________________ 20) [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः // त्रयोदशमो विभागः // 25 / / एग्रं च दोसं दणं, नायपुत्तेण भासियं। सव्वाहारं न भुजंति, निग्गंथा राइभोगणं // 26 // पुढविकायं न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा / तिविहेणं करणजोएणं, संजया सुप्तमाहिया // 27 // पुढविकायं विहिंसंतो, हिंसइ उ तयस्सिए। तसे अ विविहे पाणे, चक्खुसे अ अचक्खुसे // 28 // तम्हा एयं विद्याणित्ता, दोसं दुग्गइवड्ढणं / पुढविकाय-समारंभ, जावजीवाई वजए // 21 // श्राउ कायं न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा / तिविहेण करणजोएण, संजया सुसमाहिया // 30 // याउकायं विहिंसंतो, हिंसई उ तयस्सिए / तसे अ विविहे पाणे, चखुसे य अचक्खुसे // 31 // तम्हा एयं विद्याणित्ता, दोसं दुग्गइवढणं / याउकायसमारंभ, जावजीवाई वजए // 32 // जायतेयं न इच्छंति, पावगं जलइत्तए / तिवखमन्नयरं सत्थं, सधयोऽवि दुरासयं // 33 // पाईगां पडियां वावि, उड्ढं अणुदिसामवि / अहे दाहिणयो वावि, दहे उत्तरयोवि य॥ 34 // भुयाण-मेस माघायो, हन्यवाहो न संप्तयो / तं पईपयावट्ठा, संजया किंचि नारभे // 35 // तम्हा एग्रं विद्याणित्ता, दोसं दुग्गइवडणं / तेउकायसमारंभं, जीवजीवाई वजए // 36 // अणिलस्स समारंभं, बुद्धा मन्नंत तारिसं / सावजबहुलं चेअं, नेयं ताईहिं सेवियं // 37 // तालिघंटेण पत्तेण, साहाविहुग्रणेण वा / न ते वीइउमिच्छति, वेश्रावेऊण वा परं // 38 // जंपि वत्थं व पायं वा, कंबलं पायपुंछणं / न ते वायमुईरंति, जयं परिहरंति अ॥ 31 // तम्हा एयं विवाणिता, दोसं दुग्गइवड्ढणं / वाउकायसमारंभ, जारजीवाइं वजए // 40 // वणस्तई न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा। तिविहेण करणजोएणं संजया सुसमाहिया // 41 // वणस्सई विहिंसंतो, हिंसई अ तयस्सिए / तसे अ विविहे पाणे, चक्खुसे अ अचाखुसे // 42 // तम्हा एग्रं विद्याणित्ता, दोसं दुग्गइवढणं / वणस्सइसमारंभ, जावजीवाइं वजए // 43 // तसकायं न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा / तिविहेगण करणजोएणं, संजया सुसमाहिया