________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् :: अध्ययनं 32 ] . [ 173 // 11 // महाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं हुज कयाइ किंचि / तत्थोंवभोगेति किलेसद्वखं, निव्वतई जस्स कए ण दुक्खं // 45 // एमेव सहमि गयो पयोम, उवइ दुक्खाहपरंपरायों। पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे // 46 // सद्दे विरत्तो मणुश्रो विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण / न लिप्पई भवमज्झवि सन्तो, जलेण वा पुक्खरिणीपलासं // 47 // घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति, तं रागहेतु मणु. त्रमाहु / तं दोरहे अमणुन्नमाहु, समो उ जो तेसु स वीयरागो॥४८॥ गन्धस्स घाणं गहणं वयन्ति, घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति / रागस्म हे समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं श्रमणुन्नमाहु // 41 // गन्धेसु जो गिद्धि मुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ से विणासं / रागाउरे श्रोसहिगन्धगिद्धे, सप्पे बिलायो विव निरखमन्ने // 50 // जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं / दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किंचि गन्धं अवरज्झई से // 51 // एगन्तरत्ते रुहरंमि गन्धे, अतालिसे से दुई पयोस / दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागे // 52 // गन्वाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरेहिं सय(हिंसइ)ोगरूवे / चित्तेहिं ते परियावेइ बाले, पिलेइ अत्तट्टगुरू किलि? // 53 // गन्धाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्नियोगे। वए वियोगे य कहिं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तिलाभे ? // 54 / / गन्धे अतित्तो य परिग्गहमि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुडिं। अत्रुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले श्राययई यदत्तं // 55 // तराहाभिभूयस्त अदत्तहारिणो, गंधे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से // 56 // मोसस्स पच्छा य पुरत्थयो य, पयोगकाले य दुही दुरन्ते / एवं अदताणि समाययन्तो, गंधे अतित्तो दुहियो अणिस्सो // 57 // गंधाणुरत्तस्स नरस्त एवं, कत्तो सुहं हुज कयाइ किंचि / तत्थोवभोगेऽवि किलेसदुक्खं,