________________ श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [55 यगमणे याणाकोवों तो दंडो // 212 // सूरोदयं गच्छमहं पभाए, चंद्रोदयं जंतु तणाइहारा / दुहा खी पच्चुरसंतिकाउं, रायावि चंदोदयमेव गच्छे // 213 // पत्तलदुम-सालगया दच्छामु निरंगण-त्तिदुञ्चित्ता / उजाणपालएहिं गहिया य हया य बद्धा य // 214 // सहस पइट्टा दिट्ठा इयरेहि निवंगणत्ति तो बद्धा / नितस्स य अवरगहे दंसणमुभयो वहविसग्गा // 215 // जह ते दंसणकंखी अपूरिइच्छा विणासिया रराणा / दिट्ठोऽवियरे मुक्का एमेव इहं समायारो // 217 // ग्राहाकम्मं भुजइ न पडिक्कमए य तस्स ठाणस्स / एमेव अडइ बोडो लुकविलुको जह कबोडो // 217 // पाहाकम्मदारं भणियमिपाणिं पुरा समुद्दिटुं। उद्देसियंति वोच्छं समामयो त दुहा होइ // 218 // योहण विभागेण य योहे टप्पं तु बारस विभागे। उद्दिष्ट कडे कम्मे एक्केकि चउकयो भेयो // 211 // जीवामु कहवि श्रोमे निययं भिखावि इवई देमो / हंदि हु नत्थि दिन्नं भुज्जइ अकयं न य फनेई // 220 // सा उ अविसेसियं चिय मियंमि भत्तंमि तंडुले छुहइ / पासंडीण गिहीण व जो एहिइ तरस भिक्खट्टा // 221 // उमत्थोछुद्देसं कहं वियाणाइ ? चोइए भगइ। उपउत्तो गुरू एवं गिहाथसदाइचिट्टाए॥२२२|| दिनाउ ताउ पंचवि रेहाउ करेइ देइ व गणंति / देहि इयो मा य इयो यवणेह य एत्तिया भिक्खा // 223 // सदाइएसु साहू मुच्छं न करेज गोयरगयो य। एसणजुत्तो होजा गोणीवच्छो गवत्तिय // 224 // ऊसव मंडणवग्गा न पाणियं वच्छए नवि य चारि / वणियागम अवररहे वच्छगरडणं खरंटणया // 225 // पंचविह-विसयसोक्खवखणी बहू समहियं गिहं तं तु / न गणेइ गोणिवच्छो मुच्छिय गढियो गामि // 226 // गमणागमणुवखेवे भासिय सोयाइइंदियाउत्तो। एमणमणेसणं वा तह जाणइ तम्मणो समणो // 227 // महईए संखडीए उम्परियं कूरवंजणाईयं / पउरं दट्टण गिही भणइ इमं देहि पुराणट्ठा // 228 // तत्थ विभागुबे सियमेवं संभवइ पुध्वमुद्दिट्ट। सीसगलहि