________________ 62 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमी विभागः पंतावे // 325 // इयरोऽविय पंतावे निसि योसवियाण तेसि दिक्खा य / तम् उ न घेत्तवं कइ वा जे योसमेहिंति ? // 326 // ऊणहिय दुबलं वा खर गुरु छिन्नं मइलं असीयसहं / दुबन्नं वा नाउं विपरिणमे अन्नभणियो वा // 327 // एगस्स माणजुत्तं न उ बिइए एवमाइ कज्जेसु / गुरुपामूले ठवणं सो दलयइ अन्नहा कलहो // 328 // पाइन्नमणाइन्नं निसीहाभिहडं च नोनिसीहं च। निसिहाभिहडं ठप्पं वोच्छामी नोनिसीहं तु // 321 // सग्गाम परग्गामे सदेस परदेसमेव बोद्धव्वं / दुविहं तु परग्गामे जलथल नावोडु जंघाए // 330 // जंवा बाह तरीइ व जले थले खंध पारखुरनिबद्धा / संजमाय-विराहम तहियं पुण संजमे का // 331 // अत्याहगाहपंकाम-गरोहारा जले अवाया उ। कंटाहि-तेणसावय थलंमिए ए भवे दोसा // 332 // सग्गामेऽवि य दुविहं घरंतरं नोगरंतरं चेव / तिघरंतरा परेणं घरंतरं तं तु नायव्वं // 333 // नोघरंतरऽयोगविहं वा(पा)डगसाही-निवेसणगिहेसु / काये खंधे मिम्मय कसेण व तं तु भाणेज्जा // 334 // सुन्नं व श्रसइ कालो पगयं व पहेणगं व पासुत्ता / इय एइ काइ घेत्तुं दीवेइ य कारणं तं तु / / 335 // एमेव कमो नियमा निसीहाभिहडेऽवि होइ नायब्वो। यविइअदायगभावं निसीहिग्रं तं तु नायव्यं // 336 // अइदुर. जलंतरिया कम्मासंकाएँ मा न घेच्छति / पाणंति संखडीयो सही सट्टी व पच्छन्नं // 337 // निग्गम देउल दाणं दियाइ सन्नाइ निग्गए दाणं / सिट्ठमि सेसगमणं दितऽन्ने वारयंतऽन्ने // 338 // मुंजण अजीरपुरिमड्ढ. गाइ अच्छंति भुत्तसेसं वा। बागमनिसीहिगाई न भुजई सावगासंका // 336 // उक्खिनं निविखप्पइ अासगयं मल्लगंमि पास्गए। खामित्तु गया सड्डा तेऽवि य सुद्धा असदभावा // 340 // लद्धं पहेणगं मे अमुगत्थगयाएँ संखडीए वा / वंदणगट्ठपविठ्ठा देइ तयं पट्ठिय नियत्ता // 341 // नीयं पहेणगं मे नियगाणं निच्छियं व तं तेहिं / सागारि सयझियं वा पडिकुट्ठा