________________ श्रीपिण्डनियुक्तिः [ 63 संखडे रुट्टा // 342 // एयं तु अणाइन्नं दुविहंपि य श्राहडं समक्खायं / श्राइन्नपि य दुविहं देसे तह देसदेसे य // 343 // हत्थसयं खलु देसो यारेणं होइ देसदेसो य / ग्राइन्नंमि उ तिगिहा ते चिय उवयोगपुवागा // 344 // परिवेसण-पंतीए दूरपवेसो य घंघसालगिहे / हत्थसया याइन्नं गहणं परयो उ पडिकुटुं॥ 345 // (होइ पुण देसदेसो अंतो गिह सा न दीसए जत्थ / उवखेवाई तत्थ उ सोसाई देइ उवयोगं // प्र०) उक्कोस मभिम जहन्नगं च तिविहं तु होइ पाइन्न / करपरियत्त जहन्नं सयरक्कोसं मज्झिमं सेसं // 346 // पिहिउभिन्न-कवाडे फासुय अप्फासुए य बोद्धव्वे / यफासु पुढविमाई फासुय छगणाइददरए // 347 // उन्भिन्ने छकाया दाणे कयविकए य अहिगरणं / ते चेव कवामिवि सविसेसा जंतमाईसु / / 348 // सच्चित्त-पुढविलित्तं लेलु सिलं वाऽवि दाउमोलित्तं / सचित्तपुढवि. लेको चिरंपि उदगं यचिरलिते॥३४१॥ एवं तु पुवलित्ते काया उल्लिंपणेऽवि ते चेव / तिम्मेउं उवलिंपइ जउमुद्दवावि तावे // 350 // जह चेव पुबलिते कारा दाउं पुणोऽवि तह चेव / उबलिप्पंते काया मुइयंगाइ नवरि बढे // 351 // परस्स तं देइ सएव गेहे, तेल्लं व लोणं व घयं गुलं वा। उम्घाडिए तंमि करे यवस्सं, स विक्कयं तेण किणाइ यन्नं // 352 // दाणे कयविकए वा होई अहिगरण-मजयभावस्स / निवयंति जे य तहियं जीवा मुइयंगमूमाई // 353 // जहेव कुभाइसु पुवलित्ते, उभिजमाणे य हवंति काया / योलिंपमाणेवि तहा तहेव, काया कवाडंमि विभासियव्वा // 354 // घरकोइल-संचारा यावत्तण पीदगाइ हे?वरिं / निते ठिए य यंतो डिभाईपेल्लणे दोसा // 355 // घेप्पइ अकुचियागंमि कवाडे पइदिणे परिवहंते / अजऊमुद्दिय गंठी परिभुजइ दहरो जो य // 356 / मालोहडंपि दुविहं जहन्न-मुको मगं च बोधव्यं / अग्गतलेहि जहन्नं तबिवरीयं तु उक्कोसं // 357 // भिक्खू जहन्नगंमी गेरुप उक्कोसगंमि दिटुंतो। अहिडसण माल