________________ 14) [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: त्रयोदशमी विभागः : निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं // 58 // एमेव गंधम्मि गयो पयोसं, उवेइ दुक्खोहपरंपरायो। पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे // 51 // गंधे विरत्तो मणुयो विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण / न लिप्पई भवमझेवि संतो, जलेण वा पुक्खरिणीपलासं // 6 // जीहाए रसं गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु / तं दोसहेउं अम. गुन्नमाहु, समो यो तेसु स वीयरागो॥ 61 // रसस्स जीहं गहणं वयन्ति, जि-भाए रसं गहणं वयन्ति / रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु // 62 // रसेसु जो गिछि मुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ से विणासं / रागाउरे बडिसविभिन्नकाए, मच्छे जहा ग्रामिसभोगगिद्ध / 63 / जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं / दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तु, न किंचि रसं अवरझई से // 64 // एगंतरत्ते रुइरंमि रसे, अतालिसे से कुणई पयोसं / दुक्खस्त संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागे // 65 // रसाणुगा ताणुगए य. जीवे, चराचरेहिं सय(हिंसइ)णेगरूवे / चित्तेहिं ते परियावेइ बाले, पिलेइ अत्तगुरु किलि? // 66 // रसाणुवाएण परिग्गहण, उप्पायणे रक्खणसन्नियोगे। वए वियोगे य कहिं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तिलाभे ? // 67 // रसे अतित्ते य परिग्गहमि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्टि। अतुट्टिदोसेण दुही परस्प्त, लोभाविले पाययई अदत्तं // 68 // तराहाभिभूरस्स अदत्तहारिणो, रसे अतित्तस्स परिग्गहे य / मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुवखा न विमुच्चई से // 61 // मोसस्स पच्छा य पुरस्थयो य, पयोगकाले य दुही दुरते / एवं अदत्ताःण समायअंतो, रसे अतित्तो दुहियो अगि.स्सो // 70 // रसाणु रनस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं हुन कयाइ किंचि / तत्थोवभोगेऽवि किलेसदुक्ख, निव्वत्तई जस्स कए ण दुवखं // 71 // एमेव रसम्मि गयो पयोसं उवेइ दुक्खोह परंपरायों / पट्टचित्तो य विणाइ कम्म, जं से