________________ 74 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमौ विभागः भोगंतरायं च // 512 // एवं तु गविट्ठस्सा उग्गमउप्पारणा-विर द्धरस / गहणविसोहि-विसुद्धस्स होइ गहणं तु पिंडरस // 513 / / उप्पायणाएँ दोसे साहूउ समुट्ठिए वियाणाहि / गहणेसणाइ दोसे डायपरसमुट्ठिए वोच्छं - // 514 // दोन्नि उ साहुसमुत्था संकिय तह भावोऽपरिणयं च / सेसा वि नियमा गिहिणो य समुट्ठिए जाण // 515 // नाम टपणा ददिए - भावे गहणेसणा मुणेयव्वा / दवे वानरजूहं भावमि य दस पया हुँति // 516 // परिसडिय-पंडुपत्तं वणसंडं दट्ठ अन्नहिं ऐसे / जूहबई पडियरए जूहेण समं तहिं गच्छे // 517 // सयमेवासोएउं जूहबई तं वणं समतेण / वियरइ तेसि पयारं चरिऊण य तो दहं गच्छे // 518 // बोयरत पयं दर्छ, नोहरंत न दीसई / नालेण पियह पाणीयं, नेम निकारणो दहो // 511 // संकिय मक्खिय निविखत्त पिहिय साहरिय दायगुग्मीसे / अपरिणय लित्त छड्डिय एसणदोसा दस हवंते // 520 // संकाए चगो दोसुवि गहणे य भुजणे लग्गो। जं संकियमावन्नो पणतीसा चरिमए सुद्रो // 521 // उग्गमदोसा सोलस ग्राहाकम्माइ एसणादोमा / नव मविखयाइ एए पणवीसा चरिमए सुद्धो॥ 522 // बटमत्थो मुयनाणी गवेसए (उवउत्तो) उज्जुयो पयत्तेणं / श्रावन्नो पणवीसं सुरनाणपमाग यो सुद्धो // 523 // ओहो सुयोवउत्तो सुयनाणी जइवि गिराहइ असुद्धं / तं केवलीवि भुजइ अपमाण सुयं भवे इहरा // 524 // सुत्तस्स अप्पमाणे चरणाभावो तो य मोक्खस्स / मोक्खस्सऽविय श्रावे दिवखपवित्ती निरत्था उ / / 525 // किंतु(ति)ह खद्धा भिवखा दिज्जइ न य तरइ पुच्छउं हिरिमं / इत्र संकाए घेत्तुं तं भुजइ सकियो चेव // 526 // हियएण संकिएणं गहिया अन्नेण सोहिया सा य। पगयं पहेणगं वा सोउं निस्संकियो भुजे // 527 // जारिसया चिय लद्धा खडा भिवखा मए अमुयगेहे / अन्नेहिवि तारिसिया वियत निसामए तइए।५२८॥ जइ