________________ 34 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः चउबिहा खलु सुयसमाहि भवइ, तं जहा-सुयं मे भविस्सइत्ति अज्झाईयव्वं भवइ 1, एगग्गचित्तो भविस्सामित्ति अभाईयव्वं भवई 2. अप्पाणं ठावइस्सामित्ति अन्झाईयव्वं भवई 3, ठियो परं वइस्सामित्ति श्रझाईयव्वं भाई 4. चउत्थं पयं भवई य एत्थ सिलोगो // सू. 3 // नाणमेगग्गचित्तो य, ठियो य ठावई परं / सुयाणि य अहिजित्ता, रयो सुय-समाहिए // 3 // चउबिहा खलु तवसमाही भवइ, तं जहा-नो इहलोगट्टयाए तवमहि. ट्ठिजा 1, नो परलोगट्ठयाए तवमहिट्ठिजा 2, नो कित्ति-वराणसद्द-सिलोगट्ठयाए तवमहिट्ठिजा 3, नन्नत्थ निजरट्टयाए तवमहिट्ठिजा 4, उत्थं पयं भवइ, भवइ य एत्थ सिलोगो // सू० 4 // विविह गुण-तवो-रए य निच्चं, भवइ निरासए निजरट्ठिए / तवसा धुणइ पुराण-पावगं, जुत्तो सया तव. समाहिए // 4 // चरविहा खलु अायारसमाही भवइ, तं जहा-नो इहलोगट्ठयाए यापारमहिट्ठिजा 1, नो परलोगट्टयाए अायारमहिट्ठिज्जा 2, नो कित्ति वराणसद सिलोगट्टयाए यायारमाहेट्ठिजा 3, ननस्थ बारहन्तेहिं हेअहिं पायारमहिहिजा 4, चउत्थं पयं भवइ, भवइ य एत्थ सिलोगो // मू० 5 // जिणवयण-रए अतिन्तिणे, पडिपुराणायय-माययट्ठिए / अायारसमाहि संवुडे, भवई य दन्ते भाव-सन्धए // 5 ॥अभिगम चउरो समाहियो, सुविलु द्रो सुसमाहियप्पयो / विउल-हियं-सुहावहं पुणो, कुबई सो पयखेममप्पणो // 6 ॥जाइमरणायो मुच्चई, इत्थंत्थं च चएई सम्बसो / सिद्धे वा भवई सासए, देवो वा अप्परए महड्डिए // त्ति बेमि // 7 // // इति नवमाध्ययने चतुर्थ उद्देशकः // // इति नवममध्ययनम् // 9 // // 10 // अथ सभिक्षु-नाम-दसममध्ययनम् // निक्खम्ममाणाइ य बुद्भवयणे, निच्चं चित्तसमाहियो हविजा / इत्थीण वसं न यावि गच्छे, वन्तं नो पडियायइ जे स भिक्खू // 1 // पुढवि न खणे न खणावए, सीबोदगं न पिए न पियावए / अगणि-सत्थं जहा सुनि