________________ श्रीमदशकालिक-सूत्रम् :: अध्ययनं 6 ] [21 // 44 // तसकायं विहिंसंतो, हिंसई उ तयस्सिए / तसे थ विविहे पाणे, चक्खुसे अ अचाखुसे // 45 // तम्हा एवं विश्राणित्ता, दोसं दुग्गइवडणं / तसकायसमारंभ, जावजीवाइं वजए॥ 46 // जाइं चत्तारि भुजाई, इसिणाऽऽहारमाइणि / ताई तु विवज्जतो, संजमं अणुपालए // 47 // पिंडं सिज्ज च वत्थं च, चउत्थं पायमेव य। अकप्पियं न इच्छिज्जा, पडिगाहिज कप्पियं // 48 // जे नियागं ममायंति, कीमुद्दोसियाहडं / वहं ते समणुजाणंति, इथ वृत्तं महेसिणा // 41 // तम्हा श्रमणपाणाई, कीअमुद्दोसियाहडं / वजयंति ठिअप्पाणो, निग्गंथा धम्मजीविणो // 50 // कंसेसु कंसपाएसु, कुडमोएसु वा पुणो। भुजतो असणपाणाई, पायारा परिभस्सइ // 51 // सीबोदग-समारंभे, भत्त-धोयण-छड्डणे / जाई छिन्नंति (छिप्पंति) भूयाई, दिट्ठो तत्य असंजमो // 52 // पच्छाकम्मं पुरेकम्मं, सिया तत्थ न कप्पइ / एयमट्ठन भुजंति, निग्गंथा गिहिभायणे // 53 // यासंदीपलिअंकसु, मंचमासालएसु वा / अणायरियमजागां, श्रासइनु सइत्तु वा / 54 // नासंदीपलियंकेस, न निसिज्जा न पीढ़ए / निग्गंथाऽपडिलेहाए, बुद्धवृत्तमहिट्ठगा // 55 // गंभीर विजया एए, पाणा दुप्पडिलेहगा। यासंदी पलियको य, एअमट्ट विवजिया // 56 // गोपरग्गपविट्ठस्स, निसिजा जल्ल कप्पइ / इमेरिस-मणायारं, बावजइ अबोहिग्रं // 57 / / विवत्ती बंभचेरस्त, पाणाणां च वहे वहो / वणीमग-पडिग्यायो, पडिकोहो अगारिणां // 5 // अगुती बंभचेरस्स, इत्थीयो बाधि संकगां। कुसीलवड्डयां ठाणं, दूरयो परिवजए॥ 51 // तिराहमन्नयरागस्स, निसिज्जा जस्स कप्पइ / जराए अभिभूयस्स, वा हेअस्स तवस्तिणो // 60 // वाहियो वा अरोगी वा, सिणागणं जो उ पत्थए / वुवकतो होइ अायारो, जदो हवइ संजमो // 61 // संतिमे सुहुमा पाणा, घमासु भिलुगासु य / जे अ भिक्खू सिणायंतो, विशडेणुप्पलापए // 62 // तम्हा ते न सिणायंति, सीएण उसिणेण वा / जावजीवं