________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् , अध्ययनं 35 ] ... / [103 कस्सइ उववत्ति (उववायो), परे भवे अस्थि जीवस्स // 58 // लेसाहिं सब्वाहिं, चरमे समयम्मि परिणयाहिं तु / न हु कस्सइ उववत्ति, परे भवे अत्थि जीवस्स // 51 // अंतमुहुत्तमि गए, अन्तमुहुत्तम्मि सेसए चेव / लेसाहिं परिणयाहिं, जीवा गच्छन्ति परलोयं // 60 // तम्हा एयासि लेसाणं, अणुभावं वियाणिया / अप्पसत्थाउ वजित्ता, पसत्यायो अहिट्ठए मुणि // 61 // त्ति बेमि / . ॥इति चतुस्त्रिंशमध्ययनम् // 34 // // 35 // अथ अनगार-मार्गगतिनामकं पंचत्रिंशमध्ययनम् // सुणेह मे एगमणा, मग्गं सम्बन्नु (बुद्धेहिं) देसियं / जमायरन्तो भिक्खू, दुक्खाणन्तकरो भवे // 1 // गिहवासं परिचजा, पव्वज्जामस्सिए मुणी। इमे संगे वियाणिज्जा, जेहि सज्जन्ति माणवा // 2 // तहेव हिंसं अलियं, चोज्जं अबंभसेवणं / इच्छा कामं च लोभं च, संजयो परिवज्जए // 3 // मणोहरं चित्तघरं, मल्लधूवण वासियं / सकवाड पराडरलोयं, मणसावि न पत्थए // 4 // इन्दियाणि उ भिवखुस्स, तारिसम्मि उवस्सए / दुक्कराई निवारेउं (तु धारेउ) कामराग-विवडणे // 5 // सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व इक्कयो / पइरिक परकडे वा, वासं, तत्थऽभिरोयए // 6 // फासुयम्मि श्रणाबाहे, इत्थीहिं अणभिङ ए / तत्थ संकप्पए वासं, भिक्खू परमसंजए // 7 // न सयं गिहाई कुव्यिन्जा, ने व अन्नेहिं कारए / गिहकम्म-समारम्भ, भूयाणं दिस्सए वहाँ // 8 // तसाणं थावराण च, सुहृमाणं बायराण य / तम्हा गिहसमारम्भं, संजयो परिवजए // 1 // तहेव भत्तपाणेसु, पयणे पयावणेसु य पाणभूयदयट्ठाए, न पये ण पयावए // 10 // जलधन्न-निस्सिया, जीवा, पुढवीकट्ठनिस्सिया / हम्मति भत्तपाणेसु, तम्हा भिक्खू न पयावए // 11 // विसप्पे सव्वयो धारे, बहुपाण-विणासणे /