________________ अणंतर परंपर वक्ते (लीण) दीसेइ इंधणे 76 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः मीसो उ एगयो एगयो उ अचित्तो। एत्थं चउक्कभेश्रो तत्थाइतिए कहा नस्थि // 546 // जं पुण अचित-दव्यं निक्खिप्पड चेयणेसु मीसेसु / तहिं मग्गणा उ इणमो श्रणंतरपरंपरा होइ // 547 // योगाहिमायणंतर परंपरं पिढरगाइ पुढवीए / नवणीयाइ अणंतर परंपरं नावमाईसु // 548 // विज्झाय-मुम्मु. रिंगालमेव अपत्तपत्त-समजाले / योवकते (लीणे) सत्तदुगं जंतोलित्ते य जयणाए // 546 // विज्झाउत्ति न दीसइ अग्गी दीसेइ इंधणे छूढे / थापिंगल अगणिकणा मुम्मुर निजाल इंगाले // 550 // अपत्ता उ उत्थे जाला पिढरं तु पंचमे पत्ता / छठे पुण कराणसमा जाला समइच्छिया चरिमे // 551 // पासोलित्त-कडाहे परिसाडी नथि तंपि य विसालं / सोऽपि य अचिरच्छूटो उच्छुरसो नाइउसिणो य // 552 / / उसिणोदगंपि घेप्पइ गुडरसपरिणामियं अणच्चुसिणं / जं च अगट्ठियकन्नं घट्टियपडणंमि मा अग्गी // 553 // पासोलित्त-कडाहेऽनच्चुसिणे अपरिसाडऽघट्टते / सोलस भंगविगप्पा पढमेऽणुन्ना न सेसेसु // 554 // पयसमदुग-प्रभासे माणं भंगाण तेसिमा रयणा / एगंतरियं लहुगुरु दुगुणा दुगुणा य वामेसु // 555 // दुविहविराहण उसिणे छड्डण हाणी य भाणभेयो य / वाउविखत्ताणंतरपरंपरा पप्पडिय वत्थी // 556 // हरियाइ-अणंतरिया परंपरं पिढरगाइसु वणंमि / पूपाइ पिट्ठऽणंतर भरए कुउबाइसू इयरा // 557 // सचित्ते अचित्ते मीसग पहियंमि होइ चउमंगो। श्राईतिगे पडिसहो चरिमे भंगंमि भाणा उ // 558 // जह चेव उ निवखत्ते संजोगा चेव होंति भंगा य। एमेव य पिहियंमिवि नाणत्तमिणं तइयगे // 55 // चंगार धूवयाई अणंतरो संतरो सरावाई / तत्थेव अइर वाऊ परंपरं बस्थिणा पिहिए // 560 // अइरं फलाइपिहितं वणंमि इयरं तु छब्ब-पिठराई / कच्छव-संचाराई अणंतराणंतरे छ? // 561 // गुरु गुरुणा गुरु लहुगा लहुयं गुरुएण दोऽवि लहुयाई / अचित्तेणवि पिहिए चउभंगो दोसु श्रग्गेझ // 562 //