________________ 22) [ श्रीमदांगमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः वयं घोरं, असिणाण-महिठ्ठगा // 63 // सिणागां अदुवा कक्कं, लुद्धं पउमगाणि श्र। गायस्सुबट्टणट्ठाए, नायरंति कयाइवि // 64 // नगिणस्स वावि मुंडस्स, दीहरोम-नहंसिणो / मेहुणा उवसंतस्स, किं विभूमाइ कारियं // 65 // विभूसावत्तियं भिक्खू, कम्गं बंधइ चिकणां / संसारसायरे घोरे, जेणां पडइ दुरुत्तरे // 66 // विभुसावत्तियं चेयं, बुद्धा मन्नंति तारिसं / सावजाहुलं चेयं, नेयं ताईहिं सेवियं // 67 // खव्वंति अप्पाणममोहदंसिणो, तवे रया संजमश्रजवे गुणे / धुगांति पावाई पुरेकडाई, नवाई पावाइ न ते करंति // 68 // सयोवसंता श्रममा अकिंचणा, सविजविजाणुगया जसांसणां / उउप्पसन्ने विमलेव चंदिमा, सिद्धिं विमाणाई उति तायिणो // 61 // त्ति बेमि / ॥इति षष्ठमध्ययनम् // 6 // // 7 // अथ सुवाक्यशुद्धि-नामक-सप्तमध्ययनम् // चउराहं खलु भासागां, पहिसंखाय पनवं / दुराहं तु विणयं सिक्खे, दो न भासिज सबमो // 1 // जा अ सच्चा अवतव्या, सचामोसा थ जा मुसा / जा अ बुद्धेहिंऽनाइन्ना, न तं भासिज्ज पनवं // 2 // असबमोसं सच्चं च, अणवजम-ककसं / समुप्पेह-मसंदिद्धं, गिरं भासिज पनवं // 3 // एयं च अट्ठमन्नं वा, जं तु नामेइ सासयं / स भासं सचमोसंपि, तंपि धीगे विवजए॥ 4 // वितहपि तहामुत्ति, जं गिरं भासाए नरो / तम्हा सो पुट्ठो पावेणं, किं पुणं जो मुसं वए ? // 5 // तम्हा गच्छामो वक्खामो, अमुगं वाणे भविस्सइ / अहं वो णं करिस्सामि, एसो वा णं करिस्सइ // 6 // एवमाइ उ जा भासा, एसकालंमि संकिया। संपयाइअम? वा, तंपि धीरो विवजए // 7 // अईअंमिश्र कालंमि, पच्चुप्पण्ण-मणागए। जमटुं तु न जाणिज्जा, एवमेधे ति नो वए / / 8 / अईअंमि य कालंमि, पच्चुप्पन्नमणागए / जत्थ संका भवे तंतु, एवमयं ति नो वए // 1 //