________________ श्रीमदशकालिक-मूत्रम् :: अध्ययनं 9 ] [ 33 व भासं : योहारिणिं अप्पियकारिणिं च, भासं न भासेज सया स पुजो // 6 // अलोलुए अहए अभाई, अपिसुणे यावि अदीणविती / नो भावए नो विय भावियप्पा, अकोउहल्ले य सया य पुजो // 10 // गुणेहिं साहू अगुणेहिंऽसाहू, गेराहाहि साहु गुण मुचऽसाहू / वियाणिया अप्पग-मप्पएणं, जो रागदोसेहिं समो स पुज्जो // 11 // तहेव डहरं व महलगं वा, इत्थीं पुमं पव्वइयं गिहिं वा / नो हीलए नोवि य खिंसएज्जा, थंभं च कोहं च चए स पुज्जो // 12 // जे माणिया सययं माणयन्ति, जत्तेण कन्नं व निवेसयन्ति / ते माणए माणरिहे तबस्सी, जिइन्दिए सच्चरए स पुज्जो // 13 // तेसिं गुरुणं गुणसायराणं, सोचाण मेहावी सुभासियाई / चरे मुणी पंचरए तिगुत्तो, चउकसाया-वगए स पुजो // 14 // गुरुमिह सययं पडियरिय मुणी, जिणमय निउणे अभिगम-कुसले / धुणिय रयमलं पुरेकडं, भासुरमउलं गई गय (वइ) // त्ति बेमि // 15 // // इति नवमाध्ययने तृतीय उद्देशकः // 6-3 // // 6 // अथ नवमाध्ययने चतुर्थ उद्देशकः // सुयं मे ग्राउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं, इह खलु थेरेहिं भगवन्तेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पन्नत्ता, कयरे खलु ते थेरेहिं भगवन्तेहिं चत्तारि विणय-समाहि-टाणा पन्नत्ता ? इमे खलु ते थेरेहिं भगवन्तेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्टाणा पन्नत्ता, तं जहा-विणयसमाहि सुयसमाहि, तवसमाहि, थायारसमाहि // सू० 1 // विणए सुए अ तवे, पायारे निच पंडिया। अभिरामयन्ति अप्पाणं, जे भवंति जिइन्दिया // 1 // चउबिहा खलु विणयसमाहि भवई, तं जहा-अनुसासिजन्तो सुस्सूसइ 1, सम्म सम्पडिवजइ 2, वेयमाराहइ 3, न य भवइ अत्तसम्पग्गहिए 4, चउत्थं पयं भवइ भवइ य एत्थ सिलोगो // सू० 2 // पेहेई हियाणुसासणं, सुस्सूसइ तं च पुणो अहिट्टिए / न य माण-मएण मजई, विणय-समाही पाययट्ठिए // 2 //