________________ भीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् :: अध्ययनं 81 [ 69 विगयमोहो // 3 // सबं गन्थं कलहं च, विपनहे तहाविह(हो) भिक्खू / सव्वेसु कामनाएसु, पासमाणो न लिप्पई ताई // 4 // भोगामिस-दोसविसन्ने, हियनिस्सेयस-बुद्धिविवजत्थे / बाले य मन्दिए मूढे, बझई मच्छिया व खेलम्मि // 5 // दुपरिचया इमे कामा, नो सुजहा अधीरपुरिसेहिं / अह सन्ति सुब्बया साहू, जे तरन्ति अतरं वणिया वा (वणिया व समुद्द) // 6 // समणा मु एगे वदमाणा, पाणवहं मिया श्रायाणन्ता / मन्दा निरयं गच्छन्ति, बाला पावियाहिं दिट्ठीहिं / / 7 / / न हु पाणवहं अणुजाणे, मुच्चेज कयाइ सव्वदुक्खाणं / एवमारिएहिं अक्खायं, जेहिं इमो साहुधम्मो पन्नत्तो // 8 // पाणे य नाइवाएज्जा, से समिएति वुच्चई ताई / तयो से पावयं कम्म, निजाइ (निराणाई) उदगं व थलायो // / जगनिस्तिएहिं भूएहिं, तसनामेहिं थावरेहिं च (जगनिस्सियाण भूयाणं, तसाणं थावराण य), (जगनिस्सिएहि भूएहि, तसनामेहि थावरेहि य)। नो तेसिमारभे दराडं, मणसा वयसा कायसा चेव // 10 // सुद्धेसणायो नचाणं तत्थ ठवेज भिक्खू अप्पाणं / जायाए घासमेसेजा, रसगिद्धे न सिया भिक्खाए // 11 // पन्ताणि चेव सेवेजा, सीयपिण्डं पुराणकुम्मासं / अदु वुक्कसं पुलागं वा, जवणट्ठा(ए) निसेवए मंथु॥ 12 // जे लक्खणं च सुमिणं, अङ्गविज्जं च जे पउञ्जन्ति / न हु ते समणा वुचन्ति, एवं थायरिएहिं अक्खायं // 12 // इह जीवियं अणियमेत्ता, पब्भट्टा समाहिजोगेहिं / ते कामभोग-रसगिद्धा, उववजन्ति श्रासुरे काए // 14 // ततोऽवि य उवट्टित्ता, संसारं बहुँ अणु(परि)यडन्ति(वरंति) / बहुकम्म-लेवलित्ताणं, बोही होइ (जत्थ) सुदुल्लहा तेमि // 15 // कसिणं पि जो इमं लोयं, पडिपुराणं दलेज एगस्त / तेणावि से न संतूस्से (तुसेज) इइ दुप्पूरए इमे पाया // 16 // जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवडई / दोमासकयं कज्जं, कोडिए वि न निट्ठियं // 17 // नो रक्खसीसु गिज्झेजा, गराडवच्छासु णेगचित्तासु / जायो पुरिसं पलोभित्ता, खेलन्ति जहा व दासेहिं // 18 // नारीसु नो