________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदश्मो विमागः यहाए तं चेव विभागयो भणइ // 32 // (भा०) उद्देसियं समुद्देसियं च श्राएसियं समाएसं / एवं कडे य कम्मे एक्केकि चउकयो भेश्रो // 221 // जावंतियमुद्देसं पासंडीणं भवे समुद्देसं। समणाणं श्राएसं निग्गंथाणं समाएसं // 230 // छिन्नमछिन्नं दुविहं दब्वे खेत्ते य काल भावे य / निष्फाइयनिष्फन्नं नायव्वं जं जहिं कमइ // 231 // भतुवरियं खलु संखडीऍ तदिवसमन्नदिवसे वा / अंतो बहिं च सव्वं सव्वदिणं देहि अच्छिन्नं // 232 // देहि इमं मा सेसं अंतो बाहिरग्गयं व एगपरं / जाव अमुगत्तिवेला अमुगं वेलं च प्रारम्भ // 233 // दवाईछिन्नपि हु जइ भणई थारयोऽवि मा देह / तो कप्पइ छिन्नपि हु अच्छिन्नकडं परिहरंति // 234 // यमुगाणंति व दिजउ अमुकाणं मत्ति एत्थ उ विभासा / जत्थ जईण विसिट्टो निद्दे सो तं परिहरंति // 235 // संदिस्संतं जो सुगइ कप्पए तस्स सेसए ठवणा / संकलिय साहणं वा करेंति असुए इमा मेरा // 236 // मा एयं देहि इमं पुढे सिट्ठमि तं परिहरति / जं दिन्नं तं दिन्नं मा संपइ देहि गेराहंति // 237 // रसभायणहेउं मा मा कुच्छिहिई सुहं व दाहामि / दहिमाई यायतं करेइ कूरं कडं एयं // 238 // मा काहंति अवरणं परिकट्टलियं व दिजइ सुहं तु / वियडेण फाणिएण व निद्रेण समं तु वति // 23 // एमेव य कम्ममिवि उराहवणे नवरि तत्थ नाणत्तं / ताविय-विलीणएणं मोयग-चुनीपुणकरणं // 240 // अमुगंति पुणो रद्धं दाहमकप्पं तमारयो कप्पं / खेत्ते अंतो बाहिं काले सुइव्वं परेव्वं वा // 241 // जं जह व कयं दाहं तं कप्पइ पारो तहा अकयं / कयपाकमणिट्ठत्ति ठियंपि जावंत्तियं मोत्तुं // 242 // छक्कायनिरणुकंपा जिणपवयणबाहिरा बहिफोडा। एवं वयंति फोडा-लुकविलुका जहकबोडा // (10) पूईकम्मं दुविहं दब्वे भावे य होइ नायव्वं / दवंमि छगणधम्मिय भावंमि य बायरं सुहुमं // 243 // गंधाइ-गुणसमिद्धं जं दवं असुइगंध-दव्वजुयं / पूइत्ति परिहरिजइ तं जाणसु