________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : त्रयोदशमी विभागः कज्जं समं साहिजए न उ असझं / जो उ असझ साहइ किलिस्सइ न तं च साहेई // 262 // श्राहाकम्मिय-भायणयकोडण काय(उ) अकयए कप्पे। गहियं तु सुहुमपूई धोवणमाईहिं परिहरणा // 263 // धोयंपि निरावयवं न होइ अाहच्च कम्मगहणंमि / न य अहव्वा उ गुणा भन्नई सुद्धी को एवं ? // 264 // लोएवि असुइगंधा विपरिणया दूरयो न दूसंति / नय मारंति परिणया दूरगया अवि विसावयवा // 265 // सेसेहि उ दव्वेहिं जावइयं फुसइ तत्तिय पूई / लेवेहि तिहि उ पूई कप्पइ कप्पे कए तिगुणे // 266 // इंधणमाई मोतु चउरो सेसाणि होति दव्वाई / तेसिं पुण परिमाणं तयप्पमाणाउ प्रारम्भ // 267 // पढमदिवमंमि कम्मं तिन्नि उ दिवसाणि पूइयं होइ / पुईसु तिसु न कप्पइ कम्पइ तइयो जया कप्पो // 268 // समणक. डाहाकम्मं समणाणं जं कडेण मीसं तु / याहार उवहि वसही सव्वं तं पूइयं होइ // 261 // सडस्त थेवदिवसेसु संखडी ग्रासि संघभत्तं वा / पुच्छित्तु निउणपुच्छ संलागयो वगारीणं // 270 // मीसजायं जावंतियं च पासंडिसाहुमीसं च / सहसंतरं न कप्पइ कप्पइ कप्पे कए तिगुणे // 271 // दुग्गासे तं समइन्छिउं व यद्धाणसीसए जत्ता / सड्ढी बहुभिक्खयरे मीमजायं करे कोई // 33 // (भा०) जावंतहा सिद्धं नेयं देह कामियं जइणं। बहुसु व अपहुप्पंते भणाइ अन्नपि रंधेह // 272 // यत्तट्ठा रंधते पासं. डीणंपि बिइपयो भणइ / निग्गंथा तइयो अत्तट्ठाएऽवि रंधते (सो होइ) // 273 // विसघाइय-पिसियासी मरइ तमन्नोवि खाइउं मरइ / इय पारंपरमरणे अणुमरइ सहस्सप्तो जाय // 274 // एवं मीसजायं चरणप्पं हणइ साहु सुविसुद्धं / तम्हा तं नो कप्पइ पुरिस-सहस्संतरगयपि // 275 // निच्छो. डिए करीसेण वावि उब्वट्टिए तो कप्पा / सुक्कावित्ता गिराहइ अन्न चउत्थे असुक्केऽवि // 276 // सट्ठाणपरट्ठाणो दुविहं ठवियं तु होइ नायब्छ / खीराइ परंपरए हत्थगय घरंतरं जाव // 277 // चुल्ली अवचुल्लो वा ठाणसठाणं तु