________________ 36 ] [ भीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः अलोल-भिक्खू उ रसेसु गिद्धे, उंछ चरे जीविय नाभिकखे / इड्डिं च सकारण-पूयणं च, चए ठिपणा अणिहे जे स भिक्खू // 17 // न परं वएजासि अयं कुतीले. जेणन कुप्पेज न तं वएजा। जाणिय पत्तेयं पुराण-पावं. अत्ताणं न समुक्कसे जे स भिक्खू // 18 // न जाईमत्ते न य रूवमत्ते, न लाभमत्ते न सुएण मत्ते / मयाणि सव्वाणि विवजइत्ता, धम्मज्माण-रए जे स भिक्खू // 11 // पवेयए अज-पयं महामुणी, धम्मे ठियो ठावयइ परपि / निक्खम्म वज्जेज कुसीललिंगं, न यावि हासं कुहए जे स भिक्खू // 20 // तं देहवासं असुइं असासयं, सया चए निच-हियट्ठियप्पा / छिन्दिनु जाईमरणस्स बन्धणं, उवेइ भिक्खू अपुणागमं गई // ति बेमि // 21 // // इति दशममध्यायनम् // 10 // // अथ श्रीरतिवाक्याऽभिधा प्रथमा चूलिका // इह खलु भो पन्वइएणं उत्पन्नदुक्खेणं संजमे अरइ समावन्न-चित्तेणं श्रोहाणुप्पेहिणा अणोहाइएणं चेव हयररिस-गयंकुस-पोय-पडागाभूयाई ईमाई अट्ठारस ठाणाई सम्मं संपडिलेहिअव्वाइं भवंति, तं जहा है भो दुस्समाए दुप्पजीवी 1, लहुसगा इत्तरिया गिहीणं कामभोगा.२, भुजो य साइबहुला मणुस्सा 3, इमे अ मे दुखे न चिरकालोपट्टाइ भविस्सइ 4, श्रोमजणपुरकारे 5, वंतस्स य पडिअायणं 6, अहरगइ वासोवसंपया 7, दुल्हे खलु भो गिहीणं धम्मे गिहवासमन्झे वसंताणं 8, पायंके से वहाय होइ 1, संकप्पे से वहाय होइ 10, सोवक्केसे गिहवासे, निरुवक्केसे परि. श्राए 11, बंधे गिहवासे, मुक्खे परिवाए 12, सावज्जे गिहवासे, अणवज्जे परिवाए 14, बहुसाहारणा गिहीणं कामभोगा 14, पत्तेयं पुनपावं 15, अणिच्चे खलु भो मणुयाण जीवीए कुसग्गजलबिंदुचंचले 16, बहुँ च खलु भो पावं कम्मं पगडं 17, पावाणं च खलु भो कडाणं कम्माणं पुलिं दुचित्राणं दुप्पडिकंताणं वेइत्ता मुवखो नस्थि अवेइत्ता तवसा वा झोसइत्ता 18,