्तरायं न य दीहमाउं / तम्हा गिहंसी न रई लभामो, अामन्तयामो चरिस्सामु मोणं // 7 // यह तारगो तस्थ मुणीण तेसिं, तवस्त वाघायकरं वयासी / इमं वयं वेयवियो वयन्ति, जहा न होई असुयाण लोगो॥८॥ अहिज वेर परिविस्ल विप्पे, पुत्ते पडि(रि)ठ्ठप्प गिहंसि जाया ! / भोचाण भोए सह इत्थियाहिं, पारराणगा होह मुणी पसत्था // 1 // सोयग्गिणा पायगुणिन्धणेणं, मोहाणिला पजलणाहिएणं / संतत्तभावं परितप्पमाणं, लाल(लोलु)पमाणं बहुहा बहुँ च // 10 // पुरोहियं तं कमसोऽणुणन्तं, निमंतयन्तं च सुए धणेणं / जहक्कम कामगुणेहि चेव, कुमारगा ते पसमिक्ख वक्कं // 11 // वेया ग्रहीया न भवन्ति ताणं, भुत्ता दिया निन्ति तमं तमेणं / जाया य पुत्ता न हबन्ति ताणं, को णाम ते अणुमनेज एवं ? // 12 // खणमेत्त-सोरखा बहुकाल-दुक्खा, पगामदुक्खा अनिगाम-सोक्खा / संसारमोक्खस्स विपक्खभूया, खाणी अणत्थाण उ कामभोगा॥ 13 // परिव्बयन्ते अनियत्तकामे, अहो य रायो परितप्प माणे / अन्नप्पमत्ते धणमेसमाणे, पप्पोत्ति मच्चु पुरिसो जरं च // 14 // इमं च मे अत्थि इमं च नत्थि, इमं च मे किच इमं अकिच / तं एवमेवं