________________ ओपिण्डनियुक्ति ] संका दोसकरी एवं सुद्धपि होइ अविसुद्धं / निस्संकमेसियंति य श्रणेसणिज्जपि निदोसं // 526 // अविसुद्धो परिणामो एगयरे अवडियो य पक्खंमि / एसिपि कुणइ णेसिं अणेसिमेसि विसुद्धो उ // 530 // दुविहं च मक्खियं खलु सच्चित्तं चेव होइ अचित्तं / सचित्तं पुण तिविहं अचित्तं होइ दुविहं तु // 531 // पुढवी याउ वणस्सइ तिविहं सच्चित्तमक्खियं होइ / अचित्तं पुण दुविहं गरहियमियरे य भयणा उ॥५३२॥ सुक्केण सरवखेणं मक्खिय-मोल्लेण पुढविकाएण / सर्वपि मक्खियं तं एत्तो पाउंमि वोच्छामि // 533 // पुरपच्छकम्म ससिणिद्धदउल्ले चउरो बाउभेयायो / उकिट्ठरसालित्तं परिऽणतं महि रहेसु // 534 // सेसेहिं काएहिं तीहिवि तेऊसमीर. णतसेहिं / सच्चितं मीसं वा न मक्खितं अस्थि उल्लं वा // 535 // सचितमविखयंमी हत्ये मते य होइ चउभंगो। पाइतिए पडिसेहो चरिम भंगे यणुनायो // 536 // अचित्तमक्खियंमि उ चउसुवि भंगेसु होइ भयणा उ। अगरहिएण उ गहणं पडिसेहो गरहिए होइ // 537 // संसजिमेहिं वज्ज अगरहिएहिपि गोरसदवेहिं / महुघयतेलगुलेहि य मा मच्छिपिपीलियाबायो // 538 // मंसवस-सोणियासव लोए वा गरहिएहिवि वज्जेजा। उमयोऽवि गरहिएहिं मुनुबारेहिं चित्तंपि // 531 // सचित्त मीसएसु दुविहं काएसु होइ निखितं / एक्केक्कं तं दुविहं अणंतर परंपरं चेव // 54 // पुढवीयाउकारतेऊवाउ-वणस्सइ-तसाणं / एक्केक दुहाऽणंतर-परंपरगणंमि सत्तविहा // 541|| सच्चित्त पुढविकाए सचित्तो चेत्र पुढवि-निखित्तो / ग्राऊतेउवणस्सइ-समीरण-तसेसु एमेव // 542 // एमेव सेसयाणवि निवखेवो होइ जीव(काय)काएसु(निकाएस) एवकको सट्टाणे परटाणे पंच पंचेव // 543 // एमेव मीसएसुवि मीसाण सचेयणेसु निक्खेवो / मीसाणं मीसेसु य दोरहंपि य होइऽचितेसु // 544 // जत्थ उ सचित्तमीसे चउभंगो तत्थ चउसुवि अगिझोतंतु अणंतर इयरंपरित्तऽणतंचवणकाए॥५४५॥ अहव ण सचित्त